*हार्ट(दिल) का डॉक्टर*

  
     
कृपा प्रसाद एक बहुत ही बड़ा व्यापारी था। सारी जिंदगी उसने धन कमाने में ही लगा दी। अब उसकी उम्र 60 के पार हो चुकी थी ।खूब धन कमाकर घर में बीवी बच्चों का पालन पोषण पैसों से बड़ी अच्छी तरह कर रहा था। अब 60 के पार होने के बाद एक दिन अचानक कृपा प्रसाद थोड़ा सा बीमार हो गया ।जिसके लिए उसे कुछ दिन घर में रहना पड़ा। कृपा प्रसाद थोड़ा गुस्से वाला और  घमंडी  था बीमार पड़ने पर घर में केवल उसकी देखभाल करने के लिए नौकर ही तत्पर रहते थे। पत्नी को तो पार्टियों में से फुर्सत नहीं थी बच्चे भी सुबह कॉलेज जाते और रात तक वापस आते ।
किसी को भी कृपा प्रसाद की बीमारी की कोई फिक्र नहीं थी। कृपा प्रसाद यह देखकर बहुत हैरान हुआ कि सारी जिंदगी जिसके लिए मैंने धन कमाया ऐशो आराम की जिंदगी दी आज उनके लिए मेरे पास  वक्त नहीं है। वह अपना गुस्सा सारे नौकरों पर निकाल देता था ।1 दिन पत्नी जब  शाम को वापस आई तो उसने कहा मैं बीमार हूं तुम्हें कोई फिक्र नहीं है मैं तुम लोगों के लिए सारी जिंदगी कमाता रहा तो वह बोली जब हमको आपकी जरूरत थी तब तो आप धन कमाने में लगे हुए थे आप हमें अपनी जिंदगी जीने दे ।इससे कृपा प्रसाद के मन को बहुत आघात लगा । शाम पड़ चुकी थी रात सिर पर थी कृपा प्रसाद का मन बहुत ही उचाट हुआ  वह चुपचाप घर से निकल पड़ा नौकरों ने उनको कुछ खाने के लिए कहा तो वह खाने की थाली पटक कर गुस्से से घर से बाहर निकल गया। वह समुंदर के किनारे जाकर अपने मन को शांत करने के लिए टहलने लगा ।तभी उसने देखा वहां एक 20- 25 साल का नौजवान जो कि बहुत ही खूबसूरत मुख पर अजीब सी लालिमा मस्तक पर एक तिलक लगा हुआ गले में माला डाली हुई और  समुंदर के किनारे रेत  को इकठ्ठा करके एक  छोटा सा टीला
बनाकर उसको 3-4 ठोकरें  जोर जोर से मार कर उसको गिरा देता और खूब जोर से हंस रहा था  कृपा प्रसाद यह देखकर बहुत हैरान हुआ लेकिन उसने उस लड़के को कुछ नहीं पूछा। लेकिन समुंदर के किनारे आकर उसको थोड़ा सा सुकून मिला था अगले दिन फिर वह शाम को थोड़ा सा टहलने के लिए समुंदर के किनारे गया आज उसने फिर उस लड़के को वहां देखा आज वह कल से भी ज्यादा सुंदर लग रहा था उसके चेहरे पर अजीब सी  लालिमा थी मस्तक पर तिलक था हाथ में झोली माला थी। उसने एक बहुत बड़ा रेत का टीला बनाया और उसको पैर  से बहुत सारी ठोकरे  मार-मार कर खूब प्रसन्न हो रहा था ।कृपा प्रसाद से आज रहा ना गया और वह जाकर बड़ी विनम्रता से उस लड़के से बोला  बेटा आप यह क्या कर रहे हो ।खुद ही  रेत का टीला बनाते हो और उसको ठोकरें मारकर हंस क्यों रहे हो ।वह लड़का पहले तो कृपा प्रसाद को देखकर  हैरान हुआ क्योंकि वो उसको नहीं जानता था लेकिन फिर भी उसने शिष्टाचार के नाते उसको कहा बाबूजी मेरा नाम विमल कुमार है। मैं एक हार्ट(दिल) का डॉक्टर हूं ।सुबह मैं अस्पताल में जाता हूं लेकिन शाम को यहां मैं आकर अपनी इच्छाओं को मारने के लिए यहां आता हूं ।कृपा प्रसाद  को कुछ समझ नहीं आया तो विमल कुमार ने विस्तार से उनको बताया बाबूजी यह जो मेरे मस्तक पर तिलक लगा है यह "श्रीजी" है यानी कि मेरे मस्तक पर साक्षात किशोरी जी विराजमान है और हाथ में कृष्ण नाम की माला है जिसको मैं निरंतर जपता रहता हूं। यह शिक्षा मुझे शुरू से ही मेरे माता-पिता ने दी है। अब मैं नाम के प्रभाव   से अपनी इच्छाओं को अपने पांचों इंद्रियों पर काबू पाने की कोशिश कर रहा हूं जैसे काम क्रोध लोभ  अंहकार और मोह और भी कोई इच्छा हो मैं उसको उस पर विजय प्राप्त करने की कोशिश करता हूं मैं रोज एक इच्छा को त्याग कर यहां रेत का टीला बनाता हूं और जैसे कि कल मैंने क्रोध पर विजय पाई और उसका टीला बनाकर उसको  ठोकरो से मार दिया आज मैंने लोभ पर विजय पाई है इसलिए मैंने एक बड़ा सा  टीला बनाया क्योंकि इंसान का लोभ निरंतर बढ़ता ही रहता है इसलिए आज मैंने बड़ा सा रेत का टीला बनाकर उसको जोर-जोर से ठोकर मारी ताकि मेरे अंदर का लोभ खत्म हो जाए। कृपा प्रसाद यह सुनकर बहुत हैरान हुआ लेकिन उसको यह बातें अब भी समझ नहीं आ रही थी ।विमल कुमार को पता लग गया कि अभी बाबू जी को मेरी बातों की पूरी तरह समझ नहीं आई तो वह कहता बाबूजी चलो आप को मैं अपने घर लेकर चलता हूं ।वहां मैं आपको विस्तार से सब कुछ समझाता हूं मेरा घर पास ही है। कृपा  प्रसाद को घर जाने की कोई जल्दी नहीं थी क्योंकि घर में तो कोई उसका इंतजार करने वाला नहीं था ।इसलिए वह विमल कुमार के साथ उसके घर चला गया उसका घर एक छोटा सा बहुत ही व्यवस्थित ढंग से सजा हुआ था। घर में अजीब  तरह की सुगंध आ रही थी। घर में दाखिल होते ही  विमल कुमार ने अपने मां को आवाज दी मांजी आज हमारे घर मेहमान आए हैं तो उसकी मां जल्दी से बाहर आई और आकर कृपा प्रसाद को बोलती राधे राधे भैया जी। आप यहां विराजो ।तभी विमल कुमार के पिताजी भी बाहर आ गए और साथ में विमल कुमार की बहन माधवी भी बाहर आ गई। सबने आकर कृपा प्रसाद को जो कि उनसे पहले  कभी नहीं मिले थे लेकिन  उन सब ने उनको राधे-राधे किया और उनके साथ ऐसे घुलमिल गए  जैसे कि उनको बरसों से जानते हो । कृपा प्रसाद को यहां आकर बहुत अच्छा लगा  तभी विमल कुमार ने कहा कि यह मेरे पिताजी हैं जो कि एक सरकारी स्कूल में अध्यापक हैं यह बहुत ही इमानदार अध्यापक है उन्होंने बचपन से हमें ईमानदारी की और मेहनत की कमाई की रोटी खिलाई है आज हमारे शरीर में ईमानदारी के साथ-साथ उनकी मेहनत से कमाई हुई रोटी के साथ इनका मेहनत का पसीना भी आज हमारी रगों में दोड रहा है इन्होंने मुझे पढ़ा लिखा कर एक हार्ट  सर्जन  बनाया है उसके साथ साथ इन्होंने हमें खूब अच्छे संस्कार दिए हैं ।यह मेरी माता जी हैं जो कि सुबह उठकर हमारे घर के सरकार राधा कृष्ण जी की खूब सेवा करती है और भोजन बनाते बनाते हैं यह मंत्र का जाप करती रहती है और ठाकुर जी को भोग लगाती हैं  उसी भोजन में हमें ठाकुर जी के नाम की शक्ति प्राप्त होती है  सारी बातें सुनकर कृपा प्रसाद  बहुत ही अचंभित हो रहा था कि एक ऐसी भी दुनिया है मैं तो सारी उम्र पैसे कमाने  मे हीं लगा रहा अभी रात का समय हो चला था तो  कृपा प्रसाद  जाने लगा लेकिन उसके घर के सभी सदस्य कहने लगे आप हमारे घर में मेहमान  है और हमारे घर आए हुए मेहमान कभी भी बिना खाना खाए नहीं जाता । कृपा प्रसाद काफी देर से घर से निकला हुआ था कृपा प्रसाद को भूख भी लगी हुई थी इसलिए वह मना ना कर पाया सब ने जमीन पर चौकी बिछाकर मिलकर भोजन किया । उसने जब पहला कोर अपने मुंह में डाला तो हैरान हो गया कि खाना है या अमृत । इतना स्वादिष्ट भोजन  उसने कभी भी नहीं खाया था। भोजन में केवल दाल रोटी सब्जी और चावल थे उसमें भी उसको इतना आनंद आया। वह विमल कुमार को बोला आप लोग धन्य हो एक मैं हूं जिसके घर में इतना धन होने के बाद भी सुकून नहीं है ।तो विमल कुमार ने कहा रूको बाबूजी तो उसने मंदिर में जाकर कृपा प्रसाद के मस्तक पर श्री जी का तिलक लगा दिया तो मस्तक पर तिलक लगते ही अचानक से कृपा प्रसाद गिरते-गिरते बचा और उसने कहा कि तिलक लगाते ही मुझे अचानक से क्या हो गया जैसे  जोर से झटका लगा  हो तो विमल कुमार और  उसके पिताजी मुस्कुरा कर बोले कृपा प्रसाद जी यह तिलक नहीं यह आपके लिए  किशोरी जू  की कृपा की घंटी है जो अब बज चुकी है ।ना जाने आपने पिछले जन्म में कोन से अच्छे कर्म किए थे जो आपको इस उम्र  में आकर भक्ति का मार्ग पता चलने  लगा  है। नहीं तो कितने धनवान लोग ऐसे ही भगवान का नाम लिए बगैर इस दुनिया से चले जाते हैं ।लेकिन ना जाने आप पर किशोरी जी की कैसे कृपा हो गई । जो यह श्री  जी का तिलक  आपके  मस्तक पर  शोभायमान हुआ है ।कृपा प्रसाद चुपचाप यह सुन रहा था आज  उस का मन बहुत प्रसन्न था। रात को वह  जब घर गया तो घर के नौकर उसको देखकर सहमे हुए थे कि आज  मालिक  देर से वापस आया है इसका गुस्सा हम सब टूटेगाा  लेकिन आज वह बहुत ही अच्छे मूड में था उसने नौकरों को अपनी बीवी को बच्चों को कुछ नहीं कहा चुपचाप जाकर अपने कमरे में जाकर सो गया। लेकिन सारी रात उसको  नींद ही नहीं आई वह बार-बार अपने मस्तक पर लगे श्रीजी  के तिलक को हाथ लगा कर देख रहा था जब हाथ लगाता था तब तब उसके शरीर में अजीब सी हलचल होती जैसे वह किसी देवी के चरणों को छू रहा है। बड़ी मुश्किल से उसने अपनी रात काटी।सुबह उठा तो  उस से रहा ना गया और वह सुबह सुबह ही विमल कुमार के घर गया और उनको कहने लगा कि आप किस देवता का पूजन करते हो तो विमल कुमार तो घर नहीं था लेकिन उसकी माता जी और बहन घर पर थी उन्होंने कहा कि हमारे  घर की  रोनक हमारे  कृपा  सरकार किशोरी जी  और ठाकुर जी हैं  यह बहुत करुणामई है। जिंदगी में एक बार ठाकुर जी  और किशोरी जी का नाम लेने से ही जिंदगी के  सारे पाप नष्ट हो जाते हैं।कृपा प्रसाद को यह घर किसी मंदिर से कम नहीं लग रहा था तभी अचानक से विमल कुमार उसके पिताजी भी घर पर आ गए तो विमल कुमार के पिता जी ने कृपा प्रसाद को एक छोटी सी राधा कृष्ण की प्रतिमा जो की एक ही रूप में थी उसको दी और उसने कहा कि तुम इसको घर ले जाओ और एक झोली माला दी और कहा कि इससे हरे कृष्ण का जाप निरंतर करो तो तुम्हारा घर भी स्वर्ग से सुंदर हो जाएगा। कृपा प्रसाद ने विमल कुमार की माता  जी को कहा कि   क्या आज आप मुझे फिर भोजन कराएंगे मुझे आपके भोजन में अमृत का स्वाद आ रहा था ।तो विमल कुमार की माता जी बोले क्यों नहीं उसने कहां की आप भी  ठाकुर जी और किशोरी जी को भजो  और उनको भोग लगाओगे तो आपके घर में भी अमृत   रूपी   प्रसाद बनेगा। विमल कुमार चुपचाप सुनता रहा ।भोजन को पाकर और हाथ में ठाकुर  जी और  किशोरी जी की प्रतिमा को लेकर वह घर गया और घर जाकर अपने कमरे में जाकर उस प्रतिमा को अपने कंठ से लगा कर खूब रोया। यह तो उस पर एक तरह की कृपा ही थी तभी उसने देखा कि अचानक से उसकी पत्नी उसके कमरे में आई और कहने लगी आज आपकी तबीयत कैसी है ।यह सुनकर वह हैरान हो गया पत्नी के साथ साथ उसके बच्चे भी कमरे में आ गए और कहने लगे पिताजी हमें नहीं पता था कि आप बीमार हो अब आपकी तबीयत कैसी है। यह देखकर कृपा प्रसाद खूब  हैरान हुआ तभी उसकी नजर अपने हाथ में पकड़े ठाकुर जी  पर पड़ी  उसने  देखा ठाकुर जी और किशोरी जी  मन्द मन्द मुस्करा रहे थे ।वह मन में सोचने लगा यह जरूर इनकी ही कृपा  है जो मुझ पर होनी शुरू हो गई है अब तो उसका विश्वास और पक्का होना शुरू हो गया। सुबह जब नहा धोकर उसने ठाकुर जी की सेवा की धूप अगरबत्ती की और उसने सोचा कि आज मैं अपने हाथ से भोजन बनाकर ठाकुर जी को भोग लगाऊंगा। लेकिन तभी उसने देखा उसकी पत्नी पहले से ही रसोई घर में बैठी हुई है और कोई भोजन बना रही है वह यह देखकर हैरान हो गया जो औरत सारी जिंदगी घर की रसोई में  नहीं गई आज कैसी कृपा हुई है ।उसकी पत्नी ने बहुत ही स्वादिष्ट कडी चावल बनाए थे
वही कडी चावल ठाकुर जी को भोग लगाएं बाद में कडी चावल का भोग खाने लगे ।तो सभी ने मिलकर एक ही जगह बैठकर भोजन किया ।कृपा  प्रसाद को आज बहुत ही अच्छा लगा और जब उसने भोजन का पहला कोर मुंह में डाला तो इतना हैरान हुआ क्योंकि विमल कुमार  के घर के  भोजन् जैसा ही स्वाद  उनके घर के भोजन मे भी था वह एक कोर मुंह में डालता और उसकी आंखों में आंसू निकलते जाते भोजन के साथ साथ आज वो आंसू भी अपने अंदर भोजन के साथ खाए जा रहा था। आज उसको बहुत ही  सुकून  मिल रहा था  ।वह पूरे परिवार को अपने पास बैठे देखकर ठाकुर जी का लाख-लाख धन्यवाद कर रहा था ।ऐसे  श्री जी और  ठाकुर जी की कृपा ,
कृपा प्रसाद  के  ऊपर हुई ।उसी दिन वह  विमल कुमार  के  घर गया और  वह  विमल  के चरणों में पड़ गया और  कहने लगा तुम  वास्तव  मे  दिल के डाक्टर  हो जो तुने मेरे  अंहकारी दिल का इलाज  ठाकुर जी और किशोरी जी के नाम के ओजारों से किया है ।
  इसलिए हमें भी निरंतर ठाकुर जी का नाम जपते हुए अपने पांचों इंद्रियों काम क्रोध मोह लोभ  अंहकार पर काबू पाएंगे तभी हमें ठाकुर जी की कृपा प्राप्त हो सकती है ।दिखावे से की गई भक्ति केवल यही रह जाएगी। लेकिन जब हम अपने पांचों इंद्रियों पर काबू पाकर अपनी इच्छाओं को मारकर ठाकुर जी का नाम लेंगे तभी हमें ठाकुर जी की शरण प्राप्त होगी और उनकी कृपा दृष्टि हम पर सदा बनी रहेगी।
बोलो करूणा अवतार मोहन मुरारी की जय हो ।
🌹श्री राधे राधे 🌹
👏👏

Post a Comment

0 Comments