मुकुन्दस्त्वया प्रेमडोरेन बद्ध, पतंगों यथा त्वामनुभ्राम्यमाणः ।
( श्रीनिम्बार्क विरचित श्रीराधाष्टक )
साधकों ! कल शाम को गौरांगी का फोन आया ......
कई दिनों से मेरी उससे बातें भी नही हुयी थीं ।
हरि जी ! क्या लिखा है आपनें श्रीनिम्बार्कचरित्र .....!
मै राधाबल्लभी ! पर मुझे बहुत अच्छे लगनें लगे हैं श्रीनिम्बार्काचार्य ।
मै नही जानती थी श्रीनिम्बार्काचार्य जी को ...........।
पर आपनें बताया कि .......श्रीराधा कृष्ण के युगलोपासना की शुरुआत
श्रीनिम्बार्काचार्य जी से ही हुयी ........आहा !
मै भी खुश था.........कई दिनों के बाद गौरांगी से बातें हो रही थीं ।
फिर चहकते हुए बोली ........हरि जी ! रसोपासना , माधुर्य की उपासना .....प्रेम की उपासना...ये श्री निम्बार्काचार्य जी की ही देंन है ।
और हाँ ..........सखी भाव , सहचरी भाव का प्रकाश इन्होनें ही जगत में किया है .......ये बहुत बड़ा योगदान है इनका ।
कितनी प्रेमपूर्ण होकर बोले जा रही थी गौरांगी ।
पता है हरि जी ! 4 दिन पहले ..........मैने श्रीनिम्बार्काचार्य जी को पढ़ा ........मुझे वो बहुत प्यारे लगे ।
मै श्रीराधाबल्लभ जी दर्शन करनें गयी थी .........वहाँ पास में ही निम्बार्क सम्प्रदाय का एक प्राचीन मन्दिर है ......" पन्ना वाली कुञ्ज"........मै कभी नही जाती थी वहाँ ।
पर "श्रीनिम्बार्काचार्य चरित्र" को पढ़कर मै वहाँ गयी....मुझे अच्छा लगा.....शान्त स्थान है....ठाकुर का नाम भी श्री युगल किशोर है ।
आहा ! क्या छवि है उनकी .............।
आप गए हो वहाँ ? गौरांगी नें मुझ से पूछा ।
हाँ.....गया हूँ .......मै इतना ही बोला ....मुझे गौरांगी की बातें सुननी थी ।
हरि जी ! वहाँ कुछ देर मै खड़ी रही .......अपलक नेत्रों से ठाकुर जी को निहारती रही ......
पर ये क्या ! पुजारियों नें कितना भारी पोशाक पहना रखा था .....
उमस वाली गर्मी ........ ऊपर से ये भारी आभूषण और ।
हरि जी ! मुझे गर्मी लगनें लगी......मेरा शरीर जलनें लगा मै पसीनें से नहा गयी .......बल्कि मै तो बाहर खुली हवा में थी ।
गौरांगी जब ये बोल रही थी .....तब मुझे रोमांच हो रहा था ........कितनी प्रेमपूर्ण है ना ये ...........श्री विग्रह को गर्मी लगी .....तो उस गर्मी को अपनें में अनुभव कर रही थी ये ....ओह !
फिर क्या हुआ गौरांगी ?
कुछ देर के लिए मोबाइल में आवाज नही आई ......तो मैने पूछा ।
नही कुछ नही .......जल पी रही थी ।
हाँ ......हरि जी ! फिर मासूम बच्चों की तरह साँस ले लेकर बोलना शुरू किया उसनें ।
मैने इधर उधर देखा .........कोई पुजारी तो मिले ........पर आस पास कोई पुजारी नही था ............उस स्थान पर मै ही थी ।
मैने इधर देखा न उधर .........मै तो चली गयी भीतर गर्भ गृह में ।
नही नही .......गलत मत समझना हरि जी !......इसमें मेरे ठाकुर जी की मर्जी भी शामिल थी ........मै सच कह रही हूँ.....( ये कहते हुए आदतन उसनें अवश्य अपनें गले को छूआ होगा ) मुझे ही आँखों के इशारे से उन्होंने भीतर बुलाया .......।
मै तुरन्त हरि जी ! गर्भ गृह में चली गयी ...........मुझे सारे काम जल्दी जल्दी करनें थे ..........पुजारी कैसे हैं .....मुझे पता नही था .....सरल हैं या खूँसट ।
मै भीतर गयी ........... मैने एक बड़ा सा टीन का बक्सा खोला .......वो पोशाक का ही बक्सा निकला ।
उसमें से एक पोशाक मिला मुझे ..............कॉटन का था .........चन्दन कलर का ..........श्री जी के लिए लहंगा भी मिल गया ........मेरी ख़ुशी का ठिकाना नही था ।
मैने फटाफट उनके सारे आभूषण और पोशाक निकाल दिए ।
और ये कॉटन के पोशाक पहना दिए ।
बस अब मुझे ठंडक मिली थी .........शीतलता का अनुभव हो रहा था ।
मै आनन्द से गर्भ गृह से बाहर आई ..............
तभी .........
कौन हो तुम ? भीतर कैसे गयीं ?
पुजारी आगये थे उसी समय ......मै मन ही मन मुस्कुरा रही थी ।
और जैसे ही उसनें देखा ........पोशाक चेंज कर दिए ।
ये किसनें किये ?
हरि जी ! मै लड़की थी ......अगर कोई लड़का होता ....तो पीट ही देता वो पुजारी उसे ।
मैने किये .....
........मुझे क्या डर ! मैने निर्भय होकर कहा ।
स्त्री होकर तुम मन्दिर में कैसे गयीं ?
मै यमुना स्नान करके आई हूँ .....पवित्र हूँ........फिर क्या दिक्कत है !
मै उसे जबाब दे रही थी ।
उसे बहुत गुस्सा आरहा था .......पर वो करे क्या ?
हाथ लगा नही सकता था मुझे ।
पर हमारे निम्बार्क सम्प्रदाय में स्त्री को विग्रह छूनेंका अधिकार नही है !
बेचारा दाँत भींच के बोल रहा था ।
क्यों नही .............आपके ही सम्प्रदाय का ग्रन्थ है ना ...महावाणी ।
उसमें जो अष्टयाम सेवा का वर्णन है ............उसमें तो स्पष्ट लिखा है ......"प्रातः कालहीं उठिके धारी सखी को भाव"
आपको अगर श्रीजी की सेवा करनी है ......तो आपको पुरुष का अहंकार छोड़ना ही पड़ेगा ........भावना से सखी भाव को धारण करो .....फिर उनकी सेवा करो ...........हरि जी ! मैने उसे स्पष्ट कहा ।
वो बगलें झाँकनें लगा ।
फिर मैने कहा ......सखी भाव ....यानि प्रेम भाव .....पूर्ण प्रेम भाव ।
इस सखी भाव को प्रकाश में लानें वाले श्रीनिम्बार्काचार्य जी ही तो थे ... फिर मै शुद्ध पवित्र यमुना स्नान करके आई हुयी ...एक सखी ...........तभी मैने युगल किशोर जू के विग्रह की ओर देखा .....तो आश्चर्य हरि जी ! वो विग्रह मुस्कुरा रही थी ...... मुझे और बोलनें के लिए प्रेरित कर रही थीं ........इन युगलवर को आज आनन्द आरहा था ।
क्या हुआ ? गलती अपनी तो देखनी नही है आपको ..........अब मै आक्रामक हो गयी थी ..........ऐसे सेवा होती है !...........श्रीनिम्बार्क सम्प्रदाय में "आत्मवत्" सेवा का विधान है ...........यानि अपनें जैसा अनुभव करते हुए ...सेवा करना .......।
क्या आपनें ऐसा किया ?
इतनी गर्मी में ऐसे पोशाक ?
और ऊपर से आभूषण ?
अब देखो.........कितना अच्छा लग रहा है.......दर्शन करो अब ।
पुजारी बेचारा क्या बोले ................वो मुझे देखता ही रहा ।
मैने उससे कहा ...........सखियों को थोडा सेवा का अवसर दो ......इस निम्बार्क सम्प्रदाय में अहंकार वालों का ......कोई काम नही है .....अहंकार वाले यानि पुरुष .......।
जो निरहंकारी हैं .........अहंकार से रहित हैं .....वही तो सखी भाव है ।
और इन ठाकुर जी को वही पसन्द है ............।
गौरांगी बहुत तेजस्विनी है ............जो बोलती है ....स्पष्ट बोलती है ।
फिर हरि जी ! मै विनम्र हो गयी .........और मैने कहा .........पुरुष क्या जानें सजना .......पुरुष क्या जानें कैसे पोशाक पहनाये जाएँ ।
कल से मुझे बुला लिया करो.........मै दो दिन में सिखा दूंगी ....।
ये कहकर मै हँसते हुए चल दी ........पर जाते जाते एक बार फिर ठाकुर श्री युगल किशोर जी को मैंनें देखा ........वो फिर मुस्कुरा रहे थे ।
हरि जी ! "सखी भाव" का मतलब ये नही है ......कि देह से ही स्त्री हों ......देह तो मिथ्या है ।
सखी भाव का मतलब है ....प्रेम पूर्ण होना .........प्रेम से सिक्त हृदय का होना ।
सखी भाव का मतलब है ......सम्वेदन शील होना .....सखी भाव का मतलब है..........हृदय भरा हुआ हो ...........भाव से ........।
बस इसके बाद फोन कट गया था गौरांगी का ............।
( साधकों ! आज "निम्बार्क चरित्र" को मै आगे नही बढ़ा पाया ....गौरांगी के साथ जो मेरी बातें हुयी थीं ......उसे ही मैने लिख दिया ।
अब कल से फिर आगे "शाश्वत की कहानियाँ" में श्रीनिम्बार्काचार्य चरित्र .....)
परी बलि कौन अनोखी बानि ।
ज्यो ज्यो भोर होत हैं त्यों त्यों, पौढत हौं पट तानि ।
आरस तजहु अरुनई उदई, गई निसा रति मानी ।
"श्रीहरिप्रिया" प्राणधन जीवनी , सकल सुखन की खानि ।।
Harisharan
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