"दृढ़ विश्वास"

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          मध्यप्रदेश के एक गाँव में चतुर्भुज भगवान का मन्दिर है। महाराजजी का अपने गुरुदेव के साथ वहाँ जाना होता था। वहाँ पूर्ण शौचाचार पूर्वक भगवान् की सेवा-पूजा होती है। उस मन्दिर के पुजारी की वृद्धा माताजी, जो सेवा-पूजा में सहयोगिनी थीं, एक बार अँधेरे में गिर गयीं और उनका कूल्हा टूट गया। उन्हें ठाकुरजी की सेवा न कर पाने का बड़ा क्लेश रहता था और वे उन्हें कठोर शब्दों में उलाहना देती रहती थीं।
          एक दिन वे वृद्ध माताजी अत्यन्त सबेरे-सबेरे घिसटती हुईं किसी तरह मन्दिर तक पहुँच गयीं, गर्भ गृह का ताला खोला और अन्दर से बन्द कर दिया। इधर उनके पुत्र पुजारीजी जब नित्य की तरह मन्दिर पहुँचे तो गर्भगृह को अन्दर से बन्द देखकर चोरी आदि की आशंका करने लगे। दरवाजा पीटने पर अन्दर से वृद्धा माताजी ने पुकारकर कहा, ठहरो खोलती हूँ और ऐसा कहकर वे सामान्य स्वस्थ रूप से चलकर दरवाजे तक आयीं और दरवाजा खोल दिया। उन्हें टूटे कूल्हे की पीड़ा से मुक्त देखकर सब आश्चर्यचकित थे।
          पूछने पर उन्होंने अपनी सहज ग्रामीण भाषा में बताया कि मैं आज चतुर्भुज भगवान् से लड़ाई करने आयी कि इन्होंने मेरा कूल्हा क्यों तोड़ दिया ? मैंने इनको कह दिया कि इसे ठीक कर दो, नहीं तो मैं तुम्हारा कूल्हा तोड़ दूँगी। मैंने चन्दन वाला चकला उठाया भी था, तभी उन्होंने मेरी कमर पर हाथ फेरकर कूल्हा जोड़ दिया। मैं चंगी हो गयी।
          इस प्रसंग के सम्बन्ध में पूछने पर भक्तमाली जी महाराज ने बताया कि हम लोग प्रायः भगवान् की मूर्ति में पाषाण अथवा काष्ठबुद्धि नहीं छोड़ पाते। उस वृद्धा माताजी की उस मूर्ति में दृढ़ भगवद्बुद्धि थी, इसलिये यह साक्षात् कृपा-परिणाम हुआ।
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                                         श्रीराजेन्द्रदासजी महाराज
                                                    'कल्याण (९३।८)

                           "जय जय श्री राधे"
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