"शिष्य की परीक्षा"

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          निम्बार्क-सम्प्रदाय के संत श्रीभट्टदेवाचार्यजी महाराज के पास व्रज से एक विप्र बालक आया और दीक्षा देने की प्रार्थना की।
          महाराजजी ने उससे कहा कि अभी तुम्हें हमारा दर्शन नहीं हुआ है, दीक्षा कैसे दें ? वह कुछ समझा नहीं। महाराजजी ने पूछा-हमारे में कोई विशेषता दीख रही है ? उसने कुछ कहा नहीं। महाराज बोले कि अभी दर्शन की योग्यता नहीं आयी है, अत: युगल नाम लेते हुए गिरिराजजी की १२ वर्ष परिक्रमा करो। परिक्रमा में ही निवास करो। उसने वैसा ही किया। लौटकर आया और वही प्रश्न पूछने पर कहा कि आपके स्वरूप से भगवत्प्रेम बरस रहा है। पुनः १२ वर्ष गिरिराजजी की शरण लेने की आज्ञा हुई। वह गया और फिर वही साधना करके लौटकर आया तब पुनः प्रश्न हुआ-हमारे में क्या दीखता है ? उसने कहा-आपका देह प्राकृत नहीं दीखता, सच्चिदानन्दमय प्रतीत होता है।
          पुनः १२ वर्ष के लिये गिरिराजजी जाने की आज्ञा हुई। इस बार लौटकर आये तो पूछने पर कुछ कह नहीं पाये, नेत्रों से अश्रुधारा बहती रही। उन्हें महाराजकी गोद में बैठे युगल-सरकार की छवि दीख रही थी। महाराज ने प्रेमपूर्वक दीक्षा दी। वे महापुरुष हरिव्यास देवाचार्य के नाम से विख्यात हुए।
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                                         श्रीराजेन्द्रदासजी महाराज
                                                    'कल्याण' (९३।८)

                          "जय जय श्री राधे"
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