( शाश्वत की कहानियाँ )
!! श्रीरामानुजाचार्य चरित्र - भाग 14 !!
यस्य श्रवण मात्रेण जन्म संसार बन्धनात् .....
( श्रीविष्णु सहस्रनाम )
( क्या यार शाश्वत ! तुम भी कुछ भी लिखते हो ......।
कल मेरे साथ एक मित्र गया था शाश्वत से मिलनें .......बस शाश्वत से मिलते ही .......सीधे यही प्रश्न किया ।
क्यों मैने क्या लिखा ऐसा ? शाश्वत नें मेरी ओर देखा ।
फिर उस मित्र नें शाश्वत से ही पूछा .........मूर्ति कहीं बोलती है ?
मूर्ति कहीं बातें करती है ? मूर्ति कहीं अपनी थाली उठाकर ले आती है ?
तुम भी ना ! कुछ भी लिखते हो ।
हाँ मूर्ति बोलती है..........शाश्वत की आँखों में अटूट विश्वास था ....
हाँ .......जैसे मै तुमसे बातें कर रहा हूँ.......बिल्कुल ऐसे ही ।
अरे ! सच्चा प्रेम हो तो पत्थर भी बोल उठते हैं ..........फिर मूर्ति बोले तो क्या बड़ी बात है ....यार ! , शाश्वत मूड में बोला ।
फिर कुछ देर बाद एक बढ़िया सा डायलॉग दे दिया शाश्वत नें .....
तुम से नही बोलेगी मूर्ति......तुमसे तुम्हारा पड़ोसी तो बोलता नही ।
ये कहकर पेट पकड़ कर बहुत जोर से हँसा था शाश्वत ।
बोलनें वालों से बोले .....तो कोई बड़ी बात नही है ............
अभी भी हैं...इसी श्री धाम वृन्दावन में हैं जिनसे मूर्ति बातें करती है ।
पर वो लोग उसे मूर्ति मानते ही कहाँ है ......वो तो अपना आराध्य ही मानते हैं .............
उन भक्तों की नज़र से देखो.......तुमसे भी बोल उठेगी मूर्ति !
"कोई मेरे आँखों से देखे तो समझे , तुम मेरे क्या हो तुम मेरे क्या हो"
बड़ी मीठी आवाज में शाश्वत गा रहा था..........ये गीत ।
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*** कल से आगे का प्रसंग ............
कूरेश ! कहाँ हो तुम ?
अर्ध रात्रि की वेला थी........कूरेश जी सो रहे थे......अपनी कुटिया में ........तब श्री रामानुजाचार्य जी नें आकर आवाज लगाई थी ।
कहाँ हो तुम कूरेश ?
ओह ! सदगुरुदेव पधारे !
हड़बड़ाकर उठे थे दोनों दम्पति .........कूरेश जी को बाहर बुलवाया ....
और उनकी पत्नी से कहा....रामानुजाचार्य जी नें ......हम थोडा कावेरी के तट तक जा के आरहे हैं ......तुम सो जाओ ......कूरेश मेरे साथ जा रहा है .....इसलिये इसकी चिन्ता तुम मत करना ........पत्नी को समझाकर कूरेश जी को साथ में लेकर चल पड़े थे कावेरी नदी के किनारे ।
कूरेश ! भारत में एक भीषण पागलपन शुरू हो गया है ......ये बड़ी चिन्ता की बात है ..........रामानुजाचार्य जी नें कहा ।
क्या हुआ आचार्य चरण ! मुझे बताइये ना !
तुम्हे बतानें के लिए ही तो मै कावेरी के किनारे तुम्हे लाया हूँ .....
रामानुजाचार्य जी नें कहा ।
कुछ देर तक चलते रहे दोनों ......कूरेश जी तो सोच रहे थे स्वामी जी ही कुछ बोलें .........पर काफी देर तक स्वामी श्री रामानुजाचार्य जी चुप रहे......फिर उसके बाद यहाँ से शुरुआत की अपनें बात की ......
तुम राजा हो ना ? रामानुजाचार्य जी नें पूछा ।
नही भगवन् ! पहले राजा था ......अब तो आपका दासानुदास हूँ ।
बड़ी विनम्रता से कूरेश जी नें कहा ।
चिन्ता की लकीरें साफ दीख रही थीं रामानुजाचार्य जी के मस्तक में ।
चरण पकड़ लिए कूरेश जी नें .......भगवन् ! इस शिष्य के होते हुए आपके मस्तक में चिन्ता की लकीरें ?
कूरेश ! तुम चोल राजवंशी राजा कोलुतुंग को जानते हो ?
वो पागल राजा ! हाँ भगवन् ! कभी देखा तो नही है .....पर उसका पागलपन तो सम्पूर्ण भारत जानता है ............।
कुछ करना होगा कूरेश ! नही तो वैष्णवों का नामोनिशान मिटा देगा ये चोलवंशीय । रामानुजाचार्य जी नें कहा ...और ये भी कहा ...........कल मैने सुना है यहाँ से 200 मील दूरी पर ........एक विशाल भगवान गोविन्दा का सुन्दर मन्दिर था ..........वहाँ करीब 500 वैष्णव भक्त लोग मिलकर नित्य कीर्तन भजन विष्णु सहस्रनाम का पाठ ......ये सब करते थे ।
पर पता है ! कल रात्रि में ही चोल वंशी राजा कोलतुंग के लोग हाथी में चढ़कर आये......और सोते हुए वैष्णवों के ऊपर हाथी चला दिया .सबके सब मारे गए ........और तो और ....2000 वर्ष प्राचीन भगवान गोविन्दा की मूर्ति थी ......उसे भी समुद्र फेंक दिया ।
ओह ! क्रोध से चेहरा लाल हो गया था रामानुजाचार्य जी का ।
क्या किया जाए ! तुम भी पूर्व में राजा थे ......इसलिये मै तुम्हारे पास आया हूँ कूरेश ! क्या करना चाहिए ?
कुछ समझ में नही आरहा था कूरेश जी को भी...वह सोच में पड़ गए थे ।
कुछ देर तक दोनों मौन ही रहे ।
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इन चोल वंशीय राजाओं का जो इतिहास है........वो ऐसा ही रक्तरंजित रहा है ।
कूरेश जी नें इन राजाओं का इतिहास बताया ........विशेष इन चोल वंशियों का ।
हे भगवन् ! इनके सभी राजा शैव रहे हैं .........पर शैव होकर वैष्णवों के साथ द्वेष करना ही चाहिए ......ऐसा कोई नियम तो नही है ।
पर इन चोल वंशियों नें वैष्णवों के साथ ऐसा ही किया है .........
क्या हम लोग अपनी "वैष्णवीसेना" बनाकर उनका सामना कर सकते हैं ?
रामानुजाचार्य जी नें कुछ देर विचार करके कूरेश जी से पूछा ।
सिर झुकाकर कूरेश जी नें उत्तर दिया ..........
नही भगवन् ! हम लोग उस दुष्ट राजा कोलतुंग का सामना इस तरह से नही कर सकते .......क्यों की उसनें अपना विस्तार श्री लंका तक कर लिया है ......और उधर उत्तर भारत में भी पैर पसारनें की उसकी तैयारी है । कूरेश जी नें सारी बातें बताई ।
तो क्या हम कुछ नही कर सकते ?
रामानुजाचार्य जी दुःखी हो गए थे ।
क्यों नही कर सकते .......हम करेंगें .............पर हम युद्ध की राह पर नही जायेंगें ......हम युद्ध करके उस राजा को पराजित कर ही नही पायेंगें .............इसलिये .........कूरेश जी नें उपाय बताया ।
आप ब्रह्मसूत्र के ऊपर भाष्य लिखें.........हे भगवन् !
चरणों में वन्दन करते हुए कूरेश जी नें कहा था ।
"श्री भाष्य" की रचना आप करें .....उसके माध्यम से विशिष्टाद्वैत सिद्धान्त की स्थापना करें ........हे आचार्य ! इससे विश्व का विद्वत समाज आपकी बातें सुननें को बाध्य होगा .......सत्य वो समझेगा ।
इससे हमारी बात विद्वत् समाज से होते हुए आम जनमानस तक पहुंचेंगी .....तब वैचारिक आंदोलन जन मानस को झँकझोरेगा ।
बहुत प्रसन्न हुए कूरेश जी की बातें सुनकर रामानुजाचार्य जी ।
कुछ देर विचार करके फिर बोले रामानुजाचार्य जी ।
पर मुझे "बोधायन वृत्ति" ...... जो पहले के आचार्य लिख चुके हैं ......उस ग्रन्थ की आवश्यकता पड़ेगी ...........उसको देखकर ही मै श्री भाष्य लिख पाउँगा .............।
तो भगवन् ! खोजा जाए ......वो "बोधायन वृत्ति"......नामक ग्रन्थ ।
चारों ओर रामानुज के शिष्य दौड़ पड़े ..........उस ग्रन्थ की तलाश में ....पर वो ग्रन्थ कहीं नही मिला .............कहीं नही ।
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ॐ नमः शिवाय .......................
हाँ बोलो .......क्या समाचार लाये हो !
सभा लगी हुयी है ....कोलतुंग राजा की ..............
उसके सिपाही आगये हैं ...........और कुछ समाचार लाये हैं ।
राजा बैठा है ....उच्च सिंहासन में ..................
राज गुरु ! कैसे भगवान शिव को मै जन जन में पहुँचाऊँ .......?
मै चाहता हूँ ..........इस पृथ्वी में सभी शैव हों .............पर वैष्णव कोई नही हो ................विष्णु से मुझे चिढ है ................मै विश्व में से विष्णु की हर प्रतिमा को तोड़कर समुद्र में फेंक दूँगा ............।
हे राजन् ! "रामानुजाचार्य".........इनका नाम तो सुना होगा आपनें .....वो रामानुजाचार्य वैष्णवता के प्रचार में लगे हुए हैं .........वो सबके गले में तुलसी की माला.....और शंख चक्र अंकित कर रहे हैं ।
बस उस रामानुजाचार्य को तुम शैव बना दो.........तो तुम्हारी ये इच्छा भी पूरी हो जायेगी .......मिटा दो उसका ऊर्ध्वपुण्ड्र .......तोड़ दो उसकी कण्ठी माला .......लगा दो त्रिपुण्ड्र ........और रुद्राक्ष ......।
फिर तो तुम्हारी ये इच्छा तुरन्त पूरी हो जायेगी ............कि विश्व में मात्र शैव ही रहें .......कोई वैष्णव न हो ।
राज गुरु नें ये सब बातें कहीं थीं राजा से ।
हाँ ......मैने नाम सुना है रामानुजाचार्य का .......सुना है उसके तर्क बड़े तीखे होते हैं .......शस्त्र से भी ज्यादा तीखे.......राजा बोल रहा था ।
हाँ राजन् ! ब्रह्मसूत्र पर श्री भाष्य लिखनें की इच्छा है रामानुज की ......सिपाही नें आकर सुचना दी ।
पर ................पर क्या ? राजगुरु नें पूछा ।
"बोधायन वृत्ति" नामक ग्रन्थ की खोज हैं उन्हें ..........पर उन्हें कहीं मिल नही रहा .........।
जला दो ........जहां जहाँ ये ग्रन्थ हो .........उसे वहीं जला दो .........।
राजा कोलतुंग नें ये सबके सामनें अपना फ़रमान जारी किया था ।
और हाँ ..........रामानुज कहाँ जाता है ? ....क्या करता है ?
इसकी पूरी सूचना मुझ तक रोज पहुंचनी चाहिए......राजा नें फिर कहा ।
और हाँ .....अब तो मेरा यही लक्ष्य है .....रामानुज को शैव बनाना......
राजा नें ये कहते हुए अट्टहास किया था ।
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भगवन् ! कहीं नही मिला हमारे दक्षिण भारत में वो ग्रन्थ ...."बोधायन वृत्ति" ।
कूरेश जी नें आकर रामानुजाचार्य जी को बताया ।
फिर ? फिर क्या करें ? कूरेश ! तुम नें और जानकारी नही ली ?
ली......ली भगवन् ! मैने पूरी जानकारी ली ............वो ग्रन्थ मात्र कश्मीर में ही मिलेगा ..........कश्मीर में एक शारदा ग्रन्थालय है .....गुरुदेव ! वहाँ तो अवश्य मिलेगा ....कूरेश जी नें अपनें गुरुदेव रामानुजाचार्य जी को सारी बातें बता दी थीं ।
ठीक है फिर चलो ...........शुभ कार्य को टालना नही चाहिए ......आज ही चलो .....और तुम और हम ही जायेंगें ।
कूरेश जी और स्वामी रामानुजाचार्य जी .....दोनों ही चल दिए थे ।
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साधकों ! स्वामी रामानुजाचार्य और कूरेश जी को कश्मीर पहुंचनें में ही 6 महिनें लग गए .........लगनें ही थे ......दक्षिण भारत से ......उत्तर भारत में आरहे थे ।
पर साथ साथ में राजा कोलतुंग के दो लोग भी कश्मीर पहुँच गए .....ताकि रामानुजाचार्य उस बोधायन वृत्ति नामक ग्रन्थ को न पा लें ।
काश्मीर के विद्वानों से जाकर कहा ........रामानुज नें ......
मै सुदूर दाक्षिण राज्य से आया हूँ ........."बोधायन वृत्ति" यह ग्रन्थ मुझे दे दो .............आपकी पुस्तकालय में ही है ..........।
कोलतुंग के लोग पहुँच गए थे पुस्तकालय में ...........अपार धन देनें की बात कही वहाँ के विद्वानों को ............और ये भी कहा ........कह दो ग्रन्थ नही हैं ............कह दो दीमक इत्यादि नें खा लिया ।
अपार धन पाकर विद्वानों नें कह दिया ........ग्रन्थ नही है हमारे पास ।
बहुत दुःखी हो गए .....श्री रामानुज और उनके शिष्य कूरेश जी
लौट आये अपनें कक्ष में.........।
रात भर नेत्रों से जल प्रवाहित करते रहे रामानुजाचार्य जी ।
माँ शारदा की स्तुति की.....माँ ! आप चाहें तो कुछ भी कर सकती हैं .......मुझे कुछ नही चाहिये आपसे .....बस वो ग्रन्थ दिला दो ।
तभी एकाएक प्रकाश छा गया .......उस कक्ष में ।
दिव्य रूप धारण की हुयी माँ सरस्वती प्रकट हो गयीं .....और वो ग्रन्थ भी लाकर दे दिया .........और ये कहा .....आप लोग यहाँ से निकल जाओ .........जाओ ।
बड़े प्रसन्न होकर ...........आनन्दित होते हुए कश्मीर से निकल गए ........रामानुजाचार्य जी और कूरेश जी ।
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सुबह जब देखा ....विद्वानों नें......और राजा कोलतुंग के सिपाहियों नें ....तो आश्चार्य ! वो "बोधायन वृत्ति" ग्रन्थ वहाँ नही थी ।
वही रामानुज ले गया होगा चुरा कर ..............
राजा कोलतुंग के सिपाही भी थे ......जिनको राजा नें रामानुज क्या करते हैं .......ये जानने के लिए ही पीछे पीछे भेजा था ।
वो लोग पहले भागे ...............घोड़ों को दौड़ाते हुए जा रहे थे .........
सामनें ही मिल गए रामानुजाचार्य जी और कूरेश जी ।
चारों ओर से घेर लिया.......तलवारें खिंच गयीं.....भाले निकल गए...।
ग्रन्थ दे दो ..........नही तो मारे जाओगे !
सैनिकों नें कहा ।
कूरेश जी के हाथों में वो ग्रन्थ था ........उन्होंने सरलता से दे दिया वो ग्रन्थ ........और आगे चल दिए ।
विद्वानों ने माँगा वो ग्रन्थ .......पर उन दुष्ट राजा कोलतुंग के सिपाहियों नें उस ग्रन्थ को झेलम नदी में फेंक दिया था ।
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अब क्या होगा ? कूरेश ! वो ग्रन्थ भी तुमनें सहजता से दे दिया ....अब तो श्री भाष्य और विशिष्टाद्वैत के सिद्धान्त का मै कैसे प्रतिपादन करूँगा ? रामानुजाचार्य जी ने कहा ।
हे भगवन् ! आप दुःखी क्यों हो रहे हैं ?
वो "बोधायन वृत्ति" नामक ग्रन्थ ...उसे तो मैने सम्पूर्ण कण्ठस्थ कर लिया है .........मुझे याद है । कूरेश जी नें अपनें गुरुदेव रामानुजाचार्य जी को बताया ।
क्या तुम्हे याद है ? रामानुजाचार्य जी अति आनन्दित हो गए ।
ओह ! तुमनें जो कार्य किया है कूरेश ! ......उसे वैष्णव समाज सदियों तक याद रखेगा ...............।
कूरेश जी नें सम्पूर्ण "बोधायन वृत्ति" ग्रन्थ को .........स्मरण शक्ति के आधार से .......लिख दिया ।
उसी बोधायन वृत्ति के आधार से ..........श्री भाष्य की रचना रामानुजाचार्य जी नें की थी ।
श्री रंगनाथ भगवान के चरणों में समर्पित किया था इस श्री भाष्य की रचना करके ......रामानुजाचार्य जी नें ।
विशिष्टाद्वैत सिद्धान्त की स्थापना की ...........और अद्वैत वाद का खण्डन किया.........रामानुजाचार्य जी नें ।
पर इस "श्रीभाष्य" की रचना में कूरेश जी का बहुत बड़ा योगदान है ....इसलिये कूरेश जी को इस "श्री सम्प्रदाय" में विशेष स्थान प्राप्त है ........।
शेष चर्चा कल ........
Harisharan
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