वाह! पट्ठे तैने आनंद कर दियौ.......

बाबा माधव दास जी का लीला स्फुरण – वाह! पट्ठे तैने आनंद कर दियौ.......

एक बार बाबा माधव दास जी महाराज गोवर्धन की परिक्रमा करते-करते गोविंद कुंड पर चले आये.

यहां पर्वत के ऊपर गाय, हिरन आदि पशु घूम रहे थे.   माधव दास जी महाराज वन और पर्वतों के बीच में गोविंद कुण्ड के तट पर बैठ गए.

थोड़ी देर बाद पद्मासन लगाकर ध्यान मग्न हो गए. एक सुंदर लीला का स्फुरण हुआ.

श्यामसुंदर एक विचित्र वेश धारण किए हुए चंचल सखाओं के साथ खेल रहे हैं. एक और श्याम सुंदर पीतांबर की कमर में फेंट कसे हुए मनसुखा, श्रीदामा आदि के संग है. 

दूसरी और दाऊ दादा सुबल,सुदामा आदि सखाओं के संग विराजमान है. कबड्डी का खेल प्रारंभ हुआ.

कभी श्याम सुंदर हार जाते .कभी बलराम जी हार जाते. इस प्रकार खेल चल रहा था. श्रीदामा बलराम जी को हराने के लिए चला, बहुत प्रयास किया लेकिन बलराम जी को हरा नहीं सका .

तब श्यामसुंदर मनसुखा के पास आकर उसकी पीठ पर हाथ मारते हुए कहा -मेरे शेर ! जा अब की बार दाऊ दादा को हराकर ही आना.

मनसुखा कबड्डी -कबड्डी कहता हुआ श्री बलरामजी में फारे में गया. दारु दादा ने अपने सखाओ से कहा- घेर ले सारे कूँ! बचकै नहिं जानौ चाहिए .

  सभी सखाओं ने चारों तरफ से मनसुखा को घेर लिया. दाऊ दादा ने थोड़ा झुक कर मनसुखा के पैरों को पकड़कर अपनी ओर खींचा तो मनसुखा धड़ाम से नीचे गिर पड़ा.

बाकी सखा मनसुखा के ऊपर चढ़ गए. मनसुखा फारे की लकीर को छूने के लिए अपने दाहिने हाथ को आगे बढ़ाने लगा.

दाऊ दादा ने परिक्र मनसुखा को फारे के अंदर खींचने का प्रयास कर रहे हैं और मनसुखा ताकत लगाकर फारे की लकीर को छूने का प्रयास कर रहा है. 

तभी श्यामसुंदर अपने फारे में लकीर के पास आकर घुटनों के बल बैठकर मनसुखा का उत्साह बढ़ाने लगे.

श्यामसुंदर कह रहे हैं – शाबास! मनसुखा नैक कसर रह गई है, थोरो सो और जोर लगा, सोई काम बन जायेगो. मनसुखा ने पूरी ताकत लगाय कै अंतिम प्रयास कियो और फारे की लकीर को छू लियौ.

श्यामसुंदर इतने प्रमुदित भयै कि जमीन ते ऊपर उछल पड़े और बोले – वाह! पट्ठे तैने आनंद कर दियौ. 

बाबा जी सब लीला देख रहे थे. बाबा भी वाह पट्ठे कहकर उछल पड़े. लीला का विश्राम हुआ, तो बाबा ने आंखें खोली.

बाबा अचंभित रह गए. उसी दिन से बाबा बात -बात में वाह पट्ठे कहने लगे.

श्याम सुंदर की वह मधुर वाणी हृदय में बस गई थी. कोई भी थोड़ा सा अच्छा काम कर देता तो बाबा सहज भी बोल पड़ते थे- वाह! पट्ठे तैने आनंद कर दियौ.

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