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श्रीमद्भागवत में भगवान् की वाणी है कि साधु भक्त मेरे हृदय हैं और मैं उनका हृदय हैं। क्योंकि वे मेरे सिवाय और किसी को नहीं जानते तथा मैं उनके सिवाय किसी को नहीं जानता।
महाभारत युद्ध में हिडिम्बा राक्षसी से उत्पन्न भीमसेन के पुत्र घटोत्कच ने रात्रि के समय इतना भयानक युद्ध किया कि सारा कौरव दल एकदम विचलित हो गया। कर्ण के पास इन्द्र की दी हुई शक्ति थी। जो अर्जुन को मारने के लिये पर्याप्त थी। वह केवल एक ही बार काम में आ सकती थी। कर्ण ने वह शक्ति अर्जुन को मारने के लिये रख छोड़ी थी, पर उस रात्रि को घटोत्कच ने इतना भयानक युद्ध किया कि सारे कौरव वीर बिल्कुल घबरा गये। दुर्योधन ने घबराकर कर्ण से कहा कि उस शक्ति को छोड़कर जल्दी से तम इस घटोत्कच को मार दो। कर्ण ने कहा-भैया ! शक्ति से घटोत्कच को मार दूँगा तो अर्जुन को कैसे मारूंगा ? दुर्योधन बोला कि यह घटोत्कच आज ही रात में हम सबको मार डालेगा तो शक्ति फिर क्या काम आयेगी ? यह इतना भयंकर युद्ध कर रहा है कि तुम और हम बचेंगे नहीं। तब हारकर कर्ण ने घटोत्कच पर शक्ति छोड़ दी। उसके आघात से वह मर गया। उसके मरते ही सारे पाण्डव-शिविर में शोक छा गया। युद्ध बन्द हो गया। पाण्डव अपने शिविर में गये और सब-के-सब अत्यन्त करुणार्द्रभाव से रोने लगे। वे कहने लगे कि 'इतना बड़ा महावीर, हमारा पुत्र जो सारे कौरवों को त्रस्त करने वाला था, मर गया।' भगवान् श्रीकृष्ण एक ओर बैठे हँस रहे थे। पाण्डवों को यह बात बुरी लगी कि हम तो दु:खी हैं और हमारे घर के हमारे अपने श्रीकृष्ण के मुँह पर मुस्कुराहट कैसे ?' अर्जुन ने जाकर पूछा-'भगवान् ! यह विपरीत आचरण कैसे ? अपने घर में इतनी बड़ी हानि हो गयी, घटोत्कच मर गया, ऐसे समय सहानुभूति के लिये भी हँसी नहीं आया करती। आपके चेहरे पर हँसी ?' तब भगवान् ने बताया-'इस हँसी में दो कारण हैं। घटोत्कच अपना पुत्र होने पर भी राक्षस था, उसे कर्ण नहीं मारता तो आगे चलकर मैं उसे मारता। वह राक्षसी स्वभाव का प्राणी था, जो दुनिया को दु:ख देने के लिये था। एक तो इस बात का हर्ष है और दूसरा कारण यह है कि मेरा मन आज इस बात से बड़ा प्रसन्न है कि मेरा अर्जुन बच गया। यदि वह शक्ति कर्ण के पास बची रहती तो वह अर्जुन पर ही छूटती और मेरा प्रिय अर्जुन मर जाता।' भगवान् ने उस समय यहाँ तक कहा कि मुझे रात में नींद नहीं आती थी तथा दिन में रोटी नहीं भाती थी, केवल इसलिये कि कर्ण के पास शक्ति है। जब-जब मैं कर्ण के सामने रथ ले जाता, तब-तब मैं कर्ण को सम्मोहन-विद्या से सम्मोहित कर देता, जिससे कर्ण उस शक्ति को भूला रहे। आज वह शक्ति घटोत्कच पर छूट गयी और मेरा अर्जुन बच गया। भगवान् ने यह अपने प्रेम की बात कही।
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- श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार (श्रीभाईजी)
'सरस प्रसंग'
"जय जय श्री राधे"
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