व्रजमण्डल के भक्तजनों में श्रीकेशव जी दण्डौती का नाम अग्रगण्य है । यह हमेशा श्री गोवर्धन जी की दण्डवती परिक्रमा करते रहते थे, अत: इनकेे नाम के साथ दण्डवती की छाप लग गयी थी । एक बार श्री केशव जी कीर्तन करते हुए श्रीगोवर्धन जी की दण्डवती परिक्रमा लगा रहे थे।
रात्रि हो गयी थी , उसी समय श्री कृष्ण एक हट्टे -कट्टे साधु के रूप मे आकर इनसे बोले- मैं भी आपके साथ कीर्तन करते हुए परिक्रमा करूँगा । श्री केशव जी ने स्वीकृति दे दी। परंतु जब ये दण्डवत् करने लगे तो साधुरूपधारी भगवान् ने इन्हें आगे सरका दिया ।
यह देखकर श्री केशव जी नाराज हुए और बोले -तू कौन है ? कहाँ से आया है ? तू मेरी परिक्रमा खण्डित कर रहा है । तेरी बुद्धि मे अधर्म समाया हुआ है ।
साधुरूपधारी भगवान् बोले- अधर्म तो आप स्वयं करते है और उलटे दोष मुझे लगाते हैं ? अरे ! आप को मालूम है कि पृथ्वी को भूधर (विष्णु) की पत्नी कहते है और आप रात्रि के समय परस्त्री का आलिंगन करते हैं, यह कितना बडा अधर्म है ?
श्री केशव जी ने कहा - पृथ्वी हमारी माता है । अत: उनकी गोद में विचरने से हमे कोई दोष नहीं है ।
यह मुंह तोड़ उत्तर सुनकर साधुरूपधारी भगवान् मुस्कराने लगे और प्रसन्न होकर उन्होंने निजस्वरूप का दर्शन कराया ।
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