ब्रज के भक्त
।। श्री नवल किशोर जी।।
।। नंदगांव।।
नंदगांव में नंद बाबा का मंदिर है। 150वर्ष पूर्व उसकी अवस्था जीर्ण शीर्ण थी। फर्श ऊबड़ खाबड़ थे। जिससे नंदलाल को दौड़ भाग करते कष्ट होता। उन्होंने सोचा कितना अच्छा होता यदि यह फर्श चिकना संगमरमर का होता। प्रभु अनंतकौटि ब्रम्हांडनायक होते हुए भी अपने प्रेमी भक्तों के आधीन रहते हैं। लगे प्रभु अपने ऐसे भक्त की तलाश में जिसका तन मन प्रेम रस से सिक्त हो।
राजस्थान के अलवर जिले के चौधरी नगला गांव में श्री नवल किशोर रहते थे। वे रामानुज संप्रदाय से दीक्षित विष्णु भक्त थे। उनकी मां नंदलाल की उपासक थीं। और नंदलाल की उन पर बड़ी कृपा थी। वे अपने पुत्र नवल किशोर और बहु को साथ लेकर वृंदावन चली गई।
कुछ दिनों बाद मां के अंतरध्यान होने के बाद उनका वैराग्य और भी तीव्र हो गया। उन्होंने सारी धन संपदा ठाकुर बैष्णवों की सेवा में लगा दी। कुछ समय बीतने पर पत्नी को मैके भेज दिया। और स्वयं वैराग्य वेश ग्रहण कर अकेले रहने लगे। नैष्ठिक ब्राह्मण होने के कारण छुआछूत का विचार बहुत किया करते थे। वे मधुकरी में सूखा अन्न मांग कर लाते। स्वयं बडी़ शुद्धता से रसोई तैयार करते। किसी की परछाई भी उस पर न पड़े। इसका विषेश ध्यान रखते। विष्णुजी को अर्पित कर स्वयं प्रसाद ग्रहण करते।
ठाकुर जी ने नवल किशोर से फर्श की सेवा कराने का विचार किया। तो नंद के लाला ने लीला रची। एक दिन नवल किशोर एक ब्रजमाई के घर मधुकरी के लिए गये। जव ब्रजमाई आटा लेने अंदर गई, वहीँ बरामदे में दो छोटे बालक महेरी खा रहे थे, नवल किशोर जी ने देखा उसी थाली में बलराम कृष्ण भी खा रहे हैं। उनके हाथ मुह उन ब्रज बालकों की झूठी महेरी से सने हैं। और नवलकिशोर जी की तरफ देखते हुए उन्हें चिढ़ने को आंख मटकाते हुए लम्बे लम्बे हाथ मार रहे हैं।
नवल किशोर चकित, स्तंभित और सम्मोहित एकटक देखे जा रहे हैं। ब्रजमाई आयी बोली ले बाबा मधुकरी ले।
पर बाबा अपनी सुध खो चुके थे। ब्रजमाई बार बार पुकारती पर बाबा की नजर बालकन पर थी। कुछ चेत आने पर बोले। मैया यह मधुकरी रहने दे, मुझे बालकन की थाली से महेरी दे दे।
कहा बाबा। महेरी बालकन की झूठी। तू कहा आज वावरो हय गयो है। आन दिना तो सच्ची रोटिउ नाय लेतो। आज बालकन की जूठी महेरी मांग रह्यो है।
अब बाबा ने समझ लिया व्रज का ठाकुर शुद्ध द्रव नहीं। बल्की शुद्ध प्रेम चाहता है।
बाबा ने कहा मैया मैं बाबरा नहीं हूं, मेरा बाबरापन अब छूट गया है। महेरी दे दे माई। बाबा के नेत्रों से अश्रुधार प्रवाहित हो रही थी कण्ठ अवरुध्द हुआ जा रहा था। आनंद अश्रुओं से उनका मुख और वक्ष भीग रहा था।
इस घटना के बाद बाबा की उपासना में एक नया मोड़ आ गया था मन में उथलपुथल मचने लगी। वे सोचने लगे मैने इतने दिन विष्णु भगवान् की उपासना की पर उन्होंने दर्शन नहीं दिए। पर इस ब्रज के ठाकुर ने न भजने पर भी आयाचित भाव से ऐसी कृपा की। यह कितना दयालु है, कितना भोला है। विष्णु की उपासना में कितनी मर्यादा, संभ्रम और संकोच है। दूसरी तरफ इसे देखते ही लगता है कि यह जनम जनम का अपना है।
बाबा बाह्य रुप से विष्णु सेवा और आंतरिक रूप से नंदलाल से लाड़ लड़ाते रहे। एक बार नंद लाल के मंदिर में चिंतन कर रहे थे उन्होंने देखा कि नंदलाला घुटनों के बल चल रहे है। चलते चलते रुक कर घुटनों को सहलाते हैं। बाबा से कहते हैं कि बाबा मेरे पायन में गड़े हैं। चेत आने पर बाबा ने निश्चय किया मंदिर का फर्श चिकने संगमरमर का बनबाना है।
दूसरे दिन जोधपुर के लिए चल पड़े। एक बड़े व्यापारी से संगमरमर के पत्थरों की भिक्षा मांगी। उस व्यापारी ने कहा कि ठाकुर जी ने मुझे स्वप्न में तुम्हें पत्थर देने को कहा है।
बैल गाड़ी में संगमरमर लदबाकर नंदगांव लाये गये और फर्श निर्माण किया।
🙏राधे राधे🙏
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