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🌹२.श्री वैष्णवदास जी द्वारा भक्तमाल माहात्म्य का दूसरा इतिहास वर्णन➖➖➖➖
❤️श्री भक्तमाल के प्रति भगवान् का प्रेम❤️
एक बार संतो ने प्रार्थना की के भक्तमाल की भक्तिरसबोधिनी टीका पूर्ण हो गयी है अतः ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा करनी चाहिए । इसमें ऐसा कोई नियम नही रखा की कुछ निश्चित समय में परिक्रमा पूरी करनी है, जितने दिन में परिक्रमा पूरी हो जाये उतने दिन सही । रास्ते में श्री भक्तमाल की कथा भी चलती रहेगी । संतो के संग परिक्रमा करने प्रियदास जी चल पड़े । ब्रज चौरासी कोस की परिक्रमा मार्ग पर होडल नाम का एक निम्बार्क संप्रदाय का पुराण स्थान पड़ता है । उस समय वहाँ के महंत पूज्य श्री लालदास जी महाराज थे । श्री लालदास जी महान रसिक संत थे और संतो के चरणों में बहुत श्रद्धा रखते थे ।
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श्री लालदास जी ने प्रियादास जी से श्री भक्तमाल कथा कहने का निवेदन किया । कथा में बहुत श्रोताओ की भीड़ होने लगी, बहुत से संत भी विराजे और श्री लालदास जी के सब शिष्य भी भक्तमाल कथा का रसपान करने बैठे ।जहाँ भक्तमाल की कथा होती है वहाँ भोज भंडारे भी बहुत होते है । भीड़ के साथ साथ कुछ चोर भी साधुओं का वेष बनाकर वहाँ आ गए, वही खाने पिने लगे और मस्त रहने लगे । एक रात मौका पाकर चोरों ने कुछ सामान और उसके साथ में भगवान् की मूर्ति चुरा ली ।
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प्रातः काल साधू जल्दी जाग जाते है, उन्होंने प्रातः काल देखा की मंदिर के गर्भगृह के द्वार खुले पड़े है, सिंहासन पर भगवान् नहीं है । भगवान् चोरी हो गए । समस्त साधू रोने लगे, श्री लालदास जी भी रोने लगे । प्रियादास को यह सुनते ही ऐसा लगा की प्राण ही चले गए. प्रियादास जी का प्राण धन जीवन भक्तमाल को ही था । प्रियादास जी कहने वे कहने लगे की नाभा जी ने तो कहा था -भक्तों का चरित्र भगवान को बहुत प्रिय है । त्यों जन के गुन प्यारे हरि को ।
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श्री प्रियादास जी कहने लगे – ठाकुर जी को हम कथा सुना रहे थे और ठाकुर जी बिच में ही भाग गए । ऐसा लगता है भगवान् को यह भक्तमाल कथा अच्छी नहीं लगती । साधुओं की दृष्टी संसार से अलग है, वे कहने लगे ठाकुर जी को यह भक्तमाल कथा अच्छी नहीं लगी इसलिए यहाँ से उठ कर चोरो के साथ चले गए ।
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ठाकुर को यह चरित न प्यारे, यही ते चोरन संग पधारे।
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अब हमारी परिक्रमा पूरी हुई, हम वृन्दावन वापस जा रहे है, हम अनशन करके प्राण त्याग देंगे और इसके बाद कभी कथा नहीं कहेंगे । श्री भक्तमाल के प्रधान श्रोता भगवान् ही यहाँ से चले गए अब कथा कैसे सुनाये । श्री लालदास जी रोने लगे और कहने लगे – श्री ठाकुर जी तो पहले ही चले गए अब संत भी चले जायेंगे तो हम क्या करेंगे । सब संत रोते हुए भगवान् को याद करने लगे ।
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चोर भगवान् के मूर्ति लेकर एक खेत में आकर रुक गए और सोक्सहने लगे की यही विश्राम कर लेते है, बाद में आगे बढ़ेंगे । चोर मूर्ति खेत में रख कर सो गए । संतो का दुःख ठाकुर से देखा नहीं गया, उन्होंने चोरो को स्वप्न में आदेश दिया की हमको वापस संतो के पास ले चलो। तुमने मुझे दो तरह का दुःख दिया – एक तो संत भूखे और हम भूखे और दूसरा हमको भक्तमाल कथा सुनने नहीं मिल रही अतः मैं तुम्हें चार प्रकार के दुःख दूँगा ।
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चोर बहुत डर गए और कहने लगे – भाई ! हम अभी बहुत दूर नहीं आये है, ठाकुर जी को वापस ले चलो । ठाकुर जी का डोला सजाकर चोर लालदास जी के स्थान की ओर नाचते गाते कीर्तन करते चलने लगे । होडल के ही एक ब्राह्मण देवता ने यह बात प्रियादास जी और संतो को बताई। समस्त संत ठाकुर आनंद में हरिनाम का कीर्तन करने लगे और ठाकुर जी का स्वागत करने चले गए ।
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श्री प्रियादास जी के चरणों में दण्डवत् करके चोरो ने कहा कि अब तक हम चोरी करने के लिए साधु बने थे परंतु अब संतो के चरणों के दास बने रहेंगे, अब सच्चे साधु बनेंगे ।
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संतो की कृपा से हम चोरो ने भगवान् के स्वप्न में दर्शन किये, भगवान् को संत और भक्तमाल अति प्रिय है । हम अब संत सेवा में लगे रहना चाहते है । चोरो ने श्री पूज्य श्री लालदास जी महाराज की शरण ग्रहण कर ली और सब उनके शिष्य हो गए ।
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