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🌹३.श्री वैष्णवदास जी द्वारा भक्तमाल माहात्म्य का तीसरा इतिहास वर्णन🌹
☀️☀️श्री भक्तमाल ग्रंथ के स्पर्श मात्र से व्यापारी का उद्धार होना ➖➖➖➖☀️☀️
श्री वृन्दावन में एक दिन श्री प्रियादास जी भक्तमाल की कथा कह रहे थे । अलवर राजस्थान का एक वैश्य व्यापारी व्यक्ति श्री प्रियादास जी की भक्तमाल कथा श्रवण करने के लिए बैठ गया । उसको श्री भक्तमाल में वर्णित संत सेवा ,वैष्णव स्वरूप निष्ठा , धाम निष्ठा , नाम निष्ठा सुनकर अद्भुत आनंद हुआ ,उसकी संतो में और भक्तमाल ग्रन्थ में बहुत श्रद्धा हो गयी ।कथा समाप्ति पर श्री प्रियादास जी महाराज के पास वह व्यापारी आया और प्रणाम् करके कहने लगा महाराज जी आप कृपा करके यह भक्तमाल ग्रन्थ हमें लिखवा कर दीजिए।
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उस ज़माने में हाथ से पाण्डु लिपि लिख कर दी जाती थी ,उस समय छापखाने नहीं हुआ करते थे अतः संत महात्मा ही ग्रन्थ लिख कर देते थे । श्री प्रियादास जी ने उस व्यक्ति से पूछा – भाई क्या तुम्हे भक्तमाल की कथा सुनने का या पढ़ने का कुछ अभ्यास है ? अथवा क्या तुम्हे भक्तमाल का वक्ता होना है ? या कोई अन्य प्रयोजन है । वह व्यापारी व्यक्ति कहने लगा -महाराज हमने तो पहली बार कथा सुनी है ।
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हमें न पाठ करना है न किसी को यह कथा सुनना चाहते है क्योंकि हम तो व्यापारी है ,हमारे पास इतना समय भी नहीं है । प्रियादास जी ने कहा – जब तुम्हारे पास ग्रन्थ का उपयोग ही नहीं है तो क्यों हमसे इतना श्रम कराना चाहते हो ? तुम हमें सही उपयोग बताओ तो हम अवश्य तुम्हे ग्रन्थ लिख देंगे । उस व्यापारी ने कहा -महाराज मै घर के काम धंदे, स्त्री पुत्रो में उलझा हुआ हूँ ,साधू संग का अवसर नहीं है मेरे जीवन में ।
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महाराज परंतु एक बात मै पक्की जानता हूँ की श्री भक्तमाल में समस्त संत विराजते है ,इस बात पर मेरी दृढ निष्ठा है की जैसे भागवत् जी में श्री कृष्ण विराजमान है, श्री रामायण में श्री राघव जी विराजमान है वैसे ही भक्तमाल मे सब संत विराजमान है । मै अपने लड़को से कह दूंगा की जब हमारा अंत समय आएगा ,उस समय यह ग्रन्थ हमारे छाती पर पधर देना, इतने संतो की कृपा से मेरी मृत्यु सुधर जायेगी और यमदूतों की हिम्मत नहीं होगी की हमें नर्क ले जाएं । संतो के बल से हमको भगवान् के चरण कमल अवश्य प्राप्त होंगे ।
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उसका भाब सुन कर प्रियादास जी के नेत्र भर आये ।श्री प्रियादास जी ने कहा – तुमने भले ही भजन साधन न किया हो परंतु आपकी इस भक्तमाल ग्रन्थ पर अद्भुत निष्ठा है,मै आपको यह ग्रन्थ लिख कर देता हूँ तुम मरते समय इसे अपने हृदय (छाती )पर रख लेना, तुम साधुओं के बल से इस भवसागर से उबर जाओगे ।
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मरती बार हृदय पर धरिहौं, इतने साधुन संग उबरिहौं
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वह बनिया व्यक्ति ग्रन्थ लेकर घर गया, पूजन करके एक वस्त्र में लपेट कर आले में रख दिया । अब न नित्य पूजन करता, न तुलसी फूल पधराता ,कुछ नहीं बस रखा रह गया और भूल गया । उसने अपने पुत्रो से कह रखा था – देखो जब हमारा अंत समय आएगा उस समय हमारे ह्रदय पर यह आले में राखी पुस्तक पधरा देना ,वृन्दावन के एक महात्मा से एक ग्रन्थ लिखवा कर हमने लाया है । देखते देखते मृत्यु का समय निकट आया । गले में कफ अटक गया । वह थोडा इशारा करके पुत्रो से कुछ कहने लगा ।
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पुत्र समझ गए की पिताजी ने अंत समय में आले में रखे ग्रन्थ को ह्रदय पर रखने को कहा था । पुत्रो ने ऐसा ही किया और जैसे ही ग्रन्थ ह्रदय पर स्पर्श हुआ उसका कंठ खुल गया और वह मुख से हरे कृष्ण गोविन्द नाम का उच्चारण करने लगा । पहले उसे भयंकर यमदूत दिख रहे आने लगे पर जैसे ही पोथी उसकी छाती पर रखी गयी वैसे ही सारे यमदूत वहाँ से चले गए । पुत्रो ने पिता से पूछा – पिताजी !पहले तो आप को देख के लगता था आप बहुत कष्ट में है परंतु अब आप बहुत प्रसन्न होकर भगवान् का नाम जप कर रहे है । लगता है कोई आश्चर्य घटना घटित हुई है ।
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उसने कहा मुझे भयंकर यमदूत पीड़ा पंहुचा रहे थे परंतु तुम लोगो ने जैसे ही पोथी छाती पर रखी तब वे भाग गए । अब हमें संतो का दर्शन हो रहा है ,हमको श्री नामदेव ,श्री रैदास ,श्री सेना, श्री धन्ना ,श्री पीपा, श्री कबीर जी, श्री तुलसीदास जी आकाश में खड़े हैं । वे हमें अपने साथ भगवान् के धाम चलने को कह रहे है सो अब मै भगवान् के धाम जा रहा हूं । तुम मेरे जाने पर दुःख मत करना और यह नियम बना लेना की इस परिवार में किसीकी भी मृत्यु निकट आए , यह भक्तमाल ग्रन्थ उसके हृदय पर पधर दिया जाए । वह भगवान् का नाम उच्चारण करते करते संतो के साथ भगवान् के नित्य धाम को चला गया ।
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श्री वैष्णवदास जी कहते हैं – जिस परिवार के यह व्यक्ति थे उनके सब संबंधी हमारे पास आये और उन्होंने हमें यह घटना सुनायी है अब और कितनी महिमा गाऊं इसकी महिमा तो अनंत है । उस परिवार के सदस्यों ने भक्तमाल कि कथा भी करवाई । श्री भक्तमाल की केवल पोथी को घर में रखना भी संत शुभ मानते है ।
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इस चरित्र से यह बात सोलह आना सिद्ध होती है की भक्तमाल में सम्पूर्ण संतो का निवास है और यह कोई सामान्य ग्रंथ नहीं है ।बहुत से संत कंठ में श्री भक्तमाल जी का मूल पाठ तावीज़ में बंद कर के निष्ठा से धारण करते है ।
🌹।। समस्त संतो की जय ।। जय जय श्री सीताराम ।।
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