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*"भक्त मणिदास माली"....*🌸💐👏🏻💫 *पोस्ट -02 (अन्तिम)*


गतांक से आगे :-

          एक दिन कथा हो रही थी, पण्डित जी कोई अदभुत भाव बता रहे थे कि इतने में करताल बजाता ‘राम-कृष्ण-गोविन्द-हरि’ की उच्चध्वनि करता मणिदास वहाँ आ पहुँचा। मणिदास तो जगन्नाथ जी के दर्शन करते ही बेसुध हो गया। मणिराम माली को पता नहीं कि कहाँ कौन बैठा है या क्या हो रहा है। वह तो उन्मत्त होकर नाम-ध्वनि करता हुआ नाचने लगा। कथा वाचक जी को उसका यह ढंग बहुत बुरा लगा। उन्होंने डाँटकर उसे हट जाने के लिये कहा, परन्तु मणिदास तो अपनी धुन में था। उसके कान कुछ नहीं सुन रहे थे। कथा वाचक जी को क्रोध आ गया। कथा में विघ्न पड़ने से श्रोता भी उत्तेजित हो गये। मणिदास पर गालियों के साथ-साथ थप्पड़ पड़ने लगे। जब मणिदास को बाह्यज्ञान हुआ, तब वह भौंचक्का रह गया। सब बातें समझ में आने पर उसके मन में प्रणय कोप जागा। उसने सोचा- जब प्रभु के सामने ही उनकी कथा कहने तथा सुनने वाले मुझे मारते हैं, तब मैं वहाँ क्यों जाऊँ ? जो प्रेम करता है, उसी को रूठने का भी अधिकार है। मणिदास आज श्री जगन्नाथ जी से रूठकर भूखा-प्यासा पास ही के एक मठ में दिन भर पड़ा रहा।
          मन्दिर में संध्या-आरती हुई, पट बन्द हो गये, पर मणिदास आया नहीं। रात्रि को द्वार बन्द हो गये। पुरी-नरेश ने उसी रात्रि में स्वप्न में श्री जगन्नाथ जी के दर्शन किये। प्रभु कह रहे थे- तू कैसा राजा है ! मेरे मन्दिर में क्या होता है, तुझे इसकी खबर भी नहीं रहती। मेरा भक्त मणिदास नित्य मन्दिर में करताल बजाकर नृत्य किया करता है। तेरे कथावाचक ने उसे आज मारकर मन्दिर से निकाल दिया। उसका कीर्तन सुने बिना मुझे सब फीका जान पड़ता है। मेरा मणिदास आज मठ में भूखा-प्यासा पड़ा है। तू स्वयं जाकर उसे सन्तुष्ट कर। अब से उसके कीर्तन में कोई विघ्न नहीं होना चाहिये। कोई कथावाचक आज से मेरे मन्दिर में कथा नहीं करेगा। मेरा मन्दिर तो मेरे भक्तों के कीर्तन करने के लिये सुरक्षित रहेगा। कथा अब लक्ष्मी जी के मन्दिर में होगी।
           उधर मठ में पड़े मणिदास ने देखा कि सहसा कोटि-कोटि सूर्यों के समान शीतल प्रकाश चारों ओर फैल गया है। स्वयं जगन्नाथ जी प्रकट होकर उसके सिर पर हाथ रखकर कह रहे हैं- बेटा मणिदास ! तू भूखा क्यों है। देख तेरे भूखे रहने से मैंने भी आज उपवास किया है। उठ, तू जल्दी भोजन तो कर ले ! भगवान अन्तर्धान हो गये। मणिदास ने देखा कि महाप्रसाद का थाल सामने रखा है। उसका प्रणयरोष दूर हो गया। प्रसाद पाया उसने। उधर राजा की निद्रा टूटी। घोड़े पर सवार होकर वह स्वयं जाँच करने मन्दिर पहुँचा। पता लगाकर मठ में मणिदास के पास गया और प्रणाम् करके अपना स्वप्न सुनाया। राजा ने विनती करके कहा कि आप पुनः नित्य की भाँति भगवान को कीर्तन सुनाया करें। मणिदास में अभिमान तो था नहीं, वह राजी हो गया। राजा ने उसका सत्कार किया। करताल लेकर मणिदास स्तुति करता हुआ श्री जगन्नाथ जी के सम्मुख नृत्य करने लगा। उसी दिन से श्री जगन्नाथ-मन्दिर में कथा का बाँचना बन्द हो गया। कथा अब तक श्री जगन्नाथ जी के मन्दिर के नैर्ऋत्य कोण में स्थित श्री लक्ष्मी जी के मन्दिर में होती है।
           मणिदास जीवन भर श्री जगन्नाथ जी के मंदिर में कीर्तन करते रहे। अन्त में श्री जगन्नाथ जी की सेवा के लिये लगभग ८० वर्ष की आयु में मणिदास जी भगवान् के दिव्य धाम पधारे। संतो ने मणिदास भक्त का जीवन काल संवत् १६०० से १६८० यह बताया है।

*🌸 "जय जय श्री राधे"🌸*🙏🏻💫
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