*आज के विचार*
*( राधे आपुहीं श्याम भई...)*
*!! "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 99 !!*
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मैने सदगुरु बनाया श्रीराधारानी को .....क्यों की सदगुरु के जो जो लक्षण हैं वह पूरे श्रीराधारानी में मुझे दृष्टिगोचर हुए थे ।
उद्धव श्रीकृष्ण को ये बातें बता रहे थे .............
क्या लक्षण देखें तुमनें उद्धव ! और क्या लक्षण होनें चाहियें गुरु में !
उद्धव को संकोच हुआ ........सिर झुका लिया था ।
नही नही ....उद्धव ! तुम समझे नहीं ...........मुझे ये सब नही जानना.......मैं जानता हूँ कि गुरु के लक्षण क्या होते हैं !
पर मुझे तो अपनी प्रिया श्रीराधा के बारे में सुनना है......सुनाओ उद्धव !
हे वज्रनाभ ! उद्धव अब सावधान हैं.......प्रेमोन्माद की स्थिति वृन्दावन में ही नही हैं......यहाँ मथुरा में भी है.......इसलिये अब बड़ी सावधानी से श्रीराधा की चर्चा उद्धव करते हैं ।
महर्षि शाण्डिल्य इस चरित्र को बड़े प्रेम से सुना रहे हैं .....और यदुवंशी श्रीकृष्ण के ही प्रपौत्र वज्रनाभ सुन रहे हैं ।
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क्यों की ज्ञान, कर्म और भक्ति इन तीनों का सम्यक बोध होना आवश्यक है सद्गुरु को ..........और मैने पाया कि प्रेम की उस उच्चावस्था में ज्ञान, कर्म और प्रेमाभक्ति की ऊँचाई का प्रत्यक्ष दर्शन मुझे हुआ ।
हे गोविन्द ! मैं आपको क्या बताऊँ ?
ज्ञान की ऊँचाई है ......"वह तुम हो"
मैने श्रीराधारानी में ज्ञान की सर्वोच्चता का दर्शन किया ........और ये समझा कि ......प्रेम की ऊँचाई में ही ज्ञान की ऊँचाई विद्यमान है ।
श्रीराधा की चर्चा को कृष्ण सुन रहे हैं ...........और उन्हें बीच बीच में कम्पन भी होनें लगता है .........उन्हें रोमांच हो उठता है ।
कैसे ? कुछ उदाहरण हैं तुम्हारे पास ?
सजल नयनों से पूछा कृष्ण नें ।
हाँ ......है ना मेरे पास......उद्धव इधर उधर टाटोलनें लगे......कृष्ण की कौतुहलता बढ़ती ही जा रही थी ..........
उद्धव नें..........ये है श्रीराधारानी का पत्र.........पढ़िये नाथ ! उद्धव नें श्रीकृष्ण के हाथों राधा का वो पत्र दिया ।
श्री कृष्ण पागलों की तरह उस पत्र को चूमते हैं .....हृदय से लगाते हैं ।
पर जैसे ही पत्र को खोलते हैं कृष्ण.............ओह !
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अपनें आँसुओं को पोंछते हुए महर्षि शाण्डिल्य बोले ........
पत्र कौन किसे लिखे वज्रनाभ ! पत्र की सार्थकता के लिये दो का होना तो आवश्यक है ना ? एक पत्र लिखनें वाला ....और दुसरा पढ़ने वाला ।
पर यहाँ तो एक ही हैं .....दो हैं कहाँ ?
पर फिर भी लिखा पत्र श्रीराधा नें..........और ऐसा पत्र लिखा जो दुनिया में आज तक न लिखा गया था ...........
श्रीराधारानी बहुत रोईं थीं उद्धव को पत्र देकर विदा किया तब ........
ललिता सखी नें पूछा .........क्या हुआ स्वामिनी ! आप क्यों रो रही हो ?
तब दौड़ पडीं थीं उद्धव के रथ पीछे ............पर रथ तो जा चुका था ......धड़ाम से गिर गयीं ललिता नें सम्भाला , ।
ललिते ! मुझ से गलती हो गयी ...
...मुझ से बहुत भारी गलती हो गयी ।
पर हुआ क्या ?
सखी ! मुझे क्या होता जा रहा है आज कल ....बता ना ?
जब वृन्दावन में थे मेरे श्याम सुन्दर तब प्रेम करना तो दूर ........नजर भर देख भी नही पाई ...........कभी मानिनी बन जाती थी ........कभी रूठ जाती थी उनसे .........वो मनाते, मैं न मानती .....वो दुःखी हो चले जाते मेरे पास से .........पर उनके जानें के बाद मैं बाबरी ......रोती तड़फती ........मैं शुरू से ही ऐसी अभिमानिनी ही थी ..........पहले मान करना ......फिर उनकी याद करके रोना , तड़फना .............
आज देख ना मुझ से कितनी भारी गलती हो गयी ............
पर गलती क्या हुयी स्वामिनी ! कुछ तो बताओ ?
तब श्रीराधा रानी नें कहा ।
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पत्र खोला श्रीकृष्ण नें .......किन्तु जैसे ही पत्र को खोला ..........
ओह ! श्रीकृष्ण तो "हा राधे !" कहते हुए मूर्छित हो गए ।
उद्धव नें सम्भाला श्रीकृष्ण को ।
पत्र में कुछ नही लिखा था ..................हाँ कुछ अक्षर लिखे थे ......पर वो अक्षर भी आँसुओं में घुल कर बह गए थे ........पत्र काजल की कालिमा से काला हो गया था .............
हाँ हाँ .........बस कुछ वाक्य दिखाई दे रहे थे पत्र में ..............
वाक्यों को मिलाकर पढ़ा था श्रीकृष्ण नें.............उफ़ !
लिखा था - "हा राधे ! तुम कहाँ खो गयी हो......रूठो मत ....अच्छा ! तुम्हारा प्रेम जीता , मेरा हार गया......अब आजाओ प्यारी !
ये कैसा विलक्षण पत्र है ?
पत्र लिखनें से पूर्व श्रीकृष्ण को याद किया होगा ........बस श्रीकृष्ण को याद करते ही ....अपनें को भूल गयीं श्रीराधा........कृष्ण बन गयीं ।
कृष्ण बनीं राधा .......राधा को पत्र लिखती है ...........
ये कैसा विलक्षण प्रेम है........सब उल्टा पुल्टा हो गया था ।
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हे गोविन्द ! जिस स्थिति को पानें के लिये .....हम ज्ञानियों को क्या क्या नही करनें पड़ते .........पर श्रीराधा रानी सहज प्रेम से उस उच्च स्थिति में स्थित हैं ......धन्य हो ! उद्धव जी कहते हैं ।
फिर कैसे नही बनाता उन्हें मैं अपना गुरु ?
देहातीत महापुरुष सहज नही मिलते .......पर आपकी कृपा से मुझे बड़े बड़े महापुरुषों की भी आराध्या श्रीराधारानी गुरु के रूप में मिलीं ।
उद्धव इतना बोलकर चुप हो गए थे ..................
और क्या गुण देखे तुमनें उद्धव ! श्रीराधा में ?
श्रीकृष्ण नें पूछा था उद्धव से ।
शेष चरित्र कल -
Harisharan
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