"श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 97

आज  के  विचार

( वेदनापूर्ण  वृन्दावन वार्ता )

!! "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 97 !! 

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ओह !  मैं अगर वृन्दावन नही जाता .......तो मुझे पता ही नही चलता की आप कैसे हो  ?     उद्धव  के नेत्रों से अश्रु निरन्तर बह रहे थे ।

आप कैसे हो , पता नही चलता  ?    क्या कहना चाहते हो उद्धव ?

कृष्ण नें  प्रेम से उद्धव की ओर देखते हुए पूछा था ।

हाँ ..हाँ    मैं आपको दयालु समझता था ........मैं सोचता था  आपके बराबर दयालु कृपालु  इस जगत में कोई नही है .......पर  मुझे वृन्दावन जाकर पता चला कि  आपके बराबर "निष्ठुर" कोई नही है  !   

आपको मैं  सुकुमार हृदय का स्वामी  समझता था .......पर आप तो  ?  वज्र से भी कठोर निकले ......आपको पता है   वृन्दावन की स्थिति ?     जब से आप मथुरा आये हो ....तब  से  निरन्तर अश्रु धार ही बह रहे हैं  उन लोगों के ।

वो ग्वाल बाल  !     नित्य मथुरा की सीमा में आकर खड़े हो जाते हैं ......और जो भी  पथिक वहाँ से जाता है ........उसके  पैर पकड़ लेते हैं .......आपके बारे में पूछते हैं ........और और पूछते हैं ...........आप कब लौटोगे वृन्दावन  ...........ये उन्हें जानना है  !   

उद्धव के नेत्र पनारे बन चुके थे ..........वो  आँसू भी पोंछते जा रहे थे  और रुंधे कण्ठ से    वृन्दावन की दशा का वर्णन भी कर रहे थे ।

उद्धव !  बैठो यहाँ  !    अपनें ही आसन में उद्धव को बिठाना चाहा कृष्ण नें .......पर उद्धव  बैठे नही ............

   कृष्ण नें  अपनी   पीताम्बरी से उद्धव के आँसू पोंछें  ..........बृज की धूल  देह में लगी थी उद्धव के......कृष्ण नें अपनी पीताम्बरी से  पोंछा  ।

आप यहाँ क्यों हो  ?        मैं वापस आनें  वाला नही  था मथुरा .......बस  मैं आया हूँ  तो आपको लेनें के लिये.........

उद्धव नें ये कहते हुए  कृष्ण का हाथ पकड़ा ....और   बोले - चलिए !

उद्धव !  तुम पहले  बैठो  तो सही   भाई !       

"पर मेरे ये समझ में नही आरहा ......कि  आप  यहाँ क्यों हो ?   आप को तो वहाँ होना चाहिये........आपकी अब जरूरत मथुरा को नही है ...आपकी जरूरत वृन्दावन को है ........वहाँ के लोगों को है  ।

आप चलो ........अभी चलो  !   रथ नीचे है ........चलो  !

कैसे बच्चे की तरह रो कर जिद्द कर रहे थे उद्धव आज  ।

बताइये ना !  मुझे बताइये  !  मथुरा में आपका क्या काम है  ?  कंस मर तो गया है .....यदुवंशी खुश हैं अब......सम्भाल लेंगें ये लोग .......

आप चलिये  वृन्दावन   ।      

हाथ पकड़ कर फिर  चलनें का आग्रह करनें लगे  ।

देखिए  भगवन् !    आप मथुरा में नही भी  रहोगे ,  तो यहाँ के लोगों को कोई फ़र्क नही पड़ता......और जिन्हें फ़र्क पड़े ......वो आजाये वृन्दावन ......रहे  वहाँ ........नन्द बाबा बहुत उदार हैं ..........मथुरा वासियों को आजीवन भरपेट भोजन, वसन,   नित्य देंनें की हिम्मत   रखते हैं नन्द बाबा .........उनको आवास भी देंगें ......वसुदेव और देवकी माता ......ये भी वहीं चलें  ।

नही उद्धव !   नही !   कृष्ण नें अपना हाथ छुड़ाया  और   गवाक्ष में जाकर खड़े हो गए ...................

पर क्यों नही  ?    मथुरा में आपको ऐसा क्या लगता है  ?   यहाँ एक भी व्यक्ति ऐसा नही है  जो वृन्दावन के लोगों की तरह आपको चाहता हो .........वहाँ   सब आपका नाम लेते  रहते हैं......मनुज की बात नही ...पक्षी भी  वहाँ  "कृष्ण कृष्ण" कहते रहते हैं...करुण पुकार है उनकी ।

और  वो  मैया यशोदा !      इतना कहते हुए उन्हें  कुछ याद आगया ......  उद्धव  नीचे भागे रथ की ओर .............

कृष्ण नें देखा .........ऊपर से   ।

रथ  से  उद्धव नें   मटकी निकाली थी ...........

कृष्ण नें देखा ........ओह !   मेरी मैया यशोदा नें  माखन भेजा है ।

उद्धव आये ............ये  भेजा है आपकी  मैया यशोदा नें ........कहा है ....मैं ही खिलाऊँ ...........इतना कहते हुए   मटकी से माखन ले ......कृष्ण के मुखारविन्द में देनें लगे उद्धव .........रो रहे हैं कृष्ण ....और माखन खा रहे हैं ...............

बहुत  स्वाद है माखन में........कितना समय हो गया .......ऐसा स्वाद  वृन्दावन छोड़नें के बाद आज तक नही आया था  ।

तो चलो ना  वृन्दावन !   बहुत आनन्द आएगा वहाँ ........मैं आपके साथ रहूंगा वृन्दावन में........चलिये ना  !   यहाँ कुछ नही है  ।

अच्छा एक बात बताइये !   आपके यहाँ न रहनें से कोई मरेगा ?   

उद्धव नें पूछा  ।

कृष्ण इसका क्या उत्तर देते  .......पर उद्धव नें बार बार पूछा ......बताइये  आप अगर मथुरा नही रहेंगें  तो यहाँ  का कोई भी व्यक्ति  मरेगा ? 

नही ....पर हे गोविन्द !      आप अगर चले जाओगे वृन्दावन .......तो वृन्दावन बच जाएगा ......वहाँ के वो प्यारे अनूठे प्रेमी बच जायेंगें ........

उन्हें बचा लो  हे गोविन्द !   बचा लो उन्हें  !

   रो रो कर प्रार्थना कर रहे थे उद्धव  ।

ये आपके सखाओं नें भेजा है ..........उद्धव   मोर का पंख देते हैं ........कृष्ण उस मोर के पंख को माथे में लगाते हुए  बहुत प्रसन्न हैं ।

ये   गुंजा की  माला है.........सखाओं नें दी  है.......कृष्ण प्रसन्न होकर माला धारण करते हैं.......ये काली कमरिया  श्रीदामा नें भेजी  है तुम्हारे लिये......कृष्ण पागलों की तरह काली कमरिया भी ओढ़ लेते हैं ।

और मेरी राधा ?  

    कृष्ण  सुनना चाहते हैं   अपनी  राधा के बारे में....इसलिये  पूछते हैं ।

श्रीराधा !  श्रीराधा !  

     सात्विक भाव  देह में स्पष्ट दिखाई देनें लगे थे उद्धव के  ।

श्रीराधा के बारे में  कुछ नही कहा तुमनें उद्धव  ? 

कृष्ण नें फिर पूछा  ।

श्रीराधा !   वो  तो प्रेम का साकार रूप हैं.......उनके बारे में बोलनें के लिए मेरे पास कोई शब्द नही है........वो  श्रीराधा ! 

सुनो   गोविन्द !    श्रीराधारानी की स्थिति  !    सुन सकोगे ?     

उद्धव  बोलनें की कोशिश करते हैं .....पर बोल नही पाते ..........कृष्ण उद्धव को सम्भालते हैं........अपनें हृदय से लगाते हैं.........दोनों ही रो रहे हैं .......बस रो रहे  हैं............

शेष चरित्र कल -

Harisharan

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