*आज के विचार*
*( जब मथुरा पहुँचें उद्धव...)*
*!! "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 96 !!*
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सन्ध्या की वेला हुयी है ........नित्य की तरह श्रीकृष्ण अपनें महल की अत्युन्नत अट्टालिका में जाकर खड़े हो गए थे .........
जब से वृन्दावन गए हैं उद्धव ........ये नियम ही बन गया था श्रीकृष्ण का .........अपनी अट्टालिका में जाकर खड़े हो जाते थे ......
यहाँ से वृन्दावन का मार्ग दिखाई देता था ..........वृन्दावन के पथ पर दृष्टि सहज चली जाती थी .....कौन आरहा है ....कौन जा रहा है .....सब दिखाई देता था .................ये नित्य नियम ही था श्रीकृष्ण का ।
आँखें गढ़ा कर देखते रहते थे ......कि उद्धव आज आएगा ..........मेरी मैया का सन्देश लाएगा .......मेरे बाबा का सन्देश लाएगा ...........
फिर वो एक आह भरते थे ........."मेरी राधा" ।
दिन गिनते -गिनते पक्ष, पक्ष गिनते -गिनते मास, मास भी तो छ मास बीत चुके हैं ...........क्यों नही आया मेरा सखा उद्धव !
कह कर तो गया था - "कुछ "घड़ी" चर्चा करूँगा फिर शीघ्र आजाऊंगा ..........रात्रि यहीं मथुरा में ही ...........।
मैने कहा था - उद्धव ! एक रात तो मेरे वृन्दावन में बिता लेना ।
वो मेरी बात काटता नही है.........कुछ बोला नही था ।
पर हद्द है ! जो व्यक्ति एक रात वृन्दावन में न सोनें की बात करता हो ......वो छ महिनें !
श्रीकृष्ण अपनी अट्टालिका में बैठे बैठे सोच रहे हैं........
तभी - एक रथ दिखाई दिया...........श्रीकृष्ण दूर देखनें की कोशिश करते हैं .........हाँ ..........ध्वजा में चन्द्रमा लगा है .........ये रथ उद्धव का ही है .........रथ खड़ा है ..........श्रीकृष्ण देखनें की कोशिश करते हैं ........पहचाननें की कोशिश करते हैं .........
धूल धूसरित कोई व्यक्ति है .........केश बिखरे हुए हैं .......धूल केशों में भी लगी है .........अरे ! यही तो है मेरा उद्धव !
श्रीकृष्ण ख़ुशी से नाच उठे .........मेरा उद्धव !
उद्धव रथ पर बैठ चुके हैं ..........और रथ चला रहे हैं ।
श्रीकृष्ण जल्दी जल्दी सीढ़ियों से नीचे उतरनें लगे थे ...........
उनकी पीताम्बरी गिर गयी थी .......उनके चरण पादुका कहाँ रह गए थे पता नहीं .......वो पागलों की तरह उतर रहे थे सीढ़ियों से ।
उनकी साँसे फूल रही थीं .........वो जैसे ही अट्टालिका से उतर कर नीचे आये ........और उद्धव की प्रतीक्षा करनें लगे, तभी -
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कृष्ण ! क्या हुआ ?
वसुदेव जी उसी समय वहाँ आगये थे ....और कृष्ण को इस तरह सीढियाँ उतरते देख ..........सब ठीक तो है कृष्ण ? पूछ लिया ।
तभी अक्रूर भी वहाँ आकर खड़े हो गए ...............
किसी की प्रतीक्षा हो रही है क्या ?
अक्रूर नें भी पूछ लिया ।
पर श्रीकृष्ण नें आज न वसुदेव जी के प्रश्न का उत्तर दिया .......न अक्रूर के.........न इनकी बातों में ध्यान ही दिया......वो तो देख रहे थे उसी पथ में जिसमें अब उद्धव आने वाले थे ।
तात वसुदेव ! उद्धव दिखाई नही दे रहे आजकल ?
वो महामन्त्री हैं ..........उनको अपनें दायित्व का बोध है की नही ?
अक्रूर नें वसुदेव जी को ये बात पूछी थी .........पर श्रीकृष्ण की ओर भी देख रहे थे अक्रूर ...............
किन्तु श्रीकृष्ण को इन सब से क्या लेना देना था.....उनका ध्यान तो !
अब वो तो देवगुरु के शिष्य हैं उन्हें कौन समझा सकता है !
कुछ व्यंग था वसुदेव जी का, उद्धव के प्रति ।
पर कुछ अनिष्ट की आशंका व्यक्त की जा रही थी , मैं सुन रहा था .....
वसुदेव जी नें अक्रूर से पूछा ।
जी ! वही तो मैं समझा रहा हूँ .........जरासन्ध पागल हो गया है .......वो कभी भी आक्रमण कर सकता है ......ये सूचना कल ही हमारे पास आयी है ........और वसुदेव जी ! मैने तो यहाँ तक सुना है .....कि विश्व के सबसे बड़े आतंककारी "काल यवन" को बुलानें के लिये वो गया भी है .........अगर काल यवन यहाँ आगया ......तब तो हम सब यदुवंशी समाप्त ही हो जायेंगें ............अक्रूर नें कहा ।
सुना कृष्ण ! क्या कह रहे हैं तुम्हारे काका अक्रूर ? कि जरासन्ध आक्रमण करनें वाला है मथुरा में ! वसुदेव जी नें कृष्ण से कहा .....पर कृष्ण का ध्यान यहाँ की बातों में कहाँ था .......वो तो देख रहे थे अपलक पथ में..........कि मेरा उद्धव सन्देशा लाएगा ।
तभी -
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रथ आता हुआ दिखाई दिया ..................सामनें से रथ आरहा था ।
अक्रूर ! ये रथ तो ? वसुदेव जी नें पूछा अक्रूर से ।
अरे ! इसमें तो उद्धव बैठा है ...........और ये उद्धव कैसा हो गया ?
श्रीकृष्ण नें उद्धव को सामनें से आते हुए देखा .........रथ को छोड़ दिया है उद्धव नें ............पैदल आरहे हैं ................
धूल से सनें हुए हैं ........नेत्रों से प्रेमाश्रु बह रहे हैं ..............
दौड़े उद्धव जब अपनें प्यारे श्रीकृष्ण को दूर से अपनी ओर ही आते देखा तो ..................श्रीकृष्ण भी दौड़े ............
वसुदेव और अक्रूर कुछ समझ नही पा रहे कि ये क्या हो रहा है !
पास में जाकर रुक गए उद्धव ...............
कृष्ण गले लगानें के लिये आगे बढ़ थे .....कि ......रोक दिया उद्धव नें ।
कृष्ण रुके ..........उद्धव को नीचे से लेकर ऊपर तक देखा कृष्ण नें ......
मुस्कुराये ........नेत्रों में जल भर आये थे कृष्ण के ..............
"क्यों किया आपनें ऐसा" बोलिये ! क्यों किया ?
क्या बिगाड़ा था उन लोगों नें आपका ? क्यों रुला रहे हो उन बेचारों को ? उद्धव की लाल लाल आँखें हो गयी थीं .........अभी भी आँखें बरस ही रही थीं ...............
उद्धव ! कहाँ गए थे तुम ? अक्रूर नें आगे बढ़कर पूछा ।
पर उद्धव को आज अक्रूर से कोई मतलब नही है .............
बताओ श्यामसुन्दर ! क्यों किया श्रीराधा के साथ ऐसा अन्याय ?
बेचारी रोती रहती हैं..............
अरे भई ! कौन रोता है ? हमें भी तो बताओ ?
वसुदेव जी नें पूछा था उद्धव से ।
पर उद्धव और कृष्ण आज किसी की नही सुनेगें ..............
चलो मेरे साथ वृन्दावन ! चलो ! उद्धव नें हाथ पकड़ा कृष्ण का और !
उद्धव ! पहले चलो मेरे कक्ष में ................हाथ उद्धव का पकड़ा कृष्ण नें ...........और बिना किसी से कुछ बातें किये ..........अपनें कक्ष में ले गए ......और भीतर से कुण्डी लगा ली ।
उद्धव !
अपनें हृदय से लगा लिया कृष्ण नें उद्धव को ...और खूब रोये ।
तुम्हे मेरी मैया यशोदा मिली ? मेरे बाबा ? मेरी गोपियाँ ?
और ! रुक गए ये कहते हुए ......आवाज रुक गई .......हिलकियाँ फूट पडीं .............मेरी राधा ! मेरी राधा कैसी है ?
उद्धव अपलक देख रहे हैं कृष्ण को ......और ऐसे देख रहे हैं जैसे कोई किसी अपराधी को देखता है ..................
वाह ! उनको रुला कर तुम्हे अच्छा लग रहा है ?
कृष्ण नें उद्धव के मुख की ओर देखा ...........
शेष चरित्र कल -
Harisharan
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