*आज के विचार*
*( और इधर बरसानें में ...)*
*!! "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 102 !!*
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ललिता ठीक कहती है.....कि मैं इन दिनों अस्वस्थ हो गयी हूँ ।
हाँ मुझे भी लगनें लगा है ..........मुझे जगते हुये स्वप्न दीखते हैं ।
मैं न माननें वाली बातों को भी सत्य मान लेती हूँ.....परिणाम ?
मैं दुःखी हो जाती हूँ ।
अब ये भी कोई माननें वाली बात है कि ......मेरे जीवनधन, प्राणसर्वस्व, मेरे प्रियतम मुझे छोड़कर चले गए ! ..........कैसे मान लूँ ?
चन्द्रावली जीजी कह रही थीं कि......श्यामसुन्दर नें हमें त्याग दिया ।
हँसी आती है मुझे तो.......वे मेरे प्राण हैं ........भला मुझ से वो पृथक हो सकते हैं ? वो और हम तो एक हैं.......हँसती हैं श्रीराधारानी ।
लेकिन ! कह रही थी कल चन्द्रावली जीजी ........कि अक्रूर आया था और ले गया मथुरा .............हाँ हाँ .....मैं कब मना करती हूँ .......ले गया होगा 2 , 3 दिन के लिये ........पर मैं कैसे यकीं करूँ ! मेरे सामनें तो वह रहते ही हैं ...........हर समय ......हर क्षण ...........कोई ऐसा क्षण नही होता जिस क्षण मेरे श्यामसुन्दर मेरे पास न हों ।
चन्द्रावली जीजी भी मुझे बिना मतलब के चिन्ता देती रहती हैं ......
ललिता ठीक कहती है .........मैं इन दिनों अस्वस्थ रहनें लगी हूँ ।
( श्रीराधारानी कुछ देर मौन रहती हैं.......हे वज्रनाभ ! फिर याद आजाती है.....तो बोलनें लग जाती हैं ..महर्षि शाण्डिल्य बताते हैं )
झूठ बोलती हैं जीजी चन्द्रावली ...........अरे ! कंस को मार दिया ......हाँ तो मार दिया होगा, वह चतुर -चूड़ामणि हैं.......चतुराई करके मार दिया होगा कंस को.........अरे ! हमारे श्याम सुन्दर ग्वाले हैं .....गौचारण करते हुए निकल गए मथुरा .......और कंस को मार दिया होगा ......पर इसका मतलब ये तो नही कि .....उन्होंने हमें ही छोड़ दिया ! या इस वृन्दावन को ही त्याग दिया .....झूठी है चन्द्रावली जीजी ।
हाँ उद्धव भी आये थे .......मेरा श्यामसुन्दर सबको अपनाना जानता है ...........उद्धव को भी सखा बना लिया था ........हाँ ठीक है ........सखा बननें योग्य भी था..........पर मैं भी पगली हूँ ..........योग्य अयोग्य श्याम देखता कब है ! अट्टहास करती हैं एकाएक श्रीराधारानी ........तू उद्धव को बोल रही है राधे ! तू कौन सी योग्य थी श्याम के ......वो तो श्याम था जो तुझ जैसी मानिनी को भी स्वीकार किया ।
पर उद्धव अच्छा था ........सीधा सरल .........हृदय में छल कपट नही था उसके .............वो भी कह रहा था कि मथुरा में हैं श्याम सुन्दर !
कहनें के लिये तो कुछ भी कहते हैं लोग .............यहाँ वृन्दावन में भी तो गोपियाँ , गोप क्या क्या नही कहते ! कल ही श्रीदामा भैया लड़ पड़े थे उस गोपी से ........जब वह बोली कि ........"वृन्दावन में अब नही आएगा कन्हाई "........श्रीदामा भैया झगड़ पड़े थे उससे ।
श्याम के बारे में तो सब अपनें अपनें भावानुसार ही बात करते हैं ............उद्धव को लगता था कि उसका कृष्ण मथुरा में है .....
हमारे ग्वाल बालों को भी तो लगता है कि .........उनका श्याम सुन्दर नित्य खेलता है उनके साथ यहीं............पर उद्धव आये और गए ।
कहकर गए थे कि कृष्ण को ले आऊँगा ........पक्का ले आऊँगा ।
मैं हँसी थी उस समय..........कहाँ से लाता उद्धव कृष्ण को !
मथुरा में थोड़े ही हैं श्यामसुन्दर ..........मेरे श्याम तो वृन्दावन में हैं ....बरसानें में हैं ......बरसानें की कुञ्जों में हैं ............यहाँ के प्रेम सरोवर में हैं .............यहाँ के साँकरी खोर में हैं .............
मेरे हृदय में हैं ..........मेरे अंग अंग में हैं .........मेरी साँसों में हैं .........
कहाँ नही हैं मेरा श्याम ............सर्वत्र है मेरा श्याम ।
फिर चन्द्रावली जीजी झूठ क्यों कहती हैं कि ...........श्याम सुन्दर नें हमें छोड़ दिया ?
उफ़ ! कैसे गलवैयाँ देकर मुझ से कहते................राधे ! तुम मैं ....और मैं तुम ................
हँसती हैं श्री राधा ..............खूब हँसती हैं ................अब चन्द्रावली जीजी को कौन समझाये ..........कि वे मेरे अंग अंग में समा चुके हैं .......अब मुझे उनसे मिलनें के लिये नन्दगाँव जानें की जरूरत ही नही है ......वो तो मेरी साँसों में ही समा चुके हैं .......मेरी धड़कन वही हैं ।
अब मैं कैसे समझाऊँ चन्द्रावली जीजी को ..........कि वो तो "ये रहे" ।
देख ! वो कदम्ब के नीचे बैठे बाँसुरी बजा रहे हैं .........देख ! वो रहे, मेरे करीब आरहे हैं........ओह ! मुझे हृदय से लगा लिया है ।
इसके बाद मूर्छित हो जाती हैं श्रीराधारानी ..........
ललिता सखी बस अपनें आँसुओं को बहाती रहती हैं, अपनी लाडिली की ये स्थिति देखकर ...............
पर महाभाव में डूबीं श्रीराधारानी.............श्याम के अलावा अब किसी और को कम ही पहचाननें लगी हैं.............ज्यादा समय भावोन्माद की स्थिति में ही रहती हैं ।
शेष चरित्र कल -
Harisharan
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