"श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 55

55 आज  के  विचार

( मथुरा से  कृष्ण जब नही लौटे... )

!! "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 55 !! 

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आज हो तो गए पाँच दिन ........श्रीदामा भैया कह रहे थे  कि  पाँच दिन में आजायेंगें मथुरा से ........पर   .........

ललिते !   क्या  श्याम सुन्दर आगये  ?    

पाँच दिन से  जल भी नही पीया है  श्रीजी नें ........नींद तो  आती ही नही हैं .........आँखें  सूखी भी नही हैं   इन पाँच दिनों में ......बस  निरन्तर बरस ही रहे हैं ............प्रभात आया गया ....सन्ध्या आयी गयी ......रात्रि आयी  वह भी गयी ।.........मैं झूठ नही कह रही ......देख !  आज पूरे पाँच दिन हो गए हैं .......इतना कहते हुए उठ कर चल देती हैं   श्रीराधा रानी   ..........आप कहाँ जा रही हैं ..........?   रोती हुयी भागीं  ललिता  बिशाखा   श्रीराधा रानी के पीछे  ।

नन्दगाँव की ओर ही चलते हैं   श्रीराधा रानी के चरण ..........उस ओर तो दौड़ते हैं .........नन्दभवन की ओर   ...............

कंस को मार दिया  अपनें कन्हाई नें .....बधाई हो ..............नन्दगाँव की एक बूढी गोपी  दूसरी को बता रही थी ...........क्या !  सच !  हमारे कन्हाई नें कंस दुष्ट को मार दिया  !        हाँ ........और सुना है .........कन्हाई को ही  मथुरा का राज्य दे रहे थे  मथुरा वासी .......पर  अपनें कन्हाई नें नही ली ......और  कंस के ही पिता उग्रसेन को   ही राजा बना दिया  ।

पर  कब आयेंगें  वे ?       श्रीराधा रानी रुक गयीं   उस बूढी गोपी से पूछनें लगीं ............सुना तो था मैने  कि आज ही आनें वाले हैं  ।

श्रीराधा के  आनन्द का ठिकाना नही .............उस बूढी गोपी को चूमते हुए  भागीं  नन्द महल की ओर ...............

आज आनें वाले हैं .......आज आनें वाले हैं ........सुना ललिते !  आज आने वाले हैं  वे  ..............वज्रनाभ !   ये कहते हुए  नन्दभवन में प्रवेश किया था  श्रीराधिका  नें   ।

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कौन ?  कौन खड़ा है वहाँ  ?       बृजरानी नें  जब देखा कि  एक मणि खम्भ के पीछे कोई खड़ा है  ........कौन है वहाँ  ?

संकोच करती हुयी  श्रीराधा रानी बाहर  आईँ ...........

ओह !  राधा बेटी !     आओ आओ ........मैं तो व्यस्त हूँ .........इसलिये  देखो ना  मैं तुमसे ज्यादा बात भी नही कर सकती आज ।

क्यों कि  राधा बेटी !    आज   हमारा लाला आरहा है ना  !   

मैं उसके लिये माखन निकाल रही हूँ ..............और उसकी गेंद,   उसकी काली कमरिया ......आते ही मांगेगा ...........बेटी !  तू  बैठ मैं आज थोड़ी व्यस्त हूँ ........ये कहते हुए  बृजरानी भी अपनें कार्य में लग गयी थीं  ।

आज वे आरहे हैं  ?         बृजरानी के पास ही चली गयीं थीं  श्रीराधा ।

अरे ! तू यहाँ आगयी ?    बेटी !     तू वहाँ बैठक में बैठ ना  !

नही मैया !          

मैया !    कुछ देर में  फिर बोलीं  श्रीजी  ।

वे आज  आरहे हैं ना  ?       

हाँ ...हाँ ....आज  आरहे हैं.....देख ! मैने माखन,   उसके लिये माखन निकाल रही हूँ......आते ही परेशान करेगा ......कहेगा माखन दे ....माखन दे...यशोदा नें जैसे ही ये कहा ......श्रीराधा रानी थोडा हँसी ।

मैं कुछ आपकी सहायता करूँ ?  

  मैया ! मना मत करना .....मुझे अच्छा लगेगा ।  श्रीजी नें कहा  ।

अच्छा !   ठीक है  तू  फिर  ये  माखन ही निकाल दे ......मैं  उसकी काली कमरिया  को ठीक करके रख देती हूँ.........अरे !  मैं भी ना भूल गयी. .........अभी तो  बहुत काम है ..........अरी गोपी !  सुन ... गर्म पानी भी कर दे .......आते ही हाथ मुँह तो धोएगा .....।

मैया !   ये माखन  तैयार है ........श्रीराधा रानी नें  माखन  दिखाया ।

राधा बेटी !    तू बहुत अच्छी है .........ये कहते हुए माथे को चूम लिया था बृजरानी नें  ।

देख !  तू आई  इस समय  बहुत अच्छा किया तूनें ..............

अरे !    अरे !     ये धूल उड़ रही है ........कौन आरहे हैं ये  ? 

बृजरानी आनन्दित हो उठीं .....अरे !  ये तो  अपनी ही बैल गाडी है  ।

राधा !  चल  भीतर  आगये -   बृजरानी भागीं.......श्रीराधा रानी  को भी  अपनें साथ ही ले गयीं ...........आगया मेरा लाला !  

मैं तो कह रही थी ...........आएगा ....आएगा ........आगया ना  !  

इतनी खुश हैं  यशोदा मैया ........ख़ुशी में  श्रीराधा रानी को चूम रही हैं ।

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बैल गाडी रुकी.........बृजरानी और  श्रीराधा  दोनों ही देख रही हैं  ।

अब उतरेगा  कन्हाई ..............पर .बृजपति नन्द जी  उतरे .......

अब उतरेगा .....देख  राधा !  अब उतरेगा मेरा कन्हाई.......मैया बोली ।

पर नही ........मनसुखा उतरा ...श्रीदामा ...उसके बाद मधुमंगल उतरा .......बारी बारी से सब उतर गए ......पर कन्हाई  ? 

बृजपति नन्द  नें  अपनी पत्नी यशोदा को बस एक बार देखा .......फिर बिना कुछ बोले ......भीतर चले गए ........

बृजरानी  भीतर गयीं ...................आप क्या खोज रहे हैं ? 

ये रहे आपके वस्त्र .........बृजरानी नें वस्त्र दिए .....वस्त्र लेकर  जानें लगे स्नान करनें के लिए नन्द जी  ।

सुनिये !        बृजरानी नें कहा ।

रुके नन्द जी .....................।

वो कन्हाई कहाँ है  ?      बाहर खड़ी हैं  श्रीराधा रानी  सुन रही हैं ।

बताओ ना ! कहाँ है मेरा कन्हाई  ?   बृजपति के नेत्र बह चले  ।

देखो !  इधर आओ ........ये माखन  इस  राधा नें निकाला है .........श्रीराधा को दिखाती हुयी बोलीं बृजरानी ।

क्यों कि  वह आते ही मांगेगा ना ! .....बड़ा जिद्दी है  वो ........

पर  आपनें बताया नही .......वो कहाँ रह गया  ?    

अच्छा ! अच्छा !  आनें दो  उसे ..............मैं बताउंगी ........बांध के पिटूँगी .........बहुत जिद्दी हो रहा है आजकल .............

अच्छा ! बताइये .........आप ही बताइये ......कितनी आक्रामक हो उठी थीं  बृजरानी यशोदा  .........पहले उसे अपनें घर में आना चाहिए ना !

गया होगा किसी गोपी के यहाँ माखन खानें ........ये लाली बरसानें से आयी ........माखन निकाल दिया .........पर वो .......दुष्ट कहीं का  ।

बृजपति  नही गए नहानें ........वापस आये ..............यशोदा !  नही आया  तेरा लाला !       बृजपति नें  स्पष्ट कह दिया  ।

क्या ! 

यशोदा तो चौंक गयीं ..............उनका शरीर जड़वत् हो गया ........

नही आया ?    मेरा लाला नही आया  ? 

श्रीराधा रानी नें जैसे ही सुना .............उनकी दृष्टि के आगे अन्धेरा छानें लगा ................क्या नही आये  तुम ?       ओह !   पैरों में  अब शक्ति नही रही ....कि खड़ा  भी हुआ जाए ...........

नही आये तुम  प्यारे !        

ओह !   

श्रीराधा रानी मूर्छित हो गयीं .................।

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प्यारे ! प्यारे !   श्याम सुन्दर !    तुम नही आये ? 

अब ये  राधा कैसे जीयेगी ?         

कौन हो तुम ?   कौन हो  तुम ?   

बैल गाडी में  लेटी हुयी हैं .....शरीर में  शक्ति नही है ........

मैं श्रीदामा...........श्रीदामा भैया    भी तो मथुरा गए थे .....ये भी  खाली हाथ लौट आये ....नही ला पाये अपनें सखा को .........।

हँसी श्रीराधा रानी .......उनकी हँसी    अब डरावनी लग रही थी  ।

तुम्हारा श्राप लग गया ............श्रीदामा भैया !   तुम्हीं नें श्राप दिया था ना ....गोलोक से आकर  कुञ्ज में ............कि  मान करती रहती हो ....कृष्ण से रूठती रहती हो .....जाओ !  सौ वर्ष का वियोग सहो ।

भैया !  तुमनें ही श्राप दिया था ना .......अब सौ वर्ष तक  श्याम सुन्दर के बिना ......ओह !      कैसे रहूँगी मैं ......?   भैया !  श्रीदामा भैया !   बताओ  ना !    कैसे  जीऊँगी अब  ?     

हाँ .......मैं बहुत खराब हूँ ..........मैं  ठीक नही हूँ ..............मैने सदैव उन्हें दुःख ही दिया है ..........ठीक किया  वे नही आये .......क्यों आएं  यहाँ ?     क्या  दिया है हमनें उन्हें  ।

पता है श्रीदामा भैया !     मैनें उन्हें सदैव दुःख में ही रखा ..........मानिनी बनकर ही रही उनके साथ ..........वे बेचारे .......कितनी हा हा खाते थे ....मेरे पैर तक दवाते थे ........पर मैं  अभिमानी  राधा ..............

हँस पडीं  श्रीराधा ................हा हा हा हा हा ...........उनकी हँसी सुनकर  जोर जोर से रो पड़े थे  श्रीदामा...........ललिता बिशाखा साथ में हैं .......वो भी सम्भाल रही हैं  ।

वहाँ मथुरा में खुश होंगें वे ......आहा !       वहाँ की नारियाँ  नागरी हैं ....नगर में रहनें वाली हैं ..........हमारी तरह गंवार तो नही है .........श्याम सुन्दर  गोबर उठानें वाले हैं ?  ........ओह !    हम लोगों नें  उनसे गोबर उठवाए !............चोर कहा ......पीटा .........आये दिन बृजरानी  मैया से पिटवाया .........।

भैया !   श्रीदामा भैया !    अब ठीक है........हमारे रोनें धोनें से क्या मतलब ...........उनको तो  अच्छा लग रहा है ना  वहाँ .........बस ठीक है ....न गैया   चरानें जाना .........न  किसी गोपी की शिकायत सुनना,   न मुझ जैसे  अभिमानिनी के आगे पीछे करना  ।

कितनें सुख से होंगें ना   वे  ......मथुरा की ललनाएँ   उनकी खूब सेवा कर रही होंगी.........ठीक है .......ठीक तो है  ललिते !     वो सुखी हैं  तो हमें दुःखी नही होना चाहिये ..........ये प्रेम नही होगा फिर .......ये प्रेम के नाम पर कलंक होगा ...नही नही ।     

श्रीराधा रानी की विचित्र अवस्था हो गयी थी ।

सब रो रहे हैं .....बैल गाडी में बैठे  सब रो रहे हैं ......श्रीदामा भैया ......ललिता , बिशाखा ...........अरे ! वज्रनाभ !  यहाँ तक की .....बैल भी रो रहे थे .......श्रीराधिका जी की ये दशा देखकर  .......।

बरसानें  आने तक  मूर्छित हो गयीं थीं  श्रीराधा रानी .............कीर्तिरानी और बृषभान जी  पर क्या बीतती होगी ...............और तुम्हे पता है .......ये मूर्च्छा ........एक महिनें तक रही   श्रीराधा रानी को ............

शेष चरित्र कल .......

Harisharan

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