43 आज के विचार
( महाकाल का प्रेमरूप - "गोपेश्वर महादेव" )
!! "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 43 !!
प्रेम में अहंकार का प्रवेश कहाँ ? क्या ये बात सच नही है कि पुरुष का अर्थ ही अहंकार होता है ?
प्रेम की धरातल पर पुरुष का प्रवेश कहाँ है.......वहाँ तो सब गोपी हैं .....
हाँ पुरुष है भी तो एक ही .......वो है कृष्ण ।
दिव्य सरोवर है एक.......इसका दर्शन भी आज ही हुआ है ....
ये सरोवर बड़ा अद्भुत लग रहा है......क्या इस सरोवर का भी कोई इतिहास है ? अगर मैं वज्रनाभ अधिकारी हूँ ....तो मुझे बताइये ।
वज्रनाभ नें हाथ जोड़कर महर्षि शाण्डिल्य से प्रार्थना की ।
हे यदुवीर वज्रनाभ ! जिस सरोवर का तुम दर्शन कर रहे हो ......इस सरोवर का नाम है "मान सरोवर".........महर्षि नें बताया ।
हाँ ..........देखो ! इसमें नाना प्रकार के हंस आते हैं.......और यहाँ विहार करते हैं........हे वज्रनाभ ! उन पँक्ति बद्ध होकर आरहे हँसों को देखो..........ये सप्त ऋषि हैं..........जो रात्रि में यहाँ आते हैं....और विहार करते हैं........
आकाश में देखा वज्रनाभ नें ........तो दिव्य सात हंस उड़ते हुए आरहे थे आकाश मार्ग से..........वो बड़े ही दिव्य लग रहे थे ........
आते ही उन सबनें मानसरोवर में स्नान किया ................फिर उसी में किलोल करनें लगे थे ..............
महर्षि उठ गए .........और उठकर उन्होंने ऋषियों को प्रणाम किया ।
चलो वज्रनाभ ! तुमको आज मंगलों का भी मंगल करनें वाली स्थली के दर्शन कराता हूँ .......इतना कहकर उस मान सरोवर से उठकर कुछ कदम ही आगे गए थे ......वहाँ एक कुञ्ज था ...........लताओं का प्राकृतिक बना हुआ कुञ्ज ............उस कुञ्ज के बीचो बीच ......एक अत्यन्त प्रकाश पुञ्ज शिव लिंग था ...........वज्रनाभ नें देखा .........तुरन्त भागे हुए सरोवर में गए .........कमल के पत्र में जल भरकर ले आये ......और महादेव को जल चढानें लगे ।
पता है इन महादेव का नाम क्या है ?
महर्षि नें वहीँ आसन जमाते हुये पूछा ।
वज्रनाभ भी वहीँ बैठ गए.........नही गुरुदेव ! मुझे नही पता ।
"गोपेश्वर".......इनका नाम है "गोपेश्वर महादेव"......नेत्रों को बन्दकर बड़ी श्रद्धा से इस नाम का उच्चारण किया था महर्षि नें ।
गोपेश्वर ? प्रश्न किया वज्रनाभ नें ।
हाँ .......प्रेम का यही तो चमत्कार है वत्स ! कि देखो ! काल, कराल, महाकाल , मृत्युंजय, प्रलयंकर ऐसे भयानक नाम वाले .......ऐसे भयानक रूप वाले रूप वाले, यहाँ प्रेम नें उन्हें गोपी बना दिया .......आहा ! महर्षि आनन्दित हो गए थे ।
हाँ .........यहाँ रास में नाचे हैं ये महादेव........यहाँ गोपीयों के ताल में ताल मिलाये हैं........यहाँ लंहगा फरिया सब पहन लिया है महादेव नें.......आँखें बन्द हैं महर्षि की......और उन्हीं गोपेश्वर महादेव का ध्यान करते हुये बोले जा रहे हैं ।
मुझे इस दिव्य कथा को सुनना है ......वज्रनाभ नें जिज्ञासा प्रकट की ।
हाँ ........ये तो प्रेम की महिमा है..........कि मृत्यु के देवता को भी कोमल हृदय वाली......एक गोपी बना दिया ।
इतना कहकर महर्षि इस प्रसंग को बड़े चाव से सुनानें लगे थे ।
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शून्यब्रह्म ......निराकार के ध्यान में लीन थे उस दिन महादेव ।
पर ये क्या ! कैलाश पर्वत में, उनके ध्यान में आज निराकार ब्रह्म आकार ले रहा था ..............तरंगें एकत्रित हो रही थीं ...........और वही एकत्रित तरंगें आकार लेती जा रही थीं ...............आँखें खोलनी पडीं शिव को ...........ये क्या हो रहा है !
पर आश्चर्य तब हुआ शिव शंकर को .............जब वह तरंगें नील वर्ण ......और त्रिभंगी हो गयी थी ........यानि वह नीला आकार तीन जगह से टेढ़ा होकर वंशी वाद्य करनें लगा था ..........हजारों हजार सुन्दरियां, समस्त प्रकृतियाँ दौड़ी चली आयी थीं उसके पास ।
आश्चर्य चकित हो उठे थे महादेव ..............ये निराकार ब्रह्म !
पर और आश्चर्य तब हुआ महादेव को .......जब यह नील ब्रह्म अपनी ही उन अंश भूता गोपियों के साथ नाचनें लगा था ............
ओह ! इस दृश्य को देखते ही उछल पड़े थे भगवान त्रिपुरारी ।
उनके पास में रखा डमरू अपनें आप बज उठा था ।
पार्वती दौड़ी दौड़ी आईँ ............आप समाधि से उठ गए नाथ !
पार्वती नें आकर हाथ जोड़ प्रार्थना करी ।
हाँ ............पर पार्वती तुम इतना तैयार होकर कहाँ जा रही हो ?
वो........देवि लक्ष्मी आयी थीं ............ब्रह्माणी भी आयी थीं ......कह रही थीं .......कि श्रीधाम वृन्दावन में महारास होनें वाला है ............तो अंतरिक्ष से हम सब देखेंगी ................पार्वती नें कहा ।
मैं भी चलूँगा ......और मैं भी दर्शन करूँगा ......महादेव नें कहा ......और चल पड़े .....।
अरे ! ऐसे कैसे चल रहे हो........उस महारास का दर्शन कोई पुरुष नही कर सकता ........पुरुष को दर्शन का भी अधिकार नही है ।
मुस्कुराये महादेव .....................
देवि ! उन ब्रह्म नें मोहिनी का रूप धारण कर मुझे मोहित किया था ....आज मेरी बारी है .....................
पर मैं क्या कर सकूँगा .........साक्षात् श्रीराधा रानी जिनके बाम भाग में विराजमान रहती हैं .........मैं क्या मोहित कर सकूँगा उन कृष्ण को ।
पर मैं जाऊँगा अवश्य..........मैं उस महारास का आनन्द लूंगा ।
फिर विचार करनें लगे शिव शंकर ........कहीं मुझे रोक दिया तो !
क्यों की महारास में सभी गोपियाँ ही होंगीं ...........
आँखें बन्द कर लीं महादेव नें........तुरन्त खोलीं.........
ओह ! ललिताम्बा त्रिपुरा सुन्दरी श्रीराधा रानी की मुख्य सखी हैं .....तो ठीक है फिर ..........मुझे वही उपाय बता देंगी ........ऐसा विचार करते हुये महादेव वृन्दावन की ओर चल पड़े थे .........
पार्वती जी पीछे से आवाज देती रहीं.....पर महादेव कहाँ सुननें वाले थे ।
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आप नही जा सकते.........वृन्दावन की सीमा में ही रोक दिया सखियों नें ......महादेव को.......वैसे तो सैकड़ों देवता रुके पड़े थे........कहीं से भी उस महारास का दर्शन मिल जाए .....ऐसी ही आस थी ।
महादेव को जाते जब देखा सभी देवों नें .............सब उनके पीछे लग गए ........आप तो महादेव हैं ......आपको तो प्रवेश मिलेगा ही ......तो हमें भी ! देवताओं नें प्रार्थना करनी शुरू कर दी ।
पर ये क्या ! सखियों नें तो जाते हुए महादेव को भी रोक दिया ।
आप नही जा सकते......आप इतना भी नही समझ रहे क्या ! कि इस महारास का दर्शन मात्र स्त्रियों को ही सम्भव है ........ये प्रेम का दिव्य दर्शन है......अहंकार ओढ़ कर इसका दर्शन नही किया जाता ।
ये गोपियाँ भी साधारण नही हैं ......अच्छे अच्छे देवताओं और ऋषियों को भी ये समझा रही थीं .............पर कौन इस महारास के दर्शन का लोभ छोड़ सकता था ।
पर मुझे जाना है ...................महादेव फिर जानें लगे ।
बाबा ! समझ में नही आरहा ........आपको जानें नही दिया जाएगा ।
अच्छा ! अच्छा ! ललिता सखी कहाँ हैं ? भगवान शंकर नें पूछा ।
क्यों , जानते हो आप ललिता सखी को ? सखी नें पूछा ।
हाँ........हमारा पुराना परिचय है ......बुलाओ तो ! महादेव नें कहा ।
ललिता सखी बहुत व्यस्त थीं........महारास की तैयारी हो रही थी भीतर.......उस तैयारी को देखनें वाली मुख्य ललिता सखी ही थीं ।
उस सखी के कहनें पर भी ललिता नही आईँ बाहर ..........
तब वहीं महादेव ध्यान लगाकर बैठ गए .............तंत्र मन्त्र की अधिष्ठात्री त्रिपुरा सुन्दरी ये महादेव के हृदय में ही तो रहती हैं ।
तुरन्त उपस्थित हुयीं भगवान शिव शंकर के सामनें ।
आप यहाँ ? ललिता सखी हँसी ।
हाँ ........हमारी भी इच्छा हुयी कि महारास का दर्शन किया जाए ......इसलिये हम आगये .......हँसते हुए महादेव नें कहा ।
पर आप कैसे दर्शन करोगे ? ललिता सखी नें मना कर दिया ।
क्यों की पुरुष का प्रवेश नही है भीतर !
.........ललिता नें कारण भी बता दिया ।
तो मुझे गोपी ही बना दो ........महादेव मुस्कुराते हुए बोले ।
क्या ! मुस्कुराते हुये चौंकी ललिता सखी ।
हाँ.....मैं इस प्रेम लीला के दर्शन करूँगा.....भले ही कुछ भी करना पड़े ।
हे वज्रनाभ ! महादेव के मुखारविन्द से ये सब सुनकर मुस्कुराते हुये इस सरोवर को दिखाया था ललिता सखी नें ।
महादेव ! इस सरोवर का नाम है "मान सरोवर"......नही नही .....ये आपका कैलाश वाला मान सरोवर नही है........यहाँ एक दिन ब्रह्म की आल्हादिनी श्रीराधा रानी मान कर गयी थीं .......तब बड़े परिश्रम से उन्हें मनाया था तुम्हारे ब्रह्म नें .......साकार ब्रह्म कृष्ण नें ।
ललिता सखी नें बताया ............तब से इस सरोवर का नाम "मान सरोवर" पड़ गया है ।
इसमें जो स्नान करता है ....प्रेम देवता उसके अहंकार को नष्ट कर देते हैं......सखी भाव जाग जाता है उसके अंदर.......ललिता सखी नें कहा ।
भगवान शंकर आनन्दित हो उठे ..... मानसरोवर में गए .........उस सरोवर में सीधे जाकर एक गोता लगाया ..........उसी समय भगवान शंकर का रूप बदल गया .............वो गोपी बन गए ............सुन्दर सी गोपी .....जटायें भी उनकी शोभा ही बढ़ा रही थीं ......गौर वदन की गोपी ........अच्छी खासी मोटी ताज़ी गोपी ..........लहंगा फरिया पहनी हुयी .....सोलह श्रृंगार में सजी ये गोपी ...........
नजर न लग जाए मेरे गोपेश्वर को ..............हँसी ललिता सखी ।
साँप बिच्छु सब लहंगा के भीतर छिप गए .................बड़े बड़े नयन ......नसीले नयन ............ललिता सखी नें कुछ सजा दिया ......कुछ संवार दिया ..............।
और लेकर चल दीं गोपेश्वर को ।
दिव्य रास मण्डल है.........अब रास शुरू होनें ही वाला है ।
यमुना के पुलिन में श्याम सुन्दर उठे.......अपनी श्यामा को उठाया ।
वाम भाग में श्रीराधा रानी को लिया..........और वर्तुल आकार बना ..... सारी सखियाँ नाच उठीं ।
मध्य में श्याम सुन्दर....वाम भाग में श्रीराधिका.....गोपियाँ हजारों की संख्या में......चाँदनी रात्रि है .....चन्द्रमा अपनी पूर्णता में खिला है ।
नृत्य शुरू हो गया .....गायन शुरू हो गया .........रागों का आलाप भी शुरू हो गया ...............वीणा बज रहे हैं .............मृदंग की थाप पर सब थिरक रही हैं ..............
ललिता सखी लेकर आयी महादेव को ........सबका ध्यान गया ललिता के ऊपर........और ललिता के साथ में आयी गोपी के ऊपर भी ।
कृष्ण नें ध्यान से देखा अपनें महादेव को ..........हँसे .....खूब हँसें कृष्ण ..........कृष्ण को हँसते हुए देखा तो महादेव भी हंस पड़े ।
सब को छोड़ दिया कृष्ण नें ......और अपनी नई गोपी के साथ नाचनें लगे ................हँसी रुक नही रही कृष्ण की ।
पर ये क्या ! साँप निकला भीतर से ............
क्यों की ये सब भीतर ही छुपे थे.....पर इन्होनें जब देखा कि हमारे मालिक को कोई पकड़ रहा है ......तो ये सब बाहर आगये ....
शंकर जी नें मन में सोचा ये पोलपट्टी खोलेंगें ...........पकड़ा साँप को और दवा दिया .........पर अब तो बिच्छु भी निकलनें लगे ।
श्रीराधा रानी हंस रही हैं ......ललिता सखी हंस रही हैं ....श्याम सुन्दर हंस रहे हैं ......महादेव तो भोले बाबा हैं ..........वो तो सबको हँसता हुआ देख नाच रहे हैं .........डमरू बजा रहे हैं ।
श्याम सुन्दर नें हँसते हुए कहा ..........गोपेश्वर महादेव की जय ।
सब सखियाँ समझ गयीं थीं कि महादेव आये हैं ....हमारे महारास में ।
वृन्दावन आनन्दित हो उठा था....शरद की निशा आज धन्य हो रही थी ।
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देवि पार्वती ! ये तो तुम्हारे पति महादेव शंकर हैं !
लक्ष्मी जी नें पार्वती जी को कहा ।
ये सब अंतरिक्ष से महारास की लीला का दर्शन कर रही थीं ।
हाँ .....ये तो मेरे ही पति हैं ...........मैने मना किया था ...
पर ये तो गोपी बन गए हैं ........देवि पार्वती नें झेपतें हुए कहा ।
मैं जाती हूँ ..........और देखकर आती हूँ ..........
देवि पार्वती को अच्छा नही लगा......और वो यहाँ वृन्दावन आईँ ।
आँखें खोलीं महर्षि शाण्डिल्य नें .............और वज्रनाभ को भी कहा .....आँखें खोलनें के लिये...........फिर उठ गए
और सामनें भगवान शंकर की जो पिण्डी थी उसके पास गए ........
हे वज्रनाभ ! ध्यान से देखो .........दुनिया के जितनें शिवालय हैं .......उसमें शिव पिण्डी मध्य में होती है .....और उनके अगर बगल में ही पार्वती गणेश जी की मूर्ति होती है ................है ना ?
पर यहाँ देखो एक विचित्रता ! महर्षि नें बताया ।
यहाँ गोपेश्वर महादेव कुञ्ज में हैं ........पर बाहर है पार्वती माता का विग्रह.............ये तुम्हे और किसी शिवालय पर नही मिलेगा ।
महर्षि शाण्डिल्य नें समझाया ।
और ऐसा क्यों ? वज्रनाभ नें पूछा ।
महर्षि नें इसका उत्तर उस दिव्य प्रसंग को सुना कर ही दिया ।
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आओ ! चलो कैलाश ! पार्वती जी नें कहा ।
कुञ्ज के भीतर बैठे हैं गोपेश्वर ।
मस्ती में हैं ......प्रेम की मस्ती है .......रास की मस्ती है .....महारास की खुमारी चढ़ी हुयी है .........वृन्दावन की भूमि में गोपेश्वर मस्त होगये ।
पार्वती की सुनते नही हैं गोपेश्वर .........पार्वती भीतर कुञ्ज में जाती नही है ........और प्रेम सागर में डूबे महादेव बाहर आते नही है ।
पार्वती भीतर क्यों नही जातीं ? वज्रनाभ नें फिर प्रश्न किया ।
क्यों की ........महर्षि हँसते हुए बोले.......पार्वती को लग रहा है ......इस कुञ्ज की सीमा में ही कुछ जादू है ..............भीतर जाते ही भगवान शंकर स्त्री हो गए .......कहीं मैं गयी और मैं पुरुष हो गयी तो ?
खूब हँसे महर्षि शाण्डिल्य ये कहते हुए ।
और आज तक देख लो वज्रनाभ ! इसी गोपेश्वर महादेव का स्थान है वृन्दावन में जहाँ भीतर अकेले हैं महादेव .......बाहर हैं पार्वती गणेश जी ।
क्यों की हम भी बदल गए तो .....इस डर से ये भीतर नही जा रहे ।
हँसे वज्रनाभ , खूब हँसे ..................
देखो ! प्रेम की महिमा .....मृत्यु के देवता , प्रलयंकर , संहार करनें वाले.......वो महाकाल ............आज वृन्दावन में गोपी बन गये ।
ध्यान में लीन हो गए थे इस "प्रेम प्रसंग" को सुननें के बाद दोनों ही ।
शेष चरित्र कल -
Harisharan
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