42 आज के विचार
( ओये ! तुमसे बतियाएँगी ...)
!! "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 42 !!
श्रीकृष्ण प्रकट हो गए !
होनें ही थे कृष्ण प्रकट ..........
इतनी प्यास जहाँ हो...धरती का सीना चीरकर भी.....जल निकलेगा ही ।
इतनी विरहासक्ति से गीत गाया था ........आँसुओं में अपनें दर्द को पिरोया था .......मान, नम्र , क्रोध, ताप, विनय, क्या नही था इन गीतों में ........मन कृष्णाकार वृत्ति ले चुका था ।
तो प्रकट हो गए कृष्ण !
कुछ गोपियाँ थीं जो भागीं ..........क्यों की पीछे के कुञ्ज में प्रकट हुए थे श्याम सुन्दर .........वो गोपियाँ भागीं पीछे की ओर ।
पर हँसी ठिठोली अभी भी सूझ रही है श्याम सुन्दर को ...........
चार हाथ लेकर प्रकट हो गए ..............चक्र, शंख , गदा, और कमल ...चार हाथों में यही सब था ।
"ये देखनें में तो हमारे श्याम सुन्दर लग रहे हैं .......पर नही हैं ये हमारे श्याम" .......सखियों नें कुछ देर ध्यान से देखा ......फिर निर्णय दे दिया ...."नही हैं ये हमारे श्याम सुन्दर" ।
कैसे कह रही हो ?
अरे ! देखो ना ! इनके तो चार हाथ हैं ..............पर हमारे श्याम सुन्दर के तो दो ही हाथ हैं ना ! फिर वो तो बंशी बजाते हैं ......इस चक्र शंख से उनका क्या प्रयोजन ? वो तो चंचल हैं .........ये तो शान्त हैं .......वो तो हँसते रहते हैं ..........पर ये तो गम्भीर हैं ।
फिर ये हैं कौन ? सब सखियों नें पूछा ।
ये कोई चार भुजा वाले देवता हैं ...........चलो ! इनको प्रणाम करो......और पूछती हैं ।
हे वज्रनाभ ! वो सारी गोपियाँ गयीं चार हाथ वाले कृष्ण के पास ।
हे चार हाथ वाले देवता ! हम बहुत दुःखी हैं.........हमारे ऊपर इतनी कृपा कर दो .......कि बताओ ! हमारे प्रियतम कहाँ गए ?
वो तुम्हारी तरह ही लगते हैं.......हाँ बिलकुल तुम्हारी तरह ।
पर...उनके दो हाथ हैं .....और वो बाँसुरी भी लेते हैं ........
गोपियों की बातें सुनकर कृष्ण थोडा मुस्कुराये, बोले कुछ नही ।
हाँ ...हाँ ......वो मुस्कुराते भी तुम्हारी तरह ही हैं ।
सब गोपियाँ हाथ जोड़नें लगीं........बताओ ना देवता ! हमारे कृष्ण कहाँ गए ? फिर विलाप करना आरम्भ कर दिया था गोपियों नें ।
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उस तरफ जाकर गोपियाँ रो क्यों रही हैं ?
श्रीराधा रानी नें अपनी सखी ललिता से पूछा ।
हे राधे ! उधर कोई चार हाथ वाला देवता आया है ..........सब गोपियाँ उसी से प्रार्थना कर रही हैं ........ललिता सखी नें कहा ।
क्या ! ये तो माधुर्य की भूमि है वृन्दावन ....यहाँ ऐश्वर्य का क्या काम ?
चार भुजा तो विष्णु भगवान के होते हैं ना ? श्रीराधा रानी नें ललिता की ओर देखते हुये कहा ..............
पर इस वृन्दावन में विष्णु या ईश्वर का क्या काम ?
चलो ! तनिक मैं भी तो देखूँ .......कि ये है कौन ?
श्रीराधा जी उठीं .........और अपनी अष्ट सखियों के साथ उसी कुञ्ज की ओर चली ।
पर ये क्या ! जैसे ही श्रीराधा रानी वहाँ गयीं........और चार भुजा वाले कृष्ण के पास जाकर खड़ी हुयीं .......
वज्रनाभ ! श्रीराधा रानी की माधुर्य शक्ति के आगे कृष्ण की ऐश्वर्य शक्ति कमजोर पड़ जाती है ..........और आज भी वही हुआ ।
श्रीराधा रानी आगे बढ़ती चली जाती हैं.......कृष्ण श्रीराधा रानी को देखते हैं .......देखते ही उनकी ईश्वरता क्षीण होनें लगती है ।
बढ़ते बढ़ते श्रीराधा इतनी आगे बढ़ जाती हैं कि .....कृष्ण को छू लेती हैं ........बस कृष्ण को जैसे ही छूआ श्रीराधा नें ...........तुरन्त दो हाथ गायब कृष्ण के.......सम्पूर्ण ईश्वरता कहीं खो गयी ।
क्यों की माधुर्य के आगे ..............ऐश्वर्य टिक ही नही सकता ।
बस.........फिर क्या था.......हर्ष उल्लास में मग्न हो गयीं गोपियाँ ......कृष्ण को कोई निहारनें लगीं ........अपलक .........कोई गले लगानें लगी.....कोई अपना सिर कृष्ण के कन्धे में रख झूमनें लगी ।
पर श्रीराधा रानी नें हाथ पकड़ा कृष्ण का ......और पुनः उसी यमुना के पुलिन में आगयीं ..................
यहाँ फिर क्यों ? चन्द्रावली नें श्रीराधारानी से पूछा ।
क्यों की यह यमुना का पुलिन है ....यहाँ कोई लता वृक्ष कुञ्ज इत्यादि नही हैं.......ये यहाँ कहीं छुप भी नही सकते .............इसलिये सब बैठ जाओ ............और मध्य में इन्हें बिठाओ ...........चन्द्रमा के पूर्ण प्रकाश में अब इनसे बातें होंगीं ............बतियाएँगी हम ।
बस फिर क्या था .........सब चारों ओर से घेर कर बैठ गयीं ............मध्य में खड़े हैं यमुना की बालुका में कृष्ण ।
सभी सखियों नें अपनी अपनी चूनरी उतारी और कृष्ण के आगे रख दी ...........इसमें बैठ जाओ ..............सखियों नें कहा ।
सबनें यही किया .............हजारों चूनरी वहाँ बिछ गयी थी ।
पर सबसे ऊपर "श्रीजी" की चूनर ...........नीलाम्बर, वो जब बिछी तब उसमें जाकर श्याम सुन्दर विराजमान हुए ।
सब गोपियां देख रही हैं ......कोई गुस्से में है .........कोई अभी भी रो रही है ......हम सब तुमसे कुछ पूछना चाहती हैं........बताओगे ?
श्रीराधा रानी नें सब सखियों की ओर से पूछना शुरू किया ।
"तुम बुद्धिमान हो......हम तो गंवारन हैं ........अब हमें समझा दो क्यों की समझानें में भी तुम निपुण हो.......श्रीराधा रानी नयन मिलाकर कृष्ण से बतिया रही थीं ।
क्या पूछना है .......पूछो ! श्याम सुन्दर नें हँसकर कहा ।
श्याम सुन्दर ! तीन प्रकार के लोग होते हैं ..........एक प्रेम के बदले प्रेम करते हैं ........एक वे होते हैं .....जो प्रेम न करनें वालों से भी प्रेम करते हैं ......और एक वे होते हैं ......जो प्रेम करनें वाले से प्रेम न करें ..उन्हें कष्ट और दुःख देकर स्वयं प्रसन्न हों ............इसमें श्रेष्ठ कौन है ?
श्रीराधा रानी नें ये प्रश्न किया श्याम सुन्दर से ।
गम्भीर हो गए थे श्याम ............फिर बोले - प्यारी ! प्रेम करनें के बदले प्रेम ? ये तो स्वार्थ हुआ .........है ना ?
हाँ .....प्रेम तो वो श्रेष्ठ हुआ...."जो प्रेम न करनें वाले से भी प्रेम करता हो"
पर ये जो तीसरे दर्जे के प्रेम के सम्बन्ध में तुमनें पूछा है .......कि प्रेम करनें वाले को भी दुःख दे ....या कष्ट दे ।
आज ये "बनमाली" गम्भीर होकर बोल रहे थे ।
जो प्रेम करनें पर भी प्रेम नही करते ........तो इस प्रकार के दो लोग प्रसिद्ध हैं ...........एक आत्माराम और एक पूर्णकाम ...........
हे मेरी प्यारीयों ! आत्माराम तो वह है जो अपनी ही आत्मा में रमण करता हो .....यानि ऐसे सिद्ध महात्माओं से प्रेम करना ये तो जीवन की धन्यता है ..........चाहे वो प्रेम करें या न करें ..........पूर्णकाम से प्रेम करना ये भी उपलब्धि ही है .........क्यों की जिसकी कामनाएं पूर्ण हो चुकी हों ...........वह एक प्रकार से निस्वार्थी ही हुआ .......तो फिर ऐसे स्वार्थ रहित मनुष्य से प्रेम करना ..........ये उपलब्धि है जीवन की ।
पर ............इनके अलावा जो प्रेम करनें पर भी प्रेम नही करते .........वो या तो कृतध्नी हैं ।.........कृष्ण गम्भीर ही बने रहे .....और बोलते रहे ।
ये "कृतघ्नी" क्या होता है मोहन ? ............प्रश्न है ।
कृतघ्नी उसे कहते हैं ...........जो किये हुए उपकार को न मानें.......
..कृष्ण का उत्तर ।
और एक निम्न श्रेणी और होती है .................
"द्रोही कुपुरुष"...........कृष्ण नें गम्भीरता के साथ ये बात कही ।
हे बृज गोपियों ! जो प्रेम का बदला प्रेम से न चुकाए .......वह अगर आत्माराम नही हैं ...पूर्णकाम भी नही है ...........तो वह अवश्य कृतघ्नी है या "द्रोही कुपुरुष" है ।
तुम क्या हो ?
श्रीराधा रानी नें कृष्ण की आँखों में गहराई से देखा ....और पूछा ।
सकपका गए कृष्ण ......इधर उधर देखनें लगे ..............
बताओ ! तुम आत्माराम हो नही ! पूर्णकाम भी नही हो .........अगर आत्मा राम होते .....तो हमें क्यों बुलाते बाँसुरी बजाकर ......
पूर्णकाम नही हो ......पूर्णकाम भला माखन चुराएगा .....? चीर चुराएगा ?
तो क्या ये कृतघ्नी हैं ? चन्द्रावली नें श्रीराधा रानी से पूछा ।
नही ....कृतघ्नी तुम नही कह सकतीं इन्हें ...............क्यों की किये का उपकार ये मानते हैं.......हमनें रोते हुए गीत गाया ......ये आगये ......
फिर ये क्या हैं ? सब हँसनें लगीं..........द्रोही कुपुरुष ?
मैं तुम्हारे हास्य को समझता हूँ .........कृष्ण गम्भीर ही बने रहे ।
मैं तुम लोगों के प्रेम को नही समझता ऐसा नही है .........पर प्यारी ! मैं ये चाहता हूँ कि तुम्हारा प्रेम बढ़ता रहे, बढ़ता रहे ..........इसलिये ही मैं अंतर्ध्यान हुआ था ......इस विरह से प्रेम बढ़ता है .......बढ़ा है ।
जैसे - हे प्यारी ! निर्धन को धन मिल जाए फिर वह धन खो जाए, तो उस निर्धन की समस्त वृत्तियाँ उस धन पर ही लग जाती हैं ।
हर समय वह धन का ही चिन्तन करता रहेगा .........ऐसे ही मैने सोचा था कि .........मैं तुम्हे मिल जाऊँ .........फिर विरह दे दूँ तो इससे प्रेम और बढ़ेगा ...........हाँ .......और मैं देख रहा हूँ कि पहले की अपेक्षा प्रेम और बढ़ा ही है ..।
हे प्यारी सखियों ! तुमनें जो त्याग किया है मेरे लिए .. .....ऐसा त्याग बड़े बड़े योगिन्द्र मुनींद्र भी नही कर सकते.........जिस परिवार के राग और मोह को छोड़ पाना बड़े बड़े बैरागियों के लिये भी मुश्किल होता है ........तुम नें उस राग , मोह, ममता की पक्की रस्सी को क्षण में ही तोड़ दिया .....और मेरे पास चली आईँ..........तुम्हारे जैसा त्याग ......किस त्यागी नें आज तक किया होगा ?
सजल नेत्र हो गए थे ये कहते हुए श्याम सुन्दर के ।
ये कृष्ण , स्वयं हजारों जन्म भी ले ले ....तो भी तुम लोगों नें जो प्रेम दिया है......हे गोपियों !......इसके आगे कृष्ण कुछ बोल नही पाये.....उनकी वाणी प्रेम से अवरुद्ध सी हो गयी ।
श्रीराधा रानी नें भी अपनी ऊँगली कृष्ण के मुख में रख दी थी ........
नही श्याम ! ...........सिर हिलाया श्रीराधा रानी नें ।
बहुत कुछ बोलनें वाले थे श्याम सुन्दर ......पर श्रीराधा रानी नें मना कर दिया .............वो तो चरणों में झुक गए थे .....पर श्रीराधा रानी नें उन्हें उठाकर अपनें हृदय से लगा लिया था ।
शेष चरित्र कल -
Harisharan
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