"श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 14

14 आज  के  विचार

( गोकुलवासी चले, वृन्दावन की ओर... )

!! "श्रीराधाचरितामृतम्" - भाग 14 !! 



श्रीराधारानी का संकल्प  कैसे व्यर्थ  जाता ........हे वज्रनाभ !  वृन्दावन की कुञ्जों में  भ्रमण करते हुये   श्रीराधा यहीं विचार करतीं ....."कृष्ण  वृन्दावन आजाते "!  ...कृष्ण को  अब वृन्दावन आना ही चाहिये  ।

आज  ये मनोरथ  श्रीराधारानी का पूर्ण हो रहा था  ।

महर्षि शाण्डिल्य आज  "श्रीराधाचरित्र"  को  गति दे रहे थे ।

बाबा ! आप कहाँ जा रहे हो  ?       प्रातः ही  तैयार होकर  शकट  में बैठकर  जा रहे थे  बृषभान जी .......तब  उनकी लाड़ली नें पूछा था ।

मेरी लाली !     बृजपति नन्द नें बुलाया है , गोकुल में ......सुना है  बहुत उपद्रव मचा रखा है.....कंस नें वहाँ पर......बेचारे सब गोकुल वासी  दुःखी हैं ......वहाँ अब उनका रहना  दूभर हो रहा है ..... अगर होगा तो मैं  आज सन्ध्या तक आजाऊंगा.....और सुनो  राधा !   आज तुम कहीं जाना मत  .......ठीक है  ?      माथे को  चूम लिया  बृषभान जी नें   अपनी पुत्री का ........और  चल दिए  ।

"बाबा !  जल्दी आना" ...........जोर से  बोलीं थीं  श्रीराधारानी ।

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उस दिन गोकुल में  सभा लगी थी .........नव नन्द  वहाँ उपस्थित थे .......अन्य गोकुल  के  प्रबुद्ध वर्ग भी थे ........बृजपति नन्द नें  मुझे पहले ही बुलवाया था ........तो  मैं  पुरोहित के रूप में वहाँ उपस्थित था  ।

पूतना, फिर  शकटासुर, तृणावर्त ....कागासुर ........और इतना ही नही .......कल  तो  हम लोग डर ही गए ........"अर्जुन वृक्ष"  जड़ सहित  उखड़ गए थे !....हमारी बेटी बहुएँ  नित्य  पूजन करती थीं  उस वृक्ष का ....वर्षो पुराना वृक्ष था वो .......तभी  दूसरा ग्वाला बोल उठा ......अजी !  हमारे गोकुल का देवता था वो.........

और न आँधी आयी न तूफ़ान आया......जड़ सहित  उखड़ गए  दो दो  एक साथ खड़े अर्जुन के वृक्ष  !      अजी  छोडो !    छोटे से कन्हैया को बांध दोगे .......और उसनें उखाड़ दिया .......कोई विश्वास भी करेगा   ?        

पर मुझे तो लगता है .........कि    गोकुल का अधिदेवता ही  इस गोकुल को छोड़ कर चला गया है ......हाँ  वो वृक्ष  देवता ही था इस गाँव का  ।

गुरुदेव ! आप कुछ बोलते क्यों नही हैं  ?
       बृजपति नन्द नें मुझ से कहा   ।

मैं    कुछ सोच रहा था .......हे  वज्रनाभ !  मैं तो उन आल्हादिनी  शक्ति की मनोरथ को जान रहा था......अब  प्रेम लीला वृन्दावन में ही  होनें वाली थी .......आल्हादिनी  अपनी ओर खींचनें की तैयारी में थीं ।

"हमें  ये गोकुल छोड़ देना चाहिये"

....मुझे गोलमोल बातों को घुमानें की आदत नही है ......मैने स्पष्टतः   कह दिया    ।

  "पर हम लोग जायेंगें कहाँ"  ?    

सब गोकुल वासियों  नें  साश्चर्य मेरी ओर ही देखा   ।

गुरुदेव !   इस गोकुल को हम छोड़ देंगे ..........आतंक के साये में  हम अपनी सन्तति  नही  रख सकते .......हम आपकी बात मानते हैं.....पर गुरुदेव !   गोकुल गाँव को छोड़कर हम जाएँ  कहाँ ?      

हे वज्रनाभ !    मैने   शान्त भाव से  सभी गोकुल वासियों के सामनें  ये नाम लिया ..............वृन्दावन !       आपलोगों नें  नाम सुना होगा इस वन का ...........बहुत सुन्दर वन है ......प्रकृति नें मानों अपनें आपको न्यौछावर ही कर दिया है    इस वन में  ।

वृन्दावन ?      सब गोकुलवासी  एक दूसरे का मुँह देखनें लगे  ।

ये वन तो बरसानें के पास में पड़ता है ना  ?       

बृजपति नन्द नें मुझ से पूछा था  ।

हाँ ......और  आपके मित्र  बृषभान की  देख रेख में ही है........याद रहे  बृजपति !      सूर्यवंशी हैं.....बृषभान......  इसलिये उनसे ज्यादा उलझनें की कंस भी नही सोच सकता .........आप ज्यादा न सोचें .......संकट की इस घड़ी में.....आप अपनें मित्र बृषभान को ही यहाँ बुलवा लें ।

...........मैने सारी बातें वहाँ समझा दी थीं ........हे वज्रनाभ !  उस दिन की सभा वहीँ  रोक दी गयी ........और एक दूत  भेज दिया गया बरसानें ......बृषभान जी को गोकुल आनें का सन्देश देने के लिये  ।

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आइये  आइये !   बृषभान जी !  

    अपनें हृदय से लगाया  बृजपति नें , बृषभान को  ।

गोकुल के सभी लोग   दूसरे दिन की सभा में उपस्थित थे  ..........

बरसानें के अधिपति  आज पधारें हैं........ये हमारे मित्र हैं ......घनिष्ट मित्र .........इनसे  क्या  छुपाना  !       बृजपति नें    सबके सामनें,  अपने मित्र   बृषभान को   अपनें गोकुल  की समस्या बताई  ..............

कंस का अत्याचार बढ़ता ही जा रहा है इस गोकुल में .........

हमारे बालक हैं........उन्हें  कभी कुछ हो गया तो ? 

अभी तक तो  नारायण भगवान की कृपा से हम सब बचते रहे ........पर  अब  बड़ा मुश्किल है .....बृजपति नन्द नें  अपनी बात रखी  ।

तो  बृजपति नन्द जी !

  आप लोग इस गोकुल गांव को  छोड़ क्यों नही देते  !

बृषभान जी   नें सबके सामनें कहा  ।

पर कहाँ जाएँ हम ?   बृजपति नें  प्रश्न किया  ।

क्यों  !   क्या  आप हमें अपना मित्र नही मानते ?     

हमारा बरसाना  आप सबके लिए खुला है....आप  आइये......आप गोकुल वासी और हम  बरसाना वासी  मिलकर  साथ साथ आनन्द से रहेंगे ।

उदारमना बृषभान जी की बातें सुनकर ..........बृजपति नन्द नें  प्रसन्नता व्यक्त की ...........आपका हम सब के प्रति अपार प्रेम है .......पर  हमारी भी बात आप सुन लें .........नन्द नें  बृषभान से  कहा ।

देखिये  बृषभान जी !     आप मित्र हैं बृजपति के  और अभिन्न मित्र.....इस बात का  गौरव है  हम  गोकुल वासियों के मन में ......पर  हम लोग चाहते हैं कि .....हम.वृन्दावन में  रहें......और वृन्दावन आपके क्षेत्र में आता है......इसलिये ही आपको यहाँ  आमन्त्रित किया था हमनें ।

हे वज्रनाभ !     मैने  बृषभान जी से ये बातें कहीं   ।

पर   आप लोग वन में क्यों रहेंगें  ?       

कितनें  उदार मन के हैं बृषभान.........उन्हें  अच्छा नही लग रहा कि ....बरसानें में इतनें बड़े महल के होते .......और  रातों ही रात में  सुन्दर सुन्दर  मकान भी बन जायेंगे .........ये कहना है   बृषभान जी का ।

नही .......आप हमें  वृन्दावन में रहनें की आज्ञा दें .......हमारे लिये  यही बहुत है .........हम लोग  हैं ही वन में रहनें के आदी ..............फिर धीरे धीरे बना लेंगें  आवास ................शकट ( बैल गाडी)  है ना सबके पास ..........उसी को सजा कर    रह लेंगें ........बृजपति नें बृषभान से कहा ..........बृषभान जी को अच्छा नही लग रहा ......कि वृन्दावन के पास है बरसाना ,   फिर भी  ऐसे रहेंगें गोकुल वासी  !

आप  चिन्ता न करें ..........बस हमें आज्ञा दें ..........बृजपति नें हाथ जोड़ लिये बृषभान जी के ..............

अरे ! ये आप क्या कर रहे हैं ..........ऐसे न करें.........हृदय से लगा लिया  बृजपति नन्द को बृषभान नें  ।

सब प्रसन्न हो गए है........."गोकुल से चलो  वृन्दावन की ओर"  सबके सामनें घोषणा हुयी  बृजपति के द्वारा  ।

युवकों में उत्साह होता ही है .........नये के प्रति .............

जाना था  बरसानें  बृषभान जी को ....पर  एक दिन और रुकना पड़ा ।

क्यों की अब  साथ में ही चलेंगे वृन्दावन .............वहाँ  सबको व्यवस्थित करके .....फिर  बृषभान जी जायेंगें  बरसानें  ।

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हजारों शकट .....सजाई गयीं ....हजारों नौकाएं  भी सजाई गयीं...  जो यमुना जी से होकर जाएंगे.....उनके लिये नौका भी तैयार हो गए ....
साथ में गौओं को भी तो ले जाना था ना  । 

मैया ! हम कहाँ जा रहे हैं ?      कृष्ण पूछते हैं  बार बार ।

यशोदा के साथ कृष्ण हैं .........रोहिणी के साथ बलराम हैं  ।

हम लोग  अब वृन्दावन रहेंगें ............वहीँ जा रहे हैं   ।

बालकों को का क्या .......उन्हें तो आनन्द ही आरहा है  ।

पर ये क्या  ?  

  मथुरा से होकर   गुजरे  ये गोकुल वासी .......बृषभान जी नें कहा ...."यहाँ से सब  शीघ्र  चलें......कहीं कंस के सैनिक न आजायें"  ।

भयभीत से ग्वाले  चले जा रहे हैं ......पर  कंस के  राक्षसों से बच पाना  इतना सरल तो नही था ..........

कंस का मामा..........उसनें देख लिया ..............वो चिल्लाया ......"गोकुल वासी  गोकुल  छोड़ रहे हैं ...और भाग रहे हैं .....पकड़ो इन्हें .......मार दो  यमुना में फेंक दो"  ।

कंस के  सैनिक   दौड़ पड़े .....नौका के पास कुछ ......कुछ  शकट के पास  .....उनके हाथों में नंगी तलवारें थीं........मारों काटो ....चिल्लानें लगे थे  वे सब   ।

बेचारे  गोकुल वासी  !    मैं भी साथ में ही चल रहा  था गोकुल छोड़कर वृन्दावन की ओर.........हे वज्रनाभ !       तभी मैने देखा ......

एकाएक हजारों भेड़िये न जानें कहाँ से आगये ..........वो सब  टूट पड़े    कंस के उन राक्षसों के ऊपर ......फाड़ दिया उन्हें .....खा गए ......उन सबको........पता नही कहाँ से आये थे ये   .....और चले भी गए ।

हे नारायण !  आपनें बचा लिया........बृजपति नन्द नें राहत की साँस ली ....बृजरानी यशोदा  नें तो कन्हैया को छुपा लिया था अपनें आँचल में......."मैया !  गए  वो लोग "!  .. छुपा हुआ कृष्ण बोल उठा......हाँ  गए  .....पर अभी तू  छुपा रह .......कहीं फिर आगये तो ........बृजरानी  डर रही हैं   ।

अब डरनें की जरूरत नही है ........ये हमारा क्षेत्र है .......हम आगये  बरसानें  के  पास......और वो रहा वृन्दावन !   बृषभान जी नें  सबको बताया....।

सब  गोकुल वासी उछल पड़े ............आनन्द से झूम उठे ...........

वो  देखो मैया !   वो देखो !        मोर नाच रहा है.... ......कृष्ण खुश हो गए ........फिर  बोले ........उसके साथ  वो  कौन है ?  

"लाला !  वो मोरनी है"
......बृजरानी नें  अपनें लाल के कपोलों को चूमते हुये कहा   ।

ये मोरनी कौन होती है ?      सोच में पड़ गए  कृष्ण ।

मोरनी होती है .....मोर की पत्नी !    हँसते हुए  मैया नें उत्तर दिया  ।

फिर मेरी पत्नी कहाँ है  ?       

अब  इसका क्या जबाब दे  यशोदा ।

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मैया !  बाबा क्यों नही आये   दो दिन हो गए हैं  ? 

श्रीराधा  नें  अपनी माँ कीर्तिरानी से पूछा ।

गोकुल वासियों को वृन्दावन ले आये हैं   तुम्हारे बाबा .........राधा !    अब  तुम वृन्दावन जाओगी  तो मैं  निश्चिन्त हो जाऊँगी .....क्यों की  सब अपनें हैं  वहाँ ..........

और कौन कौन आया है गोकुल से ? 

श्रीराधा रानी का मन झूम उठा था  ये  सुनते ही ।

सब आरहे हैं ...........अरे हाँ !  राधा !      तुम  अब कृष्ण से खेलना.... .......तुम दोनों   बहुत अच्छे लगोगे ......मुस्कुराई  कीर्तिरानी ।

पर ये क्या !      श्रीराधा  शरमा  गयीं ............कुछ नही बोलीं .........और वहाँ से चलीं भी गयीं    ।

पर बच के रहना .......वो चोर है .......ललिता सखी नें  जोर से कहा  ।

मत खेलना उसके साथ ......कहीं तुम्हारे हार .......मुँदरी ..........ये सब चुरा लिया तो ................!

हट्ट ...............मुस्कुराती हुयी  अपनें कक्ष् की ओर भागीं  श्रीराधा ।

देखती रही थीं   उस रात......चन्द्रमा को .......श्रीराधा रानी ।  

कल मैं  जाऊँगी  वृन्दावन  तो मुझे कृष्ण मिलेगें  !      सोचती रहीं  ।

शेष चरित्र कल .....

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