11 आज के विचार
( जब श्रीराधारानी को मारनें कंस आया...)
!! "श्रीराधाचरितामृतम्"- भाग 11 !!
( साधकों ! मुझ से कई लोगों नें पूछा है ......"श्रीराधा रानी श्रीकृष्ण से बड़ी हैं .....फिर आपनें उन्हें छोटी क्यों बताया ?
मैं स्पष्टतः कह देना चाहता हूँ ........मैं जो लिख रहा हूँ .......इसका आधार शास्त्रीय और प्रमाणिक है ........आधुनिक लेखक ही कहते हैं कि श्रीराधा कृष्ण से बड़ी थीं......उनके पास क्या प्रमाण है मुझे आज तक समझ नही आया .....क्यों कि गर्ग संहिता, बृज के सन्तों की वाणियों में, निम्बार्क सम्प्रदाय, राधबल्लभीय सम्प्रदाय एवम् चैतन्य सम्प्रदाय के महापुरुषों नें तो लिखा है श्रीराधा , कृष्ण से छोटी ही थीं ......मैं उन प्रमाणों के आधार पर ही लिख रहा हूँ ......और नायिका नायक से छोटी हो तभी "श्रृंगार रस" भी खिलता है.......इसलिये प्रमाणिक बात यही है कि श्रीराधा छोटी थीं नन्दनन्दन से । राधे राधे !! )
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धन्य है वो गोद .......जिसमें श्रीराधा खेल रही हैं ............धन्य है वो आँचल जिस आँचल में वो आल्हादिनी शक्ति प्रकट हुयीं हैं .....धन्य है धरित्री बरसाना जैसा प्रेम नगर अपनें मैं पाकर ।
अभी तो कुछ नही है ...देखते जाओ कंस ! जब श्रीराधा बड़ी होंगी ।
महर्षि शाण्डिल्य हँसें.....और वज्रनाभ से बोले .....देवर्षि नारद की लीला उनके स्वामी श्याम सुन्दर ही जानें .......कौतुकी हैं नारद जी........इन्हें कौतुक बहुत प्रिय है.......सबसे सहज रहते हैं ........तुम्हे पता है ना वज्रनाभ ! कंस जैसे राक्षस भी गुरु मानते हैं देवर्षि को ......क्यों कि ये उन्हीं की भाषा सहजता में बोल लेते हैं .........हम लोग नही बोल पायेंगें ।
अब देखो ! चले गए बरसानें से सीधे मथुरा कंस के पास .......कंस नें स्वागत किया.........फल फूल दिए ......स्वागत स्वीकार करनें के बाद देवर्षि कंस से बोले ............आनन्द आगया !
तो फल फूल और लीजिये ..............
देवर्षि हँसे ...........कंस के पीठ में जोर से हाथ मारा .......और बोले ...नही कंस ! तुम्हारे इन फलों से देवर्षि को क्या आनन्द आएगा .....
आनन्द तो बरसानें में आया ......।
बरसानें में ? कंस नें पूछा । हाँ हाँ हाँ ........बरसानें में ।
कीर्तिरानी की गोद में वो शक्तिपुंज.... ..कृष्ण की आल्हादिनी शक्ति..........वो बृषभान की लली........उनके दर्शन करके आया हूँ .......आहा ! आनन्द आगया !
हे कंस ! श्रीकृष्ण की शक्तियों का केंद्र तो वहीँ हैं ।
देवर्षि बोले जा रहे हैं ।
अब आप ये क्या कह रहे हैं ................पहले कह रहे थे गोकुल में मेरा शत्रु पैदा हुआ है............मैं उसी को मारनें में लगा हूँ .......पूतना भेजी .....पर वो मर गयी ........शकटासुर उसे भी मार दिया .......और सुना है कागासुर कल मरा हुआ मिला है मेरे सैनिकों को ।
तुम समझ नही रहे हो कंस ! अपनें आसन से उठे देवर्षि नारद .......कंस के कान में कुछ कहना चाहा ..........फिर रुक गए .....इधर उधर सैनिकों को देखा ........कंस तुरन्त चिल्लाया ........"एकान्त" ........सब जाओ यहाँ से ........देख नही रहे देवर्षि मुझे कुछ गुप्त बातें बता रहे हैं ।
महर्षि शाण्डिल्य मुस्कुराते हुये ये प्रसंग आज सुना रहे थे ।
कान में बोले देवर्षि, कंस के ............विष्णु नें अवतार लिया है कृष्ण के रूप में .....तुम्हे मारनें के लिये .....पर विष्णु की शक्ति बरसानें में प्रकट हुयी है ...........विष्णु की शक्ति का वो केंद्र है ............राधा !
राधा ? कंस डर गया ।
.........डरो मत कंस .....डरो मत .........
मैं हूँ तुम्हारे साथ ............पीठ थपथपाई कंस की ।
क्या करूँ मैं गुरुदेव ! आपही कोई उपाय बताएं ।
मार दो......और क्या तुम भी तो महावीर हो......हटा दो विष्णु की शक्ति को ......कितनी सहजता में बोल रहे थे देवर्षि ।
मैं किसी राक्षस को भेजता हूँ अभी बरसाना......कंस क्रोधित भी है पर डरा हुआ है ।
क्यों की अब दो दो शत्रु हो गए थे.....एक गोकुल में और ये बरसानें में ।
नही राक्षस को मत भेजो ..............देवर्षि नें रोका ।
फिर राक्षसी ? कंस नें पूछा ।
नही ......तुम स्वयं जाओ ...........और उनकी शक्ति का आंकलन करके आओ .............कंस विचार करनें लगा ।
विचार मत करो मथुरा नरेश ! जाओ !
देखो भाई ! मुझे क्या है .....मै तो तुम्हारे भले के लिये ही बोल रहा हूँ .....
नारायण नारायण नारायण ...........चल दिए देवर्षि ।
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रथ लिया और कंस अकेले ही चल पड़ा था बरसानें की ओर ...........नही किसी को साथ में नही लिया .........यहाँ तक की सारथि भी नही .....अकेले ........स्वयं रथ चलाते हुए चला था ।
मथुरा नरेश कंस ! राजा कंस आये हैं ।
........बरसानें में हवा की तरह बात फ़ैल गयी ।
कंस अपनें रथ को लेकर घूम रहा है ...........और ग्वालों के घरों में भी जा रहा है .......अभी तक किसी को क्षति तो पहुँचाई नही है ......पर सब डरे हुये हैं हे बृषभान जी !
बरसानें के कुछ प्रधान लोगों नें आकर बृषभान जी से गुहार लगाई थी ।
डरो मत .....कंस हमारा कुछ नही बिगाड़ पायेगा ........और अगर उसनें इस बरसानें की क्षति की ......तो फिर उसे उसका दण्ड भोगना ही पड़ेगा ........क्रोध से लाल मुख मण्डल हो गया था बृषभान जी का ।
पर "बिना विचारे जो करे सो पाछे पछताये"........सहज हो गए थे बृषभान.... ....युवराज कंस क्यों आये हैं .....ये पता तो करो ......कहीं बरसानें में ऐसे ही भ्रमण में आये हों ........चलो ! बृषभान उठे और कंस के पास ही चल पड़े थे ....उनके साथ उनके कई ग्वाले थे ।
युवराज कंस की .....जय हो !
शत्रु को भी सम्मान देना ये बृषभान जी का स्वभाव है ।
ओह ! बृषभान जी ! उतरा कंस रथ से ...........।
आप ठीक हैं ? आपके मित्र नन्दराय तो यदा कदा आते रहते हैं मथुरा .........पर आप नही आते ? कंस नें बृषभान जी से पूछा ।
अब मथुरा जैसे नगर मैं जानें की हमारी इच्छा नही होती ........बरसाना ही हमें प्रिय है .......और यहाँ के लोग मुझे छोड़ते भी नहीं ।
बीच में ही बात को रोकते हुए बृषभान नें पूछा ......"कर" यहाँ से समय पर तो पहुँचता है ना ?
नही नही ....."कर" की चिन्ता नही है .........कुछ सोचनें लगा कंस ।
आपकी पुत्री हुयी है ? स्वयं ही पूछनें लगा ..........क्यों की कंस समझ गया कि पुत्री के जन्म की बात ये मुझ से क्यों कहनें लगे ।
हाँ ......एक पुत्री हुयी है ......कंस को क्या कहें इससे ज्यादा ।
तो हमें दिखाओगे नही ? कंस आदेशात्मक भाषा बोल नही सकता था ......क्यों की ये ग्वाले भी कम न थे बरसानें के ..........इनकी लाठी ही पर्याप्त है ।
पर भोले भाले हैं बृषभान .............बिना कुछ बोले अतिथि जानकर कंस को ले चले अपनें महल में ।
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आप ये क्या करते हैं ? कंस दुष्ट है .......उसकी नजर अच्छी नही है .......फिर मेरी लाडिली को मैं क्यों दिखाऊं सब को ?
कंस को अतिथि कक्ष में बिठाकर बृषभान जी चले गए थे...अन्तःपुर में ।
"कंस देखकर चला जाएगा"
..अब मैं उसकी बात कैसे काट देता कीर्ति !
वैसे मेरी लाडिली का वो कुछ बिगाड़ नही पायेगा .........बस कीर्ति ! कुछ क्षण के लिये ही तुम चली जाओ .........मैं कंस को बुला रहा हूँ ...पालनें में खेल रही लाली को वो देख लेगा और चला जाएगा .....मैं हूँ ना उसके साथ ।
आप ना ऐसी जिद्द न किया करें.........मेरी लाली को अगर कुछ हो गया ......उसकी नजर भी तो खराब है .........पता है बृजरानी भाभी कह रही थीं .......कितना उत्पात मचा रखा है उसनें गोकुल में ।
अब जाओ तुम... कुछ नही होगा ...........मैं हूँ ना !
पर जाते जाते डिबिया ली काजल की कीर्तिरानी नें.....और बड़ा सा टीका माथे पर लगा दिया अपनी लाली के ।
कीर्तिरानी भीतर गयीं ......पर उनका मन फिर भी नही माना ......वापस आईँ और काजल ही पूरे मुँह में लगा दिया श्रीराधा रानी के ......
पर सूर्य बादलों से कैसे छुपेगा ?
आओ महाराज कंस ! आओ ! लेकर चल दिए कंस को अन्तःपुर में ।
देवर्षि की बातें कानों में गूँज रही है......."गोकुल की शक्ति बरसानें में है ....उसको मार दो तो गोकुल वाला कृष्ण कुछ नही बिगाड़ पायेगा" ।
पालनें के पास पहुँचा कंस..........उसे - असीम ऊर्जा प्रवाहित हो रही है ऐसा लगनें लगा.......पालनें की ओर देखनें की हिम्मत ही नही हो रही है कंस के .......पता नही क्यों श्रीराधा रानी की ओर ये दृष्टि ही नही उठा पा रहा ।
तुम क्षण भर के लिये बाहर जाओ बृषभान ! जाओ बाहर !
कंस ये क्या कह रहा था ........बृषभान को बाहर जानें के लिये ।
वो वहीँ खड़े रहे ........नही गए .....ऐसे कैसे चले जाते ...........
पर कंस तो दुष्ट है ..........वो फिर बोला ...........तुम निश्चिन्त रहो .......बस क्षण भर के लिये बाहर जाओ ......मेरी बात मानों ।
बृषभान बहुत सरल हैं ........भोले हैं .....तभी तो इस भोरी किशोरी के पिता हैं ......चले गए बाहर ..................
कंस फिर मुख देखनें की कोशिश करनें लगा ......पर सूर्य का सा तेज़ उसकी आँखों को सहन नही हो रहा था ..............
उसनें सोचा - इस लड़की के पैर पकड़ कर फेंक दूँ बाहर......तभी मर जायेगी ।
श्रीराधा रानी के चरण पकड़नें के लिये जैसे ही वो बढ़ा ..............
अल्हादिनी नें अपनें चरण बस थोड़े क्या हिलाये ..........
ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ ओ .............
टूटी खिड़कियां..........उसमें से कंस उड़ा .....और सीधे मथुरा में जाकर गिरा ।
जब खिड़कियों के टूटनें की आवाज आयी.....भागे सब श्रीराधा रानी के पालनें की ओर .........पर , पर लाली तो मुस्कुरा रही है और अपनें दोनों चरणों को फेंक रही हैं .....किलकारियां मार रही हैं ।
कंस कहाँ गया ? बृषभान जी नें इधर उधर देखा .......खिड़की टूटी है .....खिड़की के पास गए......ओह ! इसमें से गया कंस ?
गया नही भानु बाबा ! हमारी लाली से फेंक दिया .......जोर से चरण प्रहार किया ......कि वो तो उड़ गया ......ये कहते हुए ताली बजाकर हँसी वो बालिका चित्रा सखी ।
अंतरिक्ष से कंस की इस स्थिति को देखकर नारद जी हँसते हँसते लोट पोट हो गए थे ........कमर टूट गयी थी कंस की ........पर इस बात को उसनें किसी को नही बताया ......बता भी कैसे सकता था ।
हे वज्रनाभ ! अब धीरे धीरे श्रीराधा रानी बड़ी होनें लगीं ।
महर्षि शाण्डिल्य नें आनन्दित होते हुए कहा ।
शेष चरित्र कल .....
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