आज के विचार
( वैदेही की आत्मकथा - भाग 136 )
"वैदेही की आत्मकथा" गतांक से आगे -
मैं वैदेही !
मातलि सावधान !
इन्द्र के रथ में बैठते ही मेरे श्रीराम नें सारथि को सावधान किया था ।
तुम तो अनेकों बात देवासुर संग्राम लड़ चुके हो .....राक्षसों की माया से भली भाँति परिचित भी होगे .................।
जी प्रभु !
मेरे श्रीराम नें जो कहा उसे सुनकर सिर झुका लिया था मातलि नें ......"मैं जानता हूँ "
तो ठीक है .....मेरा ध्यान युद्ध में केंद्रित हो रहा है .......तुम सारथि के पद में अपना कौशल दिखाना........मेरे श्रीराम नें कहा था ।
जी प्रभु !
इतना कहकर रथ को तीव्र वेग से चलानें लगा मातलि ।
मेरे श्रीराम नें अपना धनुष उठाया.....उसमें बाणों का सन्धान किया ....
रथ इतनी तीव्रता से दौड़ रही थी कि धूल के कारण रावण को कुछ भी दिखाई नही दे रहा था ।
त्रिजटा मुझे इस युद्ध का वर्णन करके सुना रही थी ...........कभी कभी तो मैं साँसे रोक कर उसकी बातें सुनती ।
तभी एक सुन्दर सा हँस उड़ता हुआ आया .......और श्रीराम के कन्धे में बैठ गया ........मुस्कुराये श्रीराम ।
वायु मेरे श्रीराम कि ओर से रावण की तरफ बढ़ रही थी .......धूल आच्छादित नभ हो गया था ......जिसके कारण रावण को कुछ दिखाई नही दे रहा था ।
रावण बाण मारता था ..............पर उतनी ही तीव्रता से श्रीराम बाणों की वर्षा कर रहे थे..............
ओह ! रावण के ऊपर रक्त की बारिश होनें लगी थी ........सियार , हजारों सियार एक साथ रो रहे हैं ...............
अकारण उल्कापात शुरू हो गया था........लंका में बिजली गिरी ।
रावण सावधान ! मेरे श्रीराम मेघगम्भीर वाणी में बोले.....और एक बाण धनुष में लगाकर छोड़ दिया......देखते ही देखते उस एक बाण से......दस बाण.....दस मैं से सौ सौ बाण.......सौ सौ में से हजार फिर लाख लाख बाण निकल कर राक्षसों में त्राहि त्राहि मचा दी थी श्रीराम नें ।
त्रिजटा स्तब्ध थी ......मैं एक टक त्रिजटा की ही बातें सुन रही थी ......
त्रिजटा के सामनें अन्य जो अशोक वाटिका में राक्षसियाँ थीं वो भी आगयी थीं ........और सब अपना हृदय मजबूत करके श्रीराम और रावण का युद्ध वर्णन सुननें लगीं ।
रामप्रिया ! मैनें देवासुर संग्राम तक देखा है ........पर राम रावण जैसा युद्ध .....ना कभी हुआ था ना कभी होगा ।
हे रामप्रिया ! मुझे अगर ये कहा जाए की इतिहास में इस युद्ध की कोई तुलना है .......तो मैं कहूँगी .........राम रावण का युद्ध , राम रावण के युद्ध जैसा ही हुआ .......कोई उपमा नही है .....इतिहास में ऐसा युद्ध कभी हुआ ही नही ......और होगा भी नही ।
त्रिजटा सुना रही है .................।
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रावण नें बाणों की वर्षा शुरू कर दी थी अब श्रीराम के ऊपर ।
पर श्रीराम नें उन सारे बाणों को क्षण में ही काट दिया था ।
रावण श्रीराम के रथ की ध्वजा को काटना चाहता था ......पर मातलि इस कौशलता से रथ चलाता .........कि ध्वजा को रावण के बाण छू ही नही सकते थे ।
रावण नें अब गदा, मुदगल , मूषल, पर्वत एक साथ श्रीराम के ऊपर फेंकें .....क्यों की रावण के दसों धनुषों को श्रीराम नें काट दिया था ।
श्रीराम नें रावण के सभी अस्त्रों को काट दिया ...... वो सब अस्त्र अंतरिक्ष में चले गए थे ।
पर रावण का युद्ध कौशल भी कोई कमजोर नही है रामप्रिया !......वो अविराम शस्त्र श्रीराम के ऊपर फेंके जा रहा है .........
ओह ! चकित भाव से मेरी ओर देखा त्रिजटा नें ......
क्या हुआ त्रिजटा ?
रामप्रिया ! रावण के द्वारा किये जा रहे युद्ध को देखकर श्रीराम खुश ही रहे हैं ......वो कभी कभी धनुष को छोड़कर तालियाँ भी बजा रहे थे ......रावण ! साधू ......साधू ..............और कभी कभी चिल्लाकर कहते ......रावण ! उत्साह से लडो .........पूरी शक्ति से ......इस तरह रावण का मनोबल भी बढ़ा रहे थे मेरे श्रीराम ।
पर रावण के सारथि और श्रीराम के सारथि इन दोनों का भी रथ सञ्चालन अद्भुत था.......ये सारथि अपनें रथी को अवसर देनें के लिए ........या उनकी रक्षा करनें के लिए .....कभी आगे ..कभी पीछे .....दाहिनें या बाएं या मण्डलाकार घुमा रहे थे पूरे वेग से ।
ओह ! ये क्या ! रावण छुप गया है अंतरिक्ष में जाकर ......और वहीं से बाणों की वर्षा करनें लगा है फिर से ।
समुद्र क्रुद्ध हो उठा .........धरती काँप रही है .........ये सब देखकर ऋषि मुनि भयभीत हो उठे ......."राम विजयी हों"..........यही आशीर्वाद सबके मुख से निकलनें लगा था ।
अब श्रीराम नें एक साथ तीस बाण मारे ................दस मस्तक ...और बीस भुजा ..................
बाण लगे .........दसो मस्तक कट गए रावण के .......और बीस भुजाएं भी.......श्रीराम नें अब जब लम्बी साँस ली - "प्रभु ! देखो"
मातलि चिल्लाया ....।
जैसे केशों को काटो तो वो बढ़ जाते हैं फिर से .........पर केशों को बढ़नें में तो समय लगता है ....पर रावण के मस्तक और भुजाएं ........ये तो कटते ही नए उग रहे थे ....।
पर श्रीराम रुके नही .........वो बाण चलाते ही रहे ............रावण के सिर कट रहे थे बार बार ..........भुजाएं कट रही थीं .........पर इसका परिणाम अच्छा नही हुआ ...............हवाओं में उड़नें लगे थे रावण के मस्तक ............हजारों मस्तक ............हजारों भुजाएं ........।
श्रीराम को अब ये दूसरी दिक्कत शुरू हो गयी .............उन भुजाओं को भी काटकर उन्हें पृथ्वी पर डालना था .........श्रीराम नें यही किया ....पर समर भूमि तो रावण के मस्तक और भुजाओं से पट गयी थी ।
अब रावण का भय जाता रहा ......उसे लगा मुझे कोई नही मार सकता .........मेरा मस्तक कितना भी काटे ये राम .......पर मैं अब मरणधर्मा नही हूँ .......मैं अमर हूँ ।
वो खुश हो गया ............वो चिल्लाया ........राम ! तुम क्या..... मेरा तो विधाता भी कुछ नही बिगाड़ सकते ।
प्रभु ! आप ब्रह्मास्त्र क्यों नही चलाते ........हनुमान नें आकर कहा ।
जिस बाण से ताड़का को मारा .....जिस बाण से बाली को मारा ....जिस बाण से खरदूषण को मारा .......उसी से इसे भी मारिये ना ।
हनुमान अपनी बात कहकर वहाँ से चले गए ।
प्रभु श्रीराम नें देखा मेरे पिता विभीषण की ओर ...........
तीस बाण फिर लगाये धनुष पर..........पर मेरे पिता की ओर ही देख रहे हैं ........मानों आँखों से पूछ रहे हैं .........इन बाणों से मस्तक कटेंगे दशानन के तो फिर तो नही उगेंगे ?
त्रिजटा बोली - मेरे पिता तुरन्त गए श्रीराम के रथ के पास .......और धीरे से बोले ................ऐसे नही मरेगा ये रावण .......हे श्रीराम ! इसके नाभि में अमृत है ...................
तभी रावण नें देखा मेरे पिता विभीषण श्रीराम को नाभि अमृत के बारे में समझा रहे हैं ....................
कुलद्रोहि विभीषण ! रावण चिल्लाया ............और एक बाण मारा मेरे पिता के ऊपर .......पर मेरे पिता वहाँ से शीघ्र हट गए ......और रावण का वो बाण व्यर्थ गया ।
श्रीराम समझ गए थे..........उन्होंने इस बार इकत्तीस बाण एक साथ निकाले ..........एक नाभि में ........और बीस भुजाएं दस मस्तक ..........रावण नें देखा ........वो अब समझ गया था.........
कुत्ते सियार रोनें लगे ........रावण के रथ पर आकर सैकड़ों गिद्ध बैठ गए ............रावण तलवार से उन्हें काटता है ......पर एक गिद्ध मरता है तो उसी में से सैकड़ों फिर निकल आते हैं .....।
रथ में जुते घोड़े गिरनें लगे ............ठोकर खा कर ।
श्रीराम नें एक साथ इकत्तीस बाण का सन्धान किया ............
वो बाण तीव्रता से छूटे ...................
उन बाणों के छूटते ही सागर में खलबली मच गयी ..............राक्षसों में हाहाकार मच गया .........पर देवताओं की दुन्दुभि अपनें आप बज उठी थी ...............।
एक बाण जाकर लगा राक्षसराज रावण के नाभि में .............रावण रथ से गिरा नीचे .........दस बाणों नें उसके मस्तक का छेदन कर दिया ....और बीस बाणों नें उसकी बीस भुजाएं काट दीं ।
गिरा रावण ..........सागर उछलनें लगा ................मन्दोदरी नें जो दीया जलाया था वो बुझ गया ...................
आकाश से फूल बरसनें लगे ...............श्रीराम के ऊपर ..........
वानर सेना जयजयकार कर रही थी ....।
मैं आनन्दित हो उठी ..............मैं झूम उठी ........मैनें त्रिजटा को पकड़ कर अपनें हृदय से लगा लिया ...........
मैनें गगन में देखा ...............देवता खड़े हैं ......और बोल रहे हैं .......
"अमित विक्रम श्रीराम की जय जय जय !
"दशमुख दर्प दलन श्रीराम की जय जय जय !
पूरी सृष्टि आज आनन्दित थी .........!
क्यों की दशानन का आतंक समाप्त हो गया था ।
शेष चरित्र कल .........
Harisharan
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