वैदेही की आत्मकथा - भाग 130

आज  के  विचार

( वैदेही की आत्मकथा - भाग 130 )

"वैदेही की आत्मकथा"  गतांक से आगे -

मैं वैदेही  ! 

हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा .........

ओह !   ये कैसा अट्टहास !  

मैं डर गयी ...........मेरे साथ  त्रिजटा नही है .......हाँ  कुछ  राक्षसियाँ हैं .......पर  वो  भय के मारे काँप रही हैं  ।

मैं चारों ओर देख रही हूँ ..............मैं अपनें साथ की एक राक्षसी से पूछती भी हूँ .......ये क्या है  ?   ये कौन  हँस रहा है  ?

पर  वो राक्षसी इतनी डरी हुयी है .......कि  कुछ बोलती ही नही है ।

पर मैं  समझ तो गयी थी  कि ..........ये रावण का ही अट्टहास था,  मुझे बाद में त्रिजटा नें आकर बताया भी ........कि मेघनाद के मृत्यु की खबर सुनते ही  पागल हो गया था रावण ...........पहले तो  जिस राक्षस नें ये  सूचना  दशानन को दी थी .......उसी का मस्तक काट दिया था ।

पर  उसे जब   निश्चय हुआ   तब  वह रोया ........फूट फूट कर रोया था .........कहाँ हैं  शरीर  मेघनाद का .......कहाँ है  शरीर   मेरे पुत्र का  ?     

धड़ मात्र था .........रावण के सामनें मेघनाद का धड़ ही लाया गया था ।

बिलखते हुये  बोला ........मस्तक कहाँ है  ?

मस्तक तो   लक्ष्मण नें   छेदन करके  राम के पास ही .............

इससे ज्यादा बोल भी नही पाये   सैनिक   ।

रोते हुये रावण  अपना  चेहरा ढँक रहा था ............

मेघनाद  के चले जानें से रावण का आज कंगाल हो गया .........रावण  की स्थिति  पागलपन  की  थी आज .........उसका प्रिय पुत्र जो मारा गया था  ।

फिर हँसा  रावण .........जोर से हँसा ......................

हा हा हा हा हा हा हा हा हा हा ...............

इन्द्र को जीता था मेरे प्रिय पुत्र नें .........पर आज तो उत्सव मना रहे होंगें देवता लोग ...............बहुत खुश होगा  इन्द्र   ।

विजय वाद्य बजाओ..........बजाओ !      अपनें ही  राक्षसों पर चिल्लाया रावण .........पर सब लोग भय से दूर दूर चले गए थे  रावण से ।

लाओ  मेरा  दिव्य धनुष और कवच ...............जिसे मैने हजारों वर्ष तप करके  ब्रह्मा से प्राप्त किया  था .....लाओ मेरा  चन्द्रहास तलवार   जिसे  मुझे शिव नें प्रदान किया था  ..........आज  मैं देखता हूँ  इन मानवों को .........और  इन मानवों का   मुखिया बना इस राम को ..........।

आज  या  राम रहेगा .....या  रावण ।

मन्दोदरी  !  सुन रही हो ..........आज  तेरा सुहाग रहेगा  या  सीता का !

फिर  मेरा नाम लेते ही  वो रुक गया ......................

सीता ?  

उसी के कारण  मेरा पुत्र मारा गया ना  ।

मैं  सीता को ही मार दूँगा ................रावण चिल्लाया  ।

अपना तलवार  लिया .......और  अशोक वाटिका की ओर  ही आया ।

अशोक वाटिका  उसके राजमहल का ही अंग था ..........उसकी आवाज मैं सुन रही थी ........सब  राक्षसियाँ डर रही थीं  ।

वो आरहा था  रावण  मुझे मारनें .....................

मैं समझ गयी   ..............

मैनें   कुछ नही किया .....न मैं भयभीत थी ........मैं शान्त थी .........

मैने तुरन्त अपनी आँखें बन्द कर लीं .............और अपनें श्रीराम के चरणों का चिन्तन करनें लगी थी  ।

मेरे मुँह से यही निकल रहा था ......आर्यपुत्र !  आप  दीर्घायु हों !

लक्ष्मण ! आप दीर्घायु हों  ।

आगया  था रावण .....मेरे पास ........

मैं  आँखें बन्दकर बैठी थी ..........रावण नें तलवार निकाला ।

वैदेही !   आज मैं तुझे मार दूँगा .......दाँत पीसे  रावण नें  ।

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आप क्या कर रहे हैं  ?    ताऊ जी !    एक अबला नारी को मारना .......लोक  क्या कहेगा  ?      महाबली रावण का इतिहास ये,  कि   एक  विवशा  स्त्री को मार दिया  !..........महर्षि पुलत्स्य का पौत्र   ऋषि विश्वश्रवा का पुत्र  एक स्त्री   को मारे .....!

चन्द्रहास तलवार को पकड़ लिया था त्रिजटा नें ......उसी समय  वो अशोक वाटिका में पहुँच गयी थी  ।

तू मुझे उपदेश देगी  ?     तेरा पिता  विभीषण ,  उसका ही काम है ये सब .........मैं तुझे  भी  नही छोड़ूंगा .............रावण  पगला गया था ।

मारो मुझे  ताऊ जी !    पर   सुलोचना ! ....................बहुत  बहुत  बुद्धिमान है  त्रिजटा .........उसनें जान बूझ कर  सुलोचना का नाम लिया था .....ताकि इस  संकट को टाल सके  ।

क्या हुआ  सुलोचना को ?     रावण  के हाथ से तलवार गिरनें  लगा ........वो  निढाल सा हो गया  ।

वो आपके दर्शन करना  चाहती है .........वो  आपसे कुछ पूछना चाहती है ............त्रिजटा  बोलती गयी  ।

ओह !    अपनें  हाथ से तलवार को जोर से पकड़ लिया था   रावण नें .....उसके हाथ से रक्त बहनें लगा था  ।

मैं  क्या  बोलूँ  अपनी उस पुत्रवधू  सुलोचना को !     

अब स्वर थोडा शान्त हुआ  रावण का ................।

आप जाइए  ताऊ जी !        और संभालिये अपनें आपको ..........

और हाँ   भाभी  सुलोचना कह रही  थीं कि उन्हें  सती होना है ......फिर  मस्तक कहाँ है  मेरे पति का  !

रावण     चिल्ला उठा   ........ओह !          

कुछ देर वहीं खड़ा रहा ..........फिर  चला गया ................

उसके पीछे पीछे    राक्षस  भी चले गये  ।

रामप्रिया !  आँखें खोलो .........रावण गया ................

त्रिजटा नें मुझे झकझोरा  ,   तब मैं उठी थी  ।

शेष चरित्र कल ........

Harisharan

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