आज के विचार
( वैदेही की आत्मकथा - भाग 129 )
"वैदेही की आत्मकथा" गतांक से आगे -
मैं वैदेही !
रामप्रिया ! सुलोचना ( मेघनाद की पत्नी ) परमसती है ........उसके समान सती शायद ही कोई हो..........त्रिजटा नें कहा ।
उर्मिला भी परमसती है ........मैने त्रिजटा से कहा ।
रामप्रिया ! अपनें भवन में बैठ गयी है सुलोचना ......और अपनें पति मेघनाद को विजय दिलानें के लिये दृढ संकल्पित होकर बैठी है .....
मैने तुरन्त कहा ........मेरी बहन और लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला भी अपनें पति को विजय दिलानें के लिये आसन बाँध कर मन को पूर्ण एकाग्र करके बैठी है .............।
पता नही आज किस सती की विजय होगी...............
त्रिजटा नें कहा ...........मेरा ह्रदय बोल रहा था विजय तो मेरी उर्मिला की ही होगी ..........।
भले ही लाख महान सती हो सुलोचना ..........पर उसका पति तो व्यभिचारी राक्षस है .........और रामानुज लक्ष्मण ......उसके जैसा वैराग्यवान् कौन होगा ।
त्रिजटा अपनी मायामयी दृष्टि से बतानें लगी थी कि .......निकुम्भीला देवी के मन्दिर की ओर जब उसके पिता विभीषण के साथ लक्ष्मण गए .....तो क्या हो रहा था वहाँ ।
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रामप्रिया ! अत्यंत दुर्गन्ध से भर गया था निकुम्भीला देवी जानें का मार्ग ..........मार्ग भी हर कोई नही जान पाता ............पर लक्ष्मण के साथ मेरे पिता विभीषण जो थे ।
साथ में तो हनुमान और सुग्रीव भी हैं...........पर मार्गदर्शन कर रहे थे मेरे पिता जी .........त्रिजटा नें बताया ।
इतना दुर्गन्ध क्यों ?
चलते चलते पूछा है रामानुज नें मेरे पिता से ।
मेघनाद यज्ञ कर रहा है........इसलिये मैं कह रहा हूँ . शीघ्र कीजिये ........अगर उसका यज्ञ सफल हो गया तो एक वर्ष के लिये मेघनाद अवध्य हो जाएगा ......उसे कोई नही मार सकता ...एक वर्ष के लिए ।
रामनुज चले जा रहे हैं................
पर इतनी दुर्गन्ध क्यों ? फिर पूछा लक्ष्मण नें ।
भैसा, रक्त और मदिरा की आहुति दे रहा है मेघनाद ............
हम अगर शीघ्र न पहुँचे तो .............
सबकी चाल तेज हो गयी थी ..............त्रिजटा नें कहा ।
मन्दिर का द्वार बन्द है ...................मेरे पिता हनुमान से कह रहे हैं .....तोड़ो इस द्वार को ...........
हनुमान आगे बढ़े.....और जोर से मारा है ......द्वार टूट कर गिर गया ।
मन्दिर दुर्गन्ध से भरा हुआ है ..........मेघनाद इधर उधर बिना देखे अपना ध्यान मात्र संकल्प में लगा रहा है .......क्यों की रामप्रिया ! ये तामसिक यज्ञ है ........इसमें ध्यान थोडा भी भटका ....संकल्प थोड़ी भी सिथिल हुयी तो यज्ञ व्यर्थ गया ।
मेरे पिता विभीषण सुग्रीव से बोले.........सुग्रीव ! आप इसका ध्यान भंग करो.......जाओ !
सुग्रीव उठे हैं ..............और अपनें लात का प्रहार किया है मेघनाद के ऊपर .................हनुमान नें आगे बढ़कर यज्ञ वेदी ही तोड़ दी है ।
अब तो मेघनाद का ध्यान भंग हुआ ..............वो क्रोध में भर कर उठा ।
मेघनाद भाग कर उस अदृश्य रथ पर बैठनें जा रहा था.........कि लक्ष्मण नें तुरन्त एक बाण मारा ......उस रथ के टुकड़े टुकड़े हो गए ।
गदा मारनें लगा लक्ष्मण के ऊपर ........पर लक्ष्मण नें दूसरे बाण से उसकी गदा भी तोड़ दी ...........
भय से काँप रहा है मेघनाद.........तभी उसे याद आया पाशुपतास्त्र ......उसनें आँखें बन्द कीं......और कुछ बुदबुदाने लगा ही था कि ...
लक्ष्मण ! आप इसका संहार कीजिये .....ये पाशुपतास्त्र छोड़ रहा है ।
मेरे पिता इतनी जोर से बोले थे ........कि मेघनाद का ध्यान फिर भंग हुआ ..........चाचा ! कुलद्रोहि ! पता नही क्या क्या गाली बक रहा था मेघनाद ........पर ....................
लक्ष्मण नें बड़ी फुर्ती से एक बाण निकाला .....................
मेघनाद चिल्लाया ............................
पर एक ही क्षण में उस मेघनाद का सिर काट कर रामानुज ने श्रीराम के चरणों में चढ़ा दिया था ..............।
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त्रिजटा !
मैं ख़ुशी से चहक उठी ...........
उर्मिला की गोद में अंतरिक्ष से एक फूल गिरा है ........
वो आनन्दित हुयी भागी है अपनी माँ सुमित्रा और माँ कौशल्या जी के पास ...............
माँ ! ये पुष्प .........माँ ! मेरा बायाँ अंग फड़क रहा है ...........
पुत्री ! तेरा पति लक्ष्मण विजयी हो गया है..................
माँ कौशल्या के यही वचन थे ।
हनुमान ही तो बता कर आया था उर्मिला को .......कि संजीवनी लक्ष्मण के लिये ही ले जा रहा हूँ ......तब से, मेघनाद से अपनें पति के विजयी होनें की कामना से बैठी थी उर्मिला ।
मैने त्रिजटा को बताया..........मैने भी आँखें बन्द कीं और सब देख लिया था कि उर्मिला क्या कर रही है ।
रामप्रिया ! सुलोचना का एक कँगन टूट गया ...........
वो चौंकी है.............उसके समझ में नही आरहा कि क्या करें ।
वो घबड़ाई हुयी भाग रही है अपनें स्वसुर रावण के पास ।
त्रिजटा नें मुझे सुलोचना के बारे में बताया ।
मैं सोचनें लगी थी ............सती दोनों हैं ..........और दोनों ही महान सती हैं .....सुलोचना और उर्मिला ..........पर उर्मिला का संकल्प जीत गया ........कारण ? कारण उर्मिला का पति जितेन्द्रिय था .....और सुलोचना का पति व्यभिचारी ।
शेष चरित्र कल ......
Harisharan
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