आज के विचार
( वैदेही की आत्मकथा - भाग 113 )
"वैदेही की आत्मकथा" गतांक से आगे -
मैं वैदेही !
रामप्रिया ! रामप्रिया !
त्रिजटा बहुत खुश थी .....दूर से ही आज मुझे पुकारती आरही थी ।
त्रिजटा को देखकर मैं भी उठके खड़ी हो गई और उसके पास ही पहुंची ।
मुझे उसे बहुत सारी बातें बतानी थी.........और उसे भी मुझे ।
सारी राक्षसियाँ त्रिजटा को देखते ही खड़ी हो गयीं......सम्मान से ।
रामप्रिया ! वो मेरे पास आयी.......और आकर बोली मेरा सपना सच हुआ ना ?.......हाँ त्रिजटा ! तुम्हारा सपना सच हुआ........वो वानर वाला सपना.......मैं उसे बतानें जा ही रही थी कि......त्रिजटा नें ही मेरा हाथ पकड़ा और वाटिका के ही एक ऊँचें स्थान पर ले गई ।
अरे ! ये क्या है त्रिजटा ? पूरा नगर जल रहा है !
हाँ हाँ पूरी लंका जल रही है .................देखो ! रामप्रिया !
पर ये सब किसनें किया ? मैने पूछा ।
उसी वानर नें.....जो तुमसे यहाँ मिलकर गया था.....त्रिजटा नें कहा ।
तो तुम्हे पता है ! मैं अपनें स्थान की और लौटते हुये बोली ।
हे रामप्रिया ! हमें क्या पता नही है !
फिर मेरी ओर देखते हुए त्रिजटा बोली .............आँखों में बड़ी चमक हैं आज हमारी रामप्यारी के ! मुझे छेड़ते हुए बोली थी त्रिजटा ।
मैं बस मुस्कुराई ...................
बताओ बताओ ! क्या सन्देशा आगया तुम्हारे पिया का ?
मैने त्रिजटा को अपनी और खींचा और गले लगा लिया था .....
हाँ हाँ त्रिजटा ! सन्देशा आगया .............और पता है वही वानर जिसको तुमनें सपनें में देखा था ............हनुमान .........बहुत प्यारा है ....बहुत भोला है .............वही लाया था सन्देशा ।
वो भोला है ? अरे ! उसके जैसा बुद्धिमान रावण भी नही है ?
क्या वो रावण के पास भी गया ? मैने आश्चर्य से पूछा ।
रामप्रिया ! रावण के महाप्रतापी अक्षयकुमार को मार दिया उस वानर नें ! त्रिजटा नें ये जब कहा ........तब मैं स्तब्ध थी ।
इतना ही नही रावण का दिग्विजयी पुत्र मेघनाद, वो आया फिर ......क्यों की रामप्रिया ! अपनें अक्षय कुमार पुत्र की मृत्यु की खबर सुनते ही मूर्छित होकर गिर गया था रावण.......तब मेघनाद नें गर्जना करते हुये कहा.....मैं जाऊँगा पिता जी और उसे मार कर ही आऊंगा ।
एक तुच्छ वानर की इतनी हिम्मत !
पर रावण नें उसे रोक दिया .........और कहा ........मारना नही .....बस बाँध कर ले आना .................त्रिजटा मुझे सुना रही थी ।
फिर क्या हुआ ?
फिर !
वो वानर कैसे बंध जाता ? महावीर था वो तो ........
पर मेघनाद को ब्रह्मास्त्र चलाना पड़ा........फिर तो बंध ही गया ।
पता है वहाँ राजसभा में रावण के सामनें पहुँचा वो वानर .......वैसे मेघनाद ले गया था बांध के ......पर वो आगे आगे दौड़कर ऐसे चल रहा था जैसे मेघनाद को बांध कर वही वानर लाया है .......ये कहते हुये निश्छल हँसी हँस रही थी त्रिजटा ।
तू सभा में थी क्या ? मैने त्रिजटा से पूछा ।
नही मैं तो नही थी पर मेरे पिता विभीषण थे उनसे ही मैने सुना और तुम्हे सुनानें आगयी ।
त्रिजटा ! सच बता ऐसी वानरों की सेना मेरे श्रीराम नें जोड़ी है .......ये रावण पर विजय पा लेंगें ना ?
मेरे इस प्रश्न पर त्रिजटा बोली .......मेरी भोली रामप्रिया ! देखो ! धूं धूं करके पूरी लंका जल रही है ..............अनाथ की तरह जल रही है ये रावण की लंका ..........रावण भी कुछ नही कर पा रहा ........
और ये सब मात्र एक वानर नें किया है .............एक वानर नें ।
और क्या बता रहे थे तुम्हारे पिता जी ?
मुझे और भी बात सुननी थी ..........मुझे आनन्द आरहा था हनुमान के पराक्रम को सुननें में ।
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क्या मेरी वाटिका उजाड़ी ?
रावण का प्रश्न था उस वानर से ......त्रिजटा मुझे बता रही थी ।
भूख लगी तो फल खानें के लिए तेरी वाटिका में चला आया ........
पर मुझे क्या पता था कि तेरी वाटिका के वृक्ष इतनें कमजोर हैं ......फल तोड़नें के लिए मैने वृक्ष को हिलाया ही था .........कि जड़ सहित उखड़ गए वृक्ष तो ......।
तेनें मेरे लोगों को क्यों मारा ?
रावण ! कोई मुझे मरेगा तो मैं सहन कर लूंगा ? तेरे लोगों नें मुझे मारा ....मैने उन्हें मारा ।
मेरे पुत्र अक्षय कुमार को क्यों मारा ? रावण नें फिर पूछा ।
मुझे नही पता था कि वो तेरा पुत्र है रावण ! ये कहते हुए रामप्रिया ! वो वानर हँसा उस सभा में ..................
तू कौन है ? अपना परिचय दे वानर ! रावण नें क्रोध से दाँत कटकटाते हुए पूछा ।
रावण ! मैने तेरी अशोक वाटिका में श्रीराम भार्या श्री सीता को देखा ........क्यों लेकर आया है तू उन्हें यहाँ पर ?
चोरों की भाँती परस्त्री का अपहरण करना वीरों की शोभा नही है रावण !
पता है रामप्रिया ! मेरे पिता विभीषण कह रहे थे एकाएक उस वानर की आवाज असाधारण गम्भीर हो गयी थी ...........
तुम वेद के ज्ञाता हो रावण ! तुम धर्म भी समझते हो .........पर तुमनें परस्त्री का हरण करके क्या किया ? क्या तुम समझते नही हो श्रीराम को दुःख पहुंचाकर कौन सुखी हुआ है ?
श्रीराम जब अपना धनुष चढ़ाएंगे ना ...........उस समय क्या कोई भी उनके आगे टिक पायेगा ?
बाली को तो तुम जानते ही हो ना ? उसके अनुज सुग्रीव से मित्रता कर ली है प्रभु श्रीराम नें ..............वे शीघ्र करोड़ों की वानर सेना लेकर लंका में चढ़ाई करनें वाले हैं ................मेरी बात मानों रावण !
तभी रामप्रिया ! रावण नें उस वानर को रोक दिया ।
तू कौन है ? पहले ये बता वानर ?
मैं उन्हीं श्रीराम का दूत हूँ ......बड़े गर्व से उस वानर नें कहा था ।
वानर ! बहुत बकवाद हो चुकी अब ............मैं तेरे स्वामी राम और सुग्रीव दोनों को मारकर समुद्र में फेंक दूँगा .....रावण चिल्लाया ।
मत चिल्ला रावण ! तू सब को मारेगा ? तू मेरे स्वामी श्रीराम को मारेगा !.......अरे ! मुझ जैसा एक छोटा वानर तो तुमसे सम्भल नही रहा .......तू क्या सोचता है !......ये मेघनाद मुझे बाँध लेता ? नही रावण ! मैं इसे भी अक्षयकुमार की तरह मार देता .....पर मुझे तुझ से एक बार सम्वाद करना था ...........पर मैं देख चुका हूँ ......तेरे सिर में काल मंडरा रहा है ।
मार दो इस वानर को ................अपनें सिंहासन से उठ खड़ा हुआ रावण और चिल्ला पड़ा ..........
सैकड़ों सैनिक दौड़ पड़े थे मारनें ..............पर उसी समय मेरे पिता विभीषण आगे आये ......................
दूत अवध्य होता है ..........
मारना उचित नही होगा दूत को .................आप समझते हैं लंकेश ! आपका यश कलुषित हो जाएगा ............मारिये मत ।
क्या करूँ फिर मैं ? इसको छोड़ दूँ ? रावण चिल्लाया ।
नही ...........मत छोड़िये...............वानर की सारी ममता उसके पूँछ पर ही होती है ..........आग लगा दीजिये इसकी पूँछ में ।
हे रामबल्लभा ! रावण को मेरे पिता जी की बात अच्छी लगी .........
उसनें आज्ञा दी ..........इसकी पूँछ में आग लगा दो ..............बस फिर क्या था ......................वस्त्र लपेटा पूँछ में ............उस में तैल डाला ..............और आग लगा दी ...............
देखो ! देखो रामप्रिया ! .......आग लगा दी पूरी लंका में उस वानर नें ।
कोई ऐसा घर नही छोड़ा जिसे जलाया नही हो ...............
फिर तुम्हारा घर ? मैने त्रिजटा से पूछा ।
उस वानर नें मेरा घर नही जलाया .......................
मै प्रसन्न हुयी .......................
अच्छा ! रामप्रिया ! लंका जल रही है .....मैं अभी जाती हूँ ..........फिर जल्दी आऊँगी ........इतना कहकर त्रिजटा चली गयी ...........
तभी ........"जय श्रीराम"
गर्जना करते हुये हनुमान आगये थे ।
शेष चरित्र कल .....
Harisharan
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