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संत वचन

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सत्संग जीवन की अमूल्य निधि है। इतिहास उठाकर देखो तो पता चलेगा कि दुनियाँ में ऐसा कोई भी  महापुरुष नहीं जो बिना सत्संग के आश्रय के ही महान बन गया हो।इत्र के संग से तो पत्थर भी महक उठता है, प्रभु कथा के संग से मनुष्य का जीवन महक उठे इसमें कौन सी बड़ी बात है..? 

जिस प्रकार रस के अभाव में फल की कोई उपयोगिता ही नहीं उसी प्रकार सत्संग अथवा प्रभु कथा के अभाव में जीवन की भी कोई उपयोगिता नहीं अर्थात सत्संग ही जीवन को उपयोगी बनाता है। 

सत्संग उस लिफ्ट के समान है जिसमें चढ़ जाने के बाद आदमी को ऊपर नहीं उठना पड़ता वह अपने आप ऊपर उठने लगता है। ऐसे ही सत्संग का आश्रय व्यक्ति के व्यक्तित्व को निखार देता है। सत्संग चरित्र निर्माण का विद्यालय है।

बहुत कुछ कमाने के बाद भी यदि चरित्र न कमा पाए तो समझना चाहिए कि अभी कुछ कमाया ही नहीं जैसे, अभी बहुत कुछ कमाना बाकी है।

प्रभु कथा चित्र निर्माण की नहीं चरित्र निर्माण की शिक्षा देती है। प्रभु कथा तन के नहीं मन के रोग मिटाती है। प्रभु कथा मनुष्य को दीर्घ जीवी नहीं दिव्य जीवी बनाती है। और प्रभु कथा नर को नारायण स्वरूप बना देती है, यही तो प्रभु कथा आश्रय की महिमा है।

जब मिले, जितना मिले और जहाँ मिले जीवन के उत्थान के लिए हम सबको सत्संग का आश्रय अवश्य लेना चाहिए।

  *🚩जय श्री हित हरिवंश 

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