आज के विचार
( वैदेही की आत्मकथा - भाग 20 )
हिम ऋतु अगहन मास सुहावा ...
( रामचरितमानस )
***** कल से आगे का चरित्र -
सिया जू ! जल्दी तैयार हो जाओ......आज हल्दी चढानें की विधि है ।
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मेरे विवाह की तैयारियां जोर सोर से चल रही थीं ........मेरा जनकपुर ही आनन्दित नही था .......ये देवता लोग भी इस विवाह में सम्मिलित होनें के लिये आतुर दिखाई दे रहे थे ......प्रकृति झूम रही थी ।
शास्त्रों में जिस महिनें को "ब्रह्मरूप" माना गया है .....वो महीना अगहन का ही तो है........मार्गशीर्ष का महीना ।
कई दिन हो गए हैं विधि चल ही रही है हमारे विवाह की ।
कल ही तो कमला नदी का पूजन करनें गए थे.........वहाँ बड़े प्रेम से मैने कमला नदी का पूजन किया था ...........ये हमारे मिथिला की रीत है ..........नदी का वेग जैसे प्रवाहमान होता है .....ऐसे ही पतिपत्नी का प्रेम भी नव नूतन रहे ........उचाट न होनें पाये दाम्पत्य जीवन में ।
मैने पूजन किया था ..........मेरी सारी सखियाँ और जनकपुर की नारियाँ सब थे .............कोई मीठे स्वर से गीत गा रही थीं तो कोई मीठी मीठी गारी भी दे रही थीं ।
मैने आँखें बन्दकर के कमला नदी का पूजन किया .......ये लक्ष्मी ही तो हैं .....हाँ .....लक्ष्मी .....भगवान नारायण की लक्ष्मी .........हमारे जनकपुर में साक्षात् लक्ष्मी ही नदी के रूप में बह रही हैं ...........।
मेरा जनकपुर कोई साधारण तो है नही ..............।
हाँ यहाँ की मिट्टी भी बहुत कोमल है ....................
अब कमला नदी से मिट्टी लेनी है ...................
हाँ ........नदी की मिट्टी को भाई कुदाल से खोदकर अपनी बहन के पात्र में डाल देता है..........वह मिट्टी लेकर बहन जाती है .........और उसी मिट्टी से यज्ञ की वेदी तैयार होती है ।
मेरा भाई ...............लक्ष्मी निधि । सहोदर नही है तो क्या हुआ .........सहोदर से भी बढ़कर है ये मेरा भाई ...........।
सोनें का कुदाल लेकर नदी के कूल की मिट्टी खोदकर मेरे पात्र में डाल दिया था मेरे भाई लक्ष्मी निधि नें ।
आज सोचती हूँ मै ..........विवाह की विधि भी कितनी बातें समझा जाती है .....है ना ? मिट्टी से तैयार होती है यज्ञ वेदी .......जिसके फेरे लेनें पर ही विवाह पूर्ण माना जाता है ...................
मिट्टी ...................
अच्छा ! मिट्टी में ये तीन गुण होते ही हैं .................उर्वरता, सहनशीलता और सरसता ............
क्या ये तीन वस्तुएँ वैवाहिक जीवन में न हो तो आप उस वैवाहिक जीवन को सफल कहेंगें ? या इन तीन गुणों के बिना वैवाहिक जीवन सफल हो सकता है ?
उर्वरता ........मिट्टी में नए जीवन को जन्म देनें की शक्ति होती है ।
सहनशीलता .......मिट्टी में सहनशीलता होती है ....कितना खोदते ...गोड़ते मीडते........ पर मिट्टी की सहनशीलता है...।
मेरा भाई है मिट्टी ...........हाँ भूमी की मै भी तो बेटी हूँ ना ......और ये मिट्टी भी ............।
सरसता ................रस है मिट्टी में .............रस का स्रोत पृथ्वी से ही है ............और मिट्टी पृथ्वी का ही अंग है ।
( सीता जी अपनी आत्मकथा में लिखती हैं .......गृहस्थ जीवन में भी ये तीन गुणों का होना आवश्यक है ......उर्वरता ...यानि सृजनशक्ति, दूसरा सहनशीलता .....क्या सहनशीलता के बिना गृहस्थ जीवन चल सकता है .....और सरसता ........याद रहे "रस" जीवन से जिस दिन खतम है उसी दिन गृहस्थ जीवन की "इति" है )
मेरे हाथों में जब वह मिट्टी का पात्र आया था ............तब मेरी सखियाँ चिल्ला उठी थीं .........नरम कलाई हैं मेरी सिया जू की .....मुरक जायेंगीं ............सम्भालों ...............कितना स्नेह , कितना प्रेम, कितना भाव ....ओह ! कैसे भूल सकती हूँ मै अपनें उस मायके को ........अपनें जनकपुर को ...........।
मेरा कोमल शरीर कैसे उस "मिट्टी पात्र" के भार को सहेगा कहकर मेरी सखियों नें उठा लिया ..............।
मेरे साथ इस विधि में उर्मिला , माण्डवी, और श्रुतकीर्ति भी थीं .......
इनका भी विवाह अब होना तय हो गया था ना .........।
उस दृश्य को देखनें के लिए कमला नदी के तट पर भीड़ जुट गई थी ।
और भीड़ मात्र जनकपुर वासियों की ही नही .............
आकाश में देवता लोग अपनी अपनी देवियों के साथ विमान में खड़े हैं ........और फूल बरसा रहे हैं ...................
सब जयजयकार कर रहे हैं ....................
सब सखियां मेरे साथ .........गीत गाती हुयीं ........नाचती गाती हुयी ........आँगन में पहुँच गयी थीं मेरे साथ...........।
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सिया जू ! जल्दी तैयार हो जाओ .....आज हल्दी लगानें की विधि है ।
हाँ .......हाँ ............मै उठी हड़बड़ाकर ..............
वनदेवी ! आप आज बिलम्ब से उठी हैं ...................क्या बात है आप का स्वास्थ तो ठीक है ना ?
ओह ! ये सब सपना देखा था मैने ....................
मै तो ऋषि बाल्मीकि के आश्रम में हूँ ....................।
गंगा में जाकर स्नान किया मैने.......पर स्नान के बाद वहीँ बैठ गयी ।
जनकपुर का विवाह ! मेरा विवाह ...........मेरे प्राणनाथ श्री राम के साथ मेरा विवाह ........वो उमंग .....वो उत्साह ........कितना सुन्दर सजा था उन दिनों मेरा जनकपुर.........शहनाई बज रही थी ...।
( सीता जी फिर खो जाती हैं अपनें विवाह प्रसंग को याद करके )
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सिया जू ! जल्दी तैयार हो जाओ आज हल्दी लगानें की विधि है ।
थक जाती थी ना ...............कितनें विधि हैं हमारे मिथिला में .......
पर एक आनन्द है.......पिया के लिये.........पिया से मिलनें के लिए ।
अब जल्दी भी करो और हाँ.....आज हल्दी चढ़ाई जायेगी ......और उबटन भी लगाया जाएगा........बस शीघ्र तैयार हो जाइये सिया जू !
मेरी सखियाँ आज कल मेरे पास कम ही रहती हैं .........इनको तैयारी भी तो करनी है.........मेरे पास तो आती हैं मुझे बतानें के लिये कि अब इस विधि के लिये आपको चलना है ........फिर मुझे तैयार भी कर देती हैं ............मेरी सखियाँ ।
मेरे आँगन में गणेश और गौरी की स्थापना एक चौकी में की गयी थी ।
हम चारों दुलहिन सज कर आगयी .......हम लोगों के लिये सुन्दर आसन बिछाया गया था ....हम उसी में जाकर बैठीं थीं ।
कलश पूजन इत्यादि ...मौली बान्धना ......गौरी गणेश पूजन .....ब्राह्मणों के द्वारा स्वस्तिवाचन किया गया था ...........फिर इसके बाद एक एक करके मुझे हल्दी चढानें लगे थे ।
हल्दी चढ़ाना .............हल्दी को शुभ माना जाता है ............
हल्दी चढानें की ये जो विवाह में विधि है ........... ये वास्तव में दूल्हा दुल्हन के हृदय में प्रेम बढ़ानें के लिए ही किया जाता है ........बड़े लोग इस हल्दी के रूप में आशीर्वाद देते हैं अपनी लाड़ली को ........जिस प्रकार हल्दी तन में पचकर तन का रँग निखार देती है .....मंगल करती है ......स्वास्थ्य के लिये भी उत्तम करती है .........ऐसे ही ये हल्दी का प्रताप दूल्हा दुलहिन के जीवन में प्रेम, आयुष्य, और मंगल का बीजारोपड़ करे .... यही है इस विधि का अर्थ .....कितनी अच्छी विधि है ना ये !
शरीर के पाँच जोड़ों पर हल्दी चढ़ाई जाती है ............और मात्र हल्दी ही नही चढ़ाई जाती ....उसके साथ दूर्वा और अक्षत भी चढाया जाता है ।
पहले मेरे दोनों पाँव पर चढाया गया .....फिर घुटनें ...जंघा......कन्धे , भाल ....।
ओह ! वो दृश्य ...........मेरे पिता जनक महाराज उठे थे उनके साथ मेरी ममतामयी माता सुनयना उठीं थीं ...........
शहनाई बज रही थी.........तब मेरे पिता और माता नें मुझे हल्दी चढ़ाना शुरू किया था.......बस उसी समय मेरे पिता जी एकाएक मुझे देखते ही हिलकियों से रो पड़े थे........मेरी माँ के आँखों से गंगा जमना बह रहे थे ।
मुझे जी भर देखना चाह रहे थे मेरे पिता जी.....पर देख नही पा रहे थे ।
कितनें दिनों से मुझे देखा नही है इन्होनें ..............कितना परिश्रम .....कितनी भाग दौड़ ........भले ही हजारों सेवक हों ......पर पिता का मन कहाँ मानता है ..........विवाह की व्यवस्था में दिन रात लगे हैं ।
देवता तक इनके सामनें हाथ जोड़े खड़े रहते हैं ......हमें सेवा बताओ विदेहराज ! इस विवाह महोत्सव में कुछ सेवा करके हम भी धन्य हो जाएँ ....पर मेरे पिता जी को स्वयं करना है ...............।
आज हल्दी चढ़ाते हुये मेरे पिता जी रो रहे हैं ..............मेरी माँ अपनें आँसुओं को पोंछते हुये ........उन्हें शान्त कर रही हैं .....पर .......।
अब बेटी पर पिता का वो अधिकार नही रह जाएगा इस बात को सोच कर ही मेरे पिता जी रो रहे हैं ..........अब मेरी बेटी पराई हो जायेगी ।
विचित्र स्थिति हो गयी थी मेरे पिता जी की ..............उनके हृदय में आज तक प्रेम और उल्लास था .....पर आज वात्सल्य और भावुकता नें इनके हृदय में डेरा डाल लिया है ।
ओह ! मेरे पिता विदेह ............ज्ञानियों में सर्वश्रेष्ठ ..........पर प्रेम कैसी वस्तु है ना .................मेरे प्रति स्नेह् ...वात्सल्य नें आज मेरे पिता को रुला दिया था ।
और मेरी माँ सुनयना !
वो तो मेरे गाल में हल्दी लगातीं और नेत्रों से अश्रु बहातीं ............फिर एकाएक भाव में भर कर मेरे गालों को चूम लेतीं ............
माता पिता की ये दशा देख मुझ से रहा नही गया .........मै भी रोना चाहती थी दोनों के गले लगके ................पर ........इस स्थिति को मेरी चतुर सखियाँ समझ गयीं कि अगर मै अपनें माता पिता के गले लगके रोई ........तो यहाँ आँसुओं का वो सागर उमड़ पड़ेगा कि सब डूब जायेगें उसमें .........फिर कोई निकल न पायेगा ।
राज नंदिनी सिया सुकुमारी की ...................जय जय जय ।
मेरी सखियों नें ये जयकारा लगाना शुरू कर दिया था ।
मिथिलेश किशोरी की .............जय जय जय ।
मंगल गान शुरू हो गया था ......हल्दी चढानें की विधि पूरी हुयी ।
मेरे शरीर पर पीला वस्त्र था ............फूलों से सजी हुयी थी मै .......मेरे अंग अंग में हल्दी का लेप हुआ था ..........अब मुझे उठाया मेरी सखियों नें और अंतगृह में ले गयीं ........वहाँ उबटन की विधि पूरी हुयी थी ।
फिर मुझे स्नान कराकर ............सुन्दर वस्त्रादि से सुसज्जित करके .......आभूषण इत्यादि लगाकर ............फिर उसी आँगन में मुझे लाया गया था ...........।
चारुशीला सखी नें मेरे कान में कहा ...........रघुनन्दन की भी हल्दी चढ़ाई विधि हो रही है ..........धीरे से मेरे कान में कहा था ।
पर मै ये भी समझ रही थी कि मुझे सहज बनानें के लिए ये सब कह रही हैं ..........पर मुझे चन्द्रकला नें भी कहा ......हल्दी चढ़ाये हुए श्री राम अच्छे नही लग रहे ............काले में पीली हल्दी .......काले हैं वो तो .........इतना क्या कहा चन्द्रकला नें ........सब हँसनें लगी थीं .........।
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पुत्री ! सूर्यास्त होनें को आरहा है ..............तुमनें अभी तक कुछ खाया भी नही है ...............वो तुम्हारी सेविका तुम्हे खोज खोज कर परेशान हो गयी है .............।
पुत्री सीता ! इस तरह से कैसे होगा ............तुम्हे अपनी चिन्ता नही है तो कम से कम .........इस गर्भ में पल रहे बालक की चिन्ता तो करो ......ये रघुकुल का दीपक है तुम्हारी कोख में - पुत्री सीता !
ऋषि वाल्मीकि नें मुझे समझाया ............हाँ .......मैनें अपनें पेट में हाथ रखा था .................इनको बचाना है ...........इन्हें सौपना हैं इनके पिता को .................
मै उठी गंगा किनारे से..........और चल दी अपनी कुटिया की ओर ।
शेष चरित्र कल ..........
Harisharan
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