*दया*

केशवी 9- 10 साल की एक बहुत ही सरल स्वभाव वाली लड़की थी। उसके पिताजी जुलाहा थे उसकी मां लोगों के घरों में काम करती थी। केशवी का एक 2 साल का भाई भी था। केशवी के पिता और माता जो भी कमाई करते उससे घर का गुजारा जैसे तैसे हो जाता था ।केशवी को पढ़ने के लिए नदी पार  करके दूसरे गांव के स्कूल में रोज जाना पढ़ता था ।केशवी की मां उसको रोज चार रोटी बनाकर स्कूल के लिए दे देती थी। क्योंकि केशवी सुबह जाती और शाम को वापस आती थी क्योंकि उसका स्कूल नदी पार होने से दूर पड़ता था।
एक दिन ठाकुर जी ने सोचा कि चलो धरती पर चल कर देखा जाए कि कितनी लोगों में दया रह गई है तो ठाकुर जी ने एक बूढ़े भिखारी का रूप धारण करके सड़क के किनारे बैठ गए। केशवी भी हर रोज वहां से स्कूल के लिए जाती थी बूढ़े भिखारी बने ठाकुर जी हर आने-जाने वाले से कह रहे थे बाबा कुछ खाने को दे दो मैं बहुत दिनों से भूखा हूं। लेकिन लोग जो थे बूढ़े भिखारी को नफरत की दृष्टि से देख कर अपना मुंह उधर कर देते। लेकिन जब केशवी बूढ़े भिखारी के पास से गुजरी तो उसने जब बूढ़े भिखारी की आवाज सुनी तो वह जल्दी-जल्दी उनके पास कई और बोली बाबा क्या भूख लगी है ?तो बाबा ने हां में गर्दन हिला दी। केशवी ने अपने स्कूल में ले जाने वाले झोले में से चार रोटी निकाली और उसमें से एक रोटी बाबा को दे दी ।और साथ में रोटी के ऊपर जो मां ने अचार दिया था वह रख दिया ।अभी वह थोड़ी आगे ही गई थी तभी उसने देखा की चौपाल पर बहुत सारे पक्षी इधर उधर भूख से व्याकुल बैठे हुए हैं। उनको कोई भी दाना नहीं डाल रहा था। केशवी को उन पर बहुत दया आई उसने अपने झोले में से एक रोटी निकाल ली और उसके छोटे छोटे टुकड़े करके  पक्षियों को डाल दिया ।अब उसको नदी पार करके नाव में बैठकर अपने स्कूल में जाना था। तभी उसने नदी में देखा की बहुत सारी मछलियां भूख से व्याकुल बार बार पानी के ऊपर आ रही हैं। केशवी को अब मछलियों के ऊपर भी बहुत दया आई तो उसने फिर अपनी झोली में से एक रोटी निकालकर छोटे-छोटे टुकड़े करके उन मछलियों को डाल दी। अब उसके पास केवल एक ही रोटी बची थी ।उसने बिना किसी चिंता से एक रोटी से ही सारा दिन का गुजारा किया ।अगले दिन फिर केशवी की मां ने उसके लिए चार रोटी बनाई फिर ऐसे ही उसने एक रोटी बूढ़े भिखारी को दे दी ,एक रोटी पक्षियों को डाल दी अभी नदी का किनारा दूर था तभी केशवी को लगा कि जैसे उसके पीछे पीछे कोई आ रहा है लेकिन जब उसने पीछे मुड़कर देखा तो कोई नहीं था ।अब केशवी नाव तक पहुंच गई थी। नाव में बैठकर उसने एक रोटी मछलियों को डाली ।नाव में बैठे बैठे भी उसको लगा कि उसके पास जैसे कोई बैठा हुआ है। लेकिन था कोई नहीं।  अब केशवी स्कूल पहुंच चुकी थी। स्कूल से फिर वह वापस आई। अगले दिन भी उसने ऐसा ही किया एक रोटी भिखारी को एक रोटी पक्षियों को और एक रोटी मछलियों को डालकर एक रोटी खुद खा ली ।उसको अभी ऐसे लगता था कि जैसे उसके पीछे पीछे कोई चल रहा है अब उसको किसी के साथ साथ चलने की आहट भी सुनाई देती थी और साथ में किसी के सांस लेने की भी आवाज सुनाई देती थी। लेकिन केशवी  जब इधर-उधर देखती तो उसको कोई दिखाई नहीं देता था। फिर केशवी ने देखा कि अब उसको एक आकृति सी बनी हुई उसके साथ साथ चलती दिखाई दे रही थी ।धीरे-धीरे उसको आकृति अब साफ दिखाई देने लगी थी। उसने देखा कि उसकी उम्र का एक बहुत ही सुंदर बालक उसके साथ साथ चल रहा है ।केशवी उसको देखकर हैरान हो गई और कहने लगी तुम कौन हो। तो उस बालक ने कहा अगर तुम केशवी हो तो मेरा नाम केशव है ! तुम बहुत ही दयावान हो ।मैं तुम्हें हर रोज यहां बूढ़े भिखारी पक्षियों और मछलियों की सेवा करते देखता हूं ।और जो इतने दयावान होते हैं मैं केवल उसी को दिखाई देता हूं। केशवी उसकी बातें सुनकर हैरान हो गई कि ऐसा भी कभी हो सकता है। तो केशवी ने कहा तो मैं तुमको क्या कह कर पुकारू ।तो केशव ने कहा कि तुम मुझे अपना सखा ही समझ लो। आज से हम दोनों सखा है। तुम केशवी मैं केशव ।
केशवी अपने सखा को पाकर बहुत प्रसन्न हुई ।अब हर रोज केशवी और केशव इकट्ठे आते जाते थे ।जब तक केशवी स्कूल में रहती तो केशव उसका बाहर इंतजार करता ।एक दिन बहुत ही गर्मी थी केशवी ने देखा कि केशव तो इतनी तपती दोपहर में नंगे पांव धरती पर चल रहा है तो केशवी व्याकुल हो उठी और उसने केशव को जल्दी जल्दी एक वृक्ष के नीचे बिठाया और अपने झोले में से एक छोटा सा कपड़ा निकाल कर केशव के पांव को साफ करने लगी और कहने लगी तुम कैसे सखा हो तुम मुझे बता नहीं सकते कि तुम्हारे पैरों में डालने के लिए चप्पल नहीं हैं और तुम इतनी गर्मी में धरती पर नंगे पांव चल रहे हो ।आज से तुम मेरी यह चप्पल धारण करो। उसने जल्दी-जल्दी अपने पैर से चप्पल उतारकर केशव के  पांव में डाल दी ।और खुद नंगे पैर चलने लगी केशव केशवी की ऐसी भावना को देखकर भावविभोर हो उठे ।
अगले दिन केशवी के स्कूल में वार्षिक समारोह था और साथ में केशवी की प्रधानाचार्य का जन्मदिन था।  तो सब बच्चों ने यह निर्णय किया था कि वह अपने प्रधानाचार्य के लिए कुछ ना कुछ उपहार लाएंगे और स्कूल के वार्षिक समारोह के लिए भी कुछ ना कुछ लाएंगे और केशवी  ने  वार्षिक समारोह में एक बहुत ही सुंदर नृत्य तैयार किया था। अगले दिन जब केशवी स्कूल के लिए तैयार हुई तो उससे चला ही नहीं जा रहा था क्योंकि तपती दोपहर में धरती पर नंगे पांव चलने से उसके पांव में छाले पड़ गए थे ।अब केशवी  से चला नहीं जा रहा था और उसको चिंता सताए जा रही थी कि वह स्कूल में कैसे पहुंचेगी। कैसे नृत्य करेगी। और आज तो उसके मां-बाप के पास उसको देने के लिए कोई उपहार भी नहीं था कि वह अपने प्रधानाचार्य को दे सके। केशवी बहुत उदास थी उसकी आंखों में आंसू बहने लगे ।तभी बाहर से उसको किसी के दरवाजा खटखटाने की आवाज सुनाई दी। केशवी धीरे धीरे कर के दरवाजे को खोलने गई तो उसने देखा कि दरवाजे पर केशव खड़ा है तो उसने केशवी को कहा कि आज स्कूल नहीं जाओगी ।तो केशवी ने उसको बताया कि उसके पांव में छाले पड़े हैं और साथ में मेरी प्रधानाचार्य का आज जन्मदिन है।
उसके पास  कुछ भी नहीं उन को देने के लिए ।केशव ने कहा तुम चलो तो सही मैं सब इंतजाम कर दूंगा ।और केशवी का हाथ पकड़कर चलने लगा ।केशवी बहुत धीरे धीरे चल रही थी तभी रास्ते में वही बुढा भिखारी केशवी को कहने लगा कि बेटा तेरे पांव में क्या हुआ है तो केशवी ने कहा बाबा मेरे पांव में गर्मी के कारण तपती धरती पर चलने से छाले पड़ गए हैं ।तो बाबा ने जल्दी से उसको अपने पास बुलाया और कहा अरे बेटा मेरे पास बहुत अच्छी मरहम है आओ मैं तुम्हारे पांव पर लगा दूं ।और उन्होंने केशवी  के छालो पर मलहम लगा दी ।अब केशवी को मलहम लगाने से कुछ राहत मिली ।अब वह धीरे धीरे चल सकती थी। लेकिन उसने केशव को बोला की वार्षिक समारोह में ले जाने के लिए मेरे पास कुछ भी नहीं है। तो केशव ने कहा चिंता मत करो तभी वह एक वृक्ष के नीचे बैठ गए और उसने देखा अचानक से बहुत से पक्षी उस वृक्ष पर आकर जोर जोर से वृक्ष की डाली को हिला रहे हैं और बहुत सारे वृक्ष के फल वृक्ष से उतर कर नीचे गिर रहे थे तो केशवी ने जल्दी-जल्दी फल इकट्ठा करके अपनी झोली में डाल लिए तो केशव ने कहा कि यह फल तू वार्षिक समारोह में दे देना। अब केशवी और केशव दोनों नाव में बैठकर स्कूल जा रहे थे तभी केशवी को याद आया आज तो  प्रधानाचार्य का जन्मदिवस है तो मैं उनको उपहार  में क्या दूंगी। तभी जल में रहने वाली मछलियों ने केशवी को उदास देखा  तो वह  नदी के अंदर गई और वहां से बहुत सारे मोती मुंह में ला -ला कर नाव में फेंकने लगी और साथ-साथ में थोड़ा सा जल भी फेंक  देती जैसे उनको पता था कि केशव के रूप में साक्षात ठाकुर जी नाव में विराजमान है और उस जल से वह ठाकुर जी का चरण अभिषेक कर रही थी। बहुत सारे मोती अब केशवी के पास इकट्ठे हो गए तो केशव ने जल्दी-जल्दी अपने पितांबर के कोने में से एक धागा  निकाल कर उन मोतियों को धागे में पिरो कर एक बहुत सुंदर माला बनाकर के केशवी को दे दी और कहा यह तुम अपने प्रधानाचार्य को दे देना। केशवी  प्रसन्न होकर अब केशव का बहुत ही धन्यवाद कर रही थी। स्कूल में जाते ही केशवी ने अपने झोले में से वह सारे फल अपनी अध्यापिका को दिए और माला जाकर प्रधानाचार्य को दी। मलहम लगाने से केशवी के पांव बिल्कुल ठीक थे जब केशवी का नृत्य करने का समय आया तो दूसरे कई स्कूलों के अध्यापक स्कूल में वार्षिक समारोह में आए हुए थे केशवी ने इतना सुंदर नृत्य किया कि सब लोग खूब सारी तालियां बजाने लगे ।और उसको स्कूल की प्रधानाचार्य ने इनाम के रूप में ₹500 इनाम में दिए। केशवी इनाम को पाकर बहुत खुश हुई ।जब केशव और केशवी घर वापस आ रहे तो केशव ने पूछा कि तुम इन पैसों का क्या करोगी तो केशवी ने कहा कि मैं सबसे पहले वह बूढ़े भिखारी के लिए एक बहुत सुंदर धोती कुर्ता लूंगी और चौपाल में बैठे हुए पशु पक्षियों के लिए बहुत सारा दाना लूंगी क्योंकि एक रोटी से उन सब का पेट नहीं भरता होगा और मछलियों के लिए भी बहुत सारा खाना लेकर आऊंगी क्योंकि एक रोटी से उनका भी पेट नहीं भरता होगा। केशव केशवी की इस दयालुता को देखकर बहुत प्रसन्न हुए ।जिसके आगे सारी दुनिया नतमस्तक होती हैं  आज वह केशवी के आगे नतमस्तक हो गए थे ।और कहने लगे तुमसे ज्यादा दयालु बच्चा मैंने कहीं नहीं देखा। जिसने जल थल और आकाश तीनों लोको पर उपकार किया है जैसे कि आकाश में उड़ने वाले पक्षियों को तूने दाना डाला, धरती पर बूढ़े भिखारी को रोटी दी, जल में रहने वाले मछलियों को तूने अपनी रोटी दी इससे बड़ी दयालुता ओर क्या होगी कि तुम खुद भूखी रही और उनका पेट भरा। अब केशवी  अपने घर जा चुकी थी और ठाकुर जी की कृपा से आज उसके घर अन्न और धन की कोई कमी न थी ।क्योंकि ठाकुर जी तो धरती पर आए ही थे देखने की धरती पर कितनी दया बची है और केशवी से ज्यादा  दयावान  धरती पर ओर कोई नहीं  था क्योंकि केशवी बिना किसी स्वार्थ के लोगों पर उपकार कर रही थी ।और बिना स्वार्थ के किसी  पर उपकार करना भी एक तरह की भक्ति ही है और हमें भी ऐसी ही भक्ति करनी चाहिए ना की दिखावे की .. कि लोगों को दिखाएं कि हमने इतना चढ़ावा चढ़ाया है इतना दान किया है इतने लंगर लगाए हैं। ऐसे लोगों पर भगवान कृपा नहीं करते बल्कि केशवी  जैसे लोगों पर खूब कृपा करते हैं। जो निस्वार्थ भावना से लोगों पर उपकार करते हैं ।ठाकुर जी को ऐसी भक्ति बहुत प्रिय है उनकी कृपा दृष्टि हमेशा ऐसे ही भक्तों पर रहती है !!

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