टाईम ट्रैवल - समय की यात्रा

आज  के  विचार

(  टाईम ट्रैवल - समय की यात्रा  )

कर्तुम् अकर्तुम अन्यथा कर्तुम् समर्थ,  स ईश्वरः।
( वैदिक सूत्र )

मै चल दिया था श्रीधाम वृन्दावन के लिए ........हिमाचल प्रदेश से ।

प्लीज़ महाराज जी !  मै आपको एक  यू ट्युव का  लिंक भेज रहा हूँ .......आपके पास अभी समय भी होगा .......बस दस मिनट के लिए  देख लेना ........और बताना  कि .......क्या  इस तरह  की यात्रा सम्भव है ?  आधुनिक विज्ञान तो  कहता है ......सम्भव है ........पर क्या  आपके प्राचीन शास्त्र कहते हैं  कुछ इसके बारे में  ?

ये  बेंगलोर का  मेरा एक  साधक है ......युवा  छात्र है ...........है  बिहार का. .....पर पढ़ाई कर रहा है  बेंगलोर में   ।    उसी नें  ये सब  मुझ से कहा.....और  मेरे वाट्सप में  एक लिंक भेज दिया  ।

टाईम ट्रैवल ?    समय की यात्रा   ?

मै देखनें लगा ..............उसके द्वारा भेजे गए  लिंक को  ।

आप  भूत काल में भी जा सकते हैं ..............और भविष्य में भी ।

मै  भूत काल की यात्रा कर सकता हूँ ......और  भविष्य की भी ।

हजारों वर्ष पहले  की यात्रा मै कर सकता हूँ ......और  पीछे की भी ।

उस लिंक में  मैने यही देखा .....महान वैज्ञानिक  आइंस्टीन  कहता है ......प्रकाश की गति से कोई यात्रा करे   तो  ये सम्भव है  ।

पीछे की यात्रा  भी  यानि भूत काल की यात्रा भी.....  और आगे की भविष्य की यात्रा भी  ।

आइंस्टीन से किसी नें पूछा ...........पर प्रकाश की गति से चलनें वाली मशीन बनाना  क्या  असम्भव नही है  ?

आइंस्टीन का उत्तर था...........वैज्ञानिक किसी भी चीज को असम्भव नही मानता .............ये सम्भव है  ।

और हो सकता है कि   आगे आनें वाले पीढ़ी   इस यात्रा को कर सके .....ओह !   क्या  अद्भुत   यात्रा होगी !..........और कितना अद्भुत होगा   उस समय के  लोगों को देखना ........उनकी दुनिया में पहुँच जाना ।

मै देख चुका था  उस  टाईम ट्रैवल के  वीडियो को ..............

मेरा  शरीर अब थक गया था...............मुझे नींद आगयी ।

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हरि जी !   ये देखो ............ये शाश्वत का आविष्कार है ................

मुझे  शाम के समय ले गयी थी गौरांगी .......शाश्वत  की कुटिया में ।

ओह !   ये क्या है   ?   शाश्वत क्या वैज्ञानिक है  !       मै कुछ समझ नही पा रहा था  ।

एक मशीन थी .........जिसमें तीन सीटें थीं ........और  कई  सूइयां थीं ....जैसे घड़ियों में होती हैं ..............शायद  हजारों .......।

ये मशीन छुपा के रखा था शाश्वत नें ........कार्य को पूरा किये बिना ये किसी को बताना नही चाहता था  ।  गौरांगी नें मुझे कहा  ।

पर ये मशीन क्या है  ?

मेरा प्रश्न  यही तो था  ।

काल की यात्रा ......यानि समय की यात्रा  ।

क्या  ?      

हाँ ...................शाश्वत आगे आया .....और  बिना कुछ बोले ........मुझे और गौरांगी को सीट में बिठा दिया ..........स्वयं  भी  बैठ गया ।

सामनें  कम्प्यूटर के  "की बोर्ड" की तरह ........बटन लगे हैं ...........

बताओ  कितनें वर्ष  पीछे जाना चाहते हो  ?

शाश्वत  मुस्कुराते हुये बोला ।

........क्या ये सम्भव है  ?   मुझे कुछ समझ नही आरहा था  ।

अभी तर्क नही   । शाश्वत बोला ......कितनें वर्ष पीछे ?   ......इसमें मुझे  लिखना है  ।

5000 वर्ष  पीछे  ।

गौरांगी  उछलते हुए बोली  ।

ठीक ............शाश्वत नें  खुश होकर   वो अंक डाल दिया ।

कहाँ  ?  स्थान  ?   उसमें स्थान भी डालना था  ।

वृन्दावन !.................शाश्वत खुद ही  बोल पड़ा ............

हाँ .......हम सबनें कहा  ।

वो  समय कैसा होगा ............मुझे देखना है  ....जब श्रीकृष्ण अवतार लिए थे .......।

पर  एक दिक्कत है .......शाश्वत नें अब गम्भीरता ओढ़ ली थी  ।

क्या ?     

हम दोनों  नें  सीट की बेल्ट बांधते हुए  पूछा ।

अगर   मशीन पर   1 घण्टे के अंदर नही आये .......तो  ये मशीन वापस इसी  स्थान पर आजायेगी  ....और हम लोग वहीं  5000 वर्ष पहले के समय काल में    रह जायेंगें  ।

शाश्वत नें कहा  ।

क्या हम उसी  समय में  रहेंगें .......वहीं .....?
मैने चौंक कर पूछा  ।

हाँ ..............शाश्वत का उत्तर था  ।

wow ..........आनन्द आएगा ..........मै तो वहीं रह जाऊँगी ......हँसते हुए  प्रफुल्लित होते हुए गौरांगी नें कहा था  ।

शाश्वत  नें  ठाकुर जी का नाम लिया ...........और बटन दवा दिया ।

5 हजार वर्ष  पीछे ....और स्थान वृन्दावन.......मथुरा  राजधानी  ।

मशीन चल दी .......सारे कलपुर्जे  घूमनें लगे ..................तेज़ी से ......और  तेजी से ....................

हम लोगों को  तो    मानों  भयानक तूफ़ान में  फंस गए .......ऐसा अनुभव होनें लगा......कुछ  बीस सेकेण्ड  से भी कम......फिर तो......आहा !

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सुन्दर सुन्दर ...........गोप सजधज कर  तैयार खड़े हैं ............गौएँ  जिनकी सींगें  सोनें से ......और खुर चाँदी से  मढ़े हुए हैं ..........

एक  विशाल  द्वार है .............जो  चन्दन की लकड़ियों से बना था ................पच्चीकारी उसमें ऐसी थी.....ओह !    ।

गौरांगी  शाश्वत और  मै ..........देख रहे  हैं .............उस द्वार को ..कभी  द्वार में खड़े गोपों को ......सजे धजे  सुन्दर सुन्दर .......मात्र सुन्दर ?

इससे ज्यादा शब्द क्या कहूँ ......अति सुन्दर.......।

मेरे तो नेत्र ही नही हट रहे  थे  .............।

तभी ....................बोलो  कृष्ण कन्हैया लाल की जय  ।

सब  आनंद से उछल पड़े ........ग्वाल बाल .....गौएँ  भी   आनन्दित हो उठीं थी..........ख़ुशी से  गायों नें  सिर हिलाया,  तब सबके गले में बंधी घण्टी बज उठी थी  ।

देखो !   उस ओर  देखो.....गौरांगी  तो बच्चों की तरह उछल रही थी ।

हम दोनों नें उस ओर  देखा ..............

आहा ! सुन्दर .......अत्यंत सुन्दर ................श्याम वर्ण ........सिर में मोर मुकुट ...............हाथों  में  बाँसुरी .............गले में   वैजयंती की माला .........माथे में  रोरी का टीका ......अंग अंग से प्रकाश निकल रहा है ........पर उनके वस्त्र,  उस प्रकाश को  ढँक रहे हैं ..........पर  प्रकाश  फिर भी नही छुप रहा  ।

सब ग्वाल बालों नें  कन्हैया को   उठा लिया.........."अरे ! अरे ! लग जायेगी...........कितना ऊधम मचाते हो..........उधर से  एक सुन्दर ....वात्सल्य जिनके अंग अंग से झर रहा था .....मोटी मोटी ........गौर वर्ण की ........वो .स्नेह से    बालकों को   गुस्सा   कर रही थीं ।

यशोदा मैया !   हरि जी !   शाश्वत ! देखो !

फिर गौरांगी उछली  ।

पर ये क्या ?  अरे ! अरे ! .............ये तो  भाग रहे हैं ...........ग्वाल बाल  कन्हाई के संग भागे ......तो पीछे ...पीछे  .......सब गौएँ रंभाती हुयी भागी .......धूल उड़ रही थी ..........पर ये धूल ....आहा ! आँखों में पड़ रही है .....तो ऐसा   लग रहा है .....कपूर के समान शीतल ।

कपूर भी फेल है ....हरि जी  !

गौरांगी मन की बात  भी सुन रही थी ।

चलो !   उनके पीछे पीछे  ।

हम तीनों भी भागे .............कन्हैया के पीछे  ।

पर ये भाग क्यों रहे हैं ?            मुझ से पूछा ...शाश्वत नें भी और  गौरांगी नें भी  ।

मैने कहा.......भागवत में श्री शुकदेव जी कहते हैं -  इसी समय का वर्णन करते हुए...........वन जाते समय  ग्वाले  भागे भागे जाते हैं .........क्यों की वन में तो    दिन भर अब श्री कृष्ण के साथ रहना है ..........आनन्द आएगा ....उस आनन्द को जल्दी लें......इस प्यास में भागते हैं.........पर जब शाम को लौटकर आयेंगें ना ......तब  धीरे धीरे चलते हुए आयेंगें ..........क्यों की उदासी छा जायेगी .......अब तो कृष्ण को छोड़कर  वापस  घर जाना पड़ेगा ....और पूरी रात ?    बड़ी मुश्किल से कटती है .........सुबह  तक का समय ......ऐसा लगता है युग बीत गए  ।

गौरांगी मेरी बातें सुनती जा रही थी .........शाश्वत का ध्यान   कन्हैया के ऊपर था  ।

सखियाँ  अपनें अपनें घर   से निकल आयीं थीं...............

  कोई फूल  फेंक रही है ........कोई मात्र देख रही है  कन्हैया को ......कोई   गाल पकड़ लेती है ..........तब मुँह बनाते हैं  कन्हैया ......ओह ! क्या रूप बनता है  उस समय  कन्हैया का  .....छ वर्ष के ही तो हैं  ।

हये !   मर गयी मै तो !  गौरांगी आह  भरती है ।

गोपियाँ   जब कन्हैया  को अपनें हृदय से  लगाती है .................तब बूढी बूढी  माताएं  मीठी गाली देती हैं.......अरी दुष्टों !     गले लगा लगा कर ......क्यों परेशान कर रही हो ..बेचारे बालक को .......भागो यहाँ से ..........अरी ! प्रभावती !  तू तो सुन .....तेरो खसम बुलाय रह्यो है .......।

अरे ! वो बुलाता रहता है .............कुछ   मज़ाक  के अंदाज़ में  प्रभावती भी  जबाब दे देती है  ।

मै  गले लगा लूँ   कन्हैया को ?     गौरांगी नें शाश्वत से पूछा ।

नही ..........पास में जाना भी मत  । शाश्वत चिल्लाया ।

क्यों ?        गौरांगी नें  छोटी बच्ची  की तरह  मचलते हुए पूछा  ।

हम वापस नही जा पायेंगें  .......शाश्वत नें कहा ।

मुझे नही जाना......मुझे तो अपनें  कन्हैया  को  हृदय  से  लगाना है    और यहीं रहना है  ........गौरांगी  बढ़ी आगे ।

नही .....चलो !  एक घण्टे हो गए  ............गौरांगी का और मेरा हाथ पकड़ कर शाश्वत भागा मशीन की ओर ...........।

गौरांगी  बच्ची की तरह  पीछे देखते हुए  ...........नही मुझे एक बार गले लगानें दो  ।

पर शाश्वत  हमें खींच रहा था ..........चलो !

देखो ! मशीन चालू हो गयी  है ...........और  सच में मशीन चालु हो गई थी ........हम लोग  भागे ...........5 सेकेण्ड ही बाकीं थे ।

हम लोग   दौड़ते हुए ..........सीट में बैठ गए थे ......बेल्ट लगा लिए ।

तब हम तीनों नें .................हाथ जोड़े ..........

उधर से ग्वाल बाल  आनन्द में उछल रहे हैं..........

तभी    उस भीड़  में से कृष्ण कन्हैया नें  हम तीनों को देखा ........और मुस्कुराये ........गौरांगी तो  "हये"    कहती हुयी गिर गयी ।
    

इधर  मशीन चल दी  ।

***  महाराज !   उठो ........दिल्ली आगयी  ...................ज्ञानेश्वर जी नें मुझे उठा दिया था ..................।

ओह !  सपना था ......मै आँखें मलते हुए उठा .........काश!    ये सच होता  ।

भगवान का नाम लिया ........सूर्योदय हो गया था  ।

चाय पीएंगें ?     ज्ञानेंश्वर जी नें पूछा  ।

नही ...........मुस्कुराते हुए अंगड़ाई ली  मैने ।

सपना  कितना सुन्दर था ..............टाईम ट्रैवल ! 

तभी .........मेरे एक मित्र   साथ के संगीतकार नें  एक भजन लगा दिया ।

"चलो रे मन  वृन्दावन की  ओर "

Harisharan

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