ज़िन्दगी में ठक-ठक

🙏🏻 *ज़िन्दगी में ठक-ठक तो होते रहेगी... इस खटर-पटर के बीच ही भजन करना होगा...* 🙏🏻

एक आदमी घोड़े पर कहीं जा रहा था। घोड़े को जोर की प्यास लगी थी। दूर कुएं पर एक किसान बैलों से "रहट" चलाकर खेतों में पानी लगा रहा था। मुसाफिर कुएं पर आया और घोड़े को "रहट" में से पानी पिलाने लगा। पर जैसे ही घोड़ा झुककर पानी पीने की कोशिश करता, "रहट" की ठक-ठक की आवाज से डर कर पीछे हट जाता। फिर आगे बढ़कर पानी पीने की कोशिश करता और फिर "रहट" की ठक-ठक से डरकर हट जाता। मुसाफिर कुछ क्षण तो यह देखता रहा, फिर उसने किसान से कहा कि थोड़ी देर के लिए अपने बैलों को रोक ले ताकि रहट की ठक-ठक बन्द हो और घोड़ा पानी पी सके। किसान ने कहा कि जैसे ही बैल रूकेंगे कुएँ में से पानी आना बन्द हो जायेगा। इसलिए पानी तो इसे ठक-ठक में ही पीना पड़ेगा। ठीक ऐसे ही यदि हम सोचें कि जीवन की ठक-ठक (हलचल) बन्द हो तभी हम भजन, सन्ध्या, वन्दना आदि करेंगे तो यह हमारी भूल है। हमें भी जीवन की इस ठक-ठक (हलचल) में से ही समय निकालना होगा। तभी हम
अपना कुछ पारमार्थिक मंगल कर सकेंगे। वरना उस घोड़े की तरह हमेशा प्यासा ही रहना होगा।

सब काम करते हुए, सब दायित्व निभाते हुए प्रभु सुमिरन में भी लगे रहना होगा। जीवन में ठक-ठक चलती ही रहेगी।

हरे कृष्ण।

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