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जब प्रभु श्रीराम अपने धाम गए तब अयोध्या के पेड़ , पोधे वृक्ष , लताये जड़ के सहित उखड- उखड कर भगवान के साथ , भगवत धाम- साकेत में चले गए।
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यहाँ तक की जब पर्वतो ने देखा की प्रभु श्रीराम अपने धाम जा रहे है तब जड़ भी चेतन बन कर वे पर्वत भी प्रभु श्रीराम के साथ चल पड़े।
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अयोध्या की भूमि सूनी सी हो गयी अयोध्या जी स्त्री के रूपमे प्रकट हो कर विलाप करने लगी की ,
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अरे ! मैं कैसी अभागिन हूँ जो यहाँ पड़ी- पड़ी अपने आपको उजड़ती हुई देख रही हूँ..
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एक दिन अयोध्या जी दुखी मन से सरयू जी नदी के पास जा कर विलाप करने लगी की ,
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बहिन ! अब तुम्हारा होना भी व्यर्थ रह गया है , मेरे उजड़ जाने से अब हम अकेली रह गयी है।
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अयोध्या जी और सरयू जी अथाह दुःख के समुन्द्र में डूबी हुई प्रभु श्रीराम की बाते कर रही थी और आँखो से अश्रुधार बहा रही थी।
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इतने में एक राजकुमार घोड़े पर सवार , हाथ में धनुषबाण लिए वहा से गुजर रहे थे।
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उस राजकुमार ने देखा की यहाँ की भूमि इतनी उजड़ी सी क्यों लग रही है ?
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यहाँ के पेड़ , पोधे , वृक्ष , लताये कहा चले गए ?
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राजकुमार ने देखा की दो स्त्रियां सरयू जी के किनारे बैठी दुखी मन से विलाप कर रही है , उनके नेत्रों से झर - झर आसु बह रहे है |
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राजकुमार घोड़े से उतर कर उन माताओ को प्रणाम करके कहा की , हे देवियो ! आप कौन है और आप रो क्यों रही हो ?
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अयोध्या जी ने कहा महाराज ! मैं यहाँ की भूमि अयोध्या हूँ और ये मेरी सखी सरयू जी है ,
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आप हमारे रोने का कारण पूछ रहे है पर क्या कहें कुछ कहने की बात नही है , पर आप पूछ रहे है तो हम बता देती है
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अयोध्या जी ने कहा महाराज ! कुछ काल पहले एक डाकू आया था उसने हमे खूब आनंद दिया था हम उनके आने से धन्य हो गयी थी
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पर जाते समय वो डाकू यहाँ की सारी सम्पति को लूट कर ले गया हमे उजाड़ कर चला गया
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राजकुमार ने धनुष पर प्रतंजा चढ़ा कर क्रोध मे भरकर कहा , माता जी ! मैं आपको वचन देता हूँ ,
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मैं शीघ्र ही उस डाकू को युद्ध मे जीत कर आप की सम्पति आप को वापिस दिलवा कर ही जाऊंगा , आप हमे उस डाकू का नाम बताईये ?
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अयोध्या जी बोली , महाराज ! उस डाकू पर आपके धनुष का कोई असर नही पड़ने वाला वे बहुत बलशाली है
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वे युद्ध मे जीते नही जा सकते , वे तो प्रेम से जीते जा सकते है।
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राजकुमार आश्चर्य में पड़ गए की डाकू को प्रेम से जीता जा सकता है ! ऐसा कैसा डाकू है ?
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पर जो भी है आप मुझे उनका नाम बताईये ?
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अयोध्या जी ने कहा "वे अखिल ब्रह्मांडनायक परब्रह्म परमेश्वर है
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मुझे शोभायमान करने के लिए इस धरती पर राजा दशरत जी के पुत्र बन कर आये थे जो आपके पिता श्री राम है वहीं मुझे उजाड़ कर चले गए है।
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यहाँ के पेड़ , पोधे , वृक्ष , लताये सब जड़ के सहित उखड़ कर उनके साथ चले गए और में यहाँ उजड़ कर रह गयी हूँ।
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वे राजकुमार कोई और नही थे भगवान श्रीराम के छोटे पुत्र कुश थे
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महाराज श्री कुश ने कहा , माताजी ! अब मैं आप को वचन दे चूका हूँ की आपकी सम्पति आपको दिलवा कर ही जाऊंगा
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सो में मेरा वचन पूरा कर के ही जाऊंगा , पर उस मे आपको मेरी सहायता करनी होगी , आप कृपा करके मुझे बताईये ,
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आप जिस रूप में प्रभु श्रीराम के रहने पर शोभायमान थी , वे सभी यथा योग्य स्थान मुझे बता दीजिये ?
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उसके बाद अयोध्या जी और सरयू जी ने प्रभु श्रीराम की बाल लीलाओ का चरित्र सुना कर जहा - जहा भगवान श्रीराम ने जो लीलाये की वे स्थान बताये।
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अयोध्या जी और सरयू जी के बताये हुवे स्थान को महाराज कुश ने यथा योग्य फिर से स्थापित किया।
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वे अयोध्या जी फिर से सज गयी वहां के पेड़ ,पोधे , वृक्ष , लताये फिर से लहराने लगे।
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अयोध्या जी की सम्पति लोटा कर कुश महाराज अपनी राजधानी कुशावती को चल दिए।
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भगवान श्री कृष्ण की उजड़ी हुयी भूमि को उनके पड़पौत्र व्रजनाभ जी ने फिर से बसाया था
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और प्रभु श्रीराम की जन्म भूमि अयोध्या जी को उनके छोटे पुत्र महाराज श्री कुश ने बसाया था
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ऐसा हमे पौराणिक ग्रंथो से मालूम होता है और अनुभव भी....!!
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