सन्त तुलसीदास जी कहीं जा रहे थे। इतने में एक स्त्री (जो सती होने जा रही थी) सामने से आ गई। हमारे शास्त्रों में लिखा है कि महात्माओं को दण्डवत प्रणाम करना चाहिए। सन्त जी को देखते ही उस स्त्री ने दण्डवत प्रणाम किया, तब तुलसीदास जी ने उसको आर्शीवाद दिया,"सदा सुहागन रहो।"
तुलसीदास जी के मुख से ऐसे वचन सुन कर स्त्री फूट-फूट कर रोने लगी और बोली, "बड़े आश्चर्य की बात है संसार पलट सकता है, प्रलय आ सकती है परन्तु सन्त का वचन झूठा नहीं हो सकता।" स्त्री के मुख से ऐसे वचन सुनकर तुलसीदास जी ने कहा, "अरथी नीचे रख दो और तुम सभी आँखें बन्द करके राम नाम का जाप करो।" इतना कहकर तुलसीदास जी भी राम नाम का जाप करने लगे। कुछ समय उपरांत कमण्डल से गंगा जल लेकर मृतक शरीर पर छिड़का और वह जीवित हो गया। आर्शीवाद और नाम के प्रभाव से प्रकृति बदल गई।
शास्त्रों में लिखा है, "सन्तों के आर्शीवाद और वाणी में इतनी शक्ति है कि विधि के विधान को बदल दें। जिसको सन्तों का आर्शीवाद मिलता है उसका जीवन हमेशा मंगलमयी रहता है। उसका कभी अमंगल नहीं होता। सन्तों का आर्शीवाद ही सबसे बड़ी पूंजी है।"
"जय श्री राम"
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1 Comments
Ekdam sahi jai ho
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