💕🌿🍁🌹एक दिन की बात है कि श्रीरामचंद्रजी और सीताजी बैठे हुए थे। आपस में दोनों की बातें हो रही थी । हनुमानजी की चर्चा छिड़ी तो श्रीरामजी ने कहा हनुमान मेरा बड़ा भक्त है ।🌹
💕🌿🍁🌹सीताजी बोली " अरे वाह ! आपने यह कैसे जाना ? "वह तो मेरा भक्त है ।"श्रीरामजी कहा - " तुम्हें क्या मालूम, मुझसे बढ़कर वह किसी को नहीं मानता ।🌹
💕🌿🍁🌹सीताजी मुस्काई और बोली - " आप धोखे में है, वह जितना मुझे मानता है उतना और किसी को नहीं।
श्रीरामजी बोले -तो इसमें झगड़ने की कौन सी बात है ? उसी से पूछ लिया जाये ।" 🦋
सीताजी ने कहा - "🌹
💕🌿🍁🌹 आज जब वह वे आयेंगे तब मैं एक चीज माँगूँगी, उसी समय आप भी कोई चीज माँग लीजियेगा । जिसकी चीज पहले आ जाये उसकी ही जीत हो जायेगी ।" श्रीरामजी ने कहा पक्की रही ।'🌹
💕🌿🍁🌹कुछ समय पश्चात हनुमानजी वहाँ पहुँच गये । श्रीरामजी और माता जानकी ने प्रसन्न्ता से उनका स्वागत किया ।🌼
🏵️हनुमानजी एक हाथ से श्रीरामजी और दूसरे से सीताजी के पैर दबाने
लगे । ❤️
🌻सीताजी ने श्रीरामजी की ओर देखकर इशारा किया ।🌹
💕🌿🍁🌹भगवान बोले- " हनुमान ! तुम ,मेरे भक्त हो न ? 🌳
💥हनुमानजी पहले तो घबरा गये किन्तु फिर विचार किया तो लगा कि *'आज दाल में कुछ काला है ! (वे बहुत ही बुद्धिमान जो ठहरे) , सोचकर बोले - ,क्या पूछा ? आपका भक्त, यानि राम का भक्त नही मैं राम का भक्त नहीं हूँ। 🌹
💕🌿🍁🌹सीताजी ने समझा कि मेरी विजय हो गयी ** हनुमान मेरा भक्त है । वह हँसते हुए , श्रीरामजी की और देखा । श्रीरामजी शरमाकर अपना पैर हटा लेते है ।🌹
💕🌿🍁🌹 हनुमानजी ने उनका पैर छोड़ दिया । तब सीताजी ने पूछा - ",तुम तो मेरे भक्त हो हनुमान ।"
हनुमान जी ने कहा - " आपका भक्त ? ऊँ - हूँ मैं सीता का भक्त नहीं हूँ ।
सीताजी आश्चर्य में डूब गई । रामजी हँसने लगे । सीताजी ने भी अपना पैर हटा लिया ।🌹
💕🌿🍁🌹 हनुमानजी ने उनका भी पैर छोड़ दिया, और खड़े हो गए । श्रीरामजी और सीताजी दोनों चकित हो गए कि - यह न तो श्रीराम भक्त हैं और न श्रीसीताजी का तो फिर किसका भक्त है ।🌹
💕🌿🍁🌹श्रीरामजी ने फिर पूछा - " तो तुम मेरे भक्त नहीं हो ?🌿
🌼 हनुमानजी - ऊँ- हूँ । 💞
🌷सीताजी ने पूछा " तो तुम मेरे भी भक्त नहीं हो ?💚
💥इस बार भी हनुमान जी ने ऊँ - हूँ कह दिया ।🌱
🌲श्रीरामजी ने फिर पूछा - "तो फिर तुम किस के भक्त हो ? इतनी सेवा किसलिए करते हो ?🌹
💕🌿🍁🌹 यदि तुम किसी और के भक्त हो तो तुम उस के साथ विश्वासघात कर रहे हो। उसकी सेवा न करके तुम हमारी सेवा करते हो ? तुम ठीक ठीक बतला दो कि तुम किसके भक्त हो 🌹
💕🌿🍁🌹हनुमान जी ने हँस कर कहा - न तो मैं श्रीराम और ना ही माता सीता का भक्त हूँ, बल्कि मैं तो 'सिर्फ सीताराम का भक्त हूँ ।'इस उत्तर को सुनकर दोनों ही अत्यंत प्रसन्न हुए ; और श्रीरामजी बोले -🌹
💕🌿🍁🌹हनुमान तुममें जितना बल है, उतनी ही बुद्धि भी है, किन्तु आज बुद्धि नहीं चलेगी, हमे तो आज फैसला ही करना है ।"🍀
🌹तब सीताजी बोली - " हनुमान ? प्यास लगी हैं जरा जल ले ले आओ ।" हनुमानजी बोले- "अभी लाया माता।"🌹
💕🌿🍁🌹 इतने में ही श्रीरामजी बोल उठे - " हनुमान ! बड़ी गर्मी है जल्दी पँखा झलो नहीं तो मैं बेहोश हो जाउँगा ।🌹
💕🌿🍁🌹इतना सुनते ही हनुमानजी ठिठक गये कि आज मेरी परीक्षा है - मैं किसकी आज्ञा का पालन करुं । उन्होंने कहा- " प्रभु माता के लिए जल ले आउँ फिर आपके लिये पँखा लाकर हवा करूँगा 🌹
💕🌿🍁🌹भगवान कह रहे हैं बड़ा ही व्याकुल हूँ, जल्दी हवा करो और उधर माता सीता के प्यास के मारे होंठ सूखे जारहे है । यह क्या लीला है ! आखिर वह सब लीला समझ समझ गये और मुस्कराने लगे ।🌹
💕🌿🍁🌹कुछ देर में वह बड़े जोर से बोले - "श्री सीताराम की जय !" यह कहकर वहाँ खड़े खड़े ही अपनी दोनों भुजाएँ बढाने लगे । तुरन्त ही एक हाथ में जल का गिलास और दूसरे हाथ में पँखा आ गया, श्रीरामजी को पँखा झलने लगे दूसरा हाथ सीताजी की तरफ बढ़ दिया, जिसमे जल का भरा गिलास था । और सीता - राम जी बड़े प्रसन्न हुये ।🌹
🌿🍁🌹 हनुमानजी का प्रेम देखकर दोनों मगन हो गये 🌹
💕🌿 🍁🌹जय श्री राम🌹🍁🌿💕
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