🌷 *तर्कवाद से परे हैं परमात्मा* 🌷

🌅रामकृष्ण के पास केशवचंद्र गए और बहुत तर्क करने लगे कि ईश्वर नहीं है। और जानते थे कि रामकृष्ण को तो क्षणों में परास्त कर देंगे, क्योंकि रामकृष्ण तो बेपढ़े-लिखे थे, केवल दूसरी कक्षा तक पढ़े थे--क्या तर्क करेंगे!
और केशवचंद्र तो महातार्किक थे। लेकिन रामकृष्ण को हरा न पाए। प्रेम को हराना संभव ही नहीं है। हार कर लौटे। प्रेम से हारना ही पड़ेगा। केशवचंद्र तर्क देते ईश्वर के विरोध में और रामकृष्ण उठ-उठ कर केशवचंद्र को गले लगाते और कहते: वाह! खूब रही! खूब कही!
यह तो कुछ उलटा ही होने लगा। जो लोग इकट्ठे हुए थे देखने, वे भी थोड़े बेचैन हो गए। सोचा था कि कुछ तर्क होगा, रामकृष्ण कुछ जवाब देंगे। जवाब तो देते नहीं, उलटे कहते हैं: वाह! खूब! खूब कही! क्या कही! क्या महीन बारीक बात कही! और जब बहुत बारीक बात हो जाती, तो उठ कर गले लगा लेते।
केशवचंद्र भी बड़ी मुश्किल में पड़ गए, उदास होने लगे। आखिर उन्होंने कहा, यह मामला क्या है? आप जवाब क्यों नहीं देते?
रामकृष्ण ने कहा, मैं जवाब ही दे रहा हूं। मैं यह कह रहा हूं कि मैंने जो जान लिया है, उसे खंडित करने का कोई उपाय नहीं। तुम्हारे तर्क बड़े प्यारे हैं, लेकिन अज्ञानियों को ही राजी कर पाएंगे। हां, किसी अंधे के सामने तुम अगर प्रकाश के खिलाफ बोलोगे तो वह तुमसे राजी हो जाएगा। असल में, अंधे को प्रकाश के पक्ष में राजी करना मुश्किल है। प्रकाश के विपक्ष में राजी करने में क्या कठिनाई है? तुम अगर प्रकाश के खिलाफ तर्क दोगे अंधे को, राजी हो जाएगा। मगर मेरी आंख खुल गई, मैं क्या करूं! तुम जरा देर से आए केशव! अगर तुम दस-पंद्रह साल पहले आए होते, जब मेरी भी आंख बंद थी, तो शायद मैं तुमसे राजी हो गया होता। तुम जीत गए होते। मगर अब जीतने का कोई उपाय नहीं।

केशवचंद्र ने पूछा, चलो यह भी सही। मगर उठ-उठ कर मुझे गले क्यों लगाते हैं? और यह वाह-वाह और यह प्रशंसा!
तो रामकृष्ण कहने लगे, इसलिए कि तुम जैसी प्रखर प्रतिभा मैंने कभी नहीं देखी! तुम्हारी प्रतिभा की मैं प्रशंसा करता हूं। लेकिन जरा और खींचो, जरा और धार दो। और तुम्हें देख कर मुझे परमात्मा पर और भी भरोसा आता है--कि जहां जगत में ऐसी प्रतिभा हो सकती है, वह जगत परमात्मा से खाली नहीं हो सकता। इसीलिए तुम्हें गले लगाता हूं कि अहा! खूब आए!
तुम आखिरी प्रमाण होकर आए। मुझे तो फूलों को देख कर परमात्मा का प्रमाण मिलता है, चांदत्तारों को देख कर परमात्मा का प्रमाण मिलता है। तुम्हारी प्रतिभा को देख कर भी उसका प्रमाण मिलता है। मुझे तो उसके प्रमाण ही प्रमाण मिलते हैं। लेकिन तर्क खेल है। केशव, इससे ऊपर उठो। खिलौने हैं बच्चों के। आओ मेरे पास, बैठो मेरे पास! ले चलूंगा तुम्हें उस द्वार से--प्रीति के द्वार से! और प्रीति का द्वार ही परमात्मा का द्वार है।

केशव ने अपनी आत्मकथा में लिखवाया है कि अपने जीवन में मैं पहली दफा हारा--और उस आदमी से हारा, जिसने एक भी तर्क मेरे विपरीत न दिया।
🍁💦🙏Զเधे👣Զเधे🙏🏻💦🍁
*☘🌷!! हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे !!💖*
      *☘💞हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे !!🌹💐*
 
÷सदैव जपिए एवँ प्रसन्न रहिए÷

Post a Comment

0 Comments