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सकल कला करि कोटि बिधि *हारेउ* सेन समेत।
चली न अचल समाधि सिव कोपेउ हृदयनिकेत।।
देखि रसाल बिटप बर साखा। तेहि पर चढ़ेउ मदन मन माखा।।
सुमन चाप निज सर संधाने। अति रिस कोपि श्रवन लगि ताने।।
छाड़े बिषम बिसिख उर लागे। *छूटि समाधि संभु तब जागे*।।
यहां गोस्वामी जी पहले तो कहते हैं कि सभी के हृदय में निवास करने वाले कामदेव हार गए, शिव जी के समाधि भंग नहीं कर सके...
सकल कला करि कोटि बिधि *हारेउ* सेन समेत।
और आगे कहते हैं कि कामदेव के प्रहार से शंभु जाग गए, उनके मन में क्षोभ हुआ तो क्या ये कामदेव की जीत नहीं है?
और जब पहले सारी सेनाओं के साथ हार गए तो फिर उन्होंने अकेले ही समाधि भंग कैसे कर दिए??
इसी रहस्य पर से पर्दा उठाने के लिए गोस्वामी जी शिव जी के समाधि छूटने पर उनके लिए शंभु शब्द का प्रयोग करते हैं...
छूटि समाधि *संभु* तब जागे।
शिव जी के हृदय में श्रीराम जी निवास करते हैं इसलिए जहां राम हैं वहां काम की नहीं चली...चलि न अचल समाधि *सिव*...।
परन्तु शिव जी के हृदयस्थ श्रीराम जी ने विचार किया कि यदि इनकी समाधि भंग नहीं हुई, ये जागृत नहीं हुए तो देवताओं का कल्याण कैसे होगा?
इसलिए शिव को अब शंभु की ओर ले जाना आवश्यक है,
केवल कल्याण स्वरूप रहने से स्वयं के हित हो सकता है पर संसार के हित के लिए, परहित के लिए शंभु अर्थात् जिससे संसार का कल्याण होगा वही करना आवश्यक है।
अतः.......
छूटि समाधि *संभु* तब जागे।
अर्थात् शिव जी के समाधि छूटने में काम की नहीं बल्कि राम की भूमिका है।
राम जी चाहते हैं कि उनकी समाधि भंग हो,
राम जी चाहते हैं कि वे पार्वती जी से विवाह करें,
राम जी चाहते हैं कि तारकासुर का संहार हो
और देवताओं सहित संसार का कल्याण हो।
और....
*रामजी चाहें वही तो होना है*
और चाहे शिव जी हों या हम सभी,
*आदमी खिलौना है*
(राम सूत्रधर अंतरजामी)
सीताराम जय सीताराम......... सीताराम जय सीताराम
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