आज के विचार
( वैदेही की आत्मकथा - भाग 83 )
***"वैदेही की आत्मकथा" गतांक से आगे-
मैं वैदेही !
हम लोग ऋषि अगस्ति के आश्रम पर पहुँच गए थे ......
मुनि सुतीछन नें हमसे कहा ............मैं गुरुदेव को आपके आगमन की सूचना देकर आता हूँ .............वो गए ।
ओह ! देवराज इन्द्र यहाँ पर भी आगये ?
मेरे श्रीराम नें मुस्कुराते हुये आकाश की ओर देखा था......अगस्ति ऋषि के आश्रम से निकल रहे थे इन्द्र........एहरावत हाथी में बैठ कर ।
हम जहाँ जाते हैं ..........ये उसी आश्रम में पहले पहुँचे होते हैं .........ऐसा क्यों नाथ ! मैने अपनें श्रीराम से कौतुक वश पूछा था ।
सीते ! राक्षसों के आतंक से मानव ही नही देवता भी त्रस्त हैं..........
इतना ही कहा था मेरे श्रीराम नें .......मैं समझ गयी थी ........कि देवराज इन्द्र इस बात को अब समझ चुके हैं कि मेरे श्रीराम ही इस पृथ्वी को राक्षसों से विहीन करेंगें ......इसलिये वो ऋषियों के पास आकर हमारे बारे में जानकारी दे रहे थे ।
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गुरुदेव ! मैं सुतीछन आपका शिष्य ...............
वृद्ध हो गए हैं महामुनि अगस्ति .......पर तेज़ ऐसा की युवा ऋषि भी इनके आगे ओजहीन लगे ।
तुम ? तुम कैसे आये ? क्या मेरे परमपुरुष को तुम अपनें साथ लाये हो ?
तुमनें वचन दिया था सुतीछन ! कि परात्परपुरुष और उनकी शक्ति को बिना लिए मैं आऊंगा नही ..............क्या तुम ?
अगस्ति ऋषि पूछ रहे थे अपनें शिष्य से ।
मुस्कुराते हुये चरण पकड़े ही रहे सुतीछन ।
गुरुदेव ! आपका शिष्य हूँ मैं.......वचन का पालन करना आपसे ही सीखा है.......मैं ले आया हूँ.......बाहर खड़े हैं परात्परपुरुष श्रीराम ।
क्या ! !
आनन्द के मारे उछल पड़े थे ऋषि अगस्ति ..........
और अपनें प्रिय शिष्य को हृदय से लगा लिया था ................
धन्य हो तुम ! सुतीछन ! धन्य हो तुम .........................
आनन्द से भर गए थे ..............कहाँ हैं ? बताओ सुतीछन ! कहाँ हैं श्रीराम !
बाहर की ओर दौड़े थे महामुनि अगस्ति ......................
पर जैसे ही मेरे श्रीराम नें महामुनि को देखा ......धनुष को बगल में रखकर प्रणाम किया था .......हम सबनें प्रणाम किया ।
हे श्रीराम !
हृदय से लगाते हुये ............समाधि का अनुभव करनें लगे थे महामुनि अगस्ति ।
मैनें भी उनको प्रणाम किया ......तो महामुनि नें मुझे ही प्रणाम किया ।
आप आद्यशक्ति हो इन परम पुरुष की .......हे जनकजा !
आपके बिना इन से भी कुछ नही हो सकता ..........आप शक्ति हो ....ब्रह्म की शक्ति ।.....मैं ये सब सुनकर संकोच से धरती में गढ़ी जा रही थी ।
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अपनें आश्रम में बैठाया हम को .....अर्घ्य देकर हमारा आदर किया ।
हे राम ! मुझे बहुत आनन्द आया ये सुनकर कि तुमनें राक्षसों से विहीन पृथ्वी करनें की प्रतिज्ञा की है .................।
रावण मुख्य है समस्त राक्षसों में .........वही समस्त राक्षसों का मुखिया बन बैठा है ........महामुनि बोलते जा रहे थे ।
आज का नही है रावण ................रावण नें 32 चतुर्युगी राज्य किया है .........उसनें तप किया था ..........विधाता ब्रह्मा का तप ........
उस समय हे राम ! तीनों लोकों में हाहाकार मच गया ।
लोगों नें यही सोचा - वैसे ही ये रावण इतना आतंक फैला रहा है .....विधाता से वर और प्राप्त कर लिया तो ? ......मैं भी पहुँच गया था तब , जब विधाता वर देनें के लिये रावण के पास में गए थे ।
वर जो मांगा रावण ने ....उससे मुझे बड़ी प्रसन्नता हुयी...क्यों की रावण नें वर माँगा था - कि मानव को छोड़कर मैं किसी के हाथों नही मरुँ !
विधाता नें वर दे दिया .......।
मै उसी समय समझ गया था कि परात्परपुरुष अवतार लेंगें ........मानव के रूप में ...........।
हे राम ! तबसे मैं इस क्षेत्र में आकर निवास कर रहा हूँ ..............कि तुम आओगे, इसलिये .....और आज तुमनें मेरी साध पूरी कर दी ।
महामुनि बोले जा रहे थे ........।
हे राम ! अभी देवराज इंद्र आकर गए .................वो मुझे धनुष देकर गए हैं ................कह रहे थे ये धनुष मैं आपको दूँ ।
मेरे श्रीराम के हाथों में महामुनि नें वह इन्द्र प्रदत्त धनुष दे दिया था ।
पर इस धनुष की विशेषता ? मेरे श्रीराम नें पूछा ।
इन्द्र नें स्वयं विश्वकर्मा के द्वारा रावण वध के लिये ये धनुष बनवाया है.............बहुत समय लगे ......हजारों वर्ष लगे हैं ।
हे राम ! इस धनुष से तुम रावण का वध करोगे ........क्यों की रावण ही है मुख्य .........उसका वध हो जाए तो निशाचर अपनें आप शक्तिहीन हो जायेंगें......फिर वो सब समाप्त ही हैं ।
महामुनि नें मेरे श्रीराम को ये भी बताया कि .........आप यहीं पास में "पंचवटी" स्थान है ...........हे राम ! वहीं आप रहिये ........और आपका कार्य वही से सिद्ध होगा ।
मेरे श्रीराम नें महामुनि के चरणों में प्रणाम किया ...........
कन्दमूल फल भेंट किये महामुनि नें ।
वैदेही का ध्यान रखना हे राम ! ..........मेरी और देखकर बोले थे ।
फिर हँसे ...........ये तो आद्यशक्ति हैं.......यही तुम्हारा ध्यान रखेंगीं ।
हम लोग आगे पंचवटी के लिये चल पड़े थे ...............गोदावरी के किनारे है ये पंचवटी ।
शेष चरित्र कल ..........
Harisharan
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