साधू सेवा आवश्यक क्यों ...

आज  के  विचार

( साधू सेवा आवश्यक क्यों ...)

सन्त न होते जगत में तो जल जाता संसार ....
( श्रीकबीर दास )

जनकपुर में  इन दिनों भक्तमाल की कथा कह रहा हूँ .........बड़ा ही अद्भुत और प्रेमपूर्ण ग्रन्थ है  भक्तमाल  ।

भक्तमाल में  साधू सेवा पर ज्यादा प्रकाश क्यों डाला गया है ?

ये प्रश्न यहाँ के एक साधक का था  ।

हाँ ..........पक्षियों को नित दाना डालो ............आज एक आयेंगें  तो कल दो आयेंगें .......ऐसे  धीरे धीरे  करके  कुछ ही दिन में आप पाओगे की  आपका आँगन पक्षियों से भर जाएगा .....।

पर याद रहे ........इसका  अद्भुत फल  तो उस समय मिलेगा .....कि एक दिन आकाश में उड़ते हुये  कोई हँस आएगा .........और आपके यहाँ दाना चुगेगा ......तब  तुम धन्य हो जाओगे  ।

मैने सहजता में ये बात कही थी  ।

पर लॉजिक क्या है  इस साधू सेवा का  ?   

साधू की सेवा     ?   

ये साधक  नया नया था...इसलिये  लॉजिक बताना आवश्यक था इसे ।

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इस कलियुग में ....घोर कलियुग में .......क्या सच्चे साधू हैं  ? 

ये प्रश्न  साधक का तो नही  था  .....पर प्रश्न तो था  ।

और उत्तर देना ही चाहिये .....क्यों की प्रश्न युवा पीढ़ी का है ।

मुझे तो नही लगता ........कि  कोई सच्चा साधू  भी है  आज के इस समय में ......उसनें कई नाम गिनाये भी ......जो साधू भेष में असाधु थे ।

एक प्रश्न ये भी था ......इस प्रश्न का उल्लेख करना भी ठीक रहेगा ।

पर ये प्रश्न  उच्चकोटि के साधक का था ......जो अच्छी  स्थिति को पा चुके थे ............।

साधना करते हुए ............हमारा शरीर छूट गया ......साधना पूर्ण नही हुयी थी ..........कुछ दिन और अगर हमारा शरीर रहता .....तो साधना पूरी हो जाती ......पर  हमारे शरीर नें हमारा साथ छोड़ दिया  ।

अब  दूसरा शरीर हमें मिला .............पर हमारा मार्ग दर्शन करनें वाला  उस समय हमें कौन मिलेगा  ?

अभी ही  कलियुग आगया है ..........अच्छे साधू मिलनें कठिन हो गए हैं ......पर     हमारा जब दूसरा जन्म होगा ......तब तो  हो सकता है ......कोई भी न हो ......उस घोर कलिकाल में हमारी साधना को कौन आगे बढ़ानें की  प्रेरणा देगा  ........आप इसके बारे में हमें कुछ बताइये ।

ये प्रश्न था  एक  वयोवृद्ध  का....जो इस समय  दिल्ली में निवास करते हैं....और यदा कदा  मुझ से वृन्दावन में भी आकर मिलते रहते हैं ।

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एक बात याद रखिये ....................

आग लगी आकाश में झर झर गिरे अंगार
सन्त न होते जगत में  तो जल जाता संसार ।

ये दोहा  सन्त श्री कबीर दास जी महाराज का है .....और शत प्रतिशत सत्य है .........।

आपको क्या लगता है ..........नकारात्मकता से भरे लोगों से ये जगत चल रहा है  ?  

राग द्वेष  से भरे हुए लोगों के कारण ये संसार चल रहा है  ?

अरे !     विशुद्ध  सकारात्मकता और प्रेमपूर्ण हृदय वाले लोग अगर न हों .......तो आपको लगता है  ये संसार रह  पाता ?   

विचार कीजिये........मैने उन्हें  इंटरनेट के माध्यम से समझाया था।

हाँ .......मै मानता हूँ ............कि संख्या कम होगी ..........इस समय  ऐसे प्रेमपूर्ण हृदय वाले साधुओं  की ..........पर आप ये नही कह सकते  कि...... हैं ही नहीं ........अगर नही होते ना .......तो याद रखिये  ये जगत खतम हो जाता .............निस्वार्थ प्रेम  वाले  मानव अगर नही रहेंगें  इस जगत में ......तो  ये जगत रहेगा ही नही  ।

मैने कहा .....अब आप सोच रहे होंगें.....हमें क्यों नही मिलते ऐसे लोग  ?

तो  प्रभु !   मै तो इतना ही कहूँगा कि आपनें खोजा ही नही होगा  ।

मै कहता हूँ .............आज के समय में  मैने ऐसे ऐसे महात्माओं के दर्शन किये हैं ...........जिनके सामनें  ईश्वर साकार होकर  बातें करता है .....आप विश्वास करेंगें  ?     

मैने ऐसे ऐसे सन्तों के दर्शन किये हैं ...........जो  रामकृष्ण परमहंस की तरह  सिद्ध हैं.....और उनके हाथों से ईश्वर भोग को स्वीकार करते हैं ।

खोजनें पर ही  वस्तु मिलती है .......ये बात आप मानते हैं  या नही ?

मैने उनसे पूछा  ।

उन्होंने मेरी बात स्वीकार की .........।

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ईश्वर  की व्यवस्था  अधूरी नही है ........पूर्ण है  ।

आपको पता है ........चाहे कितना भी घोर कलियुग आजाये .......पर हर गाँव में ...............एक  ऐसी चेतना रहती ही है ......जो उस  परमसत्ता से संचालित होती है ................और उस चेतना का यही कार्य है  कि ....जो  अच्छे अच्छे  सकारात्मक प्रेमपूर्ण हृदय वाले हैं .....उनको  इस कलियुग के ताप से बचाना......और उन्हें सही दिशा देना  ।

ऐसी चेतना हर गाँव में होती ही है ..........उस  दिव्य चेतना को हम लोग साधू कहते हैं .......या सन्त कहते हैं  ।

इनका कार्य होता है ...............जो सच्चे हृदय के लोग हैं .....उनकी  देख रेख करना ............उनके हृदय में    और  सकारात्मक भाव को भरना .......और    सबके प्रति  अच्छी सोच को विकसित करके ..........उस परमसत्ता की ओर उन्हें  बढ़ाना   ।

ऐसे लोग    इसी कार्य के लिए आस्तित्व  द्वारा निर्धारित होते हैं ।

इनका और कोई कार्य होता नही है ....................

ऐसे लोग  फिर शरीर छोड़ दें तो  ?   

कोई बात नही ......आस्तित्व  दूसरों को भेज देता है ..........उसके पास कमी तो है नही ऐसे सन्तों और साधुओं की ...........मैने  कहा  ।

अब बताइये .............ऐसे साधुओं की सेवा अगर आपके द्वारा होती है .....तो ये अच्छा है  या बुरा है  ?

ऐसे  निस्वार्थ जन की सेवा आपके द्वारा होती है .....तो आस्तित्व आप पर प्रसन्न होगा .....या  नाराज होगा  .....?   विचार कीजिये  ।

आपको नही लगता .............ऐसे  साधुओं की सेवा करना ही आपका  परम धर्म है .....!

नही नही .....आप जिनका नाम लेकर मुझे कह रहे हैं ...........कि आजकल के ये साधू ............तो मित्र !  मै उन्हें साधू मान ही नही रहा ।

साधू तो   न अपनी ऊर्जा आश्रम बनानें में व्यय करेगा ......न  हॉस्पिटल खोलनें में ........न कोई और सामाजिक कार्यों में उलझेगा .....।

उसका काम तो बस इतना ही होगा .......सकारात्मकता  ऊर्जा को  इस जगत के आबोहवा में  फैलाना ..........निस्वार्थ  प्रेम द्वारा  सबको  शान्ति की राह बताना ..........।

अब ऐसे  व्यक्ति की सेवा  आपको अगर मिल जाए ......( वैसे तो मिलनी मुश्किल है ....क्यों की   ऐसे लोग सेवा लेते भी तो नही हैं )

तो  आप धन्य हैं .......आपका  धन या  तन से की गयी सेवा  आपको वो दे सकती है ......जिसके बारे में आपनें सोचा भी नही होगा ।

अब आप कहेंगें कि   मै साधू सेवा क्यों करूँ   ?  

मेरी बात समझ तो गए ना  आप  ?     मैने उनसे पूछा ।

हाँ ...यही है सच्ची सेवा.....जो समाज में  निस्वार्थ प्रेम को फैला रहा है ...उसकी सेवा .......।

उन्होंने मेरी बात स्वीकार की.........साधू की सेवा करनी ही चाहिये ।

आप क्या कहोगे  ?   साधकों  !

Harisharan

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