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‘हरि’ की महिमा


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एक बार हरि बाबा यात्रा करते हुए कहीं जा रहे थे। रास्ते में एक किसान पर उनकी नजर पड़ी। 
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वह हल चला रहा था। बाबा तो बाबा होते हैं भाई ! आ गयी रहमत उस पर। 
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किसान के पास गये और बोलेः “भाई ! दोपहर हो गयी है, आओ अब थोड़ी देर हरि नाम कीर्तन करते हैं।”
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किसान बोलाः “बाबा ! आपका रास्ता अलग है, मेरा अलग है। 
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आप तो रोटी माँगकर खा लोगे। मैं तो बाल बच्चे वाला हूँ। यह हल छोड़कर तुम्हारे साथ कीर्तन करूँगा तो मेरा क्या होगा ?”
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“देख भैया ! तेरा हल मैं चलाता हूँ, तू थोड़ी देर हरिनाम ले ले। हरि ॐ…. हरि ॐ….. प्यारे ॐ…. हरि ॐ… ऐसा कर ले।”
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“बाबा ! आप अपने रास्ते जाओ, काहे को मुझे परेशान कर रहे हो ?”
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“अरे बेटा ! परेशानी तो तब है जब हरि से विमुख होते हैं।”
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ऐसा कह के बाबा ने बैल की रस्सी एक हाथ में ले ली और दूसरे हाथ से हल का डंडा पकड़ा और.. 
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उसको बोलेः “तू यहाँ हरि ॐ….. हरे राम….. हरे राम…. नाम ले। मैं तेरा हल चलाता हूँ।”
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बाबा का ऐसा जादू छा गया कि वह बोलाः “अच्छा बाबा ! तो क्या बोलना है ?”
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बोलेः “हरि ॐ…. हरि ॐ… हे हरि… हरि… जैसा भी आये कहो। हरि… हरि…. यह दो अक्षर का नाम लेगा तो अभी-अभी तेरा मंगल हो जायेगा। 
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क्योंकि जो पाप हर ले वह है हरि, हर समय जो साथ-सहकार दे वह है हरि, हर दिल में जो बसा है वह है हरि।
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हरति पातकानि दुःखानि शोकानि इति श्रीहरि।
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बेटे ! हरि की महिमा अपरम्पार है ! तू महिमा सुन – न सुन केवल हरि…. हरि…. बोल।”
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बाबा ने उनके सामने थोड़ी देर तो हरि का नाम लिया। फिर तो वह निर्दोष था, ज्यादा बेईमान, कपटी, छली नहीं था। 
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उसके पाप तो हरि ने हर लिये और वह जोर-जोर से ‘हरि ॐ… हरि  ॐ…’ कहकर झूमने लगा। 
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उसकी आँखों से आँसू बहने लगे। नृत्य के साथ वह ऐसा पावन हुआ कि उसकी बुद्धि में बुद्धिदाता का अनोखा दिव्य प्रभाव आया। 
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उस किसान ने बाबा के हाथ से बैलों की रस्सी ले ली और उनके चरण पकड़कर फूट-फूट के रोने लगाः “बाबा ! बाबा !….”
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बोलेः “क्या है बेटा ?”
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“बाबा ! बाबा !…”
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ऐसा तो वह प्यार-प्यार में बावरा हो गया कि आसपास के लोग दौड़-दौड़कर आये और बोलेः “क्या बात है ? पागल हो गया है ?”
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बोलाः “हाँ, मैं पागल हो गया हूँ। गल को मैंने पा लिया है कि कैसे हरि को बुलाकर अपने हृदय में प्रकट किया जाय। 
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मैंने तो बाबा का पहले अपमान कर दिया था लेकिन बाबा ने अपमान करने वाले को भी सम्मानित बना दिया। बाबा ! बाबा !….”
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उसका चेहरा देखकर दूसरे किसानों के चेहरे भी खिल उठे।
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“अरे, मेरी तरफ देखते क्या हो प्यारे ! बोलो हरि ॐ… हरि ॐ….”
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वे किसान भी बोलने लगेः ! “हरि ॐ… हरि ॐ…” सारा टोला “हरि ॐ….. हरि ॐ…” ऐसा करते-करते सबको ऐसा रंग लगा कि.. 
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हरि के नाम से आसपास के सारे किसान तो इकट्ठे हुए ही, साथ ही गाँव में जो आज तक अतिवृष्टि, अनावृष्टि, झगड़े, मार-काट, शराब, यह-वह होता था, वे सारे ऐब चले गये, सारी समस्यायें चली गयीं। हरिपुर ग्राम बन गया।
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संत कबीर जी बोलते हैं- साहेब है मेरो रंगरेज। वह साहेब मेरा हरि है जो हर दिल में रहता है। 
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उस परमात्मा के हजार नामों में से एक नाम है ‘हरि’। जो पाप, दुःख हर लेता है, अपनी कृपा भर देता है.. 
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हरदम रहता है, मरने के बाद भी हमारा साथ नहीं छोड़ता उस भगवान का नाम हरि है। तो भगवान के नाम में अदभुत शक्ति है।

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 ((((((( जय जय श्री राधे )))))))
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