वैदेही की आत्मकथा - भाग 8

आज  के  विचार

( वैदेही की आत्मकथा - भाग 8 )

हिय हरषहिं बरसहिं सुमन ...
( रामचरितमानस )

****** कल से आगे का प्रसंग -

श्री राघवेन्द्र के जनकपुर में  आये हुए  आज दो दिन होनें को आये ........

मेरी सखियाँ  बहुत चतुर थीं............जहाँ  रुके हैं  श्री राम  वहीं पर  कुछ सेविकाएँ और सेवक जो थे....उन्हीं से  जानकारी ले लेती थीं  ।

सिया जू !  पता है  आज राजकुमार  नगर भ्रमण के लिए निकल रहे हैं !

मेरी प्रिय सखी   चारुशीला नें  मुझे बताया था .........ये सखी  मेरी  चतुर है  और बुद्धिमान भी है   ।

उसी नें मुझे बताया था  ..........कि श्री राम  नगर भ्रमण के लिए निकल रहे हैं  ।

कैसे  हैं   ?     मै इतना ही पूछ पाई   ।

देख लेना .................चारुशीला नें  मटकते हुए कहा  ।

सुन्दर हैं  ?  

      हूं ...........पर आपसे  कम ही हैं   ...........ये बात  भी  चारुशीला नें ही कही थी   ।

देखो !   किशोरी जी !......नगर भ्रमण में जब   राजकुमार निकलेंगें ना ...तब   हम  सभी सखियाँ   उनको देखनें के लिए जायेंगी .........

मै नही जाऊँगी !..................ये बात मैने इसलिये कही थी  ताकि मेरी सखियाँ ये कहें   कि  अरे ! आप नही जाओगी तो कैसे होगा ?

पर  दुष्ट हैं मेरी सखियाँ .........कहनें लगीं ..............आप कहती  तब भी हम आपको  न ले  जाते  ..............

फिर  हमारी किशोरी जी कहाँ देखेंगीं श्री राम को ?     ये बात  चन्द्रकला नें पूछा था .................।

देखो !    हमारी किशोरी जी  श्री राम को देखेंगी    पुष्पवाटिका में  ।

क्या वो आयेंगें  पुष्प वाटिका  ?        ये प्रश्न  अब मैनें किया था  ।

हाँ आयेंगें ..........क्यों की  मैने सुना था   ...........कि सुबह पूजा के लिए  गुरु विश्वामित्र जी को  पुष्प चाहिए ............अपनें गुरु की सेवा के लिए  पुष्प  तो वाटिका में ही मिलेंगें ........तब आप  देख लेना  ।

पर सखी !   मुझे  नगर की हर बात बताना ...........कि  उन्हें  देखकर  लोग क्या कह रहे हैं ...............और  जनकपुर को देखकर  राजकुमार  क्या कह रहे हैं   ?         सीता जी नें कहा  ।

वो जिस मार्ग से गुजरेंगें   हम सब उन मार्ग में पड़नें वाले  झरोखे में    खड़ी रहेंगीं ............अच्छे से दर्शन हो जायेंगें....फिर  आपको   उनके बारे में  विस्तार से बता भी  देंगीं  ।

मेरी सखी पद्मा नें ये बात कही थी  ।

मैने  इतना ही कहा ...............ठीक है   ।

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दो राजकुमार आ रहे हैं .................बहुत सुन्दर है ..............सुन्दर कहना भी कम लग रहा है ..........

ये सारी बातें मुझे  चारुशीला नें बाद में बताया था   ।

नगर को बड़े ध्यान से देख रहे थे  वे दोनों .............कितना सजा धजा नगर है ना ये लखन ?      छोटे भाई से  बीच बीच में पूछ भी रहे थे ।

छोटे छोटे बालक   बड़े राजकुमार   के पास में गए थे 

......आप को हम नगर घुमा दें .......?      

यहाँ  के महल को देखेंगें आप ?  

यहाँ पिनाक धनुष भी है.......आप जैसे क्षत्रिय ही  उसे देख सकते हैं ।

बालकों नें  हाथ पकड़ ही लिया था ........बड़े राजकुमार    का  ।

जवान  लोग थोड़े दूर खड़े  हैं ........और वृद्ध लोग   उनसे भी दूर हैं  ...पर सबकी नजर  राजकुमारों पर ही थी  ।

भीड़ लग गयी थी जनकपुर में .................

सब लोग दौड़ रहे थे  उन अयोध्या के राजकुमारों  को देखनें ............

जो जहाँ था  वही से दौड़ा था ................

कोई कोई तो ऐसे भाग रहे थे ......जैसे  कोई खजाना लुट रहा हो ।

इतनें सुन्दर राजकुमार !        

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मेरी   तीन सखियाँ  एक झरोखे में जाकर खड़ी हो गयी थीं .........

चारुशीला,  पद्मा और चन्द्रकला..........वहाँ पहले से ही कई युवतियाँ थीं .......जो  आरहे  राजकुमार  को देखनें के लिए  उत्सुक थीं  ।

बड़ा हल्ला हो रहा है   कि  कोई राजकुमार आरहे हैं  ?      

अब  कुछ तो बोलना ही था ..............इसलिये मेरी एक सखी  वहाँ  खड़ी अन्य युवतियों से पूछ रही थीं   ।

हाँ  सुना  है .....बड़े सुन्दर हैं .........दो भाई हैं ............बड़े भाई सांवले रँग के हैं .......और दूसरे भाई गौर वर्ण के हैं   ।

तभी ...........अरे ! देखो !  देखो !      वो आगये ............वो आगये  ।

  सब सखियाँ  देखनें लगीं थीं ............

एक सखी  तो  ऊपर से  नीचे देखनें में इतनी तन्मय हो गई कि गिर ही पड़ती ...............पर    अन्य युवतियों नें उसे सम्भाला ।

ओह !       ये तो यहाँ से दिखाई दे नही रहे ...............

क्यों की ऊपर से तो    श्री राम का शीश  ही दिखाई दे रहा था  ।

अब क्या करें ?         सारी सखियां  चिंतित हो उठी थीं .........

चलो ! नीचे  चलती हैं .............पर दूसरी सखी नें कहा .......जब तक हम नीचे जायेंगी ......तब तक  तो  ये  राजकुमार आगे बढ़ जायेंगें ........!

तभी  !        एक  युवती  जो मालिन थी ...........उसी के घर के  छज्जे में हम लोग खड़ी थीं ............वो फूलों की  टोकरी लेकर जा रही थी .....बाजार ............फूल बेचनें   ।

हम सब सखियाँ खुश  हो गयीं .............

नही ......नही ......मै नही दूंगी  ये फूल ...........वो मालिन  चिल्लाई  ।

अरी चुप !     तू जितना कमाएगी  ...उससे कई गुना ज्यादा हम देंगी  इसका मोल ..........

बस फिर क्या था  मालिन खुश हो गई ..............चार पाँच डलिया फूलों की थीं उसके पास .............हम  नें सब ले लीं   .........

और    उन राजकुमारों के ऊपर डालनें लगीं.......ये  उपाय था  सिया जू !     हम   लोगों का ....ताकि हम  उन राजकुमारो को देख सकें  ।

मेरी सखियाँ मुझे बता रही थीं ............हम लोगों नें  फूल गिरानें  शुरू किये ..........तो  उन दो राजकुमारों नें ऊपर की ओर देखा ........बस हमेँ तो उनके दर्शन हो गए ...........इतनें सुन्दर  कि  सुन्दरता की सीमा  !

उनके वो नशीले नयन ...........कटीले नयन ..............जो देखे  वो मर ही जाए ......ऐसे सुन्दर  ......सिया जू ! 

हम फूल बरसाती  जा रही थीं .....................वो  हमारी और देखते जाते थे ....और मुस्कुराते जाते  ।

सिया जू !  क्या कहें   उनकी हँसी  तो  और मादक थी  ।

 
तभी उस घर की दो तीन  बूढी माताएं  आगयी ...................

ये कौन हैं .......?      बड़े सुन्दर राजकुमार लग रहे हैं  ? 

एक बूढी माता नें दूसरी से पूछा ..............।

ये बाबा विश्वामित्र के साथ आये हैं .................राम नाम है इन बड़े का ....और लखन है  छोटे का .........राजा दशरथ के पुत्र हैं ये  दोनों ।

अरी  हमारी तो प्रार्थना है   विधाता से .....कि  इनके ही  साथ  हमारी जानकी का विवाह हो जाए  ।

हमारे सबरे पुण्य इनको ही मिल जाएँ .....................

ये बताते हुए  मेरी सखी पद्मा कितनी हँस रही थी ...........

सिया जू !       तब दूसरी माता नें कहा .......पर पिनाक   ये तोड़ पायेंगें ?          इतनें कोमल हैं ये राजकुमार .......और पिनाक धनुष तो बड़ा ही कठोर और भारी है .......ये नही तोड़ पायेंगें ..........

तब दूसरी कहती ..............क्या पता इनको देखकर  हमारे  राजा जनक अपनी प्रतिज्ञा ही तोड़ दें ...........!   

नही ...........हमारे राजा,  बात के तो पक्के हैं ..........वो अपनी प्रतिज्ञा नही तोड़ेंगें ..........

ये सुनकर  पहली वाली  माता चुप हो जाती ...........और बाद में यही कहती ...........हम ही क्या  सारा जनकपुर नगर ही यह चाहेगा  कि   इनके साथ ही हमारी  लाड़ली जानकी का विवाह हो .....।

सिया जू !  तभी हमनें देखा ..........वो अब जा रहे हैं ............तेज़ चाल से चलनें लगे थे .........

हमनें ये सब देखा ..........तो अंतिम  फूलों का एक गुच्छा  फेंका उन बड़े राजकुमार के ऊपर ........और  ये कहते हुए फेंका .....

"फूल,  पुष्प वाटिका में मिलते हैं.........कल वहीं आजाना ......

और हाँ....अहंकार मत करना....हमारी राजकुमारी तुमसे भी सुन्दर है "

ऐसा क्यों कहा !    मैने  उस  चारुशीला की बच्ची को डाँटा .......तू ऐसे कुछ भी कैसे बोल देती है ...........

अरी ! मेरी प्यारी  किशोरी जू  !      कुछ नही होगा ..............उन बड़े राजकुमार नें   मेरी ओर देखा ........और मुस्कुरा दिए थे  ......चारु शिला नें  हँसते हुए  ये बात कही  ।

सच !   चारुशीले !     वो  कैसे लग रहे थे  !     मै पूछ रही थी .......चारुशीला से .................

कल मिल लेना ..................और हाँ .....कल शरद पूर्णिमा भी है ......

एक तरफ  आकाश का   चन्द्र  और दूसरी तरफ   धरती में उतरा  ये श्री राम चन्द्र  !..........

खूब हँसी मेरी सखियाँ ............मैने सोनें का नाटक करके  आँखें बन्द कर ली थी  ........।

पर मुझे नींद कहा आएगी .........नही आई ......

मै  तो  कल की प्रतीक्षा में थी ..............पुष्प वाटिका  की ।

शेष प्रसंग कल ...........

Harisharan

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