सौन्दर्यवान परमात्मा


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एक राजकुमारी थी। वह सुन्दर, संयमी एवं सदाचारी थी तथा सदग्रन्थों का पठन भी करती थी।
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उस राजकुमारी की निजी सेवा में एक विधवा दासी रखी गयी थी।
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उस दासी के साथ राजकुमारी दासी जैसा नहीं बल्कि वृद्धा माँ जैसा व्यवहार करती थी।
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एक दिन किसी कारणवशात् उस दासी का 20-22 साल का युवान पुत्र राजमहल में अपनी माँ के पास आया।
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वहाँ उसने राजकुमारी को भी देखा। राजकुमारी भी करीब 18-21 साल की थी। सुन्दरता तो मानों, उसमें कूट-कूट कर भरी थी।
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राजकुमारी का ऐसा सौन्दर्य देखकर दासीपुत्र अत्यंत मोहित हो गया। वह कामपीड़ित होकर वापस लौटा।
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जब दासी अपने घर गयी तो देखा कि अपना पुत्र मुँह लटकाये बैठा है। दासी के बहुत पूछने पर लड़का बोलाः "मेरी शादी तुम उस राजकुमारी के साथ करवा दो।
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दासीः तेरी मति तो नहीं मारी गयी ?  कहाँ तू विधवा दासी का पुत्र और कहाँ वह राजकुमारी ? राजा को पता चलेगा तो तुझे फाँसी पर लटका देंगे।
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लड़काः वह सब मैं नहीं जानता। जब तक मेरी शादी राजकुमारी के साथ नहीं होगी, तब तक मैं अन्न का एक दाना भी खाऊँगा।
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उसने कमस खाली। एक दिन... दो दिन... तीन दिन.... ऐसा करते-करते पाँच दिन बीत गये। उसने न कुछ खाया, न कुछ पिया।
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दासी समझाते-समझाते थक गयी। बेचारी का एक ही सहारा था। पति तो जवानी में ही चल बसा था और एक-एक करके दो पुत्र भी मर गये थे। बस, यह ही लड़का था, वह भी ऐसी हठ लेकर बैठ गया।
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समझदार राजकुमारी ने भाँप लिया कि दासी उदास-उदास रहती है। जरूर उसे कोई परेशानी सता रही है।
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राजकुमारी ने दासी से पूछाः "सच बताओ, क्या बात है ? आजकल तुम बड़ी खोयी-खोयी-सी रहती हो ?
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दासीः राजकुमारीजी ! यदि मैं आपको मेरी व्यथा बता दूँ तो आप मुझे और मेरे बेटे को राज्य से बाहर निकलवा देंगी।
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ऐसा कहकर दासी फूट-फूटकर रोने लगी।
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राजकुमारीः मैं तुम्हें वचन देती हूँ। तुम्हें और तुम्हारे बेटे को कोई सजा नहीं दूँगी। अब तो बताओ !
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दासीः आपको देखकर मेरा लड़का अनधिकारी माँग करता है कि शादी करूँगा तो इस सुन्दरी  से ही करूँगा और जब तक शादी नहीं होती तब तक भोजन नहीं करूँगा।
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आज पाँच दिन से उसने खाना-पीना छोड़ रखा है। मैं तो समझा-समझाकर थक गयी।
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राजकुमारीः चिन्ता मत करो। तुम कल उसको मेरे पास भेज देना। मैं उसकी वास्तविक शादी करवा दूँगी।
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लड़का खुश होकर पहुँच गया राजकुमारी से मिलने। राजकुमारी ने उससे कहाः मुझसे शादी करना चाहता है ?
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जी हाँ।
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आखिर किस वजह से ?
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तुम्हारे मोहक सौन्दर्य को देखकर मैं घायल हो गया हूँ।
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अच्छा ! तो तू मेरे सौन्दर्य की वजह से मुझसे शादी करना चाहता है ? यदि मैं तुझे 80-90 प्रतिशत सौन्दर्य दे दूँ तो तुझे तृप्ति होगी ?
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10 प्रतिशत सौन्दर्य मेरे पास रह जायेगा तो तुझे तृप्ति होगी ? 10 प्रतिशत सौन्दर्य मेरे पास रह जायेगा तो तुझे चलेगा न ?
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हाँ, चलेगा।
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ठीक है.... तो कल दोपहर को आ जाना।
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राजकुमारी ने रात को जमालगोटे का जुलाब ले लिया जिससे रात्रि को दो बजे जुलाब के कारण हाजत तीव्र हो गयी।
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पूरे पेट की सफाई करके सारा कचरा बाहर। राजकुमारी ने सुन्दर नक्काशीदार कुण्डे में अपने पेट का वह कचरा डाल दिया।
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कुछ समय बाद उसे फिर से हाजत हुई तो इस बार जरीकाम और मलमल से सुसज्जित कुंडे में राजकुमारी ने कचरा उतार दिया।
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दोनों कुंडों को चारपाई के एक-एक पाये के पास रख दिया। उसके बाद फिर से एक बार जमालघोटे का जुलाब ले लिया।
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तीसरा दस्त तीसरे कुण्डे में किया। बाकी का थोड़ा-बहुत जो बचा हुआ मल था, विष्ठा थी उसे चौथी बार में चौथे कुंडे में निकाल दिया।
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इन दो कुंडों को भी चारपाई के दो पायों के पास में रख दिया।
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एक ही रात जमालगोटे के कारण राजकुमारी का चेहरा उतर गया, शरीर खोखला सा हो गया।
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राजकुमारी की आँखें उतर गयीं, गालों की लाली उड़ गयी, शरीर एकदम कमजोर पड़ गया।
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दूसरे दिन दोपहर को वह लड़का खुश होता हुआ राजमहल में आया और अपनी माँ से पूछने लगाः कहाँ है राजकुमारी जी ?
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दासीः वह सोयी है चारपाई पर।
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राजकुमारी के नजदीक जाने से उसका उतरा हुआ मुँह देखकर दासीपुत्र को आशंका हुई। ठीक से देखा तो चौंक पड़ा और बोलाः
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अरे ! तुम्हें यह क्या हो गया ? तुम्हारा चेहरा इतना फीका क्यों पड़ गया है ? तुम्हारा सौन्दर्य कहाँ चला गया ?
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राजकुमारी ने बहुत धीमी आवाज में कहाः मैंने तुझे कहा था न कि मैं तुझे अपना 90 प्रतिशत सौन्दर्य दूँगी, अतः मैंने सौन्दर्य निकालकर रखा है।
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कहाँ है ? आखिर तो दासीपुत्र था, बुद्धि मोटी थी।
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इस चारपाई के पास चार कुंडे हैं। पहले कुंडे में 50 प्रतिशत, दूसरे में 25 प्रतिशत तीसरे कुंडे में 10 प्रतिशत और चौथे में 5-6 प्रतिशत सौन्दर्य आ चुका है।
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मेरा सौन्दर्य है। रात्रि के दो बजे से सँभालकर कर रखा है।
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दासीपुत्र हैरान हो गया। वह कुछ समझ नहीं पा रहा था।
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राजकुमारी ने दासी पुत्र का विवेक जागृत हो इस प्रकार उसे समझाते हुए कहाः जैसे सुशोभित कुंडे में विष्ठा है ऐसे ही चमड़े से ढँके हुए इस शरीर में यही सब कचरा भरा हुआ है।
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हाड़-मांस के जिस शरीर में तुम्हें सौन्दर्य नज़र आ रहा था, उसे एक जमालगोटा ही नष्ट कर डालता है।
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मल-मूत्र से भरे इस शरीर का जो सौन्दर्य है, वह वास्तविक सौन्दर्य नहीं है लेकिन इस मल-मूत्रादि को भी सौन्दर्य का रूप देने वाला वह परमात्मा ही वास्तव में सबसे सुन्दर है भैया !
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तू उस सौन्दर्यवान परमात्मा को पाने के लिए आगे बढ़। इस शरीर में क्या रखा है ?
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दासीपुत्र की आँखें खुल गयीं। राजकुमारी को गुरु मानकर और माँ को प्रणाम करके वह सच्चे सौन्दर्य की खोज में निकल पड़ा।
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आत्म-अमृत को पीने वाले संतों के द्वार पर रहा और परम सौन्दर्य को प्राप्त करके जीवनमुक्त हो गया।
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कुछ समय बाद वही भूतपूर्व दासी पुत्र घूमता-घामता अपने नगर की ओर आया और सरिता किनारे एक झोंपड़ी बनाकर रहने लगा।
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खराब बातें फैलाना बहुत आसान है किंतु अच्छी बातें, सत्संग की बातें बहुत परिश्रम और सत्य माँग लेती है।
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नगर में कोई हीरो या हीरोइन आती है तो हवा की लहर के साथ समाचार पूरे नगर में फैल जाता है लेकिन एक साधु, एक संत अपने नगर में आये हुए हैं, ऐसे समाचार किसी को जल्दी नहीं मिलते।
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दासीपुत्र में से महापुरुष बने हुए उन संत के बारे में भी शुरुआत में किसी को पता नहीं चला परंतु बाद में धीरे-धीरे बात फैलने लगी।
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बात फैलते-फैलते राजदरबार तक पहुँची कि 'नगर में कोई बड़े महात्मा पधारे हुए हैं। उनकी निगाहों में दिव्य आकर्षण है, उनके दर्शन से लोगों को शांति मिलती है।'
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राजा ने यह बात राजकुमारी से कही। राजा तो अपने राजकाज में ही व्यस्त रहा लेकिन राजकुमारी आध्यात्मिक थी।
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दासी को साथ में लेकर वह महात्मा के दर्शन करने गयी।
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पुष्प-चंदन आदि लेकर राजकुमारी वहाँ पहुँची।
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दासीपुत्र को घर छोड़े 4-5 वर्ष बीत गये थे, वेश बदल गया था, समझ बदल चुकी थी, इस कारण लोग तो उन महात्मा को नहीं जान पाये लेकिन राजकुमारी भी नहीं पहचान पायी।
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जैसे ही राजकुमारी महात्मा को प्रणाम करने गयी कि अचानक वे महात्मा राजकुमारी को पहचान गये।
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जल्दी से नीचे आकर उन्होंने स्वयं राजकुमारी के चरणों में गिरकर दंडवत् प्रणाम किया।
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राजकुमारीः अरे, अरे.... यह आप क्या रहे हैं महाराज !
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देवी ! आप ही मेरी प्रथम गुरु हैं। मैं तो आपके हाड़-मांस के सौन्दर्य के पीछे पड़ा था लेकिन इस हाड़-मांस को भी सौन्दर्य प्रदान करने वाले परम सौन्दर्यवान परमात्मा को पाने की प्रेरणा आप ही ने तो मुझे दी थी।
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इसलिए आप मेरी प्रथम गुरु हैं। जिन्होंने मुझे योगादि सिखाया वे गुरु बाद के। मैं आपका खूब-खूब आभारी हूँ।
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यह सुनकर वह दासी बोल उठीः मेरा बेटा !
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तब राजकुमारी ने कहाः अब यह तुम्हारा बेटा नहीं, परमात्मा का बेटा हो गया है.... परमात्म-स्वरूप हो गया है।
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धन्य हैं वे लोग जो बाह्य रूप से सुन्दर दिखने वाले इस शरीर की वास्तविक स्थिति और नश्वरता का ख्याल करके परम सुन्दर परमात्मा के मार्ग पर चल पड़ते हैं.....
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((((((( जय जय श्री राधे )))))))
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