"वो बाँके बिहारी का भिखारी" - एक कहानी

आज  के  विचार

("वो बाँके बिहारी का भिखारी" - एक कहानी )

श्रीमद्बिहारी चरणं शरणं प्रपध्ये...
( श्रीबिहारी अष्टक )

7 दिन से  मै ,  शाश्वत के साथ  श्रीबाँके बिहारी जी की शयन आरती में जा रहा हूँ  ।

आरती हो गयी है ...........पर    शाश्वत  दो दिन से   बाहर  की जो  चौड़ी सीढ़ी है .........उसी  को देखता है .......फिर इधर उधर नजर दौड़ता है ..........किसी से कुछ पूछनें की कोशिश भी करता है .....पर फिर रुक जाता है   ।

क्या बात है शाश्वत !     किसी को खोज रहे हो क्या  ?  

मै कल से देख रहा हूँ ........आरती हो जाती है   तो तुम बाहर आते हो ......और यहीं  देखते रहते हो ..........तुम्हारी आँखें किसी को खोज रही होती हैं  ............कौन है  वह  ?     मैने पूछा  था शाश्वत से ।

इस जगह को देखो !       कोई यहाँ बैठा रहता था .......याद आया  ?

शाश्वत नें मुझे कहा ..............करो याद  हरिशरण जी !   ।

नही याद  आया .....................अरे !    वो  भिखारी !     जो  एक ही बात कहता था .........."बिहारी जी की जय हो"    बस ।

अब याद आया  आपको हरिशरण जी ?     शाश्वत नें पूछा ।

हाँ ..............याद आया ........................

वो एक ही बात को दोहराता था ................जैसे उसे कुछ  और आता ही नही हो  !      बस  किसी को भी देखा .............यही कहा .......

बिहारी जी की जय हो  ! 

पर   शाश्वत !   तुम उसे क्यों ढूंढ रहे हो  ?

हरिशरण जी !   ये जगह  कुछ खाली नही लग रही  ...?

बहुत पुराना तो नही  था  वो भिखारी ...........पर हाँ  कुछ दिनों से दिखाई नही दिया.......शाश्वत के  गोस्वामी जी  नें बिहारी जी का प्रसाद   "दूध भात"  जो शयन के समय ही भोग लगता है....लाकर दिया था ।

गोस्वामी जी भी चले गए थे ..प्रसाद देकर  .......अब  मै भी बोला  शाश्वत !  चलो अब .........पर इस शाश्वत का ध्यान  उस भिखारी में ही था ............अब भिखारियों को कौन इतना ध्यान देता है ...........।

भारत में  कितनें मन्दिर हैं ....और उन मन्दिरों में बैठनें  वाले भिखारी  बहुत हैं .....अनेक हैं   ............अब कौन क्या है ? कहाँ गया  ?

पर  मेरे कान में भी  वही आवाज गूँज रही है ...........वो  किसी को भी देखता था .......तो माँगता नही था ...........या ये भी नही कहता था ....कि  बाबू जी ! पैसे दे दो ..........नही .........

बस एक ही बात कहना ........बिहारी जी की जय हो  !

और कितनी मधुर आवाज में बोलता था ..........

हम लोग बात करते हुये   अपने अपनें गन्तव्य की ओर  चल दिए थे ......रात जो हो गयी थी   ।

*******************************************************

आप वृन्दावन के,   श्री बाँके बिहारी जी के मन्दिर में अगर गए हैं  तो आपको पता होगा  चार गेट हैं  मन्दिर के .....

पर जो मुख्य  गेट है ......वहाँ  एक  बढ़िया सा  संगमरमर का  चबूतरा बना है .....लोग दर्शन करनें आते हैं ........ वहाँ बैठते हैं  ।

वो  भी यहीं  बैठता था ...........मैला कपड़ा ...........नाक  जली हुयी .....कोई  अच्छा खासा आदमी देखे  तो उसका मिज़ाज ही बिगड़ जाए ।

पर  बिहारी जी  जिसे स्वीकार कर लें ...........दुनिया में किसी की हिम्मत है  कि   उसे अस्वीकार कर सके  ।

वो माला नही जपता था .......ना ही  कोई मन्त्र या  कोई जाप .........कुछ
नही .......बस एक रटन सी लगाता था ......दिल से लगाता था ।

"बिहारी जी की जय हो"  ................

कुएँ पर रखा पत्थर  पानी  खींचनें की रस्सी से बराबर रगड़ता ही रहता है .........और उस पर लकीरें पड़ जाती हैं  ।

इसी प्रकार  कोई एक ही शब्द बारबार  रटा करे  तो उसके  जीभ में या मस्तिष्क में  कोई लकीरें पड़ जाती होंगीं ..........पर ये बताना तो "शरीर शास्त्री" का काम है .........पर ये होता होगा ...........मुझे लगता है  ।

मेरा जन्म  श्री धाम वृन्दावन में ही हुआ  है .......मैनें जब से होश् सम्भाला है ....तब से मै  अपनें आपको  श्री बाँके बिहारी जी में ही पाता हूँ ।

मैने उस भिखारी को करीब दो वर्षों से देखा है.............

कुछ अलग ही  दर्द सा था  उस भिखारी की आवाज में ................

हाँ .......अब ध्यान आरहा है ....................बिहारी जी की जय हो ।

ऐसे काम शाश्वत ही कर सकता है .......नही तो बताओ .........भिखारियों को भी भला कोई याद करता है .......पैसे फेंक दिए ....और चलते बने  आगे   ।

********************************************************

यहाँ  वो भिखारी बैठता था ..............कहाँ गया  ?

सुबह ही सुबह  शाश्वत  मुझे लेकर  बाँके बिहारी जी में चला गया ।

मै सत्संग में था ..............सत्संग के बाद   मै श्री राधा बल्लभ जी जाता हूँ ....फिर बिहारी जी ...........शाश्वत  कल मुझे सत्संग से ही उठा कर ले गया .............मै शाश्वत की बात टाल नही सकता  ।

यहाँ बैठता था  वो ...........अब कहाँ गया  ?

बगल में एक   भिखारी बैठा था  .........शाश्वत नें उससे पूछा था  ।

नही पता मुझे ..........अब  वो भी क्यों बतानें लगा ..........लोग आरहे हैं .....जा रहे हैं .......उसके धंधे का टाइम है...........वो क्यों बताएगा  ?

बाबू !  मै बताती हूँ ..................वो कहाँ गया  ?   

शाश्वत नें  दस रूपये का नोट दिया उस  भिखारिन को ........भिखारिन और खुश हो गयी  ।

शाश्वत भी विचित्र है ........बगल में ही बैठ गया  उसके  ।

लोग शाश्वत को भी भिखारी समझ कर पैसा दे रहे  थे .........पर  उसे कोई फ़र्क ही नही पड़ रहा था ......अपना पैसा वो  उस  भिखारन को दे रहा था  ।

******************************************************

बहुत बड़े घर का था वो ..........शायद जमींदार का बेटा   होगा  ।

बुढ़िया को  हम जैसे साफ सुथरे कपड़े पहनने वाले श्रोता जो आज मिल गए थे.....वो भी बोले जा रही थी ..............हो सकता है कुछ कुछ  अपनी तरफ से भी मिला कर बोल रही हो  ।

बाबू !  पूर्व का था वो ...........अब पूर्व से आप वर्मा या जापान  मत समझ लेना .......पूर्व से कोलकाता भी नही .........बलिया, छपरा बिहार  को  वो पूर्व कह रही थी ..............वहाँ का था  वो  ।

शाश्वत सुन रहा था उसकी बातें .........उस भिखारन बुढ़िया की बातें ।

बिहार के उस भीषण बाढ़ में उसका सारा घर बह गया था .............मकान खेती  पशु  परिवार सब ।

वो भी साथ ही  बह जाता ......पर कुछ स्वयं सेवकों नें उसे बचा लिया ..........गाँव में अब कोई रहा नही ......रिश्तेदार  बाबू !   ऐसे में कहाँ सहायता करते हैं लोग..........तो  जैसे तैसे आगया वृन्दावन  ।

वो भिखारन और भी कुछ बता रही थी...पर   शाश्वत नें ही  उसकी बातें  यहीं  तक सुनीं...और बीच में ही बोल पड़ा ....अभी कहाँ है वो ?

मुझे क्या पता  !   बुढ़िया  को वास्तव में पता भी नही था  ।

ठीक है ................इतना कहकर शाश्वत नें दस रूपये और दिए उस भिखारन को  और आगे बढ़ गया  ।

रुको बाबू !    बुढ़िया  चिल्लाई ..............शाश्वत और मै .........हम दोनों रुके ...........फिर  उस बुढ़िया के पास आये  ।

2 दिन पहले ........................भिखारन ये बात बताना भूल गयी थी .....पैसे मिले  तो याद आगयी  बात  ।

बाबू ! बड़ा खुद्दार था वो भिखारी .......अब बताओ !  भिखारी और खुद्दारी  क्या साथ साथ में चल सकती है  ?

शाश्वत नें  पूछा .......2 दिन पहले क्या हुआ  था  ?

एक सन्यासी वृद्ध आये थे   .........बाँके बिहारी जी के दर्शन करनें के लिए ...........इसी जगह  बैठे थे .......मन्दिर के पट खुलनें वाले थे .....दोपहर का समय था ..........चार बजे से ऊपर ही हो गए थे ।

बाबू !    वो सन्यासी  अपनें साथ बड़े बड़े  करोड़पतियों को लाये थे .....चेले थे सब उनके  ।

अब मन्दिर तो खुले नही हैं ........तो इसी जगह  बैठ गए ....और अपनें शिष्यों को भी  बैठा लिया ............

वो  भी वहीँ बैठा था ........और  हम सब भिखारी भी बैठे  थे  ।

सन्यासी महात्मा जी नें कहना शुरू किया .............लोग संसारी से माँगते हैं .........अरे ! संसारी क्या देगा  ?    वो तो स्वयं भिखारी है ......माँगना है  तो बिहारी जी से माँगो !    फिर देखना   वो इतना देगा   कि   किसी से कुछ माँगनें की जरूरत ही नही पड़ेगी ।

अब बाबू !   हम लोगों को क्या लेना देना   प्रवचन से ......हमें तो भीख माँगना है.......ऐसे प्रवचन देनें वाले तो वृन्दावन में बहुत हैं  ।

पर उस भीखारी नें  ध्यान से सुना था   उन सन्यासी की बात ।

पहली बार  उसनें मुझ से ही  मेरा कटोरा मांगा ................मैने कहा ......तू तो  किसी से कुछ माँगता नही है ......फिर  आज क्यों कटोरा ?

वो इतना ही बोला............कटोरा दे ना  !   

मैने दे दिया ...........वो तो  सीधे मन्दिर में घुस गया .............

मुझे भी आश्चर्य हुआ  कि मन्दिर में ये क्यों जा रहा है....कटोरा लेकर ।

पर  मन्दिर में क्या हुआ .....ये बात मुझे  मेरे साथ वाले भिखारी नें बताई थी ...............।

वो कटोरा लेकर मन्दिर में गया ..........और न हाथ जोड़ा  ,  न प्रणाम किया ......कुछ नही .......बस अपना कटोरा आगे   करके  जोर से चिल्लाया ........."बिहारी जी की जय हो"  ।

उसके  आँखों से अश्रु बह चले थे ............वो बस कटोरा आगे किये  था  वो भी बिहारी जी के सामनें ...............।

फिर ?    आगे क्या हुआ  ?      मैने पूछा  ।

भिखारन नें कहा ............बस  मै नही होती  तो शायद पुजारी लोग उसका कचूमर ही बना देते  ।

उसे  पकड़ लिया भीतर ही पुजारियों नें ......और धक्के मार कर निकाल दिया बाहर.......मैने देखा  उसे लोग पीट रहे हैं .....और वो रोये जा रहा है .....कह रहा है  मेरी क्या गलती है .......तुम लोग भी तो भिखारी हो ..........सब तो भिखारी हैं यहाँ ....सब तो मांगते हैं .........हाँ वो लोग अच्छे कपड़े पहन कर मांगते हैं  मैने  गन्दे कपड़े पहन कर माँग लिया  ।

अब बताओ  बाबू !   ऐसी बड़ी बड़ी बातें करनें का क्या मतलब ।

भाग यहाँ से ..............नही तो तेरी टाँग तोड़ दूँगा ........एक पुजारी नें यहाँ तक कह दिया ............।

वो तो  गुस्सा होगया ............उसे  बहुत ठेस लगी ..............

उसनें ये बात अपनें  स्वाभिमान से जोड़  लिया ............

अब बताओ बाबू !    भिखारियों का क्या  स्वाभिमान ?

और  क्या रूठना ........किससे रूठना ?       

क्या गुस्सा होनें का  या  रूठनें का हमारा अधिकार है   ?

शाश्वत  उसकी बातें  सुनकर आगे   चल दिया .......................

बुढ़िया नें  फिर बुलाया ............

यहीं  कालीदह के पास में ही रहता था  वो ..............बुर्जियाँ हैं ना कालीदह में .....उन्हीं  बुर्जियों में ही रहता था  ।

बुढ़िया नें   उसका पता भी बता दिया   ।

******************************************************

पितृपक्ष की धूप बड़ी तेज़ होती है .........पर  जिद्दी है शाश्वत .......अब  ये खोजनें लगा  था   उस भिखारी को , कालीदह की बुर्जियों में ।

तभी सामनें से .........एक   आदमी आया ..................बढ़िया कपड़े .......बढ़िया  गले में सोनें की चेन............हाथों में घड़ी ....और   आँखों में काला चश्मा ...........।

शाश्वत  नें देखा .........वो  एक बुर्जी में घुसा ...........उस बुर्जी में   कई भिखारी बैठे थे .......कोई ताश के पत्ते खेल रहा था  तो कोई  बीड़ी पी रहा था ..........।

सबनें देखा उसे ..............चौंक गए थे  ।

सबको  दो दो सौ का नोट दिया उसनें  .............और कुछ बोला  फिर बाहर आगया   ।

"बिहारी जी की जय हो"      शाश्वत नें आवाज दी ........वो रुका .......उसनें शाश्वत को देखा ......फिर मुझे  ।

कैसे  ?    कहाँ हो ?   और ये सब  क्या होगया  ?  

कितनें प्रश्न थे ..........शाश्वत के जेहन में भी  और मेरे  में भी  ।

काला चश्मा उतारा उसनें    और  ..............

******************************************************

मुझे पुजारिओं नें  पीटा .........मन्दिर से निकाल दिया  ।

अरे !  मैने  तो जिंदगी में किसी से कुछ नही माँगा था ..........कुछ नही ।

बस उन सन्यासी महात्मा की बात  मेरे दिल में  लग गयी ...........

क्यों न हम भगवान से माँगें  ?      क्या भिखारियों से माँगना !

ये सब भिखारी तो हैं ......सब के सब ..............।

मै उसी समय  मन्दिर में चला गया ..................और पिट पिटाकर बाहर भी आगया ..............पर  मन में बड़ा   दर्द  हुआ  ।

मै पहली बार  तेरे दर पर गया था ......और मुझे  इस तरह का अपमान मिला ..............नही आऊँगा  अब से तेरे पास .............इतना कहकर मै निकल गया  था  ।

पर ...............भिखारी के  आँसू बहनें लगे थे  ।

दिल से उससे माँगो तो वो देता है ..........पक्का देता है  ।

मै बाहर आया......तो एक सुनसान सी गली है ......जो राधा बल्लभ जी के मन्दिर की ओर जाती है.....उसी  गली में बैठा बैठा  मै रो रहा था .....

तभी मैने  देखा  मेरे सामनें ..................दो हजार की दो गड्डियां पड़ी थीं .............ये क्या है  ?    

मै उसके पास गया ...........एक बैग और था वहाँ पड़ा हुआ .....उसमें   दो गड्डियां और थीं ..........और कुछ  सोनें के  सिक्के थे .......कितनें सिक्के  हैं  ये मैने अभी तक गिनें भी नही हैं   ।

वो बोले जा रहा था ...................मैने सोचा किसी का छूट गया होगा .....या भूल गया होगा ............ऐसा विचार कर मै वहीँ बैठा रहा ।

करीब 1 घण्टे तक बैठा रहा .......पर कोई नही आया  वहाँ तो  ।

तब  एकाएक मेरे नेत्रों से अश्रु गिरनें लगे ...................

ओह !  बिहारी जी की जय हो ...........मै रो गया  ।

हाँ ......मैने माँगा किससे था  ?       दुनिया के दाता से माँगा था मैने ....वो खाली हाथ कैसे लौटा देता  !

मुझे इतना दिया है उसनें    मै बता नही सकता .............

हाँ  मै सच कह रहा हूँ .......................वो देता है .........वो देगा .........पर माँगों उससे ...............हम लोग गलती करते हैं .........स्वयं भिखारी हैं   और  दूसरे भिखारी से ही मांगते हैं ........।

देखो मुझे ........मैने मांगा ..........दिल से माँगा ..............उसनें दिया ।

ये कहता हुआ  वो चला गया .........।

*******************************************************

पता है हरिशरण जी !    मै इस भिखारी को देखता था  तो ये मुझे कुछ अलग सा लगता .........सबसे अलग  ।

और जब मैने सुना कि इसनें  बिहारी जी से मांगा ......तब मेरे  मन में कुतूहल  जाग गया था  कि   ..........बिहारी जी से इसनें माँगा है ......तो क्या दिया इसको बिहारी जी नें  ?

पर  ये बात पक्की है ......  हृदय से माँगो तो वो देता है ......अवश्य देता है .............शाश्वत नें  कहा  ।

साधकों !      मेरे साथ में  ऐसी अद्भुत  घटनाएँ घटती रहती हैं...........पर उसे सिद्ध करनें का मेरे पास कोई प्रमाण नही होता.......इसलिये  मै कह देता हूँ .......

हाँ ये..... एक कहानी है ...............मेरी   कल्पना  ! 

पर ये बात  सच  है ........कि   माँगो उससे    तो वह अवश्य देता है ......अवश्य   ..........।

हम जब कालीदह की बुर्जियों से उतरे  तो  एक भिखारी की रेडियो में  हरिओम शरण जी का एक  पुराना भजन चल रहा था ........

"दाता एक राम भिखारी सारी दुनिया"

Harisharan

Post a Comment

0 Comments