"वो बंगाली राधा" - एक कहानी

आज के विचार

("वो बंगाली राधा" - एक कहानी )

हे कृष्ण द्वारिकावासिन् क्वासि यादवनन्दनः
( महाभारत )

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नही बापू !  मै तुम्हे नही जानें दूंगी ......तुम्हे आज मेरी बात माननी ही पड़ेगी.....पता है पास के रामपुर में कल  पाँच  हिन्दुओं को जिन्दा पेट्रोल डाल कर जला दिया ......और बीस  लड़कियों का बलात्कार किया  ।

ये  अंधी और हिंसक भीड़  राक्षसों को भी मात दे रही है बापू !

ये लोग बस हिन्दुओं को ही निशाना बना रहे हैं .......और बापू !  दादा भी कलकत्ता  गया है......पता नही कब आएगा ।

राधा   अपनें पिता का  वो डाक्टर वाला बक्सा पकड़कर  न जानें के लिए जिद्द कर रही थी ।

डॉक्टर रघुनाथ दास  वृद्ध  डॉक्टर हैं ..........पूर्ण आस्तिक हैं .......

यही  बेटी है   "राधा दास"  जो जवान है ..........और एक बेटा है ......पर वो अभी छोटा ही है ............दो दिन से कोलकाता गया है ।

डॉक्टर दादा !   चलो ना !   बच्चा मर जाएगा  ।

नीचे से  अकरम खाँ   नें   करुण पुकार लगाई  ।

बेटी राधा !    मुझे जानें दे.........देख !    ये हमारा श्याम सुन्दर है न  ....यही  रक्षा करेगा हमारी  देखना........पक्के आस्तिक हैं   रघुनाथ दास.......सिंहासन में एक चित्रपट रखा हुआ है ....बाँसुरी बजाते हुए   भगवान श्याम सुन्दर का   उस चित्रपट की ओर ही  दिखाया था  अपनी बेटी को  पिता  डॉक्टर नें   ।

पर बापू !      चारों ओर    हिन्दू मुसलमान हो रहा है......और  मैने तो अपनी आँखों से ही देखा है .......कैसे  गिरीश दा  को   उन  दरिंदों नें  ।

आगे कुछ बोल नही सकी   राधा  ।

डॉक्टर दादा !    चलो ना ................हम तुम्हारे  पैर पड़ते हैं ........मर जाएगा  मेरा बेटा ..........फिर नीचे से अकरम ख़ाँ   चिल्लाया था ।

बेटी !  दरवाजा बन्द कर लो ...........खिड़कियां  लगा कर शान्ति से बैठे जाओ ............श्याम सुन्दर को   मै उड़िया भागवत सुना रहा  था ....बहुत सुन्दर है .......जगन्नाथ दास बाबा नें लिखी है ............तुम  भी  पाठ करो  .......तब तक  मै आही जाऊँगा  ।

कुछ ओर बोलनें को  हुयी राधा .........तो तुरन्त उनके बूढे  पिता जी नें कहा। ..............रोगी  के रोग  का  निदान करना ही हम  डॉक्टरों का कर्तव्य है बेटी ............आज तक मैने  इस कर्तव्य को नही  छोड़ा है .....फिर आज कैसे  ? 

तू चिन्ता मत कर........मै अभी इस अकरम खाँ के बेटे को    इंजेक्शन देकर आगया   ।

पीठ थपथपाई   बेटी की ........और   अपना बक्सा लेकर चल दिए थे ।

वो गन्दा मैला सा मुसलमान .....उसको इतनी तमीज  भी नही  कि  बापू का बक्सा तो उठा लेता ............कैसे पीछे  चल रहे  है.........मेरे सत्तर वर्ष के बेचारे बापू  !      ।

राधा  देखती रही ......अपनें  बापू को ...........राधा के  बापू   देखते ही देखते  राधा की  आँखों से ओझल हो गए थे  ।

फिर   राधा  ऐसे ही खिड़कियों से बाहर देखनें लगी  ।

अल्लाहो अकबर !  अल्हाहो अकबर ! 

ये क्या !  चौंक गयी थी  राधा  .................एक साथ  दीवाल को फांद कर हजारों की भीड़ सामनें के मैदान में जुड़ गयी थी  ।

और सबके सब  पट्रोल बम  हाथ में लेकर ...............किसी के भी घर में फेंक रहे थे ..........नही किसी के भी घर में नही .............हिन्दुओं के ही घर में ..........हाँ  हिंदुओं के ही घर में ।

पर देखते ही देखते   दूसरे तलवार लिए हुए ...........कुछ   हैवान जैसे लोग चीख चीख कर .........चिल्लारहे थे ....अल्हाहो अकबर ।

राधा काँप रही है ........पर खिड़की से देख रही है ................

डालो  डालो  इस घर में पेट्रोल डालो ........हाँ भाई !    तैमूर ! ये   हिन्दू का ही घर है ............

ओह ! ये क्या ........पेट्रोल  का  एक डब्बा खोल कर   फेंक दिया था ......और साथ में माचिस जला कर उड़ा दिया ....उस बेचारे हिन्दू के घर को ......।

अल्लाहो अकबर !        सारी भीड़ चिल्ला उठी  थी  ।

देखो ! देखो  चाँद !        एक   शैतान आदमी ने  खिड़की  में बैठी  राधा को देख लिया था ................हिन्दू  है । 

सारी भीड़    उधर ही देखनें लगी ।

जला दो   इस घर को ..............भीड़ चिल्लाई  ।

नही ....................कोई नही मारेगा इसे ..........ये तो मेरी जान है ।

देखो कितनी  खूबसूरत है .............वो   बहुत गन्दा बोला  ।

राधा काँप  गयी ...........तुरन्त  उसनें  खिड़की बन्द कर दी थी   ।

नीचे गयी  दरवाजे में ताला भी लगा दिया ......

पर   सारी भीड़  मुड़ चुकी थी  राधा के घर की ओर ..............

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भाई अकरम !   अब मुझे जानें दो .............इंजेक्शन दे दिया है मैने तुम्हारे बेटे को ..............इसका बुखार  बस  आधे घण्टे में ही उतर जाएगा ..........मै चलता हूँ ...............ऐसा कहकर  अपना आला  और इंजेक्शन  दवाइयाँ  बक्सा में डाली   और चलनें लगे डॉक्टर रघुनाथ ।

अल्लाहो अकबर !       एक भीड़  इस मोहल्ले में भी आगयी थी ।

डॉक्टर जैसे ही बाहर निकले ..................तभी पीछे से अकरम आया ....और  डॉक्टर को पकड़ कर अपनें घर के भीतर धक्का दे दिया ।

और  धड़ाम से  दरवाजा बन्द  ।

मुझे जानें दो .......मुझे मत रोको अकरम !    मेरी बेटी राधा है घर में  अकेली  ।

डॉक्टर रघुनाथ दास   हाथ जोड़ रहे थे  उस मैले से मुसलमान के ।

देखो ! डॉक्टर दादा !   बस एक  घण्टे और रुक जाओ ..........ये भीड़ चली जाए  फिर तुम चले जाना ।

अकरम बोला  था  ।

नही ......भाई !  मुझे जानें  दे ..........मेरी बेटी  अकेली है घर में ........मुझे जानें दे .....आँसू टपक रहे थे डॉक्टर के  ।

नही ........मेरे बेटे को बचानें वाले  डॉक्टर दादा को  मै कैसे इन दरिंदों के बीच जानें दूँ ............ये दरिंदे  न मुसलमान है  न इंसान है ।

अरे !  छी !  ऐसे होते हैं  मुसलमान ! अकरम  के भी आँसू बहनें लगे थे ।

इन हराम जादों नें ही   पवित्र इस्लाम को बदनाम कर दिया है  ।

पर   मेरी बेटी  तो इन दरिंदों के पास ..........ओह !    ये सोचकर फिर उठे  डॉक्टर ..........................

दादा !  तुम जिद्द करोगे  तो  गमछा से तुम्हारा मुँह  बन्द कर दूँगा ......बैठो चुपचाप .............गन्दा  सा  गमछा ......उस अकरम का ।

आँखों में     दयनीय भाव आगये  थे  डॉक्टर के  ..........

हट्टा कट्टा   30 वर्ष का अकरम .....और कहाँ बूढ़े बड़े  70 वर्ष के  डॉक्टर ..........बैठ गए  धम्म से चार पाई में ।

कुछ देर बाद अकरम बोला ...........मै जाता हूँ दादा !     और तुम्हारी बेटी को  यहीं ले आता हूँ .............।

चल पड़ा था अकरम  ।

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भीड़  खटखटा रही थी दरवाजा ....................

और घर के भीतर पागलों की दौड़ रही थी     राधा  ।

सन्दूक,   अलमारी    सामान .....सब  गिरा दिए थे ......कहाँ छुपुं  ।

कुछ समझ में नही आरहा था  राधा को .............भीड़ नें    दरवाजा तोड़ दिया था ......और दरवाजा तोड़ कर भीड़ घर में  घुस गयी थी ।

राधा ऊपर की ओर भागी .....................भीड़ भी ऊपर की ओर ।

दरवाजा बन्द कर लिया  ऊपर का   राधा नें ...........पर एक लकड़ी  का दरवाजा  इन  शैतानों के लिए क्या है  !

तोड़ दिया .......वो इधर उधर दौड़ती हुयी  मन्दिर में पहुंची  ।

उड़िया भागवत खुली पड़ी थी ......उसके पन्ने उड़ रहे  थे  ।

वो गयी ...........दरवाजा बन्द किया   .......

और अपना माथा ..............पटक दिया  श्याम सुन्दर के चित्रपट के आगे .........वो तो मुस्कुरा रहे हैं  ....बाँसुरी  हाथ में है.....और मुस्कुरा रहे हैं   ।

तुम मुस्कुरा रहे हो .........श्याम सुन्दर !   बोलो ना !  तुम मुस्कुरा रहे हो ......देखो !  तुम्हारी राधा रो रही है ......तुम्हें अच्छा लग रहा है ?

बोलो श्याम सुन्दर !   बोलो !  

माथा श्याम सुन्दर के चरणों में   पटक रही है  राधा .........दरवाजा  खटखटा रही है  भीड़ ।

सिर उठाया  राधा नें  आँसुओं से भरे हुए नयनों  से देखा  श्याम सुन्दर को ..................ठीक है.............तुम्हे जो करना है करो ....चाहे बचाओ ....या  डाल दो इन दरिंदों के बीच  अपनी राधा को  ।

तभी ............एक पेट्रोल बम  बाहर से किसी नें मारा था ...........वो बम उड़ता हुआ  आया ..................और     घर के भीतर   उसी जगह फटा ........जहाँ  दरवाजे में  लोग खटखटा रहे थे ........और  देखते ही देखते .....सबके  माँस के लोथरे आकाश में उड़ गए  थे  ।

राधा  नें देखा  ये सब ................एक प्रकाश सा हुआ था बाहर ........राधा को लगा  की श्याम सुन्दर ही प्रकटे  ...........

पर......एक ही क्षण में    सारे  उस स्थान  के शैतान ढ़ेर हो गए  थे  ।

देखा  राधा नें मुड़कर   श्याम सुन्दर की उस छवि को ............मुस्कुरा रहे थे  श्याम सुन्दर ।

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तभी ....................एक हाथ नें छूआ   राधा को  ।

कौन ?  कौन  हो.......?

मै अकरम !      मै अकरम खाँ  .................

सैकड़ों लोग मर गए ....................अकरम बोला  ।

गलत करोगे  तो गलत ही होता है बहन !   अकरम बोले जा रहा था ।

चलो मेरे साथ !       चलो बहन  राधा ।

पर मेरे बापू को तुम कहाँ ले गए  ?  बोलो !   राधा पहचान गयी थी  उस अकरम को  ।

मेरा बापू कहाँ है ?  चिल्लाई राधा  ।

बहन !     चिन्ता मत करो ...............बिलकुल चिन्ता मत करो .....मेरे यहाँ तुम्हारे बापू  सुरक्षित हैं ........अब तुम भी चलो वहाँ ।

मुसलमान के यहाँ मै जाऊँ  ?    राधा के मुँह से निकला  ।

क्यों बहन ! मुसलमान क्या  इंसान नही होता ?      गन्दे मुसलमान की आँखों से......पवित्र आँसू बह चले थे  ।

उन पवित्र आँसुओं को समझ गयी थी राधा .....

बस राधा को तो आज्ञा लेनी थी   अपनें श्याम सुन्दर से ........

क्यों जाऊँ बापू के पास   ?   पूछा था  राधा नें ।

मुस्कुरा रहे थे श्याम सुन्दर............बस खुश होकर  राधा नें    उस चित्रपट को   अपनें हृदय से लगाया ........और  चल पड़ी  राधा ......।

अब निश्चिन्त थी  राधा ..............क्यों की  उसकी  छाती से लगे   श्याम सुन्दर बस मुस्कुराये जा रहे  थे........।

Harisharan

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