आज के विचार
( सम्बन्धात्......)
राधे मेरी स्वामिनी, मै राधे को दास ....
( कविवर बिहारी )
आप लोग जाइये.....मै नही जाऊँगा......मै यहीं बैठा हूँ सीढ़ियों में ।
हद्द है !........बरसानें आये रात भर जागरण किया .......किसके लिये, श्री राधा रानी के दर्शन के लिए ही ना ?
फिर ये बड़े विचित्र साधक हैं........वृद्ध हैं ..... पागलबाबा के लाड़ले भी हैं.........
मैने उनसे कहा ......अरे ! चलिये मन्दिर में श्री लाडिली जू के दर्शन करेंगें .......आज राधाष्टमी है ...........।
मेरी बात सुनी उन्होंने..........बड़े ध्यान से सुनी .......फिर बाबा से ही बोले .....आप लोग जाइए मै यहीं हूँ ।
मैने आश्चर्य से बाबा की ओर देखा .......बाबा ! कुछ बरसानें के गोस्वामी भी परिचित के थे ........अगर भीड़ की वजह से ये "नही जाऊँगा" कह रहे हैं......तो गोस्वामी जी अलग मार्ग से ले जायेंगें ........मैने कहा ।
मेरी बात सुनकर बाबा मुस्कुराये .......फिर उन वृद्ध साधक की ओर देखा.....उन वृद्ध साधक नें आँखों के इशारे से कहा .....नही जाऊँगा ।
मैने बाबा से कहा ...........कैसे हैं ये श्रीजी के दर्शन के लिए भी नही जा रहे .......अगर नही जाना था तो क्यों आये ?
बाबा नें मेरे कन्धे में हाथ रखकर .....मेरे कन्धे को थपथपाया ....मानों मुझ से कह रहे हों .............किसी के आंतरिक भाव को तुम जब तक नही समझते तब तक उस के बारे में बोलो मत ।
पर बाबा ! ये सीढ़ियों में बैठे रहेंगें ?........मन्दिर तो दस सीढ़ियों के बाद ही है ............दर्शन कर लेते ये भी ।
बाबा बोले ......तुम्हे ये अभी "अभक्त" लग रहे हैं ना ?
मैने कहा ............पर भक्त तो लग ही नही रहे ........जो राधाष्टमी को भी बरसानें आकर .......दर्शन न करे ।
तुम कौन होते हो ये निर्णय देनें वाले की कौन भक्त है और कौन अभक्त ?
बाबा के मुख ये बात सुनते ही ..........मै सावधान हो गया ।
ओह ! हाँ ........सही कहा बाबा नें ...... मै कौन होता हूँ ये निर्णय सुनानें वाला ।
जब तुम जानते नही हो ........उनके हृदय के भावों को तो सीधे आलोचना पर नही उतरना चाहिये .......बाबा नें बात इतनी सहजता में कही ........कि बाबा मुझे उपदेश दे रहे हैं ऐसा भी नही लगा .....पर उपदेश दे गए थे ......बड़ा गहरा उपदेश ............कि बिना किसी के हृदय भावों को जानें ..........आलोचना में नही उतरना चाहिये ।
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गौरी शंकर अग्रवाल ............कोलकाता के रहनें वाले ।
स्वामी जी ! मेरे साथ एक अप्रिय घटना घट गयी ...........
स्वामी श्री रामसुखदास जी कोलकाता में जब पधारे थे ....तब इन्होंने स्वामी जी को जाकर ये बात कही थी ..........स्वामी जी के सत्संगी थे ये अग्रवाल जी ।
क्या हुआ गौरी शंकर ! स्वामी जी नें आत्मीयता से पूछा था ।
स्वामी जी मेरा एक छोटा भाई था .............वो गुजर गया ।
अपनें आँसुओं को पोंछते हुए अग्रवाल जी नें कहा था ।
हृदय में दुःख बहुत हुआ स्वामी जी के भी ............स्वाभाविक है .......संवेदनशील तो साधू, हम संसारियों से भी ज्यादा होते हैं ।
बस साधू में विवेक होता है .....इसलिये वो दुःख को पचा जाते हैं.....हममें विवेक का अभाव है .....इसलिये "हाय हाय" मचाते रहते हैं ।
कुछ देर बाद स्वामी जी बोले ....देखो ! गौरी शंकर ! तुम अच्छे सत्संगी हो ........साधक हो ..........तुम भी समझते हो .....ये तो दुनिया की रीत है ...........और जिसका जितना भोग रहता है इस संसार में रहनें का ......वो उतना ही रहता है.........बाकी प्रभु जानें .........।
स्वामी जी नें बड़े प्रेम से समझाया था ........
मेरा लक्ष्मण ही था स्वामी जी !.............मेरा छोटा भाई ।
आँसू गिर रहे थे अग्रवाल जी के ।
देखो ! अब ये रोनें धोनें से तो कुछ होगा नही ............
फिर अग्रवाल जी को देखते हुए स्वामी जी बोले .........
गौरी शंकर ! तुम्हे मेरी बात विचित्र लग सकती है ........पर तुम कन्हैया को अपना छोटा भाई क्यों नही मानते ?
छोटा भाई कन्हैया को ?
गौरी शंकर जी को ये बात दिमाग में क्लिक कर गयी थी .....बात कही भी तो किसनें थी ........स्वामी श्रीरामसुख दास जी महाराज नें !
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लो ! आपके लिए ही आपकी बहू नें ये प्रसाद भिजवाया है ।
बरसानें में श्री राधा रानी के दर्शन करके हम लोग वापस आगये थे उसी सीढ़ी में ........जहाँ वो वृद्ध साधक बैठे थे ।
और बाबा नें आकर माला प्रसादी और भोग प्रसाद उन वृद्ध साधक को दिया था ।
ओह ! उस माला प्रसादी को जब उन वृद्ध साधक नें अपनें हाथों में लिया ......मैने स्वयं देखा .....उनको रोमांच हो रहा था ........वो माला प्रसादी को बार बार अपनें आँखों से लगा रहे थे .........उनके नेत्र सजल थे ।
कुछ देर के लिए उनमें सात्विक आवेश भी आगया था ..........
पर इतना भाव इनके अंदर था तो ये मन्दिर में क्यों नही गए .......
ये प्रश्न अभी तक मेरे मन में उठ ही रहा था ।
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गौरी शंकर अग्रवाल जी नें एक गोपाल जी स्वामी जी के ही हाथों से ले ली थी ..............बस बड़े प्रेम से उन्होंने अपनें पास गोपाल जी को रखा .........नही नही .....गोपाल जी का विग्रह मात्र नही रखा .......इनसे सम्बन्ध भी बना लिया .......मेरा छोटा भाई !
कोलकाता में पूजा घर में कहाँ रखते थे ये अग्रवाल जी गोपाल जी को .....सॉरी .....अपनें छोटे भाई को ।
भगवान मानते तब न पूजा घर में रखते ........ये तो अपनें साथ ही रखते थे .....अपनें कक्ष में ............
मानसिक सेवा करते थे .......उसके बाद विग्रह की सेवा ।
पर सेवा भी छोटे भाई की .........ना की भगवान की ।
एक दिन वैराग्य हुआ ...........अब वैराग्य कोई मुहूर्त देखकर तो आता नही .......हो गया वैराग्य ......।
तब आगये श्री धाम वृन्दावन..........और यहीं रहनें लगे ।
इनकी पत्नी भी बहुत अच्छी साधिका थीं.......पर गुजरे हुये इनके भी एक वर्ष हो गए .............।
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इनको तुम लोग नही जानते .......ये हैं स्वामी श्री राम सुखदास जी के प्रिय साधक ............
बरसानें से जब चले थे वृन्दावन की ओर ....गौरांगी , शाश्वत, मै ....बाबा और कुछेक साधक और ..........बाबा नें इन वृद्ध साधक के बारे में बताना शुरू किया था ।
पर हरि जी का कहना है कि ये मन्दिर में क्यों नही गए ।
गौरी शंकर जी ! बता दूँ ?
बाबा नें उन वृद्ध साधक की तरफ देखते हुए पूछा था ।
वो वृद्ध साधक मात्र मुस्कुराये थे.....जैसे उन्हें कोई मतलब ही नही है ।
बाबा ! बताओ ........शाश्वत नें कहा ।
ये कन्हैया को अपना छोटा भाई मानते हैं ................
बाबा नें कहा ।
तो ? मन्दिर जानें में क्या दिक्कत थी ...........मैने मन ही मन में कहा ।
श्री राधा रानी को ये बहू मानते हैं .......बाबा नें बताया ।
और श्री राधा रानी इनको अपना जेठ मानती हैं ............
बाबा नें हम सबको बताया .......ये जब भी जाते हैं श्री राधा रानी के पास .......तब वो संकोच करती हैं इन्हें देखते ही .........
बाबा नें कहा ......ये मात्र इनकी कल्पना नही है ...........ये सच है ।
इसलिये ये बरसानें के मन्दिर में नही गए ............इन्होनें मुझे पहले ही वृन्दावन से चलते समय बोल दिया था .......मै बरसानें के मन्दिर में नही जाऊँगा ..........क्यों की मेरी बहु को बड़ा संकोच होता है ......मै उसका जेठ हूँ ना ....इसलिये..........और मै नही चाहता .....आज बहू के वर्ष गाँठ वाले दिन उन्हें मै संकोच में डालूं !............मेरा छोटा भाई ......और बहू दोनों ऐसे ही खुश रहें ....आनन्दित रहें .......ये तो सीढ़ी में बैठे बैठे आशीर्वाद ही दे रहे थे ........अपनी बहु को .....और छोटे भाई कन्हैया को ।
मै स्तब्ध था उनके भावों को देखकर ............क्या सम्बन्ध जोड़ा था इन्होनें ...........यही थे गौरी शंकर अग्रवाल जी ।
जब ये कन्हैया को अपना छोटा भाई मानेँगे .............तब कैसे कन्हैया इन्हें अपना बड़ा भाई न मानें ........और फिर ये श्री राधा रानी हैं .......ये कैसे जेठ माननें से मना कर दें .........?
अजी ! ये अपना कन्हैया हृदय का सम्बन्ध ही तो मानता है ..............बाकी तुम रोज मशीन की तरह चिल्लाते रहो ...."त्वमेव माता च पिता त्वमेव"
उससे क्या होगा ? हृदय से तो माना नही ।
मै पूरे रास्ते गौरी शंकर अग्रवाल जी को ही देखता रहा .........अग्रवाल जी की आँखें किसी और लोक में थीं ............और वो शायद अपनें छोटे भाई के साथ ...................
Harisharan
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🙏🙏
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