!! श्रीनिम्बार्क चरित्र - भाग 6 !!

( शाश्वत की कहानियाँ )

!! श्रीनिम्बार्क चरित्र - भाग 6 !!

राधां कृष्ण स्वरूपां वै, कृष्णम् राधा स्वरूपिणम् ...
( महावाणी )

(  साधकों !  

** शाश्वत  आगे लिखता है .......कल मुझ से एक नें कहा ....शाश्वत !  तुम पढ़े लिखे हो .......एक इंग्लिश मीडियम स्कूल क्यों नही खोलते ।

शाश्वत कहता है .........मैने उससे कहा .....वाह !     बच्चे पैदा करो तुम और पढ़ाऊँ मै  ?

इस मजाक को लिखनें के बाद  शाश्वत लिखता है .......जो महात्मा स्कुल खोलते हैं ..........आश्रम बनाते हैं .......हॉस्पिटल बनाते हैं ......वो उनका रजोगुण है .....वो उनकी खुजली है ............अभी पूर्ण रूप से  वो  महात्मा नही बने हैं  ।

महात्मा क्यों इन प्रपंचों में पड़ेगा यार ! ...........ये काम समाज सेवियों का है ..........ये काम नेताओं का है .......महात्मा अब  इन कामों को करनें लगे हैं ............इसलिये अध्यात्म जो  आज से पहले था .......वो अब लगता है .......ईसाई धर्म से प्रभावित होकर काम कर रहा है ....।

देखिये !    अध्यात्म में कितना योगदान दिया इन महापुरुषों नें !

श्री शंकराचार्य जी , श्री रामानुजाचार्य जी , श्री निम्बार्काचार्य जी , ....और इनकी लिस्ट बहुत लम्बी है  साहब !

इन्होनें सनातन धर्म के लिये  अपनें जीवन को आहूत कर दिया ।

अध्यात्म पर निरन्तर  शोध किया  ...........

साधकों को  कैसे  सरल से सरल मार्ग  बताएं जिससे वो उस परमशान्ति परम आनन्द को पा सकें ,    उस मंजिल तक पहुँच सकें  ।

ग्रन्थ लिखे ......ग्रन्थ लिखवाये .......भाष्य  किये ........अपनें सिद्धान्त  दिए .......उस पर  गम्भीरता से काम किया ।

शाश्वत लिखता है ........इन आचार्यों के चरित्रों को लिखनें का मेरा यही उद्देश्य है  कि ..........आम जन मानस ये समझे  कि ........हमारे पूर्वाचार्यों नें कैसे  विशुद्ध अध्यात्म  को   सरल से सरलतम बनानें में  अपनें जीवन को खपा दिया ........इसलिये तो  मै इन को बारम्बार नमन करता हूँ........मानव समाज  आभारी रहेगा  इन आचार्यों का  ।

शाश्वत लिखता है   ।

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कल से आगे का प्रसंग -

गुर्जर प्रान्त ( गुजरात ) पहुँचे थे  श्री निम्बार्क प्रभु  ।

वहाँ  नारायण सरोवर  है .........उस  भूमि में जाकर   अच्छा लगा था  इन्हें .......पर   वहाँ  भक्ति नही थी ..........कर्मकाण्ड नें सबका हृदय शुष्क बना दिया था ............वो न शैव थे ....न  शाक्त .........वहाँ के लोग मात्र बहस करना ही जानते थे........जिसे वो शास्त्रार्थ का नाम दे देते  ।

श्रीनिम्बार्क प्रभु नें उस भूमि में घूम घूम कर देखा ...........शाक्त धर्म  के नाम पर  बहुत हिंसा होती थी .......बली प्रथा  खूब थी ......और इतना ही नही .....कभी कभी तो  नर बली  भी लोग चढ़ाते थे  ।

उस क्षेत्र में   नारायण सरोवर  ही एक ऐसा स्थान था .......जहाँ  सत्वगुण के परमाणु थे .........इसलिये निम्बार्क प्रभु नें उसी स्थान को चुना था ......कुछ दिन वहाँ वास करनें के लिए  ।

वहाँ  गूलर का एक वृक्ष था ........उस वृक्ष से बहुत प्रेम करते थे निम्बार्क प्रभु ।

कहीं भ्रमण में जाते थे ......तो उस गूलर के वृक्ष को प्रेम से छू कर  जाते थे ...........मानों  वह  कोई पूर्व परिचित हो  इनका    ।

प्रेम की भाषा मनुष्य क्या समझेगा .........संवेदनहीनता नें मनुष्य को प्रकृति से दूर ही तो किया है  ।

ये वृक्ष तो  प्रेम की ही भाषा मात्र समझते हैं .........।

निम्बार्क प्रभु  उस गूलर के वृक्ष के नीचे बैठकर ध्यान करते थे .......

वह भरपूर छायाँ आचार्य चरण को प्रदान करता था ....वो गूलर का पेड़ ।

एक दिन ........

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ए महात्मा !    ए साधू !   कहाँ से आया है ............

ये क्या भक्ति और  भक्ति का पन्थ फैलानें यहाँ आया है ?

देख ! हमसे  शास्त्रार्थ कर .........नही तो  चला जा यहाँ से  ।

उस क्षेत्र के  समस्त दिग्भ्रमित ब्राह्मण एक दिन  संगठित होकर वहाँ आगये थे ।

पर  श्रीनिम्बार्क प्रभु तो  ध्यान में लीन हैं   ।

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मेरी द्वारिका यहीं हैं.......पास में ही है .........क्या उस  द्वारिका के दर्शन करनें नही आओगे  निम्बार्क  ?

ध्यान में ही  भगवान श्री कृष्ण नें आकर  अपनें परमप्रिय सुदर्शनचक्रावतार निम्बार्क को कहा था  ।

मुझे पता है नाथ !   मुझे सब स्मरण भी है ...........मै ही तो  द्वारिका की रक्षा करता रहता था ............सुदर्शन चक्र के रूप में ........मुझे ही तो आपनें ये सेवा सौंपी थी ...............।

आनन्दित होते हुए ध्यान में ही  श्रीनिम्बार्क प्रभु नें  भगवान श्री कृष्ण से कहा  ।

आओ !   तुम अब द्वारिका आओ ................वो धाम है  ।

पर  वहाँ  गोपियाँ नही हैं ........गोपियों का प्रेम नही है   ! 

निम्बार्क प्रभु  भगवान श्री कृष्ण  से सम्वाद कर रहे थे  ।

कुछ देर तक नही बोले ............भगवान श्री कृष्ण  ।

फिर  कुछ देर बाद यही कहा .......निम्बार्क !     द्वारिका के पास "गोपी तालाब" है ...........वहाँ  गोपियों की रज है  ।

पर  गोपियों की रज  यहाँ  ?  द्वारिका में  ?   निम्बार्क प्रभु नें प्रश्न किया ।

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ए !   ये तो ढोंगी है .......इसके ढोंग को तो देखो ...........आँखें बन्दकर के बगुला भगत बनकर ध्यान कर रहा है .........।

निम्बार्क प्रभु  को  ये  दुष्ट लोग परेशान करनें लगे थे .....।

एक ने कहा ............इसको  एक घड़ी का समय दो ..........अगर इसनें एक घड़ी में अपना ध्यान समाप्त नही किया ......तो फिर  ।

दूसरे दुष्ट नें कहा .......फिर  ?  क्या फिर  ?

इसकी बली  देवी को आज ही चढ़ा दी जायेगी ।

सब लोग ठहाका मारकर हँसनें लगे थे  ।

बड़ा सुन्दर हैं .......साँवला देह ........क्या चमकता हुआ  देह .......

इसके मुख मण्डल में भी क्या आभा है .......।

देवी  हमारी बहुत खुश हो जायेगी.....और हमें मनचाहा वरदान भी देगी ।

सब लोग एक घड़ी  का इन्तजार करनें लगे थे  ।

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हाँ निम्बार्क !   कुरुक्षेत्र में  जब मुझे  मेरी ही आत्मा श्री राधा रानी मिलीं थीं .......और उनके साथ  गोपियाँ  सखियाँ सब थीं  ।

तब मैने  एक दिन एकान्त पाकर अपनी प्यारी श्री राधा रानी से कहा था.......।

भगवान श्री कृष्ण   निम्बार्क प्रभु को   ....वो इतिहास सुना रहे थे ......कि कैसे श्री राधा रानी और गोपियां  द्वारिका में आयीं   ।

हे राधे !    मेरी  अब एक ही इच्छा है .........क्या तुम पूरी करोगी ?

प्यारे !   ये  राधा तुम्हारी ही तो है   .......बोलो ! 

राधे !   मेरी इच्छा है ..............मेरी द्वारिका में अपनें इन चरणों को एक बार रख दो .........।

ये क्या कह दिया तुमनें  ?        ये पैर अब  श्री धाम वृन्दावन छोड़कर कहीं नही जायेंगें  ............श्री राधा रानी नें दो टूक कह दिया  ।

पर क्यों  ?    श्री कृष्ण नें पूछा  ।

मुझे तुम्हारा  ऐश्वर्य रूप प्रिय कहाँ है ..............मुझे तो तुम्हारा वही माधुर्य रूप ! .........ये कहते हुए  श्री राधा नें  श्री कृष्ण के  कपोल में अपना  हाथ रखा था ........जिद्द मत करो  प्यारे ! 

हे निम्बार्क !      मैने उस समय  अपनी प्यारी श्री राधा को बहुत समझाया ...........यहीं से चलो....द्वारिका .......बस कुछ दिन ......फिर श्री धाम वृन्दावन में आजाना  ।

क्यों जिद्द कर रहे हो ...........तुम्हारी हजारों रानियाँ हैं .......हजारों पुत्र पौत्रादि   हैं .............मुझे क्यों ले जाना चाह रहे हो ......अपनें  ऐश्वर्य की लीला  अपनी लक्ष्मी रुक्मणी  के साथ ही पूरी करो ना !

श्री राधा रानी की बिलकुल इच्छा नही थी ......पर मेरी  इच्छा ये थी कि इन  "प्रेमस्वरूपा"  का  चरण एक बार पड़ जाता द्वारिका में ......इसलिये तो मै भी जिद्द कर रहा था  ।

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एक घड़ी हो गयी ..................अब तो  इसे ...............

वहाँ के दुष्ट ब्राह्मण   हिंसा पर उतारू होनें लगे ।

पर देहातीत थे  हमारे निम्बार्क प्रभु तो  उस समय ।

तभी  गूलर के वृक्ष से एक फल गिरा ...............

निम्बार्क प्रभु के सामनें ..........और देखते ही देखते उसमें से एक दिव्य पुरुष प्रकट हो गया  ................

ब्राह्मण डर गए ..............तब   उस गूलर के फल से प्रकट हुए  दिव्य पुरुष ने कहा ......आप लोग डरो मत .........बोलो !  शास्त्रार्थ करना है ?  .....आओ ....करो  ।

ब्राह्मण लोगों का डर पहले समाप्त किया  इस दिव्य पुरुष नें .....फिर  चला   शास्त्रार्थ  ।

भक्ति पक्ष से  थे  ये  दिव्य पुरुष .....और  कर्मकाण्ड  शाक्त पक्ष से थे ......वो  ब्राह्मण  लोग ।

तर्क पर तर्क चलनें लगे ............कुतर्क  पर भी उतारू होगये .....वहाँ के ब्राह्मण .....पर ये  दिव्य पुरुष भी कोई कम तो थे नही  ।

कुछ ही देर में  ........चरणों में गिर गए  वहाँ के समस्त ब्राह्मण ।

आपकी शरण में हैं ........आप हमें शरण में लीजिये  ।

ब्राह्मणों नें एक साथ ............उस दिव्य पुरुष को प्रणाम किया था ।

नही नही .....मुझे प्रणाम न करें आप लोग ...........मेरे  भगवान तो यही हैं निम्बार्क प्रभु .......आप भी   इनके बताये भक्ति और प्रेम के मार्ग पर चलें ......तभी आप लोगों को शान्ति  की प्राप्ति होगी  ।

उस दिव्य पुरुष के कहनें पर .....सब ब्राह्मण  चरणों में गिर गए थे श्री निम्बार्क प्रभु के  ।

पर  श्री निम्बार्क प्रभु तो  ध्यान में थे ..........उन्हें  इस लोक का कुछ भान ही नही था ......द्वारिकाधीश से उनकी बातें हो रही थीं  ।

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हे निम्बार्क !      मेरे ज्यादा  ही कहनें पर ......श्री राधा रानी अपनी सखियों  के साथ  कुछ दिन के लिए ही तैयार हुयीं ........द्वारिका चलनें के लिए ............पर कुछ दिन ही   ....उनका मन लगता  भी नही .....उनका मन तो श्री धाम वृन्दावन में ही था  ।

वो आयीं .................द्वारिका में ................

आहा !  मेरी  द्वारिका पवित्र हो गयी थी ............!

रुक्मणी  इत्यादि मेरी रानियों नें बहुत आग्रह किया ......पर एक तपस्विनी की भाँति  मेरी आत्मा श्री राधा रानी नें महल में रहना स्वीकार नही किया .......उनके लिए  एक कुटीर बनाई गयी थी ।

पास में ही एक तालाब था ..........स्वच्छ ,  सुन्दर .....स्वयं  विश्वकर्मा नें उस तालाब का निर्माण किया था  ......और मेरे कहनें पर किया था .....मेरी श्री राधा रानी और गोपियां  उसमें स्नान कर सकें ........।

भगवान श्री कृष्ण   अपनी बात कितनें आनन्द से बता रहे थे  श्री निम्बार्क प्रभु को  ।

कुछ दिन ही तो रहीं थीं .....श्री राधा रानी  और गोपियां  ।

फिर आगयीं श्री धाम वृन्दावन  ।

हे  निम्बार्क !   मै नित्य जाता था .......वहाँ  उस तालाब में ........स्नान करता था .....उसी तालाब की रज लेकर अपनें माथे से लगाता था ।

उस रज की बहुत महिमा है .................फिर अपनें आँसुओं को पोंछते हुए  श्री कृष्ण नें कहा ......मै भी नही गा सकता ....उस "गोपी चन्दन"  की महिमा तो  ।

तुम आओ !    तुम आओ  निम्बार्क  !  

इतना कहकर  श्री कृष्ण अंतर्ध्यान हो गए  थे ।

निम्बार्क प्रभु नें  प्रणाम किया ........मै आऊंगा ! 

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श्री निम्बार्क प्रभु की ..............जय जय जय ।

जैसे ही ध्यान से उठे  श्री निम्बार्क प्रभु ............सामनें एक दिव्य पुरुष हाथ जोड़े खड़े हैं ........और  उनके पीछे हजारों ब्राह्मण  ।

सब स्तुति कर रहे हैं ................।

तुम कौन हो ?      मधुर वाणी गूँजी  श्री निम्बार्क प्रभु की ।

प्रभु !  मै  इस वृक्ष का फल ..............।

गूलर के वृक्ष की ओर देखा मुस्कुराते हुए......निम्बार्क प्रभु नें  ।

मुझे  और इन सब ब्राह्मणों को वैष्णवी दीक्षा देकर आप कृतार्थ करें ।

उस दिव्य पुरुष नें प्रार्थना की .....।

करुणा से भरे हुए   श्री निम्बार्क प्रभु नें .......सब को  दिक्षा दी .....गले में तुलसी की माला धारण करवाई ........।

और  उस दिव्य पुरुष को तो विरक्ति की ही दीक्षा देकर .......

"औदुम्बर" नाम रखा ...........इन्हीं का नाम  "औदुम्बराचार्य" पड़ा था ।

जिन्होनें  "निम्बार्क विक्रान्ति" नामक  बड़े बड़े ग्रन्थ लिखे   ।

अब आगे  द्वारिका के लिए  निम्बार्क प्रभु चल पड़े थे  ........

पर जाते हुए जब उस गूलर के वृक्ष को  प्रेम से छूआ .....और जानें लगे .... तब  विरह में वो गूलर का वृक्ष सूख गया था  ।

राधे कृष्ण राधे कृष्ण कृष्ण कृष्ण राधे राधे
राधे श्याम राधे श्याम श्याम श्याम राधे राधे ।

शेष प्रसंग कल ............

Harisharan

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