!!  श्रीरामानुजाचार्य चरित्र - भाग 16  !!

( शाश्वत की कहानियाँ )

!!  श्रीरामानुजाचार्य चरित्र - भाग 16  !!

श्रीनारायण स्मरण हीन जनो जघन्य...
( श्री विष्णु पुराण )

*****  कल से आगे का प्रसंग -

जन्म जन्म के पाप कल्मष जो चित्त पर छाये हुए हैं .......उन्हें दूर करना ही होगा ।........और उन पापों के दूर होनें का  लक्षण ये है .........कि  आप का चित्त शान्त हो जाएगा ........सांसारिक विषय भोगों के प्रति आपकी  कोई कामना नही रह जायेगी  ।

जब तक  विषय भोगों में चित्त जा रहा है .......तब तक समझो की .....पाप नष्ट नही हुए  ।

आज प्रातः ही  श्री रंगनाथ भगवान का दर्शन करके ...........सत्संग में बैठ गए थे    श्री रामानुजाचार्य जी  ।

हजारों की संख्या में  नित्य लोग आते थे ......और अपनें पूज्यवर आचार्य को सुनकर  कृत कृत्य होकर चले जाते  ।

120 वर्ष की आयु हो गयी है  श्री रामानुजाचार्य जी की  ।

पर  मुख मण्डल  तेजयुक्त ही रहता है   ।

आज  सुबह से बोलना शुरू किये थे  स्वामी जी.......सुननें वाले  भी आज लाखों में थे ........सम्पूर्ण  दक्षिण भारत में ही नही .........उत्तर भारत में भी...........सम्पूर्ण भारत वर्ष में  स्वामी श्री रामानुजाचार्य जी  का यश  फैल रहा था .........।

सुबह से बोल रहे थे  स्वामी जी .....सत्संग चल रहा था .......दोपहर होनें का आया ..........पर  सत्संग रुक नही रहा  ।

सुननें वाले  भक्त जन मन्त्र मुग्ध होकर सुन रहे हैं ............

"जब कोई  नारायण भगवान की शरणागति ले लेता है ..........फिर उसके बाद ....पुत्र मरनें पर, पत्नी मरनें पर ......या सम्पत्ती नष्ट हो जानें पर .....या अपना अपमान होनें पर.......जो स्वयं  दुःखी  या  भगवान को ही दोष देनें  लगता है ........वह स्थिति उपहासास्पद सी  हो जाती है ।

आप लोग ये क्यों नही समझते  कि ......संसार की आसक्ति ही तो बन्धन है ........और   उस आसक्ति को जब भगवान नारायण काट देते हैं ....तब तुम चिल्लाते हो ........हाय हाय करते हो  ।

इसका मतलब तो ये हुआ कि .....हमारी शरणागति , हमारा भजन , हमारी साधना  मात्र ढोंग था  ?

श्री स्वामी  रामानुजाचार्य जी की वाणी  आज  अत्यंत ओज पूर्ण थी  ।

जीव का ये परमसौभाग्य ,  उसका महान पुण्योदय , प्रभु की महान कृपा........यदि  भोगों की वासना न रह जाए ,  प्रारब्ध से प्राप्त वस्तु में ही खुश रहें  ।  और  चित्त  शान्त रहे .............।

पर हमारी स्थिति ऐसी नही है ......आचार्य चरण !

एक  स्वामी जी  के ही प्रिय शिष्य नें  प्रश्न किया था  ।

तो प्रार्थना करो .........तुम से  कुछ नही होता ........मन भी कमजोर है .......तो  भी कोई बात नही ......भगवान नारायण बड़े कृपालु  हैं .....उनकी कृपा  का कोई  पार नही है ..............

कातर से स्वर से पुकारो.........अपनें आप  को सम्पूर्ण रूप से नारायण भगवान के चरणों  में  समर्पित कर दो ..........इससे  स्वयं नारायण भगवान माया के आवरण का नाश कर देते हैं ........इससे चित्त शान्त हो जाता है .....और  सांसारिक वासना का भी उन्मूलन हो जाता है ।

मेरे नारायण भगवान के समान  करुणावरुणालय  और कौन है ।

स्वामी श्री रामानुजाचार्य जी के नेत्रों से अश्रु प्रवाहित होनें लगे थे ।

उनका मुख मण्डल  लाल  हो गया था ........उनकी वाणी  सीधे सबके हृदय में प्रवेश कर रही थी  ।

पर  ये क्या  !      शिष्य जन  स्तब्ध हो गए थे .....लाखों लोग  जो देख रहे थे  उन्हें भी भरोसा नही हो रहा था  ।

सूर्य के समान  चमक उठा था स्वामी रामानुजाचार्य जी का मुख मण्डल ।

आप कौन हैं  ?    

हे भगवन् ! आप कौन हैं  ?

लाखों की भीड़  हाथ जोड़कर  बोल उठी   ।

मै शेष स्वरूप हूँ ..........मै  नारायण भगवान की शैया हूँ .............

आवाज  ही बदल गयी थी ..........स्वामी जी की   ।

हजार फन हैं....शेष नाग के .......आप के हजार फन कहाँ हैं  ?

देखना है  ?              गम्भीर आवाज  आई ................

एक विद्वान खड़ा हुआ..और उसनें कहा ........मै एक प्रश्न करूँगा ...........और उसका उत्तर  एक हजार बार  निकलनें चाहियें ...और एक ही बार में ।

स्वामी जी  नें कहा .......ठीक है .......पर  एक पर्दा लगा दिया जाए  ।

पर्दा क्यों  ? 

उस विद्वान नें पूछा  ।

तुम लोग सह नही पाओगे .........शेष नाग के उस रूप को  ।

स्वामी जी नें कहा  ।

ठीक है .........पर्दा लगा दो  .........................

विद्वानों नें यह बात मान ली  थी  ।

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अरे !   अपनें  स्वामी श्री रामानुजाचार्य जी  तो शेष नाग के अवतार हैं ।

पर तुम्हे कैसे पता चला  ......दूसरे नें  पहले वाले से पूछा ।

अभी मै वहीं तो जा रहा हूँ .......चलो !    आज  स्वामी श्री रामानुजाचार्य जी  शेषनाग का रूप धारण करेंगें....मैने सुना है ....और   एक प्रश्न का हजार मुख से उत्तर देंगें.......।

अच्छा !    चलो ...चलो  ।

श्री रंगम  की सारी जनता  उमड़ पड़ी थी...  दर्शन करनें के लिए ।

कुछ ही समय   में  तो   भारी भीड़ जमा हो गयी  थी  ।

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सबसे अधम जीव कौन है  ?

चारों ओर अपार जन समूह उमड़ पड़ा था ..............

एक पर्दा लगाया गया ..........पर्दा के भीतर  श्री रामानुजाचार्य जी ...और बाहर   लाखों की जनता  ।

उसी  विद्वान ने  प्रश्न किया था.....एक ही  प्रश्न करना था ....और उसका  उत्तर  एक साथ  दस हजार   बार देना था  श्री रामानुजाचार्य जी को  ।

सबसे अधम जीव  इस संसार में कौन है  ?

सब लोग  साँसें  थामकर सुन रहे हैं ...............

तभी एकाएक  विस्फोट सा हुआ......और एक  साथ दस हजार मुँह से   यही  उत्तर  दिया था -  श्री नारायण भगवान का  जो स्मरण  नही  करता .......वही अधम जीव है  ।

सारी जनता  स्तब्ध थी ...................

कुछ  उद्दण्ड युवक भी थे वहाँ......उनमें से  एक चिल्लाया .....पर्दा खोलो .......ये  कोई नाटक हो रहा है .........पर्दा खोलो .........।

हम नही मानते ....ये शेष नाग हैं ........ये सब  कहनें की बात है ।

तभी जिस विद्वान नें प्रश्न किया था .....और  उत्तर भी उन्हें  मिला था ....उस विद्वान नें   पर्दा झटके से   खोल दिया ।

सबकी आँखें   चकाचौंध हो गयीं ............सब लोगों नें  देखा .....हजार फन वाले शेषनाग  बैठे हैं ...........उनके मुँह से जो उनकी साँसें निकल रही हैं ...........वो अग्नि के रूप में ही प्रकट हो रही  है  ।

ये देखते ही ......सब मूर्छित होकर    गिर पड़े थे  ।

हे नाथ !  हमको बचा लो !  हे शेष !    आप हमें बचा लो !

हे  रामानुज !    आप की महिमा हम समझ गए हैं ............हमें बचा लो ।

जो  मूर्छित नही हुये थे .........उन्होंने प्रार्थना करनी शुरू कर दी थी ।

परम  करुणावान  श्री स्वामी रामानुजाचार्य जी  नें   भगवान नारायण से प्रार्थना करके   जो मूर्छित हो गए थे ..........उन्हें   उठाया ।

........सबनें जय जयकार किया  ........सबनें   पुष्प बरसाए ।

पर अब किसी से बिना कुछ बोले ही स्वामी जी मन्दिर में प्रवेश कर गए ।

स्वामी श्री रामानुजाचार्य जी    उस दिन  और उस रात  मन्दिर में ही खड़े रहे थे ......और  स्तुति गाते हुए   देह भान भूल गए थे  ।

दूसरे दिन ..........माघ शुक्ल दशमी तिथि थी ........वि. स.  1059  के  दोपहर  तक  श्री  रामानुजाचार्य  मन्दिर में ही रहे ...........

पर किसी को पता नही चला.........एकाएक    "ॐ नमो नारायणाय"

ये शब्द गूँजा अंतरिक्ष में ...........तभी  श्री रामानुजाचार्य जी की दृष्टि ऊपर की ओर गयी ...............भगवान श्री रंगनाथ   हाथ फैलाये  स्वामी जी को बुला रहे थे ।

मुस्कुराते हुए देखा  ऊपर की ओर     स्वामी जी नें  ।

तभी   स्वामी जी के मुखारविन्द से ......ये मन्त्र   सहज निकला .....

"ॐ नमो नारायणाय".........और  

इस पाँचभौतिक  शरीर को   त्याग कर  दिव्य  शेष स्वरूप  श्री रामानुजाचार्य जी  वैकुण्ठ धाम   चले गए ..............।

मै शाश्वत,   विशिष्टाद्वैत  सिद्धान्त   के प्रवर्तक  श्री रामानुजाचार्य जी के चरणों में  बारम्बार  प्रणाम करता हूँ ...............।

इति श्री रामानुजाचार्य चरितम् ! 

Harisharan

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