*हरी अपने भक्तों के शब्दों का कितना मान रखते है*

🙏🏼🙏🏼 सेवाराम और मोतीलाल दो घनिष्ठ मित्र थे ।दोनों ही गली-गली जाकर पीठ पर पोटली लादकर कपड़े बेचने का काम करते थे ।सर्दियों के दिन थे वह गांव-गांव जाकर कपड़े बेच रहे थे तभी एक झोपड़ी के बाहर एक बुढ़िया जो कि ठंड से कांप रही थी तो सेवाराम ने अपनी पोटली से एक कंबल निकालकर उस माई को दिया और कहां माई तुम ठंड से कांप रही हो यह कंबल ओढ़ लो तो बूढ़ी माई कंबल लेकर बहुत खुश हुई और जल्दी जल्दी से उसने कंबल से अपने आप को ढक लिया और सेवाराम को खूब सारा आशीर्वाद दिया। तभी उसने सेवाराम को कहा मेरे पास पैसे तो नहीं है लेकिन रुको मैं तुम्हें कुछ देती हूं। वह अपनी झोपड़ी के अंदर गई तभी उसके हाथ में एक बहुत ही सुंदर छोटी सी ठाकुर जी की प्रतिमा थी ।वह सेवाराम को देते हुए बोली कि मेरे पास देने के लिए पैसे तो नहीं है लेकिन यह ठाकुर जी है इसको तुम अपनी दुकान पर लगा कर खूब सेवा करना देखना तुम्हारी कितनी तरक्की   होती है ।यह मेरा आशीर्वाद है तो तभी मोतीराम बुढ़िया के पास आकर बोला, अरे ओ माता जी क्यों बहाने बना रही हो अगर पैसे नहीं है तो कोई बात नहीं लेकिन हमें झूठी तसल्ली मत दो हमारे पास तो कोई दुकान नहीं है। हम इसको कहां लगाएंगे ।इनको तुम अपने पास ही रखो। लेकिन सेवाराम जो कि बहुत ही नेक दिल था और ठाकुर जी को मानने वाला था वह बोला नहीं-नहीं माताजी अगर आप इतने प्यार से कह रही हैं तो यह आप मुझे दे दो। पैसों की आप चिंता मत करो तो सेवाराम ने जल्दी से अपने गले में पढ़े हुए परने में ठाकुर जी को लपेट लिया और उनको लेकर चल पड़ा ।तो बुढ़िया दूर तक उनको आशीर्वाद दे रही थी। हरी तुम्हारा ध्यान रखेंगे ठाकुर जी तुम्हारा ध्यान रखेंगे। वह तब तक आशीर्वाद देती रही जब तक कि वह दोनों उनकी आंखों से ओझल ना हो गए ।और ठाकुर जी का ऐसा ही चमत्कार हुआ अब धीरे-धीरे दोनों की कमाई ज्यादा होने लगी अब उन्होंने एक साइकिल खरीद ली अब साइकिल पर ठाकुरजी को आगे टोकरी में रखकर और पीछे पोटली रखकर गांव गांव कपड़े बेचने लगे ।अब फिर उनको और ज्यादा कमाई होने लगी तो उन्होंने एक दुकान किराए पर ले ले और वहां पर ठाकुर जी को बहुत ही सुंदर आसन पर विराजमान करके दुकान का मुहूर्त किया। धीरे-धीरे दुकान इतनी चल पड़ी कि अब सेवाराम और मोती लाल के पास शहर में बहुत ही बड़ी बड़ी कपड़े की दुकाने  और कपड़े की मिल्लें हो गई।
1 दिन मोतीलाल सेवाराम को कहता कि देखो आज हमारे पास सब कुछ है यह हम दोनों की मेहनत का नतीजा है लेकिन सेवाराम बोला नहीं नहीं हम दोनों की मेहनत के साथ-साथ यह हमारे ठाकुर जी हमारे हरि की कृपा है। तो मोतीलाल बात को अनसुनी करके वापस अपने काम में लग गया। एक दिन सेवाराम की सेहत थोड़ी ढीली थी इसलिए वह दुकान पर थोड़ी देरी से आया तो मोतीलाल बोला अरे दोस्त आज तुम देरी से आए हो तुम्हारे बिना तो मेरा एक पल का गुजारा नहीं तुम मेरा साथ कभी ना छोड़ना तो सेवाराम हंसकर बोला अरे मोतीलाल चिंता क्यों करते हो मैं नहीं आऊंगा तो हमारे ठाकुर जी तो है ना ।यह कहकर सेवा  राम अपने काम में लग गया। पहले दोनों का घर दुकान के पास ही होता था लेकिन अब दोनों ने अपना घर दुकान से काफी दूर ले लिया। अब दोनों ही महल नुमा घर में रहने लगे। दोनों ने अपने बच्चों को खूब पढ़ाया लिखाया । सेवाराम के दो लड़के थे दोनों की शादी कर दी थी और मोती लाल के एक लड़का और एक लड़की थी मोतीलाल ने अभी एक लड़के की शादी की थी अभी उसने अपनी लड़की की शादी करनी थी। सेहत ढीली होने के कारण सेवाराम अब  दुकान पर थोड़े विलंब से आने लगा तो एक दिन वह मोतीलाल से बोला अब मेरी सेहत ठीक नहीं रहती क्या मैं थोड़ी विलम्ब से आ सकता हूं तो मोतीलाल ने कहा हां भैया तुम विलम्ब से आ जाओ लेकिन आया जरूर करो मेरा तुम्हारे बिना दिल नहीं लगता। फिर अचानक एक दिन सेवाराम 12:00 बजे के करीब दुकान पर आया लेकिन आज उसके चेहरे पर अजीब सी चमक थी चाल में एक अजीब सी मस्ती थी चेहरे पर अजीब सी मुस्कान थी वह आकर गद्दी पर बैठ गया तो मोतीलाल ने कहा भैया आज तो तुम्हारी सेहत ठीक लग रही है तो सेवाराम ने कहा भैया ठीक तो नहीं हूं लेकिन आज से मैं बस केवल 12:00 बजे आया करूंगा और 5:00 बजे चला जाया करूंगा। मैं तो केवल इतना ही दुकान पर बैठ सकता हूं ।तो मोतीलाल ने कहा कोई बात नहीं जैसी तुम्हारी इच्छा। अब तो सेवाराम रोज 12:00 बजे आता और 5:00 बजे चला जाता लेकिन उसकी शक्ल देखकर ऐसा नहीं लगता था कि वह कभी बीमार भी है। लेकिन मोतीलाल को अपने दोस्त पर पूरा विश्वास था कि वह झूठ नहीं बोल सकता और मेहनत  करने  से वह कभी पीछे नहीं हट सकता ।
एक दिन मोतीलाल की बेटी की शादी तय हुई तो वह शादी का निमंत्रण देने के लिए सेवाराम के घर गया ।घर जाकर उसको उसके बेटा बहू सेवाराम की पत्नी सब नजर आ रहे थे लेकिन सेवाराम नजर नहीं आ रहा था तो उसने सेवाराम की पत्नी से कहा भाभी जी सेवाराम कहीं नजर नहीं आ रहा तो उसकी पत्नी एकदम से हैरान होती हुई  बोली यह आप क्या कह रहे हैं? तभी वहां उसके बेटे भी आ गए और कहने लगी काका जी आप कैसी बातें कर रहे हो हमारे साथ कैसा मजाक कर रहे हो। तो  मोतीलाल बोला कि मैंने ऐसा क्या पूछ लिया मैं तो अपने प्रिय दोस्त के बारे में पूछ रहा हूं क्या उसकी तबीयत  आज भी  ठीक  नही है क्या वह अंदर आराम कर रहा है।मै खुद  अंदर जाकर उसको मिल आता हूं।तो मोतीलाल उसके कमरे में चला गया लेकिन सेवाराम उसको वहां  भी नजर नहीं आया। तभी अचानक उसकी नजर उसके कमरे में सेवाराम के तस्वीर पर पडी ।वह एकदम से हैरान होकर सेवा राम की पत्नी की तरफ देखता हुआ बोला ।अरे भाभी जी यह क्या आपने सेवाराम की तस्वीर पर हार क्यों  चढ़ाया हुआ है तो सेवा राम की पत्नी आंखों में आंसू भर कर बोली। मुझे आपसे ऐसी उम्मीद नहीं थी भैया कि आप ऐसा मजाक करेंगे। मोतीलाल को कुछ समझ नहीं आ रहा था तभी सेवाराम का बेटा बोला क्या आपको नहीं पता कि पिताजी को गुजरे तो 6 महीने हो चुके हैं ।मोतीलाल को तो ऐसा लगा कि जैसे उसके सिर पर बिजली  गिर  पड़ी हो ।वह एकदम से थोड़ा लड़खडाता हुआ पीछे की तरफ हटा और बोला ऐसा कैसे हो सकता है वह तो हर रोज दुकान पर आते हैं। बीमार होने के कारण थोड़ा विलंब से आता है वह 12:00 बजे आता है और 5:00 बजे चला जाता है। तो उसकी पत्नी बोली ऐसा कैसे हो सकता है कि आपको पता ना हो आप ही तो हर महीने उनके हिस्से का मुनाफे के पैसे हमारे घर देने आते हो 6 महीनों से तो आप हमें दुगना मुनाफा दे कर जा रहे हो। मोतीलाल का तो अब सर चकरा गया उसने कहा मैं तो कभी आया ही नहीं। 6 महीने हो गए यह क्या मामला है तभी उसको सेवाराम की कही बात आई मैं नहीं रहूंगा तो मेरे हरी है ना मेरे ठाकुर जी है ना वह आएंगे ।तो  मोतीलाल को जब यह बातें याद आई तो वह जोर जोर से रोने लगा और कहने लगा हे ठाकुर जी, हे हरि आप अपने भक्तों के शब्दों का कितना मान रखते हो जोकि अपने विश्राम के समय मंदिर के पट 12:00 बजे बंद होते हैं और 5:00 बजे खुलते हैं और आप अपने भक्तों के शब्दों का मान रखने के लिए कि मेरे हरी आएंगे मेरे ठाकुर जी आएंगे तो आप अपने आराम के समय मेरी दुकान पर आकर अपने भक्तों का काम करते थे । इतना कहकर वह फूट-फूट कर रोने लगा और कहने लगा ठाकुर जी आप की लीला अपरंपार है मैं ही सारी जिंदगी नोट गिनने में लगा रहा असली भक्त तो सेवाराम था  जो आपका प्रिय था और  आपने उसको अपने पास बुला लिया और उसके शब्दों का मान रखने के लिए आप उसका काम खुद स्वयं कर रहे थे। और उसके हिस्से का मुनाफा भी उसके घर मेरे रूप में पहुँचा रहे थे। इतना कहकर वह भागा भागा दुकान की तरफ गया और वहां जाकर जहां पर ठाकुर जी जिस गद्दी पर आकर बैठते थे जहां पर अपने चरण रखते थे वहां पर जाकर गद्दी को अपने आंखों से  मुंह से चुमता हुआ चरणों में लौटता हुआ जार जार रोने लगा। और ठाकुर जी की जय जयकार करने लगा।
ठाकुर जी तो हमारे ऐसे हैं ।  सेवाराम को उन पर विश्वास था कि मैं ना रहूंगा मेरे ठाकुर जी  मेरा सारा काम संभालेंगे ।विश्वास के तो बेड़ा पार है इसलिए हमें हर काम उस पर विश्वास रख कर अपनी डोरी उस पर छोड़ देनी चाहिए। जिनको उन पर पूर्ण विश्वास है वह उनकी  डोरी कभी भी नहीं अपने हाथ से छूटने देंते।
जय  हो ठाकुर जी  आपकी ।
बोलो  भक्त वत्सल भगवान की जय हो ।

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