"बिछड़ा प्रेम"

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          एक छोटा बच्चा माँ की उंगुली पकड़कर मेले में जा रहा था। एक जगह रंग-बिरंगी मिठाई देखकर बच्चे ने उसकी तरफ उंगुली उठायी पर माँ उसे लेकर आगे बढ़ गयी  बच्चा पलट- पलट कर घिसटता हुआ मिठाई की तरफ देखता रहा। ऐसे ही बच्चे ने गुब्बारे को देखकर माँ को लेने को कहा माँ ने मना कर दिया और माँ जल्दी-जल्दी आगे चलने लगी पर बच्चा धीमे-धीमे लिथड़ता हुआ बार-बार पीछे देखता हुआ माँ के साथ चल रहा था। मेले में एक जगह बंदर का खेल दिखा रहा था, अबकी बच्चा माँ से हाथ छुड़ाकर खेल देखने को भाग गया।
        जब खेल खत्म हुआ तब उसे माँ की याद आयी लेकिन उसे माँ दूर-दूर तक न दिखी तो वो रोने लगा  एक दयालु आदमी (गुरु) ने आकर उसे गोद में उठा लिया और चुप कराने की कोशिश करने लगा। उसने बच्चे को गुब्बारे देने का प्रयास किया बच्चे ने मुँह घुमा लिया आदमी ने मिठाई देनी चाही पर बच्चे ने नही ली वो रोता ही जा रहा था। उसे अब सिर्फ माँ चाहिये थी, मेले की किसी भी चीज में उसकी रुचि नही रह गयी।
         इसी तरह हम लोग भी परमात्मा से विमुख होकर संसार रूपी मेले में मगन हो जाते है और अंत समय जब बुढ़ापा आता है या मेले को उपभोग करने की शक्ति और योग्यता नहीं रह जाती तब उसकी याद आती है। जब मेले के साथी साथ छोड़ने लगते है तब उस परम मित्र का ख्याल आता है। लेकिन तब तक शरीर में उसे प्राप्त करने की शक्ति नहीं रह जाती, बहुत देर हो जाती है। इसलिये देर न करो, चल पड़ो उससे मिलने के लिये, पता नहीं कब इस जीवन की शाम हो जाये, इससे पहले प्रभु के धाम की खबर मिल जाये।

                          "जय जय श्री राधे"
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