श्रीहरेराम बाबा

*‼जय सियाराम‼*

*।।श्रीभक्तमाल ग्रंथ - श्रीहरेराम बाबा।।*

श्री गणेशदास भक्तमाली जी गोवर्धन में लक्षमण मंदिर में विराजते थे । वहां के पुजारी श्री रामचंद्रदास जी गिरिराज की परिक्रमा करने नित्य जाते । एक दिन परिक्रमा करते करते आन्योर ग्राम में लुकलुक दाऊजी नामक स्थान के पास कुंज लताओं में उन्हें एक विलक्षण व्यक्ति दिखाई पड़े । उनके नेत्रों से अविरल जल बह रहा था , उनके सम्पूर्ण शरीर पर ब्रज रज लगी हुई थी और मुख से झाग निकल रहा था । थोड़ी देर पुजारी रामचन्द्रदास जी वही ठहर गए । कुछ देर में उनका शरीर पुनः सामान्य स्तिथि पर आने लगा । वे महामंत्र का उच्चारण करने लगे –

*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।*
*हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।*

पुजारी जी समझ गए की यह कोई महान सिद्ध संत है । उन्होंने उनका नाम पूछा तो कह दिया की प्रेम से सब उन्हें हरेराम बाबा ही कहते है । पुजारी जी उनको लक्ष्मण मंदिर में , श्री गणेशदास भक्तमाली जी के पास ले गए । धीरे धीरे दोनों संतो में हरिचर्चा बढ़ने लगी और स्नेह हो गया । श्री हरिराम बाबा भी साथ ही रहने लगे । श्री हरेराम बाबा ने १२ वर्ष केवल गिरिराज जी की परिक्रमा की । उनके पास ४ लकड़ी के टुकड़े थे जिन्हें वो करताल की तरह उपयोग में लाते थे। उसी को बजा बजा कर महामंत्र का अहर्निश १२ वर्षो तक जप करते करते श्री गिरिराज जी की परिक्रमा करते रहे । जब नींद लगती वही सो जाते, जब नींद खुलती तब पुनः परिक्रमा में लग जाते थे । नित्य वृन्दावन की परिक्रमा और यमुना जल पान , यमुना जी स्नान उनका नियम था । बाद में बाबा श्री सुदामाकुटी मे विराजमान हुए ।

*१. श्री हरेराम बाबा की प्रेम अवस्था –*
*श्री हरेराम बाबा जब महामंत्र का कीर्तन करते –*

*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।*
*हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।*

तब उनको प्रेम आवेश होता और भगवान की साक्षात अनुभूति होती थी । एक नीलवर्ण की कांति (प्रकाश) दिखाई पड़ती और उसीमे श्रीकृष्ण का दर्शन उनको होता । उसीको पकड़ने के लिए बाबा उसके पीछे पीछे भागते और फिर कुछ देर बाद उन्हें मूर्छा आ जाती । उनका शरीर कांपने लगता और बाद मे साधारण स्तिथि हो जाती । एक बार बाबा श्री गणेशदास जी, पुजारी श्री रामचंद्रदास जी और श्री हरेराम बाबा यह ३ संत पैदल जगन्नाथ पूरी दर्शन करने के लिए निकले । रास्ते मे कीर्तन करते करते श्री हरेराम बाबा को प्रेमावेश हुआ और पास ही के एक गन्ने के सघन खेत को ३ मील तक चिरते हुए वे पार हो गए । सम्पूर्ण शरूर रक्त से भर गया , घंटो मूर्छित अवस्था मे रहे । ऐसा रास्ते मे के बार हुआ और बहुत दिनों के बाद वे संत जगन्नाथ पूरी पहुंचे ।

*२. भक्त भूरामल और उसकी पत्नी को वरदान देना –*

जयपुर मे एक भूरामल बजाज नाम के व्यापारी रहते थे जो बाबा के शिष्य भी थे। एक बार उन्होंने अपने ३ मंजिला मकान की छत पर कीर्तन का आयोजन करवाया । अनेक सत्संगी भक्त और संतो को बुलाया, बाबा को भी कीर्तन में बुलाया । बाबा ने कहा की छतपर कीर्तन करना ठीक बात नही है , पता नही कब प्रेमावेश आ जाए और सब लोगो को परेशानी हो जाए । अच्छा होगा की नीचे आंगन मे ही कीर्तन हो । भूरामल सेठ ने कहा की महाराज आप केवल कोने मे बैठे रहना ,अब इंतजाम हो गया है । भूरामल के आग्रह करने से बाबा कीर्तन मे बैठ गए । कीर्तन शुरू हुआ –

*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।*
*हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।*

परंतु कुछ देर बाद उनसे रहा नही गया, वे कीर्तन मे इतने लीन हो गए की नृत्य करते करते वे दौड़ पड़े और छतसे नीचे जा गिरे । सब लोग नीचे भागे और बाबा को उठाया, कुछ देर मूर्छा रही । बाबा के एक हाथ मे ज्यादा चोट लगी थी जिस कारण भूरामल बहुत दुखे हुए की हमने बाबा की आज्ञा का उल्लंघन किया । भूरामल ने अपने घर पर राखकर उनकी बहुत अच्छी प्रकार लंबे समय तक सेवा की । एक दिन श्रीहरेराम बाबा प्रसन्न होकर बोले – भूरामल बच्चा ! मै तेरे ऊपर बहुत प्रसन्न हूं ,कुछ मांग ले ।

भूरामल ने कहा – बाबा,मेरी यही इच्छा है की मेरा शरीर भगवान का भजन करते हुए छुटे और मुझे भगवान के नित्य धाम की प्राप्ति हो । बाबा ने कहा – ठीक है बच्चा ! ऐसा ही होगा । तू अकेला ही नही अपितु तेरी पत्नी भी तेरे साथ भजन करते करते भगवान के धाम को जाएगी । इस घटना के कुछ समय बाद, एक दिन बाबा श्री गणेशदास , पुजारी श्रीरामचंद्रदास जी और श्री हरेराम बाबा – ये ३ संत जयपुर के पास गलता आश्रम पर प्रातः काल स्नान कर रहे थे । श्री हरेराम बाबा पहले स्नान कर और तिलक स्वरूप करके माला जपने लगे , उसी समय श्रीहरेराम बाबा सहसा उठे और दोनों हाथ उठा कर आशिर्वाद देकर बोले – बहुत अच्छे भूरामल बच्चा ! धाम को पधारो और ठाकुर जी को मेरी ओर से भी प्रणाम कर देना । बाबा गणेशदास जी और पुजारी जी ने पूछा – बाबा! आप ये आकाश की ओर देखकर किससे बातें कर रहे थे ? श्री हरेराम बाबा ने कहा की क्या तुमने देखा नही -भूरामल उसकी पत्नी के सहित विमान मे बैठकर वैकुंठ को जा रहा है , उसीको आशीर्वाद देकर भगवान को प्रणाम करने को कह रहा था । थोड़ी ही देर बाद भूरामल सेठ के घर का एक सेवक आया और उसने बताया की कुछ देर पहले भूरामल सेठ और उसकी पत्नी का भजन करते करते शरीर छूट गया है ।

*३. एक चुड़ैल सहित अन्य प्रेतों का उद्धार –*

श्री हरेराम बाबा राजस्थान के पाली जिले मे स्थित मुंडारा गांव मे एक खेत के पास झोंपडा बना कर निवास करते थे । एक दिन गांव के एक व्यक्ति के घर मे भूत प्रेतों का उपद्रव हो गया ।तांत्रिक, पूजा पाठ प्रयोग, ओझा सब ने प्रयास किया , बहुत प्रकार से अन्य उपाय करने पर भी समाधान नही हुआ तब वो पीड़ित व्यक्ति अपने परिवार सहित घर छोड़कर शहर की ओर चलने को तयार हुआ । किसी ने उस व्यक्ति से कहा की श्रीहरेराम बाबा बड़े सिद्ध महात्मा है, यदि वे इस मकान मे रह जाएं तो भूतप्रेत भाग जाएंगे । पीड़ित व्यक्ति बाबा के पास जाकर सत्य बात बोला नही । उसने कह दिया की महाराज आप यहां खेत के पास खुले मे रहते है , ठंड का समय है । हमारा मकान खाली पड़ा है , वहां हमने साफ सफाई कर रखी है और हैम अब शहर जा रहे है अतः आप हमारे मकान मे ही रहो। बाबा बोले ठीक है बच्चा, वहां ठंड भी कम लगेगी । सुबह बाबा अपना कमंडलु, माला और आसान लेकर वहां पहुंचे और भजन मे बैठ गए । जैसे ही संध्याका समय हुआ, प्रेतों का उपद्रव शुरू हो गया ।

बाबा समझ गए की यहां प्रेतों का निवास है परंतु बाबा शांति से भजन मे लगे रहे । प्रेतों ने बहुत प्रकार से नाच गाना किया और शोर मचाया परंतु बाबा भजन से नही उठे । अंत मे एक चुड़ैल बाबा के सामने आकर खड़ी हो गयी । श्रीहरेराम बाबा उस स्त्री को पहचानते थे , वे बोले – अरे ! तु तो इसी गांव की थी और कुंए मे गिरकर तेरी मृत्यु हो गयी थी । ब्राह्मण परिवार की बहु होने पर भी तुझे प्रेत योनि कैसे प्राप्त हो गयी । उसने बताया की जन्म चाहे कितने ही ऊंचे कुल मे हो जाएं पतन्तु आचरण अच्छा न हो तो अधोगति मे जाना पड़ता है । परपुरुष के संग करने के पाप से मुझे प्रेत बनना पड़ा । मै पातिव्रत का पालन नही कर पाई और बाद मे मैंने आत्महत्या की । मै इस प्रेत योनि मे बडा कष्ट पा रही हूं , आप मेरा उद्धार कीजिये । बाबा बोले यहां और कितने भूतप्रेत है ? उस चुड़ैल ने कहा – हमारी संख्या १५ है । बाबा ने कहा ठीक है मै तुम्हारा उद्धार करने के विषय मे विचार करूँगा । अगले दिन वह फिर आयी और बोली – बाबा हमपर कृपा करो । बाबा थोड़े विनोदी स्वभाव के थे, उन्होंने कहा – बातों से उद्धार होता है क्या? उद्धार तो घी से होता है ।

हमारा घी समाप्त हो गया है – गौ का घी लाओ , सुखी रोटी भागवान को भोग लगा रहे है । चुड़ैल बोली ठीक है मै अभी घी लेकर आती हूं । गांव में एक यादव परिवार के मुखिया जी रहते थे। वो चुड़ैल जाकर उनके बहु के शरीर पर चढ़ गयी ।अब बहु अजीब अजीब हरकत करने लगी ।एक तंत्र मंत्र करने वाले ओझा को बुलाया गया और जैसे ही उसने मंत्रो का प्रयोग किया तो वह चुड़ैल बोलने लगी – छोडूंगी नही, मै इसको लेकर जाऊंगी । ओझा जी बोले – इसको छोड़ दो , नई नई शादी हुई है इसकी, इसके प्राण क्यो लेना चाहती हो ? चुड़ैल ने कहा – नही मै इसको लेकर जाऊंगी। ओझा ने पूछा – इसको छोड़कर किस प्रकार से जाओगी ? उपाय बताओ । चुड़ैल बोली – गांव मे एक हरेराम बाबा नाम नामक महात्मा है, उनका घी खत्म हो गया है । भगवान को सुखी रोटी का भोग लगा रहे है , उनके पास गाय का घी पहुंचाओ तो मैं इसको छोड़ कर जाऊंगी । मुखिया जी के पास ३ किलो गाय का घी था, वह तुरंत सेवक के हाथ से बाबा के पास भिजवाया । जैसे ही बाबा के पास घी पहुंचा, वह चुड़ैल वापस आ गयी ।

गांव मे यह बात फैल गयी की यदि बाबा को घी नही दिया तो हमारे घर भी भूतप्रेत भेज देगा । हर दिन बाबा के यहां पाव भर ताजा घी आने लगा । बाबा उससे संत सेवा भी करने लगे- हलवा, पुरी, चावल आदि मे घी का प्रयोग करते ।कुछ दिन बाद वह चुड़ैल बाबा के पास आकर बोली – बाबा! रोज का घी का प्रबंध तो हो गया , अब हमारा उद्धार करो । बाबा बोले – तुम्हारा उद्धार कैसे होगा ? उसने कहा की हमारे लिए यदि शिवपुराण की कथा हो तब हमारा उद्धार होगा । बाबा ने कहा की ठीक है, जब तुम्हारा उद्धार हो जाए तब हमे अनुभूति करवा कर जाना। बाबा ने पास मेरहने वाले एक ब्राह्मण जनकीप्रसाद चौबे को बुलाया और उनसे बाबा श्री गणेशदास जी के नाम एक पत्र लिखवाया । उसमे घटना लिख दी की इस कार्य के लिए शिवपुराण की कथा करनी है । बाबा गणेशदास की ने कहा की हमने कभी शिवपुराण की कथा तो कही नही परंतु श्री हरेराम बाबा की आज्ञा है तो कथा करेंगे ।

बाबा श्री गणेशदास जी मथुरा से चलकर हरेराम बाबा के पास आये और प्रातः काल महाराज जी मूल पाठ करते थे और संध्याकाल ५ घंटे कथा कहते थे । कथा के अंतिम दिन एक दिव्य तेज प्रकट हुआ, वे सभी प्रेत दिव्य शरीर धारण करके श्रीहरेराम बाबा के सामने आकर प्रणाम करके बोले – बाबा ! भगवान शिव के गणो का विमान आ गया जी । उनके साथ हम लोग कैलाश को जा रहे है ।

*४. संतो मे श्रद्धा और भगवत्प्राप्ति का मार्ग –*

एक बार बाबा गणेशदास जी ने उनका थोड़ा परिचय और कुछ पद एक पुस्तक के रूप में श्री रामानंद पुस्तकालय (सुदामा कुटी ) से प्रकाशित किया । दिल्ली की एक स्त्री ने वह पुस्तक पढ़ी और सोचा कि इस समय भी ऐसे भगवत्प्राप्त संत विराजमान है तो दर्शन करना ही चाहिए । वह स्त्री उस पुस्तक पर पता पढ़ कर सुदामा कुटी पहुंची । वहां उस समय राजेंद्रदास जी एवं कुछ अन्य वैष्णव सेवा मे रहते थे । उस स्त्री ने पूछा की इस पुस्तक मे जिनके पद है, क्या उन संत के दर्शन हो सकते है ? राजेंद्रदास जी ने कहा – बाबा का अब शरीर वृद्ध हो गया है , चल फिर नही पाते है । उस स्त्री ने हरेराम बाबा के विषय मे अधिक जानने की इच्छा प्रकट की । राजेंद्रदास जी ने उनकी कुछ अनुभूतियां सुनायी जिस कारण उस स्त्री की श्रद्धा और अधिक बढ़ गयी । राजेंद्रदास जी ने बाबा से अंदर जाकर कहा की एक भक्तानि दर्शन करने आयी है । श्री हरेराम बाबा बोले – यहां किसीको मत लाओ, मै नंद धड़ंग रहता हूँ । शरीर पर लंगोटी भी होती नही । राजेंद्रदास जी बोले – बाबा ! श्रद्धावान स्त्री है , बहुत दर्शन करने की लालसा है । बाबा ने कहा ठीक है ।

राजेंद्रदास जी ने श्री हरेराम बाबा के शरीर पर कपड़ा डाल दिया और उस भक्तानि को अंदर लाये । उनसे प्रणाम किया और कुछ सेब और ५१ रुपये भेट मे दिए । बाबा ने उससे पूछा की वो कहा से आयी है , घर मे कौन कौन है आदि सब। उसने घर परिवार का सब हाल सुनाया । अंत मे बाबा ने पूछा की तुम्हारा विवाह हुआ की नही ? उसने कहा की घर परिवार की जिम्मेदारी मुझपर आने की वजह से अब तक विवाह नही हुआ । बाबा बोले – मै अब विवाह के योग्य नही हूँ, मेरा शरीर अब वृद्ध हो गया है । स्त्री बोली – बाबा आप ये कैसी बात कर रहे है , मै आपकी नातिन (पोती) जैसी हूं । आप साधु होकर ये कैसी बात करते है । बाबा बोले –
तुम्हे किसने कह दिया की मै साधु हूँ, मै कोई साधु महात्मा नही हूं – मै तो गुंडा और पागल हूं । गुंडा और पागल तो ऐसे बात करता है । वो स्त्री गड़बड़ा कर नाराज होकर भागने लगी, जाते जाते सब मिठाई, सेब, रुपया भी वापस कर दिया । राजेंद्रदास जी ने पूछा – बाबा! वह स्त्री श्रद्धा से आपके पास आयी थी, आपने ऐसे बात करके उसको क्यों सब भेट वापस कर दी ।

बाबा बोले – मै बूढ़ा हूं परंतु यहां रहने वाले सब संत बूढ़े नही है । विरक्त संतो के यहां अकेले महिलाओं का आना ठीक नही है । बार बार आना जाना शुरू होगा यह अच्छा नही है, मेरी १०० साल के ऊपर उम्र चल रही है । इतने साल रामजी ने माया से बचाये रखा अब बुढापे मे मैं अपने वैराग्य पर कलंक नही लगा सकता । इस तरह की बात करने से वह दोबारा आने का प्रयास नही करेगी । राजेंद्रदासजी ने पूछा – बाबा! अगली बार आ गयी तो ? बाबा बोली अबकी बार आयी तो गाली दूंगा । राजेंद्रदास जी ने पूछा – पुनः गाली खाकर भी आ जाए तो ? बाबा बोले फिर तो डंडा लेकर उसको भगाऊंगा । राजेंद्रदासजी ने पूछा – डंडा के डरसे भी न मानी तो क्या करेंगे बाबा । यह सुनकर बाबा रोने लगे और कहा की – यदि उसकी ऐसी श्रद्धा संतो के चरणों मे है, तो फिर मैं उसको श्रीकृष्ण से मिलने का रास्ता बता दूंगा ।

*हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे ।*
*हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे ।।*

*१९९२ आषाढ़ कृष्ण चतुर्थी को बाबा श्रीभगवान के धाम पधारे ।*

*‼जय सियाराम‼*

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