श्री गिरिराज जी महाराज की तरहठी में एक सिद्ध गौड़ीय वैष्णव संत रहते थे जिनको सभी श्री पंडित बाबा के नाम से जानते थे। एक ब्रजवासन स्त्री संत बाबा की सेवा करने रोज आती और उनके फल आदि दे जाती। बाबा किसी को कभी अपना शिष्य नहीं बनाते थे।
एक बार वह भोली ब्रजवासन स्त्री बाबा के पास आकर बोली - बाबा ! मुझे कौन सा मंत्र जपना चाहिए ? बाबा ने पूछा - बेटी कौन से कुल से हो ? कौन से संप्रदाय से हो ? उस स्त्री ने उत्तर दिया की बाबा मै तो वल्लभ कुल की हूँ। बाबा बोले - बेटी वल्लभ कुल में तो एक ही मंत्र जपा जाता है। अष्टाक्षर मंत्र - श्री कृष्णः शरणम् मम। यही जपा करो तुम भी। ब्रजवासन स्त्री बोली - बाबा ! यह नाम (कृष्ण) मुन्ना के चाचा अर्थात मेरे जेठ जी का नाम है, मै नहीं जप सकती। मुझे लाज आती है। बाबा बोले - अच्छा फिर क्या जप सकती हो ? उनको क्या कहकर पुकारती हो ? स्त्री ने कहा - हम तो मुन्ना के चाचा की कहते है उनको। बाबा बोले - तो तुम "मुन्ना के चाचा शरणम मम" जपो परंतु रूप ध्यान और स्मरण भगवान् श्रीकृष्ण का ही रखना। फिर बाबा बोले - अच्छा और क्या पूछना चाहती है बता ? स्त्री बोली - बाबा मेरे मन में एक इच्छा है की भगवान् मुझे बड़ी एकादशी के दिन ही अपने धाम लेकर जाए। बाबा मुस्कुराये और बोले ठीक है ऐसा ही होगा। तू यह बताया हुआ नाम जप और अंदर से भाव स्मरण भगवान् का ही रखना।
बाबा के शरीर छोडने के बाद जब वह स्त्री भी बूढी हो गयी और कुछ ही समय बाद जब बड़ी एकादशी आयी तो, भगवान् स्वयं उसे लेने आये और याद दिलाया की तूने बाबा से इच्छा कही थी की इसी दिन भगवान् मुझे अपने धाम ले जाए। मंत्र तो अजब गजब का था पर संत के मुख से निकल था, इसी मंत्र का स्मरण करती हुई वह स्त्री श्री भगवान् के साथ गोलोक धाम को चली गयी।
*"जय जय श्री राधे"*🙏🏻💫
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