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|| गीता की महिमा ||

🙏🏼🌹 *_श्रीकृष्ण_*🌹🙏🏼

*_श्रीज़गन्नाथपुरी में एक सरल हृदय के  सदाचारी ब्राह्मण सपरिवार रहते थे । उनको गीता से बड़ा प्रेम था, वह दिन-रात गीता का अध्ययन और मनन किया करते थे । अवश्य ही उनका  सकाम भाव अभी दूर नहीँ हुआ था, परन्तु थे वे बड़े विश्वासी ।_ _एक दिन वे गीता के प्रत्येक शब्द का क्रियात्मक अर्थ देखना चाहते थे । पाठ करते समय जब उपर्युक्त श्लोकका "वहाम्यहम्" शब्द आया, तब ब्राह्मण सोचने लगे कि क्या भगवान् अपने भक्तके लिये आवश्यक वस्तुएँ स्वयं ढोकर उसके घर पहुँचा आते हैं; नहीं, नहीं ! ऐसा नहीं हो सकता, भगवान् किसी दूसरे साधन से संग्रह करां देते होंगे। यह विचारकर ब्राह्यणने  "वहाम्यहम" का अर्थ ठीक न बैठते देख गीताके उक्त पद को काटकर उसकी जगह ऊपर "करोम्यहम" लिख दिया । ब्राह्मण भिक्षावृत्तिसे जीवननिर्वाह करते थे । भगवान की अपार माया है; एक दिन मूसलाधार वृष्टि होने लगी । ब्राह्मणदेवता उस दिन घर से न निकल सकने के कारण दिनभर सपरिवार भूखे ही रहे । दूसरे दिन वर्षा बन्द होने पर ब्राह्मण भीखके लिये चले । उनके घर से जाने के थोड़ी ही देर बाद एक खून से लथपथ अत्यन्त ही सुन्दर बालक ब्राह्मणके घर पर आकर ब्राह्मणी से बोला--- "पंडितजी महाराजने यह प्रसाद भेजा है।" ब्राह्मणी बालक के मनोहर बदन को देखकर और उसके मीठे वचन सुनकर मुग्ध हो गयी, परन्तु उसके शरीर से खून बहता देखकर 'उसे बहुत ही दुःख हुआ । उसने आँसू भरे नेत्रोंसे पूछा -- "तुमको किस निठुरने मारा है ?" बालक ने ब्राह्मणीके पतिका नाम लेकर कहा कि "मुझको ब्राह्मणदेवता ने मारा है ।"_*

*_ब्राह्मणी तो अचरजमें डूब गयी; कहने लगी  --- 'वह तो बड़े सीधे-सादे, अक्रोधी और परम भागवत हैँ; तुम-सरीखे नयनमनलुभावन बालक को वह क्यों मारने लगे ?' बालकने कहा -- 'मैं सच कहता हूँ माँ ! उन्होंने ही एक शूलसे मेरे बदनको काट डाला है, उन्होंने क्यों ऐसा किया, इस बात को तो वही जाने।'_*

*_इतना कहकर और प्रसाद रखकर बालक वहाँ से चल दिया; ब्राह्मणीको अन्यमनस्क होनेके कारण उसको जानेका पता नहीं लगा । वह कुछ भी न समझकर अति दुःखित चित्तसे स्वामीके घर आने की बाट देखने लगी । समय पर ब्राह्मण घर आये । ब्राह्मणीने विनयके साथ, किन्तु रोष और विषादभरे शब्दों में सारा वृत्तान्त ब्राह्मण को कह सुनाया । पण्डितजी गृहिणी की बात सुनकर अवाक् हो गये । गीता के श्लोक पर हरताल की कलम फेरनेकी घटना को स्मरण कर वह व्याकुल हो उठे । उनकी आँखों से आँसुओँ की धारा बहने लगी । ब्राह्मण अब समझे कि सचमुच ही भगवान् अपने विश्वासी भक्तके लिये स्वयं सिरपर ढोकर आहारादि पहुँचाते हैं । गीता श्रीभगवान् का अंग हें । गीताका श्लोक काटने से भगवान् के शरीर पर चोट लगी है । ब्राह्मण अपनी करनीपर पश्चात्ताप करते-करते मूर्च्छित होकर पृथ्वीपर गिर पड़े । भगवान् ने उन्हें दर्शन देकर कृतार्थ किया । कुछ समय बाद उठकर वे भगवान् से  क्षमा-प्रार्थना करने लगे और भावविह्वल होकर गीताके चारों ओर "वहाम्यहम्" "वहाम्यहम्" लिखने लगे !_*
(प्रेम-दर्शन पृ. ९०)

_*नित्यलीलालीन श्री हनुमान प्रसाद जी पोद्दार*_

🙏🏼🌹 *श्री राधे* 🌹🙏🏼

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